Monday 27 August 2018

पूरी बाबा --देवेन्द्र कुमार--कहानी बच्चों के लिए


पूरी बाबा---देवेन्द्र कुमार—कहानी बच्चों के लिए

===वे कौन से बच्चे हैं जो जूठन में अपने लिए खाना बीनते हैं? पहले लोग गरमागरम हलवा—पूरी की दावत उड़ायें और फिर बिखरी गंदगी के बीच बच्चे आपस में छीना झपटी करें ====    

आज रविवार है और धनराज हलवाई को एकदम फुरसत नहीं है। पहला कारण है रविवार को ज्यादातर घरों में नाश्ता धनराज की दुकान से आता है। और दूसरा उससे भी बड़ा कारण है हर रविवार को मोहल्ला समिति द्वारा लंगर का आयोजन। लंगर में परोसी जाने वाली पूरी-सब्जी और हलवा धनराज की दुकान पर ही तैयार होता है। लंगर में आसपास के रिक्शावाले, कामगार तथा और भी बहुत से लोग आ जुटते हैं। इसलिए रविवार के दिन धनराज की दुकान के आसपास भीड़ जमा हो जाती है।
लंगर या मुफ्त भोजन सुबह दस बजे से बारह बजे तक चलता है. उसके बाद एकदम सन्नाटा छा जाता है। दूर-दूर तक जूठन तथा प्लास्टिक  की गंदी प्लेटें बिखर जाती हैं। देखने में बुरा लगता है, पर कोई उपाय नहीं, क्योंकि सफाई करनेवाला शाम को ही आता है । बिखरी जूठन और गंदी प्लेटों के ढेर पर कुत्ते मुंह मारते हैं। कई बच्चे उनमें से अपने खाने का सामान जुटा लेते हैं-अधखाई पूरियां और बचा खुचा हलवा.  
रामदास बाबू पास ही रहते हैं। उन्हें हर रविवार को होनेवाले लंगर के बाद फैली गंदगी बुरी लगती है। उन्होंने कई बार धनराज से शिकायत की है। उन्होंने प्लेटों से जूठन चुगते बच्चों को भी डांटकर भगाया है, लेकिन सब कुछ वैसे ही चल रहा है।
पिछले रविवार को रामदास बाबू गली से निकले तो देखा कई बच्चे जूठन बीनकर खा रहे हैं और आपस में लड़ रहे हैं। ये बच्चे उन कामगारों के हैं जो सुबह काम पर निकल जाते हैं। एक छोटी बच्ची आपस में लड़ते बच्चों से दूर खड़ी रो रही थी। रामदास बाबू झुककर उसके पास बैठ गए। पूछा, ‘‘बेटी, रो क्यों रही हो?’’
बच्ची ने सुबकते हुए कहा, ‘‘उसने मेरी पूरी छीन ली। मुझे भूख लगी है।’’ वह बच्चों के झुंड की तरफ इशारा कर रही थी। वहां जूठन के लिए अभी भी छीना-झपटी चल रही थी। पता नहीं वह बच्ची किसकी शिकायत कर रही थी। रामदास बाबू बच्ची का हाथ पकड़कर धनराज हलवाई की दुकान पर ले गए। उससे कहा, ‘‘इस बच्ची को कुछ खाने के लिए दो।’’ धनराज ने एक पत्ते पर दो पूरियां और हलवा रखकर बच्ची को दे दिया। वह वहीं बैठकर खाने लगी। तभी एक बच्चा दौड़ता हुआ आया और बच्ची के हाथ से पूरियां छीनकर भाग गया। बच्ची ने फिर से रोना शुरू कर दिया।
रामदास बाबू ने जूठन पर लड़ते बच्चों के झुंड की तरफ देखा, पर उस बच्चे का पता न चला जो पूरियां छीनकर भाग गया था। उन्होंने धनराज की तरफ देखा तो उसने बच्ची को फिर से दो पूरियां दे दीं। इस बार रामदास बाबू उसके पास सावधान खड़े रहे ताकि कोई दोबारा उसकी पूरियां न छीन सके। तभी धनराज हलवाई ने कहा, ‘‘बाबूजी, यह तो हर रविवार का तमाशा है। भीड़ में बच्चों की कोई नहीं सुनता, इसलिए ये बेचारे जूठन बीनकर ही संतोष कर लेते हैं। बच्चों की छोडि़ए, यहां तो बड़े लोग भी मारपीट, धक्का-मुक्की करते हैं मुफ्त की दावत के लिए।’’
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रामदास ने धनराज की बात का जवाब न दिया। उनकी आंखें अब भी जूठी प्लेटों में अपने लिए जूठन बीनते बच्चों की ओर लगी थीं। वह बढ़कर बच्चों के झुंड के पास जा खड़े हुए। बोले, ‘‘पूरी हलवा खाओगे?’’ उनकी बात सुनकर झुंड से आवाज आई, ‘‘पूरी हलवा-पूरी हलवा।’’
‘‘तो चलो हलवाई की दुकान पर, लेकिन पहले जूठन फेंक दो।’’ रामदास बाबू ने कहा। बच्चे दौड़कर हलवाई की दुकान पर जा खड़े हुए. वे चिल्ला रहे थे-‘‘पूरी हलवा-पूरी हलवा।’’’ रामदास बाबू ने धनराज से कहा,‘‘इन बच्चों के लिए गरम पूरियां बना दो।’’
