पास -फेल — कहानी-देवेंद्र कुमार
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पार्क में बैठ कर अख़बार
पढना रामदास को अच्छा लगता है। लेकिन हवा का झोंका जब अख़बार का पन्ना उड़ा कर ले
जाता है तो बहुत दिक्कत होती है, क्योंकि घुटनों में दर्द के कारण रामदास को चलने
में परेशानी है। वह उड़ कर इधर-उधर जा गिरे पन्नों को उठाने के लिए नहीं जाता, अक्सर ही वहां बैठे दूसरे लोग उसकी मदद कर देते
हैं। ऐसा रोज ही हो जाता है। लेकिन उस दिन हवा ने शैतानी नहीं की।अख़बार पढने के
बाद रामदास धीरे- धीरे बाग़ से निकल कर अपने फ्लैट की ओर चल दिया पर फिर ठिठक गया-
अरे, अपनी ऊनी टोपी तो वह बेंच पर ही भूल आया था। अब क्या हो?
वह रेलिंग के बाहर से बेंच की ओर देखने लगा। दर्द के कारण खुद जाकर कैप लेकर
आना मुश्किल लग रहा था। बाग़ में कुछ किशोर खेल रहे थे। रामदास उन्हें देखता रहा।
तभी एक लड़का उस तरफ आया जहाँ रामदास रेलिंग के दूसरी तरफ खड़ा था। उसने जल्दी-जल्दी
अपनी मुश्किल बतलाई तो लड़का झट बेंच की तरफ दौड़ गया और ऊनी टोपी लाकर रामदास को थमा दी फिर बोला –‘’
टोपी के नीचे यह नोट भी दबा हुआ था।’’ और उसने १००
का नोट रामदास की ओर बढ़ा दिया।
रामदास चौंक गया। आखिर किसका था वह सौ का नोट? उसने टोपी लाने के लिए लड़के को
धन्यवाद देते हुए कहा-‘’ बेटा, यह सौ का नोट मेरा नहीं है, हवा में उड़ कर आ गया
होगा। बाग़ में जाकर पूछ लो । वहां बैठे हुए लोगों में से ही किसी का होगा।’’
‘’ हवा उड़ा कर लाती तो नोट जमीन पर पड़ा होता, लेकिन मुझे तो यह आपकी टोपी के नीचे
दबा हुआ मिला है।’’
‘’ यह नोट मेरा नहीं है। मैं इसे नहीं ले सकता।’’ रामदास ने कहा और मुड़ कर
अपने फ्लैट की ओर चल दिया। वह कुछ ही दूर गया होगा कि पीछे से आवाज़ आई –‘’ अंकल,
जरा रुकिए ।’’ रामदास ने मुड़ कर देखा, वही लड़का रुकने का
इशारा कर रहा था। रामदास ठहर गया. वह कुछ समझ नहीं पा
रहा था। लड़का पास आया तो रामदास ने पूछा-‘’ अब क्या है?’’
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‘’ जी उसी नोट के बारे में कुछ कहना …’’ रामदास ने उसकी
बात पूरी नहीं होने दी। बीच में ही बोल उठा-‘’ मैंने कह दिया न कि १०० का नोट मेरा
नहीं है , मैं इसे नहीं ले सकता। ‘
‘ जी मुझे मालूम था कि आप उस नोट को कभी नहीं लेंगे। मैं यही कहने आया हूँ। ‘’
‘’ क्या मतलब?’’- रामदास ने कहा।
‘’ असल में तो मैं आपसे माफ़ी मांगने आया हूँ।’’ लड़के ने कहा।
‘’माफ़ी लेकिन किस बात के लिए?’’
‘’ जी वह सौ का नोट मेरा है।मैंने सौ के नोट के बारे में झूठ कहा था। मैं
देखना चाहता था कि आप नोट के बारे में क्या कहते हैं।’’
रामदास के मन में क्रोध की तेज लहर उठी। आखिर यह लड़का क्या ऊलजलूल बक रहा रहा
है! इसने सौ के नोट के बारे में झूठ क्यों कहा। बोला-‘’ मेरे साथ ऐसा भद्दा मजाक
करने की हिम्मत कैसे हुई तुम्हारी?’’
लड़के ने झुक कर रामदास के पैर छू लिए। ‘’ मैं अपनी गुस्ताखी के लिए माफ़ी चाहता
हूँ। ‘’
‘’अगर मैं तुम्हे माफ़ न करूं तो क्या करोगे?’’
