Friday 30 June 2023

बाबा का स्कूल-कहानी-देवेन्द्र कुमार

 

 

 

 बाबा का स्कूल-कहानी-देवेन्द्र कुमार   

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  निशि अपनी प्रिय पुस्तक पढ़ रही थी,तभी एक चीख सुनाई दी।वह भाग कर दूसरे कमरे में गई तो देखा-काम वाली प्रीतो फर्श से उठने की कोशिश कर रही है  और आस पास किताबें बिखरी हुई हैं। निशि ने सहारा देकर उठाया और पूछा-क्या हुआ,कैसे गिर गई। चोट तो नहीं लगी?’

  प्रीतो ने जो कुछ कहा उससे निशि को पता चला कि जब प्रीतो फर्श की सफाई कर रही थी तभी ऊपर वाले शेल्फ से कई किताबें उसके सिर पर आ गिरीं। वह घबरा कर उठी तो फिसल कर गिर गई।तभी उसके मन ने कहा कि पुस्तकें सिर पर गिरा कर जैसे देवी सरस्वती ने चेतावनी दी हो कि क्या वह उम्र भर इसी तरह अनपढ़ ही बनी रहेगी!

   देवी सरस्वती का नाम क्यों ले रही हो,उनके बारे में क्या जानती हो ?’—निशि ने पूछा।

  मैडम जी, हमारी गली में देवी का मंदिर है। वहां के पुजारी जी अक्सर ही  कहते हैं कि विद्या की देवी हैं सरस्वती, और पुस्तकें हैं उनके मंदिर की खिड़कियाँ। पढना लिखना ही देवी सरस्वती की पूजा है। यही सोच कर कई बार  अनपढ़ रह जाने पर मन दुखी हो जाता है।‘’

  अब जाकर निशि प्रीतो के मन की  कसक को समझ पाई। उसने कहा-मुझे तो अब पता चला है कि तुम सच में पढना लिखना चाहती हो।

  आपने ठीक कहा, मन कितना चाहता है कि अनपढ़ न रहूँ। इसीलिए बेटी की पढाई पर बहुत ही  ध्यान देती हूँ।

  अगर तुम चाहो तो मैं तुम्हें पढ़ा सकती हूँ।’-निशि ने कहा।

 प्रीतो की आँखें अचरज से फैल गईं।  

    देखो, दोपहर  में काम निपटा कर तुम कुछ देर आराम करती हो और बच्चों के स्कूल से  लौटने से पहले मैं भी अपनी मनपसंद पुस्तक के साथ समय बिताती हूँ।मतलब उस दौरान हम दोनों के पास खाली समय होता है।बस तभी मैं तुम्हें आराम से पढ़ा सकती हूँ।’-निशि ने उसे समझाया।

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   यह तो बहुत अच्छा रहेगा लेकिन…’ प्रीतो इतना ही कह सकी। 

   इस बीच निशि अलमारी से लकड़ी की एक पुरानी संदूकची ले आई। उसमें रखा सामान बाहर निकाल लिया। बोली-यह मेरे बाबा की संदूकची है। मैंने उन्हें छुटपन में देखा था। शादी के बाद विदा होते समय मैं उनकी संदूकची को  अपने साथ ले आई। इसे जब जब देखती हूँ तो लगता है कि जैसे बाबा सामने आ खड़े हुए हों।

    प्रीतो ने देखा संदूकची के सामान में एक स्लेट,चाक के कुछ टुकड़े,पूजा की माला,एक टूटा चश्मा,  कई कौड़ियाँ, रामनामी चादर, पुरानी कापी और कई धुंधले फोटो थे।

  निशि ने स्लेट प्रीतो को थमाते हुए कहा-समझो कि बाबा के स्कूल में अब से तुम्हारा दाखिला हो गया।चाक से स्लेट पर अ आ लिख कर प्रीतो से कहा-स्लेट पर जो अक्षर मैंने लिखे हैं उन्हें देख कर बार बार लिखो। इसी तरह अभ्यास करती रहो।

  प्रीतो ने स्लेट को माथे से लगाया, निशि की ओर देख कर मुस्कराई और सिर झुका कर निशि के लिखे अक्षरों को देख कर लिखने की कोशिश करने लगी। काम निपटा कर प्रीतो जाने लगी तो निशि ने स्लेट वापस लेते हुए कहा-प्रीतो, बाबा की स्लेट मैं तुम्हें घर के लिए नहीं दे सकती।उसे कुछ पैसे देते हुए बोली —‘ तुम नई स्लेट, चाक और हिंदी-अंग्रेजी का कायदा खरीद लेना।          

  अगले दिन प्रीतो काम पर आई तो उसके हाथों में स्लेट और हिंदी अंग्रेजी का कायदा था। सोसाइटी के गार्ड वीरू ने कहा-क्या काम छोड़ कर स्कूल में दाखिला ले लिया है!