धनराज पूरी बनाने लगा। रामदास बाबू ने कहा, ‘‘बच्चो, जरा देखो तो सब तरफ कितनी गंदगी फैली है। पहले हम सफाई करेंगे, फिर पूरी हलवा खाएंगे।’’ रामदास बाबू ने धनराज से दो बड़े काले बैग ले लिए और फिर जूठी प्लेटें उनमें डालने लगे। इस काम में बच्चों ने भी हाथ बंटाया। थोड़ी ही दूर में दूर-दूर तक फैली गंदी प्लेटें और जूठन उन थैलों में समा गई। अब वहां गंदगी नहीं थी।
‘‘पूरी हलवा, पूरी हलवा।’’ बच्चों का झुंड चिल्लाया।
रामदास बाबू ने कहा-‘‘क्या गंदे हाथों से पूरी-हलवा खाओगे। पहले हाथ साफ करो।’’ उन्होंने कहा तो दुकान का नौकर आकर बच्चों के हाथ धुलाने लगा। फिर उसने अपना अंगोछा आगे बढ़ा दिया। बच्चे धुले हाथ पोंछने लगे।
तब तक गरम पूरियां तैयार हो गई थीं। उन्होंने धनराज से कहा तो उसने नौकर से दरी मंगवा दी। दुकान के पास दरी बिछ गई। अब गरम पूरी और हलवे की बारी थी। बच्चे बैठकर चुपचाप भोजन कर रहे थे। आते-जाते लोग हैरानी से देख रहे थे। रामदास बाबू घूम-घूम कर बच्चों से पूछ रहे थे और धनराज का नौकर परोसता जा रहा था।
बच्चों की दावत खत्म हुई। अब वे एक तरफ खड़े रामदास बाबू की ओर देख रहे थे।
रामदास बाबू ने कहा, ‘‘बच्चो, जाने से पहले अपनी जूठन तो साफ करो।’’ बच्चों ने अपनी-अपनी जूठी प्लेट उठाई और काले बड़े बैग में डाल दी। इसके बाद दुकान के नौकर ने बच्चों के हाथ धुला दिए।
तभी एक बच्चे ने कहा, ‘‘अब पूरी कब मिलेगी?’’
रामदास बाबू हंस पड़े। उन्होंने कहा, ‘‘अगली दावत अगले रविवार को  होगी । लेकिन एक शर्त है-- तुम सब जूठी प्लेटों से अपने लिए खाना नहीं चुनोगे।’’
‘‘नहीं लेंगे। हम गरम पूरी खाएंगे।’’ बच्चों ने एक स्वर में कहा। वे हंस रहे थे। धीरे-धीरे बच्चे इधर-उधर बिखर गए। अब वहां न जूठी प्लेटें थीं, न जूठन चुगते हुए बच्चे। कहीं गंदगी नहीं थी।
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रामदास बाबू ने धनराज को पैसे दिए तो उसने कहा, ‘‘बाबूजी, यह आपने क्या मुसीबत मोल ले ली। अब हर रविवार को ये बच्चे आपको परेशान करेंगे।’’ रामदास बाबू ने कहा, ‘‘जब मोहल्ला समिति बड़ों के लिए लंगर लगाती है तो बच्चों की दावत क्यों नहीं? वे जूठी प्लेटों से जूठन क्यों बटोरें। और हां, तुम यहां एक बड़ा डस्टबिन रखवा दो। ग्राहको से कहो कि जूठे दोने डस्टबिन में डाला करें। मैं मोहल्ला समिति से बात करूंगा कि वे केवल भोजन का ही प्रबंध न करें, बाद में सफाई भी करवाएं। अगर यहां जूठन न बिखरी होती तो बच्चे अपनी भूख मिटाने के लिए  जूठी प्लेटों में कभी खाना न ढूंढ़ते?’’
अगला रविवार आया। सब कुछ पहले की तरह हुआ। लेकिन उस दिन वहां जूठी प्लेटें नहीं बिखरी थीं। बड़ों का लंगर खत्म होने के बाद रामदास बाबू ने बच्चों की दावत का आयेाजन किया। खाना खत्म होने के बाद उन्होंने बच्चों से पूछा, ‘‘दावत तो हो गई, अब क्या करोगे?’’
‘‘हम तो खेलेंगे।’’
‘‘ठीक है तो आज मैं भी खेलूंगा तुम सबके साथ।’’ रामदास बाबू बच्चों के झुंड को बाग में ले गए। वहां बच्चों का झुंड उन्हें घेर कर बैठ गया। वे बच्चों को कहानी सुनाने लगे। उन्हें बहुत सी कहानियां याद थीं। लेकिन सुनाने के लिए इतने सारे बच्चे तो पहली बार मिले थे। बच्चे कहानी में रम गए थे।
रामदास बाबू कुछ और भी सोच रहे थे-जैसे क्या इन बच्चों के लिए पढ़ाई का प्रबंध किया जा सकता है? उनके दिमाग में कई योजनाएं घूम रही थीं। हर योजना के बीच बच्चे थे-जिन्हें ये कभी जूठन में खाना नहीं ढूंढ़ने देंगे।
                                                                            ( समाप्त )
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Wednesday 22 August 2018