‘’आप मुझे जो चाहें सजा दे सकते हैं।’’- लड़के ने कहा। उसकी आँखें जमीन पर टिकी
हुई थीं।
उसका चेहरा देख कर रामदास का गुस्सा ठंडा हो गया। उसने हंस कर कहा –‘’ यह
तुम्हे क्या सूझा कि मुझसे ऐसा मजाक कर बैठे। ‘’ और एक तरफ चबूतरे पर बैठ गया। वह
उस लड़के के बारे में और बातें जानना चाहता था। पूछने पर लड़के ने अपना नाम राकेश
बताया। उसके माँ- बाप गाँव में रहते थे। राकेश शहर में रहकर पढाई कर रहा था। अपना
खर्च चलाने के लिए वह कई काम करता था। रामदास की सोसाइटी में सुबह अखबार डालता था।
राकेश ने बताया-‘’ मैं माँ-बाप पर अपना कोई बोझ नहीं डालना चाहता ।’’
‘’यह तो अच्छी बात है।’’-रामदास ने कहा।’’ लेकिन…’’
राकेश ने कहा –‘’ जब मैं आपकी टोपी लेकर आ रहा था तो न जाने क्यों मुझे अपनी
माँ की याद आ गई। मुझे लगा आप भी मेरी माँ जैसे हैं|’’
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रामदास को बरबस हंसी आ गई। बोला-‘’ वाह! न जान ना पह्चान और मुझे अपनी माँ के
साथ खड़ा कर दिया।’’
‘’ एक दिन मुझे सड़क पर दस का नोट मिला तो मैंने माँ को दे दिया। फिर तो मेरी
आफत ही आ गई। उन्होंने कहा कि जो चीज़ अपनी नहीं है उसे कभी हाथ मत लगाना, मैंने उन
पैसों का दाना लेकर कबूतरों को डाला तभी उनका गुस्सा शांत हुआ।’’ राकेश ने कहा।
रामदास मुस्कराते हुए सुन रहा था। राकेश ने आगे कहा-‘’ आपको देख कर लग रहा था कि आप सौ का नोट कभी नहीं
लेंगे और वैसा ही हुआ|’’
‘’ तो मै तुम्हारी परीक्षा में पास हो गया !”- रामदास ने व्यग्य से कहा और उठ खड़ा हुआ।राकेश चुप खड़ा
रामदास को जाते हुए देखता रहा।
अगली सुबह रामदास पार्क में जाने के लिए फ्लैट से निकल रहा था, तभी अखबार वाला आ गया। उसने रामदास से कहा-‘’ बाबूजी, अगर कोई छोकरा
अख़बार के पैसे मांगने आये तो मत देना।मैं खुद आकर ले जाऊँगा। ‘’ रामदास के पूछने
पर बताया कि सुबह अख़बार डालने वाला लड़का कुछ ग्राहकों से पैसे लेकर फुर्र हो गया
है,’’ न जाने क्यों रामदास की आँखों के सामने राकेश का चेहरा घूम गया, उस
दिन पार्क में बैठे हुए रामदास राकेश के बारे में सोचता रहा। अख़बार पढने में मन
नहीं लगा। वह री दुनिया! कल मेरी परीक्षा ले रहा था और आज अख़बार वाले के पैसे
लेकर चम्पत हो गया है। क्या बढ़ाचढ़ा कर माँ
की झूठी कहानी सुनाई थी]’ जरूर ऐसा ही है। गाँव में बैठी भोली माँ को भला अपने
बेटे की करतूतों की खबर कैसे मिलेगी।
कई दिन इसी तरह बीत गए, बीच में अख़बार वाला खुद आकर पैसे भी ले गया। चलते-
चलते पैसे लेकर चम्पत हो गए लड़के के बारे में चेतावनी देना नहीं भूला। दिन में कई
बार उस शैतान लड़के का चेहरा जब सामने आता तो मन में क्रोध की लहर उठने लगती। कैसे
सफाई से उसने एक अध्यापक की तरह रामदास की परीक्षा ले डाली थी। उसके चेहरे के साथ
किसी औरत का धुंधला आकार भी सामने आ जाता।
एक दिन बाग़ में बैठा अखबार पढ़ रहा था तो कोई आकर सामने खड़ा हो गया। वह राकेश
था। रामदास को झटका लगा। ‘’ कहाँ गायब हो गए थे?’’ पैसे लेकर भागने वाली बात
होंठों पर अटक कर रह गई।
‘’ जी माँ को देखने गया था। बीमार चल रही हैं। मैं तो अभी और उनके पास ठहरना
चाहता था लेकिन …’’
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रामदास की आँखें उसके चेहरे की उदासी में चालाकी की छाप खोजती रही देर तक।फिर
आवाज़ सुनाई दी-‘’ मैने माँ को आपके बारे में बताया तो कहने लगी कि आपको गाँव लेकर आऊं। फिर अपनी हरकत के बारे में कहा तो मुझे
बहुत फटकार लगाईं। मैंने उन्हें बहुत समझाया
पर उनका गुस्सा ठंडा न हुआ। ‘’
कुछ देर चुप्पी छाई रही। फिर राकेश की आवाज़ सुनाई दी-‘’ क्या आप मुझसे अब भी
नाराज़ हैं| ‘’ रामदास ने कोई उत्तर नहीं दिया। मन कह रहा था- यह छोकरा
फिर कोई कहानी सुना रहा है। लेकिन अन्दर एक तसल्ली थी कि यह वो नहीं था जो पैसे
लेकर भाग गया था। दोनों एक दूसरे की परीक्षा में पास हो गए थे शायद,,,, (
समाप्त )
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