 प्रीतो ने कहा –‘हाँ, मैंने बाबा के स्कूल में दाखिला ले लिया है। मैं अनपढ़ नहीं रहना चाहती।और मुस्करा दी।

  कहाँ है यह बाबा का स्कूल?’

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  वहीँ जहाँ मैं काम करती हूँ।

सुन कर वीरू बोला-प्रीतो,मेरी बीवी रत्ना भी तो अनपढ़ है।वह कई बार पढने की इच्छा प्रकट करती रहती है।।रत्ना भी प्रीतो की तरह सोसाइटी के कई घरों में साफ़ सफाई का काम करती थी। दोनों पक्की सहेलियां थीं। प्रीतो ने निशि से रत्ना के बारे में कहा तो उसने झट हामी भर दी,कहा-कोई किसी भी उम्र में पढ़ सकता है। बाबा के स्कूल में कोई भी दाखिला ले सकता है। पर तुम्हारी सहेली तो रविवार को ही पढने आ सकती है।सोसाइटी की सभी कामवालियां रविवार को छुट्टी करती हैं।

  रविवार की दोपहर को प्रीतो और रत्ना एक साथ बाबा के स्कूल में पहुँचीं। निशि दोनों को अपने कमरे में ले गई। रत्ना बहुत खुश थी।जल्दी ही  बाबा के स्कूल की बात सबको पता चल गई। एक शाम प्रीतो घर जाने लगी तो उसे जमना,कमला,लक्ष्मी,लता और प्रभा ने घेर लिया। उन सबकी एक ही मांग थी कि वे सभी पढना चाहती हैं| वे सब प्रीतो और रत्ना की तरह सोसाइटी के घरों में काम करती थीं।

  निशि ने प्रीतो से सुना तो कहा-  तुम सबको पढ़ा कर मुझे बहुत अच्छा लगेगा। अगले रविवार को अपनी सब सखियों को ले आना।

   वह रविवार विशेष था। सात  छात्राएं बाबा के स्कूल में पढ़ने आईं थीं। निशि का कमरा बाबा का स्कूल बन गया था। निशि ने एक कापी में सबके  विवरण लिख लिए उससे पता चला कि अगले रविवार को लक्ष्मी के बेटे अजय का जन्म दिन है।

  अगले रविवार को एक आश्चर्य लक्ष्मी की प्रतीक्षा कर रहा था बाबा के स्कूल में। वहां पहुंचते ही सब ने उसे रंग बिरंगी पन्नी में लिपटे पैकेट थमा कर कहा-;अजय के लिए हमारे आशीर्वाद,’ कमरे में सम्मिलित खिल खिल गूंजने लगी। उन सबकी ओर  से निशि ने गिफ्ट पैकेट तैयार करवा लिए थे।                                   

एक रविवार को प्रभा  स्कूल नहीं आई।निशि ने पूछा तो पता चला कि  वह दो दिन से काम पर भी नहीं आ रही है।उसका पति बीमार है। निशि ने कहा- हम सबको प्रभा के घर चलना चाहिए।जमना को प्रभा का घर मालूम था।

  अपनी सखियों को एक साथ आया देख प्रभा अपलक ताकती रह गई।उसका पति उठ कर बैठ गया।वह हैरानी से निशि को देख रहा था।निशि ने उसका हाल पूछा तो पता चला कि  अब पहले से ठीक है। निशि ने प्रभा से कहा-क्या हमें चाय नहीं पिलाओगी?’यह सुन कर प्रभा के साथ लक्ष्मी चाय बनाने लगीं।निशि ने रास्ते में नाश्ते के लिए बिस्किट और नमकीन ले लिया था।इस पर प्रभा ने कहा-क्या मैं आप सबको चाय नाश्ता भी नहीं करा सकती।इस पर निशि ने कहा-तो वह सब भी ले आओ।और कमरे में खिल खिल गूंजने लगी।

  चलते समय निशि ने कहा-प्रभा,बाबा के स्कूल में एब्सेंट रहने पर जुरमाना भरना होता है। अगले  रविवार को स्कूल में जरूर हाजिरी लगाना।एक बार फिर कमरा हंसी से भर गया। बाबा का स्कूल चल निकला था।(समाप्त )

Tuesday 27 June 2023

 

बड़ी-छोटी--कहानी--देवेंद्र कुमार

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बसंत का सुहाना मौसम था। दो तितलियाँ साथ-साथ फूलों पर मँडरा रही थीं। उनमें से एक का आकार बड़ा था और दूसरी का छोटा। ये दोनों साथ-साथ दिखाई देती थीं। फूलों ने कई बार पूछा, ‘क्या तुम दोनों बहनें हो?”