रोटी ने कहा --देवेन्द्र कुमार-- कहानी बच्चों के लिए







रोटी ने कहा—देवेन्द्र कुमार—कहानी-- बच्चों के लिए
क्या रोटी भी बोलती है? क्या पता, मैंने तो कभी उसे बोलते हुए नहीं सुना,
तब भोलू के कानों ने किसकी आवाज़ सुनी थी ?   

ढाबे में सुबह से आधी रात तक हाड़ तोड़ मेहनत करते हुए भोलू लगातार एक ही बात सोचता रहता है-आखिर मालिक रामदीन उसी पर इतना गुस्सा क्यों करता है! भोलू को उसका चाचा रामदीन के पास छोड़ गया था. भोलू की माँ गाँव में अकेली रहती है. भोलू के पिता नहीं रहे, रोटी का जुगाड़ मुश्किल था. ऐसे में भोलू स्कूल जाने की जिद करता था. माँ ने भोलू के चाचा  से कहा, जो शहर में नौकरी करता था. चाचा उसे अपने साथ ले तो आया पर घर में नहीं रखा, सीधा रामदीन के ढाबे पर ले गया. उन दोनों में  क्या बात हुई कोई नहीं जानता. रामदीन को बिना पैसे का नौकर मिल गया. भोलू को सुबह से रात तक काम और सिर्फ काम करना पड़ता था. जब जो मिलता उसी से पेट भर कर ढाबे के अन्दर ही रात बिताता था.

भोलू का मन माँ से मिलने का होता तो रो कर काम में  लग जाता. उसका चाचा जब रामदींन से मिलने आता तो भोलू उससे माँ से मिलने की बात कहता. वह घुड़क कर चुप करा देता. कहता –‘तूने उसे बहुत परेशान कर रखा था, इसीलिए उसने तुझे यहाँ भेजा है. मन लगा कर काम किया कर.’ रामदीन उसकी शिकायत करता. भोलू ने एक- दो प्लेटें तोड़ दी थीं. उसने भोलू को बहुत मारा था. कहा था –‘ मैं तेरे पैसे भी तो नहीं काट सकता.’ कारण था कि पगार के  नाम पर तो भोलू को एक पैसा भी नहीं मिलता था. इसलिए किसी भी टूटफूट के दाम उसे पिट कर ही चुकाने पड़ते थे. ढाबे में और भी कई छोकरे काम करते थे. पर उन्हें इतना कष्ट नहीं सहना पड़ता था. क्योंकि उनसे हुए नुक्सान की भरपाई उनके वेतन से कटौती करके हो जाती थी. एक-दो लड़के काम छोड़ कर चले भी गए थे. इसलिए रामदीन उनसे ज्यादा कुछ  नहीं कहता था. भोलू ही अलग थलग पड़ गया था.

