Tuesday 30 May 2023

धूप और छाया-देवेंद्र कुमार

 

       धूप और छाया-देवेंद्र कुमार

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पेड़ क्यों उदास था, शायद किसी को पता नहीं था। सड़क के इस भाग में काफी भीड़ रहती है, क्योंकि यहाँ रास्ता सँकरा है, जबिक यातायात बहुत बढ़ गया है। इसीलिए सड़क चौड़ी की जा रही है। पुरानी सड़क तोड़ दी गई है। उसका मलबा चारों ओर बिखरा पड़ा है। पुराना बस-स्टैंड भी तोड़ दिया गया। अब बस-यात्रियों को धूप और बारिश में खुले आकाश के नीचे खड़े रहकर बस की प्रतीक्षा करनी पड़ती है। बस-स्टैंड के पास ही वह घना पेड़ था। पर सड़क का मलबा पेड़ के नीचे तक फैल गया था इसलिए पेड़ की छाया आजकल किसी काम नहीं आती थी, गंदगी के बीच वहाँ भला कौन खड़ा हो सकता था।

 

लोक शिकायत करते हुए कहते हैं, “गंदगी फैलाकर पेड़ की छाया भी छीन ली है सड़क बनाने वालों ने!”

 

पेड़ घना है, उस पर बहुत सारे परिंदों का बसेरा है। पेड़ अपनी छाया की छतरी बस-स्टैंड पर बस का इंतजार करने वालों के सिर पर तानना चाहता है पर मजबूरी है। ईंट-पत्थर रोड़े सब तरफ फैले रहने के कारण लोग चाहकर भी पेड़ के नीचे खड़े नहीं हो पाते। इसीलिए उदास था पेड़। सड़क टूटने से पहले धूप से परेशान राहगीर अकसर ही कुछ देर के लिए पेड़ की घनी छाया के नीचे खड़े हो जाया करते थे। बच्चे, बूढ़े, औरतें, मर्द सभी। कुछ लोग चुप खड़े रहते थे, तो कुछ आपस में बातें करते थे। कभी अपनी, कभी दूसरों की।

 

पेड़ को उनकी बातों में आनंद आता था। वह सोचता था, मैं तो कहीं जा नहीं सकता, आने-जाने वालों की बातें सुनकर ही मन बहला सकता हूँ। लेकिन सड़क तोड़ दी गई और पेड़ का यह आनंद भी जाता रहा। पेड़ के हाथ तो थे नहीं जो स्वयं वहाँ बिखरे ईंट-पत्थर के टुकड़े उठाकर दूर फेंक देता और लोग उसकी छाया में 0खड़े हो सकते।

 

रात हुई, परिंदे पेड़ पर बने अपने घोंसलों में लौटने लगे तो पेड़ को अच्छा लगा। डालियों पर अनेक घोंसले थे। उनमें नन्हे परिंदों की चूँ-चिर्र गूँज रही थी जो सारा दिन से अपने माँ-बाप के दाना लेकर लौटने की प्रतीक्षा कर रहे थे। फिर सन्नाटा छाने लगा। घोंसले खामोश होकर नींद में डूब गए। पेड़ सोच रहा था, आने वाले कल के बारे में। वह कौन-सा दिन होगा जब मेरी जड़ों को घेरकर फैला मलबा उठेगा। लोग फिर से नीचे आकर खड़े होने लगेंगे। छाया में बातें करेंगे।

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दिन निकला। धीरे-धीरे सड़क पर भीड़ बढ़ने लगी। सड़क चौड़ी करने का काम चल रहा था। सब तरफ मशीनें बेतरबीत ढंग से खड़ी थीं, रोड़ी-बजरी के ढेर फैले थे। तारकोल के ड्रम पड़े थे। पेड़ को यह दृश्य पसंद नहीं था, पर वह कुछ कर नहीं सकता था।

 

दोपहर में धूप तेज थी। तभी सिर पर बोझ रखे एक लड़का वहाँ से गुजरा। वह पेड़ के पास रुक गया। सिर पर बोझ उठाकर एक तरफ रख दिया। कुछ देर तक पेड़ के चारों ओर फैले मलबे को देखता रहा। फिर जाने मन में क्या आया, मलबे को उठाकर पेड़ से परे फेंकने लगा। इस तरह उसने अपने बैठने लायक जगह साफ कर ली। फिर पेड़ की छाया में लेट गया। पेड़ मुस्कराया, उसके पत्ते सरसराए। उसने धीरे से कहा, “शाबाश बच्चे, आज तुमने एक अच्छा काम किया है।

 

लेकिन शायद लड़के ने कुछ नहीं सुना। वह आँखें बंद किए पेड़ की छाया में लेटा रहा। कुछ देर बाद उठा और बोझ को फिर से सिर पर रखकर धूप में चल दिया।क्या यह लड़का कल भी आएगा?’ पेड़ सोच रहा था। तभी दो जने उस जगह खड़े हुए जहाँ से उस मजूर बच्चे ने मलबा हटाया था।

 

अगली सुबह वह लड़का फिर वहाँ पहुँचा। इस बार वह अकेला नहीं था। उसके संग तीन साथी और थे। उन चारों ने  मिलकर पेड़ के नीचे पड़ा बाकी मलबा भी साफ कर दिया। फिर झाडू से धूल बुहार दी। इसके बाद एक बाल्टी में पानी लाकर पेड़ के नीचे छिड़क दिया- फिर चारों वहाँ से चले गए।

पेड़ जानना चाहता था, पहले दिन वहाँ सफाई शुरू करने वाला लड़का कौन था? क्योंकि वही तो अपने साथियों  को लेकर आया था। उन लोगों ने पेड़ के नीचे वाली जगह पूरी तरह साफ कर डाली थी।

 

धूप बढ़ी। टूटे हुए बस-स्टैंड पर बस की प्रतीक्षा करने वालों की भीड़ भी बढ़ गई। फिर धीरे-धीरे सब लोग पेड़ की घनी छाया की छतरी के नीचे खड़े हुए। वे सब हैरान थे। आपस में बातें कर रहे थे कि यह तो बहुत अच्छा हो गया। आखिर किसने की है यहाँ की सफाई? किसे दया गई धूप में बसों का इंतजार करने वाले लोगों पर।

 

पेड़ सोच रहा था, ‘काश, इस समय भी वह लड़का यहाँ होता जिसने सफाई की थी। जो कुछ उसने किया था, वह काम ये लोग भी तो कर सकते थे। ये धूप में परेशान होते रहे, पर पेड़ के नीचे सफाई करने की बात किसी के दिमाग में नहीं आई। आखिर कुछ मनुष्य दूसरों की मेहनत का ही फायदा क्यों उठाना चाहते हैं।पेड़ को इस सवाल का जवाब मिलने वाला नहीं था। लेकिन अब उसकी उदासी दूर हो गई थी। लोग उसकी छाया में खड़े होकर बातें कर रहे थे।

बसें आकर रुकतीं फिर बढ़ जातीं। कुछ लोग बसों में सवार होकर चले जाते और उनकी जगह नए लोग आकर बस का इंतजार करने लगते। लेकिन पेड़ का मन फिर भी उदास था। वह फिर से उस लड़के को देखना चाहता था जिसने तपती दोपहर में पेड़ के नीचे सफाई का काम पूरा कर डाला था। अपने लिए नहीं, औरों के लिए।

पेड़ ने फिर उस लड़के को नहीं देखा, जाने कहाँ चला गया था। पर उसे लगता था, वह लड़का एक एक दिन जरूर आएगा उसकी ठंडी छाया में आराम करने के लिए।(समाप्त )