पंख बोलते हैं—देवेन्द्र कुमार—कहानी बच्चों के लिए
कभी पिंजरे में गूंगी चिड़िया थी और अब पिंजरा खाली था.श्यामू के मन
में ख़ुशी और उदासी दोनों ने जगह बना ली थी.
==श्यामू
ठेलेवाला माल ढोता है। उसका ठेला गली के मोड़ पर खड़ा रहता है। जब कोई पुकारता है तो
आवाज लगाता है-- ‘’आया बाबू |’’ और आवाज के
साथ-साथ दौड़ा चला आता है। उसके कंधे पर एक अंगोछा सदा दिखाई देता है। श्यामू सबसे
मीठा बोलता है और मजदूरी में कभी कहा-सुनी नहीं करता। इसीलिए गली में सभी उससे काम
करवाना पसंद करते हैं।
उस
दिन गली के चतुर भाई को कहीं सामान भेजना था। उन्होंने श्यामू को पुकारा- “श्यामू ,
जरा
सुनना।”
पर आश्चर्य! श्यामू ने चतुर भाई की
पुकार का कोई उत्तर नहीं दिया। उन्होंने फिर आवाज दी, पर श्यामू ने इस बार भी कुछ नहीं कहा। बस मुंह दूसरी तरफ
घुमाए हुए कुछ देखता खड़ा रहा। पता नहीं क्या! चतुर भाई को श्यामू का व्यवहार विचित्र
लगा। ऐसा तो वह कभी नहीं करता था, हमेशा पहली बार पुकारते ही दौड़ा चला आता था।
चतुर
भाई जरा गुस्से में उसके साथ पहुँचे। कहा-- “श्यामू ,
क्या
बात है। पुकार का जवाब ही नहीं दे रहे हो।”
श्यामू ने उनकी बात का जवाब न देकर कहा-- “बाबू,
जरा
उस चिड़िया को तो देखो। सामने खिड़की की जाली में फंसी हुई पंख फड़फड़ा रही है,
पर
गले से चूं चिर्र की कोई आवाज नहीं है। मैं उसी को देख रहा हूँ। अगर ऐसे में कोई
बिल्ली या दूसरा शिकारी पंछी आ जाए तो यह बच नहीं सकेगी। मैं यही सोच रहा हूँ।”
चतुर
भाई ने सामने वाले मकान की खिड़की की तरफ देखा। अरे हां, श्यामू ठीक ही तो कह रहा था। सचमुच चिड़िया के गले से
कोई आवाज़ नहीं निकल रही थी, हां अपने पंख जरूर फड़फड़ा रही थी छूटने की कोशिश में। उन्होंने कहा--“श्यामू
, तुम ठीक कहते हो। जरा देखो तो चिड़िया को हुआ क्या है।”
श्यामू ने चबूतरे पर चढ़कर खिड़की की जाली में फंसी
चिड़िया को धीरे से बाहर निकाल लिया। फिर उसके पंख सहलाने लगा। चिड़िया ने पंख तो
फड़फड़ाए, पर उसकी चोंच से चूं चिर्र की कोई आवाज अब भी बाहर नहीं आई। कहीं
चिड़िया गूंगी तो नहीं थी?
श्यामू ने चतुर भाई से कहा-- “बाबूजी, माफ
करना। पहले जरा इस चिड़िया को देख लूं फिर आपका काम भी कर दूंगा।” चतुर
मुड़कर चले गए। वह समझ गए थे कि इस समय श्यामू
का पूरा ध्यान उस चिड़िया में लगा है।
1
चिड़िया
सचमुच गूंगी थी, यह श्यामू
ने इतनी देर में समझ लिया था। वह उसे लिए हुए बाजार गया और एक छोटा सा
पिंजरा खरीद लिया। फिर चिड़िया को पिंजरे में बंद करके अपनी कोठरी में रख दिया-- वह
सोच रहा था-- “इस गूंगी चिड़िया का क्या किया जाए।”
इसे
तो पिंजरे में ही रखना होगा। अगर बाहर छोड़ा तो यह जरूर बिल्ली या किसी दूसरे शिकारी
पंछी का शिकार बन जाएगी। क्योंकि जब इस पर हमला होगा तो खुद को बचाने के लिए चूं
चिर्र भी नहीं कर पाएगी।
गूंगी
चिड़िया के चक्कर में श्यामू दो दिन बाजार
नहीं गया। काम नहीं हुआ तो पैसे भी नहीं मिले। ऐसे तो काम चल नहीं सकता था। आखिर
तीसरे दिन ठेला लेकर निकला तो उस पर गूंगी चिड़िया वाला छोटा सा पिंजरा भी था।
जिसने देखा वही हंस पड़ा। हरेक ने पूछा, “श्यामू अब तुम एक से दो हो गए। अब इस चिड़िया का करोगे
क्या?”