वह कुछ नहीं कर सकता था. एक दिन भोलू आटा गूंध रहा था, तभी रामदीन आकर उसे  मारने लगा. कोई कुछ नहीं समझ सका. असल में भोलू का चाचा आकर रामदीन से पैसे मांग रहा था. उसने कहा कि भोलू के बदले में कुछ तो मिलना ही चाहिए. रामदीन ने कह सुनकर चाचा को भगा दिया, और फिर आकर भोलू को पीटने लगा. बेचारा भोलू ! वह कुछ समझ नहीं सका. रोता हुआ आटा गूंधने का काम करता रहा. बहते आंसू टप टप आटे में टपकते रहे. फिर तो यह हरकत कई बार दोहराई गई. भोलू रोकर अपने मन को शांत कर लेता. एक दिन भोलू का चाचा फिर पैसे मांगने आया. उस दिन तो हद ही हो गई. रामदीन ने भोलू को खूब मारा. पिटने के  बाद भोलू आंसू पोंछ कर फिर से काम में लग गया. आंसू टपकते रहे.

खाना तैयार था, ग्राहक खाना खाने लगे. तभी ढाबे में शोर मच गया, ग्राहक खाना फेंकने लगे. वे कह रहे थे कि रोटियाँ कडवी हैं. रामदीन घबरा गया. उसने ग्राहकों को शांत करना चाहा, फिर खुद भी रोटी का एक
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 टुकड़ा खाकर देखा. अरे यह क्या! रोटी सचमुच बहुत कडवी थी. उसने नौकरों से तुरंत ताज़ी रोटियाँ बनाने को कहा. लेकिन ताज़ी रोटियां भी कडवी थीं. सारे  ग्राहक जोर जोर से चीखते, गालियाँ बकते हुए चले गए. बाज़ार में शोर मच गया. उस शाम रामदीन के ढाबे पर कोई ग्राहक नहीं आया. रामदीन बुरी तरह घबरा गया. उसने दूकान में रखा सारा आटा फिकवा दिया. आटे की नई बोरी लाया. फिर भोलू के गालों पर चपत लगाते हुए बोला-‘ शैतान, तूने जरूर कोई गलत चीज़ मिला दी होगी आटे में .’ उस दिन भोलू के बदले किसी और. नौकर ने आटा गूंधा. रोटियाँ बन कर तैयार हुईं तो सबसे पहले रामदीन ने एक टुकड़ा खाकर देखा. फिर तुरंत थूक भी दिया, मुंह कड़वा हो गया. देर तक पानी से कुल्ला करता रहा पर मुंह की कडवाहट दूर न हुई. रामदीन ने नई नई दुकानों से आटा मंगवा कर देख लिया पर वहाँ बनने वाली रोटियों का स्वाद कड़वा ही रहा.
भूत प्रेत का चक्कर समझ कर सारे नौकर भाग गए. खुद रामदीन का भी पता नहीं था. शाम हो गई. भोलू ढाबे में अकेला बैठा था. एक तरफ सुबह बनी रोटियाँ पड़ी थीं. भोलू ने दो दिन से कुछ नहीं खाया था. उसने रोटी का टुकड़ा तोड़ कर मुंह में डाल लिया. अरे यह क्या! मुंह में अजीब मिठास घुल गया. वह खाता गया.ऐसी मीठी रोटी तो उसने इससे पहले कभी नहीं खाई थी. भोलू के मुंह से निकला –‘ पर रोटियां तो कडवी थीं! फिर यह मीठी  रोटी!’ कानों में आवाज़ आवाज़ आई- आंसू से गीले आटे की रोटियाँ तो कडवी ही होंगी.   भोलू को लगा जैसे आवाज़ रोटी में से आ रही हो. वह खाता रहा. पता नहीं उसने कितने दिनों से भर पेट  रोटी नहीं खाई थी. पेट भर गया था, अब उसे नींद आ रही थी. कितना समय बीत गया था अध् जागी नींद के साथ भोलू का.  ( समाप्त )     


