अंगूठी--देवेंद्र कुमार
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एक दोपहर मैं स्कूल से लौटा तो देखा चमन मामा
आये हुए हैं| उन्होंने मुझे
प्यार किया और फिर माँ से बातें करने लगे। माँ के सामने एक डिब्बा खुला हुआ था।
उसमें कई अंगूठियां चमक रही थीं |मामाजी गाँव में
सुनार की दूकान चलाते थे।मामाजी वे अंगूठियां किसी ग्राहक के लिए लाये थे।मैं भी
अंगूठियों को उठा उठा कर देखने लगा। एक अंगूठी मेरी ऊँगली में फिट आ गई और मैंने उसे पहन
लिया। तभी माँ ने कहा-'विमल,
अपने मामाजी के लिए गरम पकौड़ियाँ ले कर आ।’ मैं
बाहर की ओर चला तो माँ बोली-‘यह अंगूठी तो उतार दे।' पर मैंने जैसे उनकी बात
सुनी ही नहीं, ऊँगली में अंगूठी सुन्दर लग रही थी
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हमारी गली में ओमप्रकाश
ठेले पर पकौड़ियाँ बेचता था। उसकी पकौड़ियाँ सबको पसंद थीं।ओमप्रकाश पकौड़ियाँ तल रहा था। कई
जने इन्तजार में खड़े थे । मैं भी एक तरफ
खड़ा हो गया। तभी मेरी नज़र ओमप्रकाश के हाथ पर गई , उसकी ऊँगली में अंगूठी चमक रही थी लेकिन मेरी
ऊँगली खाली थी। न जाने अंगूठी कहाँ गिर गई थी।मैं सन्न रह गया। और मुड कर घर की तरफ भागा।मैं ध्यान से देखता गया,
पर अंगूठी कहीं न थी,मैं घर में घुसा
तो माँ ने कहा-' पकौड़ियाँ लाया?’
मैं फिर बाहर की तरफ दौड़ा, मेरी आँखें गली का चप्पा चप्पा देख गईं, पर अंगूठी कहीं न मिली।मैं फिर से ठेले के पास जा खड़ा हुआ।
ओमप्रकाश ने पूछा
-कितनी पकौड़ियाँ दूँ ?तभी किसी ने कहा-'पकौड़ियां बाद में
,पहले बच्चे से यह तो पूछो
कि रो क्यों रहा है !'अब मुझे पता चला
कि मैं रो रहा था। अब तो वहां खड़े कई जने भी
पूछने लगे –‘क्यों रो रहे हो ?' चबूतरे पर ख़ड़ी
ओमप्रकाश की पत्नी उमा ने मुझे रोते
देखा तो मेरे पास आ खड़ी हुई। मेरा सिर सहला कर पूछा -'क्या बात है बेटा, क्यों रो रहे हो। पैसे खो गए क्या?’
'अंगूठी'। मैंने कहा और उन्हें बता दिया कि अंगूठी न जाने कहाँ गिर गई।
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उमा मेरी माँ को जानती
थीं। कहा-'घबराओ मत। मिल
जाएगी अंगूठी। मैं चलती हूँ तुम्हारे साथ। कोई कुछ नहीं कहेगा तुम्हें '। उन्होंने एक
कटोरे में पकौड़ियाँ रखी और मेरा हाथ थाम कर माँ के पास ले आईं। मेरे कुछ कहने से
पहले ही उन्होंने माँ को मेरे रोने के
बारे में बता दिया।
माँ ने कहा -मैंने तो इससे कहा भी था कि अंगूठी
पहन कर बाहर मत जा।’ मामाजी ने मुझे
प्यार किया मेरे साथ जाकर बहुत ध्यान से कई बार गली में घूम घूम कर खोई हुई अंगूठी
को खोजा ,पर अंगूठी नहीं
मिली|मामाजी ने माँ से
कहा -जो हो गया उसे भूल जाओ। वचन दो कि मेरे जाने के बाद विमल से कुछ नहीं कहोगी.''
इस बीच उमा माँ को तसल्ली
देती रही। कुछ देर बाद मामाजी ग्राहक को अंगूठियां दिखाने चले गए। जाते जाते
उन्होंने माँ से फिर कहा-'विमल को डांटना
मत। ' मैं एक तरफ बैठा हुआ
अंगूठी के बारे मे सोच रहा था। फिर न जाने कब नींद आ गई।बाहर बारिश होने लगी|
एकाएक नींद टूट
गई,कोई दरवाज़ा खटखटा रहा था। 'इस बारिश में कौन
आ गया। ' माँ ने कहा और दरवाज़ा
खोलने चली गई। आँगन में बारिश का पानी जमा हो गया था। मम्मी ने दरवाज़ा
खोला, आश्चर्य से कहा-'उमा,
तुम रात के समय इतनी तेज बारिश में ,!' घडी में रात के
दस बज रहे थे। मैं सोचने लगा -भला इस समय
क्यों आई हैं उमा !’ वह माँ के पीछे
कमरे में आ गईं। फिर एक डिबिया माँ को देकर कहा-'
मैं इसे न जाने कब से ढूंढ रही थी। खोज में कितने घंटे बीत
गए।'
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'क्या है इस डिबिया में जो तेज बारिश में लेकर आई हो!'कहते हुए माँ ने डिबिया खोली और अचरज से कहा –
अंगूठी कहाँ मिली।’
मैं उछल कर माँ के पास जा
खड़ा हुआ, मन ख़ुशी से झूम उठा -तो
आखिर मिल गई खोई हुई अंगूठी!’ ,कहाँ मिली।?’