 

नहीं।”- बड़ी तितली ने कहा।

 

हाँ, हम बहनें हैं। -छोटी तितली बोली।

 

बड़ी तितली ने छोटी से कहा—”तुमने यह क्यों कहा कि हम दोनों बहनें हैं।

 

मैंने अपने को तुम्हारी बहन बताया तो कुछ गलत नहीं कहा। जानती हो मेरी एक बड़ी बहन थी, एक दिन हम दोनों फूलों से बातें कर रही थीं, तभी कुछ बच्चे वहाँ चले आए। मेरी बहन एक बच्चे के बहुत पास चली गई। बच्चे ने झट मेरी बहन को अपनी मुट्ठी में बंद कर लिया और वहाँ से भाग गया।

 

सचमुच यह तो बहुत बुरा हुआ। बड़ी तितली ने कहा। फिर क्या हुआ?”

 

छोटी तितली कहती रही, माली वहाँ काम रहा था। उसने बच्चे को भागते देखा तो पूछने लगा—“तुमने जरूर कुछ गड़बड़ की है। बताओ क्या बात है। इस पर बच्चे के दोस्तों ने कहा—“माली भैया, इसने एक तितली को अपनी मुट्ठी में बंद कर लिया है।

                                    

अरे छोड़ दो तितली कोनन्हा कोमल जीव है। वह दम घुटने से मर जाएगी। कहकर माली बच्चे को पकड़ने दौड़ा। बच्चा मुट्ठी बंद किए हुए आगे-आगे दौड़ रहा था और माली पीछे-पीछे दौड़ता हुआ पुकार रहा था—“ शैतान, छोड़ दो तितली को नहीं तो बाग में आना बंद कर दूँगा।“

 

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बच्चा तेजी से बाग के चक्कर लगा रहा था। लेकिन माली उसके नजदीक पहुँच गया था। उससे बचने के लिए वह  और तेजी से दौड़ा तो घास पर गिर गया,  जैसे ही वह गिरा, उसकी बंद मुट्ठी खुल गई। अरे यह क्या! उसकी मुट्ठी में मेरी दीदी थी ही नहीं। तो फिर वह कहाँ चली गईं?बस वह दिन था और आज का दिन है, मेरी बहन का कुछ पता नहीं है।

 

बड़ी तितली ने दिलासा देते हुए कहा—“अब मैं सारा मामला समझ गई। दुख मत करो। मुझे लगता है तुम्हारी बहन जरूर वापस जाएगी। हो सकता है वह किसी मुसीबत में फंस गई हो। समझो कि मैं तुम्हारी बड़ी बहन हूँ।फिर दोनों साथ-साथ बाग में फूलों के ऊपर मँडराने लगीं|  आओ कहीं और चलें। बड़ी तितली ने कहा और छोटी को एक मकान की खुली खिड़की के पास ले गई। बोली—“जानती हो, इस घर में एक बच्चा रहता है, जो बहुत बीमार है। जब वह स्वस्थ था तो रोज बाग में आकर फूलों से बातें किया करता था। बाकी बच्चे फूल तोड़ते थे तो वह उन्हें मना करता था। मैंने उसे कभी फूल तोड़ते नहीं देखा।

 

वह कब स्वस्थ होगा?” छोटी तितली ने पूछा।

 

यह तो कोई डाक्टर ही बता सकता है, पर पहले से उसकी तबीयत में सुधार है। बड़ी ने कहा।

 

दीदी, तुम्हें कैसे मालूम है यह बात?” छोटी ने पूछा।

                                 

 

जानती हो छोटी, मैं सिर्फ फूलों से ही बातें नहीं करती, खिड़कियों से होकर घरों में भी जाती हूँ, वहाँ बच्चे रहते हैं। ऐसे लोग रहते हैं जो पेड़-पौधों से, हम तितलियों से प्यार करते हैं। ऐसे लोग हमारे मित्र होते हैं। उनकी खोज खबर जरूर लेनी चाहिए।

 

 

इस तरह आपस में बातें करती हुई दोनेां तितलियाँ बीमार बच्चे के कमरे में जा पहुँची और खिड़की की चौखट से चिपककर देखने लगीं। सामने बच्चा बिस्तर पर लेटा था। अभी-अभी उसे डाक्टर देखकर गया था। जब डाक्टर देखने आया तो बच्चा फूलों और तितलियों के बारे में एक किताब पढ़ रहा था।

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पिता ने कहा—“बेटा, डाक्टर साहब तुम्हें आराम +रने के लिए कह गए हैं। अब किताब रख दो, नहीं तो थक जाओगे।

 

डैडी, मुझे ऐसी किताबों से थकान नहीं होती। बच्चा बोला—“मैं कितने दिन से बाग में नहीं गया हूँ, फूलों और तितलियों को नहीं देखा है। मुझे पलंग पर लेटे लेटे अच्छा नहीं लगता है।