रोटी ने कहा-- देवेन्द्र कुमार--कहानी बच्चों के लिए



देवेन्द्र कुमार ,
e- 403 प्रिंस अपार्टमेंट्स, प्लाट नं 54 , पटपड़ गंज, दिल्ली- 110092 ,  
मो.- 9910140071
रोटी ने कहा—देवेन्द्र कुमार—कहानी-- बच्चों के लिए
क्या रोटी भी बोलती है? क्या पता , मैंने तो कभी उसे बोलते हुए नहीं सुना, तो फिर भोलू के कानों ने किसकी आवाज़ सुनी थी ?
   
ढाबे में सुबह से आधी रात तक हाड़ तोड़ मेहनत करते हुए भोलू लगातार एक ही बात  सोचता रहता है-आखिर मालिक रामदीन उसी पर इतना गुस्सा क्यों करता है. भोलू को उसका चाचा रामदीन के पास छोड़ गया था. भोलू की माँ गाँव में अकेली रहती है. भोलू के पिता नहीं रहे,रोटी का जुगाड़ मुश्किल था. ऐसे में भोलू स्कूल जाने की जिद करता था. माँ ने भोलू के चाचा  से कहा जो शहर में नौकरी करता था. चाचा उसे अपने साथ ले तो आया पर घर में नहीं रखा, सीधा रामदीन के ढाबे पर ले गया. उन दोनों में  क्या बात हुई कोई नहीं जानता. रामदीन को बिना पैसे का नौकर मिल गया. भोलू को सुबह से रात तक काम और सिर्फ काम करना पड़ता था. जब जो मिलता उसी से पेट भर कर ढाबे के अन्दर ही रात बिताता था.

भोलू का मन  माँ से मिलने का होता तो रो कर काम में लग जाता. उसका चाचा जब रामदींन से मिलने आता तो भोलू उससे माँ से मिलने की बात कहता. वह घुड़क कर चुप करा देता. कहता –‘तूने उसे बहुत परेशान कर रखा था, इसीलिए उसने तुझे यहाँ भेजा है. मन लगा कर काम किया कर.’ रामदीन उसकी शिकायत करता.  भोलू ने एक दो प्लेटें तोड़ दी थीं . उसने भोलू को बहुत  मारा था. कहा था –‘ मैं तेरे पैसे भी तो नहीं काट सकता.’ कारण था कि पगार के  नाम पर तो भोलू को एक पैसा भी नहीं मिलता था. इसलिए किसी भी टूटफूट के दाम उसे पिट कर ही चुकाने पड़ते थे. ढाबे में और भी कई छोकरे काम करते थे. पर उन्हें इतना कष्ट नहीं सहना पड़ता था. क्योंकि उनसे हुए नुक्सान की भरपाई उनके वेतन से कटौती करके हो जाती थी. एक-दो लड़के काम छोड़ कर चले भी गए थे. इसलिए रामदीन उनसे ज्यादा कुछ नहीं कहता था. भोलू ही अलग थलग पड़ गया था वह कुछ नहीं कर सकता था. एक दिन भोलू आटा गूंध रहा था, तभी रामदीन आकर उसे  मारने लगा. कोई कुछ नहीं समझ सका. असल में भोलू का चाचा आकर रामदीन से पैसे मांग रहा था. उसने कहा कि भोलू के बदले में कुछ तो मिलना ही चाहिए. रामदीन ने कह सुनकर चाचा को भगा दिया, और फिर आकर भोलू को पीटने लगा. बेचारा भोलू ! वह कुछ समझ नहीं सका. रोता हुआ आटा गूंधने का काम करता रहा. बहते आंसू टप-- टप आटे में टपकते रहे. फिर तो यह हरकत कई बार दोहराई गई. भोलू रोकर अपने मन को शांत कर लेता. एक दिन भोलू का चाचा फिर पैसे मांगने आया. उस दिन तो हद ही हो गई. रामदीन ने भोलू को खूब मारा. पिटने के  बाद भोलू आंसू पोंछ कर फिर से काम में लग गया. आंसू टपकते रहे.