‘'नहीं यह तुम्हारी खोई हुई अंगूठी नहीं है, यह तो मेरे गोपेश की है,'-उमा ने कहा और रोने लगी।
'अरे रे यह क्या ,रो क्यों रही हो ?' माँ ने उमा से पूछा। कमरे में कुछ देर सन्नाटा
रहा ,फिर उमा ने कहा-'बहन,तुम्हेँ शायद याद होगा,एक साल पहल…' और फिर रो पड़ी।
माँ ने कहा-‘मुझे गोपेश की याद है ,
दुःख न करो,वह जरूर लौट आएगा।'
गली में सब जानते थे गोपेश के गायब होने के बारे में। एक साल पहले की बात
है। गोपेश स्कूल से न जाने कहाँ चला गया था। पुलिस में उसके खो जाने की रिपोर्ट कराई
थी उसके पिता ने, पर इतना समय बीत
जाने के बाद भी गोपेश का पता नहीं चला था।
माँ उमा को ढाढस बंधाती रही। उमा ने
गोपेश के लिए अंगूठी बनवाई थी। वही मेरे लिए देने आई थी। उमा अंगूठी को
मेरी ऊँगली में पहनाने लगी तो माँ ने कहा-'उमा,रुक जाओ।
मैं गोपेश की अंगूठी नहीं ले सकती। दुःख न करो। मेरा मन कहता है तुम्हारा
गोपेश जल्दी ही लौट आएगा।‘
उमा ने कहा -'ईश्वर करे आपकी
बात सच हो जाए। लेकिन अंगूठी को लेने से
मना मत करो। जब मैंने विमल को ठेले का पास खड़े रोते देखा तो एकदम गोपेश का चेहरा आँखों के सामने आ
गया। लगा जैसे सामने गोपेश खड़ा हो। आपके पास से जाने के बाद
मैं अंगूठी की खोज में जुट गई। अब मिली तो तुरंत यहाँ चली आई। विमल भी मेरे गोपेश
जैसा ही है। अंगूठी नहीं लोगी तो मुझे
बहुत दुःख होगा। मना मत करो। ' उमा की आँखों से
आंसू बह रहे थे। और यह कह कर दरवाज़े से बाहर निकल गईं।
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माँ और पापा देर तक अंगूठी के बारे में बात करते
रहे। निश्चय हुआ कि अंगूठी उमा को वापस करनी है। सारी रात तेज बारिश होती रही। सुबह जैसे ही बारिश
रुकी तो माँ अंगूठी लौटाने उमा के घर चली
गईं पर घर बंद मिला। उनके पडोसी से पता चला -रात में ओमप्रकाश
की तबीयत खराब हो गई थी इसलिए गली वालों
ने उसे अस्पताल में दाखिल करा
दिया था। उमा भी वहीँ है। पता पूछ कर माँ और
पापा अस्पताल चले गए।
अस्पताल के बाहर उमा मिल
गई।उसने माँ से पूछा –‘तो आप अंगूठी
वापस करने यहां भी आ गईं।‘
अंगूठी माँ के पर्स में
थी, पर उन्होने कहा-'उमा,यहां मैं बीमार
का हाल जानने आई हूँ, ओमप्रकाश कैसे
हैं?' माँ और पापा ओमप्रकाश के पास
गए तो पापा के परिचित डाक्टर मिल गए। पापा ने उनसे ओमप्रकाश का ध्यान रखने को कहा। घर लौट कर पापा और मम्मी फिर
अंगूठी के बारे में चर्चा करने लगे। माँ ने कहा -मैं गोपेश की
अंगूठी विमल के लिए लेना नहीं चाहती लेकिन….' पापा ने कहा-‘अगर अंगूठी वापस करोगी तो उमा को बहुत दुःख
होगा।'
ओमप्रकाश अस्पताल से लौट
आया,पर वह काफी कमजोर था। कुछ दिन बाद दोनों गाँव चले गए।। जाते समय उमा हमारे घर आई
तो माँ ने कहा-'उमा,कहीं तुम अंगूठी
वापस लेने तो नहीं आई हो, मैं लौटाने वाली
नहीं। जैसे तुम्हें विमल के चेहरे में गोपेश नज़र आता है,मैं भी विमल में
गोपेश को देखती हूँ।‘ इस पर उमा रोने लगी और फिर मुस्करा दी।माँ भी
हॅंस दी।
इस बात को वर्षों बीत गए
हैं। मेरा बचपन कहीं बहुत पीछे छूट गया है,लेकिन गोपेश की
अंगूठी को मैंने धरोहर की तरह जतन से
संभाल कर रखा है। जब जब अंगूठी को देखता हूँ तो मन बैचैन हो जाता है।आशा करता हूँ गोपेश जरूर
घर लौट आया होगा| (समाप्त )