 

 तभी बड़ी तितली ने छोटी से कहा—“तुमने सुना, बच्चा क्या कह रहा है। वह बेहद उदास है क्योंकि वह बाग में जाकर फूलों और तितलियों से बातें नहीं कर सकता।

 

तब इसके लिए हम क्या कर सकते हैं?”छोटी ने पूछा, दोनों उड़कर बच्चे के पलंग पर मँडराने लगीं और फिर पलंग पर रखी पुस्तक पर जा उतरीं। पुस्तक के आवरण पर दो फूल और दो तितलियों के चित्र बने हुए थे। दोनों तितलियाँ ठीक तितलियों के चित्रों पर जा बैठी थीं। बच्चा उठा और उसने किताब की ओर देखा। तभी तितलियाँ पुस्तक पर बने चित्रों से उठकर हवा में उड़ने लगीं। बच्चा खुशी से चिल्ला उठा—“डैडी-डैडी, यह तो जादू हो गया। पुस्तक के कवर पर बनी तितलियाँ जीवित हो गईं। देखो, देखो ये हवा में उड़ रही हैं।

 

बच्चे के पिता ने देखा तो वह भी चकित रह गए। दोनों पिता-पुत्र अचरज भरी आँखो से देख रहे थे। दोनों तितलियाँ पहले हवा में मँडरातीं फिर पुस्तक के आवरण पर बने तितली-चित्रों पर बैठतीं। ऐसा कई बार हुआ। तभी बच्चे ने कहा—“ऐसा तो पहले कभी नहीं देखा। यह तो जादू हैं।

 

हाँ, बेटा तितलियाँ तुमसे मिलने आई हैं। तुम बीमार हो और बाग में नहीं जा सकते। इसीलिए तितलियाँ तुमसे खुद मिलने गईं। कहकर बच्चे के पिता हँस पड़े।

 

बड़ी तितली ने छोटी से कहा—“तुमने सुनी इनकी बातें। बच्चा कितना खुश है। मैं सोचती हूँ जब तक बच्चा स्वस्थ हो जाए, हमें रोज यहाँ आना चाहिए इससे मिलने के लिए।

 

लेकिन अगर इसने भी उस शैतान बच्चे की तरह हमें अपनी मुट्ठी में कैद कर लिया तो?” छोटी ने शंकालु स्वर में पूछा।

 

प्यार करने वाले दूसरों को कभी दुख नहीं देते, खास तौर से वे लोग जिन्हें फूलों और तितलियों से प्यार होता है।

 

तभी बच्चे ने पिता से कहा—“डैडी, तितलियाँ तो मुझसे मिलने गई हैं, पर फूल तो नहीं सकते।

 

हाँ, बेटा, फूलों के पंख नहीं हैं। अगर उनके पंख होते तो वे भी जरूर आते तुमसे मिलने के लिए। वैसे तितलियाँ उड़ते हुए फूल ही तो हैं। देखो, इनके पंखों पर कितनी सुंदर चित्रकारी की है प्रकृति ने।

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इसके बाद दोनों तितलियाँ वहाँ से बाग में चली आईं। पीछे पीछे बच्चे के पिता भी थे। वह माली से कुछ बात कर रहे थे, तितलियों ने माली को कहते सुना—“हाँ, बाबूजी, जब तितलियाँ बीमार बेटे से मिलने पहुँचती हैं तो फूल भी जा सकते हैं वहाँ।

 

छोटी तितली ने बड़ी से कहा—“यह माली कैसी बात कर रहा हैक्या यह फूलों को तोड़कर उनका गुलदस्ता बीमार बच्चे के पास ले जाएगा?” बड़ी तितली भी माली की बात सुनकर कुछ परेशान हो गई थी।

 

पर वैसा कुछ नहीं हुआ। माली ने फूलों के दो गमले उठाए और बीमार बच्चे के कमरे में ले गया। उसने बच्चे से कहा—“लो भैया, आज फूल भी तुमसे मिलने गए हैं। अब ये रोज तुमसे बातें करने आया करेंगे।

 

क्या सच। बच्चे ने चहक कर पूछा।

 

हाँ, एकदम सच। कहकर बच्चे के पिता ने उसका माथा सहला दिया। माली ने उनसे कह दिया थाजब तक बच्चा स्वस्थ होकर बाग में नहीं आने लगता, तब तक वह रोज थोड़े समय के लिए फूलों के गमलों को कमरे में ले आया करेगा।

 

माली बीमार बच्चे के कमरे में हर दिन दो नए गमले रख आता और पुराने वापस ले जाता, और तितली बहनें तो रोज ही उससे मिलने जाया करती थीं। बच्चे की उदासी भाग गई थी। वह तेजी से स्वस्थ हो रहा था। ===