    खाना तैयार था, ग्राहक खाना खाने लगे. तभी ढाबे में शोर मच गया, ग्राहक खाना फेंकने लगे. वे कह रहे थे कि रोटियाँ कडवी हैं. रामदीन घबरा गया. उसने ग्राहकों को समझा बुझा कर शांत करना चाहा ,फिर खुद भी रोटी का  एक 
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टुकड़ा खाकर देखा. अरे यह क्या! रोटी सचमुच बहुत कडवी थी. उसने नौकरों  से  तुरंत ताज़ी रोटियाँ बनाने को कहा. लेकिन ताज़ी रोटियां भी कडवी थीं. सारे  ग्राहक जोर जोर से चीखते , गालियाँ बकते हुए चले गए. बाज़ार में शोर मच गया. उस शाम रामदीन के ढाबे पर कोई ग्राहक नहीं आया. रामदीन बुरी तरह घबरा गया. उसने दूकान में रखा सारा आटा  फिकवा दिया. आटे की नई बोरी लाया. फिर भोलू के गालों पर चपत लगाते हुए बोला-‘ शैतान, तूने जरूर कोई गलत चीज़ मिला दी होगी आटे में .’ उस दिन भोलू के बदले किसी और  नौकर ने आटा गूंधा, रोटियाँ बन कर तैयार हुईं तो सबसे पहले रामदीन ने एक टुकड़ा खाकर देखा. फिर तुरंत थूक भी  दिया. मुंह कड़वा हो गया,.देर तक पानी से कुल्ला करता रहा पर मुंह की कडवाहट दूर न हुई. रामदीन ने नई नई दुकानों से आटा  मंगवा कर देख लिया पर वहाँ बनने वाली रोटियों का स्वाद  कड़वा ही रहा.

     भूत प्रेत का चक्कर समझ कर सारे नौकर भाग गए. खुद रामदीन का भी पता नहीं था. शाम हो गई. भोलू ढाबे में अकेला बैठा था. एक तरफ सुबह बनी रोटियाँ पड़ी थीं. भोलू ने दो दिन से कुछ नहीं खाया था. उसने रोटी का टुकड़ा तोड़ कर मुंह में डाल लिया. अरे यह क्या! मुंह में अजीब मिठास घुल गया .वह खाता गया. ऐसी मीठी रोटी तो उसने इससे पहले कभी नहीं खाई थी. भोलू के मुंह से निकला –- ''पर रोटियां तो कडवी थीं! फिर यह रोटी मीठी कैसे !’ कानों में' आवाज़ आई---' आंसू से गीले आटे की रोटियाँ तो कडवी ही होंगी.' भोलू को लगा जैसे आवाज़ रोटी में से आ रही हो. वह खाता रहा. पता नहीं उसने कितन दिनों से भर पेट रोटी नहीं खाई थी .पेट भर गया था अब उसे नींद आ रही थी.                                                                                     ( समाप्त )