“क्या
करना है, ठेला खीचूंगा तो साथ में रखूंगा, कमरे पर जाऊंगा
तो तार से पिंजरा लटका दूंगा।“ श्यामू का एक ही जवाब था।
रात
में अपनी कोठरी में चिड़िया का पिंजरा लेकर बैठ जाता और चिड़ियों की तरह चूं चिर्र
की आवाज निकालता। वह सोचता था, शायद इस चिड़िया की मां इसे बोलना
सिखाना भूल गई, या एक दिन दाना चुगने गई हो और फिर लौट ही न
पाई हो। आखिर नन्हे बच्चों को भी बोलने की ट्रेनिंग देनी होती है, तभी
तो ये बोलना सीखते हैं। उसे देखने वाले कहते, “श्यामू तो पागल
हो गया है, जो चिड़िया के साथ ऐसा अजीब व्यवहार कर रहा है।
अरे चिड़िया अगर गूंगी है तो उसे उसके हाल पर छोड़ दो। देखना एक दिन पागल श्यामू पंख
लगाकर चिड़ियों की तरह आकाश में उड़ने की कोशिश न करने लगे।”
पर
श्यामू पर इन बातों का कोई असर न पड़ता। वह एक ही बात कहता था-- “गूंगी
चिड़िया अकेली है। भला उसे उसके हाल पर कैसे छोड़ दूं। वह क्या अपनी जान बचा पाएगी?”
चिड़िया
का पिंजरा हर समय श्यामू के ठेले पर ही दिखाई देता था। कहता- “भला
कोठरी में पिंजरे को कैसे छोड़ दूं। इसे दाना पानी कौन देगा। मैं तो काम के चक्कर
में सारा-सारा दिन बाजार में भटकता हूँ।”
लोग
अब उसे श्यामू चिड़ियावाला कहने लगे थे।
एक
रात एकाएक उसकी नींद टूट गई। कोठरी में चिड़िया की चूं चिर्र गूंज रही थी।
श्यामू हड़बड़ाकर उठ बैठा। वह फटी-फटी आंखों
से पिंजरे में बंद चिड़िया को देखता रहा। हां गूंगी चिड़िया ही बोल रही थी| यह क्या
जादू हो गया था। एकाएक गूंगी चिड़िया ने कैसे बोलना सीख लिया था!
सुबह
उठा तो जिससे मिला उसी को खुश खबरी दी-- “गूंगी चिड़िया बोलने लगी है। जादू हो
गया है।” लोगों ने सुना और हंस दिए।
2
बाजार
में चिड़िया का पिंजरा ठेले पर रखकर चला तो चिड़िया लगातार चूं चिर्र कर रही थी।
लोगों ने हंसी में कहा- “श्यामू की पाठशाला में गूंगी चिड़िया ने आखिर बोलना सीख
ही लिया।” एक ने मजाक में कहा- “श्यामू , पता नहीं तुमने डाक्टर डू लिटिल के बारे में सुना है या नहीं।
वह पंछियों से उन्हीं की भाषा में बात करते थे। अब चिड़िया ने चूं चिर्र करना सीख
लिया है तो तुम भी उसकी बोली सीख लो। फिर तुम उसकी बातों का मतलब
समझ
जाओगे और चिड़िया को अपनी भाषा भी सिखा
देना। फिर तो तुम दोनों आपस में खूब मजे से बात कर सकोगे।”
श्यामू धीरे से हंसकर रह गया। और कहता भी क्या।
एक
दिन चिड़िया का पिंजरा ठेले पर रखे बाजार से जा रहा था तभी दो चिड़ियां पास आकर
पिंजरे पर मंडराने लगीं, फिर वे पिंजरे पर बैठकर चूं चिर्र करने लगीं। पिंजरे के
अंदर से श्यामू वाली चिड़िया भी बोल रही थी।
श्यामू ध्यान से देखता रहा। वह सोच रहा था—‘आखिर ये
चिड़ियां क्या बातें कर रही हैं? जरूर एक दूसरे का हाल पूछ रही होंगी।
पूछना ही चाहिए।‘ रात को सोने के लिए लेटा तो यही बात दिमाग में घूम रही थी। सुबह
उठा तो चिड़िया पिंजरे में खामोश थी। पिंजरे को कोठरी से बाहर लाया तो दो चिड़ियां
आकर पिंजरे पर मंडराती हुई फिर चूं चिर्र करने लगीं।
एकाएक
श्यामू के होठों पर हंसी दौड़ गई। वह
बड़बड़ाया-- “मैंने समझ ली चिड़िया की भाषा। हां जरूर वे आपस
में एक ही बात पूछ रही होंगी।‘’ अगले ही पल उसने पिंजरे का दरवाजा खोला तो चिड़िया
झट से उड़ गई। उसने नजरें उठाईं, ऊपर बहुत सी चिड़ियां उड़ती हुई चूं चिर्र कर रही
थीं। वे खुश हो रही थीं। खुश होने की बात ही थी। पिंजरे में बंद उनकी एक सहेली
आजाद जो हो गई थी।
उस दिन श्यामू ठेला लेकर चला तो
सबने पिंजरा खाली देखा। पूछले लगे- “श्यामू , तुम्हारी चिड़िया
कहां
गई?’’
“अपनी
सहेलियों के साथ घूमने-फिरने,”-- श्यामू ने कहा।
“तो
फिर पिंजरा साथ में लेकर क्यों फिर रहे हो?”
“यही
तो मेरी पहचान होगी उस चिड़िया के लिए।” श्यामू ने कहा--“अगर वह कभी आई
तो मुझे इसी पिंजरे से पहचान लेगी।”
“अरे,
अब
वह चिड़िया आने वाली नहीं।“ एक ने हंसकर कहा।
3
“मुझे
तो पूरा भरोसा है एक दिन वह जरूर आएगी,” श्यामू बोला।
“क्या
तुम्हारे पिंजरे में बंद होने के लिए?”
“नहीं,
मुझसे
मिलने के लिए। आखिर मैं उसका दोस्त हूँ। श्यामू ने कहा तो उसकी उदास आंखों में
गीलापन था।
( समाप्त)