एक नया सितारा --देवेन्द्र कुमार-कहानी--बच्चों के लिए


 एक नया सितारा—देवेन्द्र कुमार –-कहानी—बच्चों के लिए
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रात के समय आकाश में असंख्य तारे चमकते हैं, उनमें कौन से तारे हमारे हैं—क्या हम कभी             जान सकेंगे?कौन बताएगा हमें!  
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मुझे गर्मियों की रातें बहुत अच्छी लगती हैं। इसलिए कि उन दिनों स्कूलों की छुट्टियां होती हैं। सुबह मां की पुकार पर बिस्तर से उठना नहीं पड़ता। और रात में हम देर तक बाबा से कहानियां सुनते रह सकते थे।
जैसे ही दिन ढलता हम यानी मैं और मेरी बहन राधा पानी की बाल्टी लेकर छत पर चले जाते और पानी के छपके मारकर छत को ठंडा करने लगते। पानी सूख जाता तो छत पर बाबा के लिए चटाई बिछा दी जाती। गर्मी के मौसम में बाबा शीतलपाटी पर सोया करते थे। उनके पास ही दूसरी चटाई पर मैं और राधा बैठ जाते। हमें बाबा की प्रतीक्षा रहती। कुछ ही देर में पड़ोस से मुन्नू और रमन भी आ पहुंचते। उन्हें भी बाबा से कहानी सुनना पसंद था। बाबा के छत पर आते ही हम उनसे कहानी सुनाने की फरमाइश करते।
तब बाबा कहते-‘‘तुम लोग कहानी अधूरी छोड़कर नींद के पास चले जाते हो। अब नींद ही कहानी सुनाएगी तुम्हें।’’ कुछ देर तक हां-ना होती रहती ओर फिर बाबा कहानी सुनाने लगते। सुनते-सुनते मैं शीतलपाटी पर लेट जाता और आकाश की ओर ताकने लगता। आकाश तारों से भरा होता और फिर न जाने कब नींद आंखों में आ जाती।
रोज ही ऐसा होता था। लेकिन उस दिन वैसा कुछ नहीं हुआ। उस रात बाबा देर से आए और चुपचाप शीतलपाटी पर बैठ गए। लगा जैसे वह कहानी सुनाने की तैयारी कर रहे हैं। फिर वह लेटकर आकाश में देखने लगे। मैंने कहा-‘‘बाबा, कहानी सुनाओ न।’’
कुछ देर चुप रहने के बाद बाबा ने कहा-‘‘कहानी बाद में, आज पहले तारे गिनेंगे।’’ मैंने आकाश में देखा-हर कहीं तारे बिखरे थे। भला असंख्य तारों को कौन गिन सकता था। राधा बोली-‘‘शायद आपको कहानी याद नहीं है इसीलिए तारों की बात कर रहे हैं।’’
‘‘कहानियां तो अनेक याद हैं मुझे पर आज हम तारे गिनेंगे। इनमें एक नया तारा शामिल हुआ है। चलो शुरू करो।’’ फिर बाबा खुद तारे गिनने लगे- एक, दो, तीन... हम चारों ने भी तारों की गिनती शुरू कर दी-छत पर आवाजें गूंजने लगीं-एक दो, दस, सत्रह...! क्या यह भी कोई कहानी थी। तारे गिनते गिनते कब नींद आ गई, पता न चला।...
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सुबह आंख खुली तो अभी हल्का अंधेरा था। बाबा शीतलपाटी पर नहीं थे। मैंने ऊपर से आंगन में झांका तो बाबा खड़े दिखाई दिए, फिर वह बाहर दरवाजे की तरफ चले गए। अब वह मुझे दिखाई नहीं दे रहे थे। मैंने राधा को जगाया और फिर हम नीचे जा पहुंचे। मम्मी-पापा एक तरफ बैठे थे, पर बाबा दिखाई नहीं दे रहे थे। मैंने मां से पूछा-‘‘बाबा कहां हैं?’’
‘‘वह गांव गए हैं।’’-- पापा ने बताया।
‘‘दो दिन बाद आएंगे।’’-- मां बोलीं।
‘‘गांव क्यों गए हैं? वहां तो कोई नहीं है हमारा।’’
‘‘तुम्हारी एक दादी रहती थीं। वह बीमार थीं। इसीलिए गए हैं।’’
‘‘लेकिन हमारी दादी तो यहां हमारे साथ रहती थीं।’’ मैं पूछ रहा था। दो साल पहले दादी हमें छोड़ गई थीं। तब फिर गांव में यह कौन सी दादी थीं जिनके पास बाबा गए थे।
‘‘तुम्हारे दादा की बहन जयवंती गांव में ही रहती थीं।’’ पापा ने जयवंती दादी के बारे में कुछ बताया, जो मेरी समझ में नहीं आया। मैंने उन्हें कभी देखा ही नहीं था।
बाबा दो दिन बाद लौट आए। वह कुछ थके-थके लग रहे थे। शाम को मैंने और राधा ने रोज की तरह छत को पानी डालकर ठंडा किया, फिर बाबा के लिए शीतलपाटी बिछा दी। अब आकाश में तारे झिलमिल करने लगे थे। बाबा आकर शीतलपाटी पर बैठ गए। उन्होंने पूछा-‘‘आज कौन सी कहानी सुनोगे?’’
मैंने कहा-‘‘बाबा, आज हम सच्ची कहानी सुनेंगे?’’
‘‘यह सच्ची कहानी कैसी होती है?’’ उन्होंने पूछा।
‘‘जो सच होती है-वैसी कहानी सुनाइए, हम जयवंती दादी की कहानी सुनेंगे।’’ हम दोनों ने एक साथ कहा।
बाबा कुछ देर चुप रहे फिर बोले-‘‘तो तुम्हारे पापा ने तुम्हें जयवंती दादी के बारे में बता दिया। हां, दो दिन पहले वह स्वर्ग चली गईं। मैं गांव गया तो सही पर उनका मुंह न देख सका।
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मैंने कहा-‘‘बाबा, पापा को भी उनके बारे में ज्यादा पता नहीं है। आप ही बताइए उनके बारे में.’’ बाबा कुछ देर चुप बैठे रहे फिर कहने लगे-‘‘मैं और जयवंती कई वर्षों तक गांव में रहे। हमारा बचपन साथ-साथ बीता|. हम देानों में बहुत प्रेम था। हम सदा साथ-साथ रहते थे। हमारे घर से नदी बस थोड़ी ही दूर थी. हम अक्सर खेलते हुए नदी तट पर पहुंच जाते। पिता हम दोनों को वहां जाने से रोकते। कहते-- ‘नदी में घडि़याल आ गया है। वह मनुष्यों को खा जाता है।‘
तब जयवंती ने कहा था-‘‘जब घडि़याल हमारी तरफ आएगा तो मैं भैया के सामने खड़ी हो जाऊंगी. वह मुझे खाकर ही भैया के पास पहुंच सकेगा।‘’ और फिर रोते-रोते उसने मेरा हाथ कसकर पकड़ लिया था।
मैंने कहा-‘‘जयवंती, रो क्यों रही हो। यहां हमारे घर में तो घडि़याल का कोई खतरा नहीं है।’’ यह सुनकर जयवंती हंस पड़ी। जब वह हंस रही थी तब भी उसकी आंखों से आंसू बह रहे थे। कहकर बाबा आंखें पोछने लगे।
मैंने पूछा-‘‘इसका मतलब जयवंती दादी आपसे बहुत प्यार करती थीं।‘’
‘‘हां, वैसे ही जैसे तुम और राधा एकदूसरे से करते हो।’’ कहकर बाबा हंस पड़े। बोले-‘‘एक बार एक सांड जयवंती के पीछे पड़ गया। वह डरकर भागने लगी तो गिर पड़ी। मैं उसके साथ ही था। मैंने जयवंती को अपने पीछे छिपा लिया और सांड पर पत्थर फेंकने लगा। कुछ देर बाद वह मुड़कर चला गया। हम दोनों बच गए।’’
‘‘सांड आपको चोट भी पहुंचा सकता था।’’ मैंने कहा।
‘‘हां, यह तो था पर मैं जयवंती को खतरे से बचाने के लिए कुछ भी कर सकता था।’’
इसके बाद बहुत देर तक मैं और राधा जयवंती दादी के बारे में पूछते रहे और बाबा बताते रहे। बीच-बीच में वह पूछ लेते थे-‘‘जब नींद आए तो बता देना।’’
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उस रात हम देर तक बाबा से उनकी बहन जयवंती दादी की बातें सुनते रहे पर नींद हमारे पास तक नहीं फटकी। बाबा ने हमें अपने गांव के बारे में बताया जहां मैं और राधा कभी नहीं गए थे। पर उनकी बातें सुनकर मुझे लग रहा था जैसे मैं उनके साथ उनके गांव की गलियों में घूम रहा हूं। मैंने कहा-‘‘बाबा, मैं आपके साथ जाकर गांव देखना चाहता हूं।’’
‘‘गांव तो जा सकते हैं पर तुम्हारी जयवंती दादी तो अब रही नहीं।’’ बाबा ने उदास स्वर में कहा और आंखें पोंछने लगे।
आकाश में सब तरफ चमकीले तारे बिखरे थे. बाबा ने कहा था कि एक नया सितारा तारों के झुंड में शामिल हुआ है। मैं तारों को देखने लगा-क्या नया सितारा जयवंती दादी थीं। शायद हां, शायद...          
                                                     ( समाप्त )