Monday 2 October 2023

उदास मिठाई -देवेंद्र कुमार

 

उदास  मिठाई -देवेंद्र कुमार

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अमित को सुबह की गाड़ी से आगरा जाना था दफ्तर के काम से। जाने से पहले वह पिता के पास विदा लेने गया। उन्होंने अमित के हाथ में एक छोटा सा कागज़ थमा दिया। अमित ने बिना पढ़े जेब में रख लिया। वह सोच रहा था कहीं गाड़ी छूट न जाये।

 पिता ने कहा-‘ मैंने जो कागज तुम्हें दिया है उस पर मेरे बचपन के दोस्त शम्भू का पता  लिखा  है। मैं बहुत समय से उनसे नहीं मिला हूँ।  इधर खबर मिली है कि वह बीमार चल रहे हैं। अगर तुम समय निकाल कर उन्हें देखने जा सको तो अच्छा रहेगा।’  

‘ मैं पूरी कोशिश करूंगा ।’ अमित ने कहा और बेटे अमर के गाल थपथपा कर घर से बाहर निकल गया। आगरा पहुँच कर अमित दफ्तर के काम से निकल पड़ा। दफ्तर के काम से फुर्सत पाते- पाते दोपहर बीत चुकी थी।  अब उसे पिता से मिले परचे का ध्यान आया। परचे पर एक पता लिखा था-   502 आम्रपाली अपार्टमेंट्स । वह एक रिक्शा में बैठ कर चल दिया। फिर ध्यान आया कि किसी के घर पहली बार ख़ाली हाथ जाना ठीक नहीं रहेगा। हलवाई की दुकान के सामने रूककर उसने मिठाई ली और फिर आगे चल दिया।

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आम्रपाली अपार्टमेंट्स एक बहुमंजिली इमारत थी। वह लिफ्ट से पांचवीं मंजिल पर पहुँच गया। जब वह फ्लैट नं 502 की ओर बढ़ा तो ठिठक गया। फ्लैट के दरवाज़े के आगे तथा गैलरी में काफी लोग जमा थे। हवा में बातों की भनभनाहट गूँज रही थी।

अमित के कदम अपनी जगह ठिठक गए। कुछ पल असमंजस में खड़ा रहा, फिर पास वाले आदमी से पूछा तो पता चला कि पिताजी के मित्र शम्भूजी की मौत हो गई है। वह काफी समय से बीमार चल रहे थे। अमित को धक्का लगा। वह पिता के बारे में सोचने लगा। मित्र की मौत की खबर से उन्हें काफी दुःख होगा। नज़र हाथ के मिठाई के डिब्बे पर गई। समझ नहीं पाया कि मिठाई का क्या करे। उसकी आँखें बचने का रास्ता खोजने लगीं। तभी दिखाई दिया दरवाज़े के बाहर एक छोटी सी अलमारी रखी थी। अमित ने मिठाई का डिब्बा अलमारी के ऊपर टिका दिया, फिर जूते उतार कर अंदर चला गया। अमित ने अंदर एक लड़के को देखा , शायद वही शम्भूजी का बेटा था। कुछ देर उससे बात करके वह बाहर निकल आया। न चाहते हुए भी उसकी नज़रें अलमारी की ओर चली गईं, मिठाई का डिब्बा अपनी जगह नहीं था। वह हैरान था कि ऐसे समय में कौन था जो मिठाई उठा ले गया!

अमित लिफ्ट के आगे जा खड़ा हुआ। तभी उसने एक पुकार सुनी। मुड़कर देखा तो एक आदमी उसे इशारा कर रहा था। उसने कहा -’ आप शायद मिठाई का डिब्बा खोज  रहे हैं जिसे आपने अलमारी पर रखा था। मैंने आपको डिब्बा रखते हुए देखा था।’ उस आदमी ने कहा-‘ मेरा नाम  रामसरन है। मैने एक लड़के को डिब्बा ले जाते हुए देखा था।

अमित ने कुछ नहीं कहा। वह लिफ्ट से नीचे आया तो रामसरन भी उसके साथ था। वह कह रहा था –‘ वह लड़का फूल वाले का नौकर है । वह फूल देने आया था। मैं फूल वाले को अच्छी तरह जानता हूँ। ‘ अमित आगे बढ़ा तो पीछे से रामसरन की आवाज़ आई-‘ अरे वाह ! फूल वाला तो यहीं खड़ा है। चलो उसी से पूछते हैं।’ ‘अमित ने मुड़ कर देखा तो रामसरन किसी से बात कर रहा था। उसने अमित को इशारे से बुलाया तो अमित वहां चला गया।

उसने सुना –फूल वाला कह रहा था-‘यह तो बहुत गलत किया मेरे नौकर श्याम ने। फिर अमित से माफ़ी मांगता हुआ बोला-‘ उसका घर पास ही है। आइये वहां चल कर पूछते हैं। "  

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अमित ने कहा-‘ मुझे अभी दिल्ली लौटना है। मैं नहीं चल सकता। ‘ लेकिन फूल वाला बोला- ‘बाबूजी, बस पांच मिनट की ही तो बात है। रामसरन ने भी कहा तो अमित को मानना पड़ा । थोड़ी दूर जाकर फूल वाला एक दरवाजे के सामने रुक गया। उसने जोर से पुकारा|

दरवाज़ा खुला और एक आदमी बाहर निकला। उसने फूल वाले से कहा-‘ ,लो पहले मुंह मीठा करो। आज हमारे घर लक्ष्मी पधारी है, श्याम के जन्म के इतने बरसों बाद बेटी हुई है।’ यह कहकर उसने मिठाई का डिब्बा आगे बढ़ा दिया। अमित चौंक उठा,  यह तो मिठाई का वही डिब्बा था जो फ्लैट के बाहर रखी अलमारी के ऊपर से गायब हो गया था। उसे गुस्सा आ गया। फूल वाले ने कहा-‘ जरा श्याम को तो बुलाओ’ फिर उसने अमित की ओर इशारा करके सारी घटना कह सुनाई।

श्याम का पिता जैसे सन्न खड़ा रह गया। फिर उसने पुकारा , श्याम झट बाहर निकल आया |श्याम के पिता ने कहा-‘ बाबू , आज मैं कितना खुश था कि घर में  लक्ष्मी आई है।‘’

फूल वाले ने श्याम से पूछा तो उसने बताया कि जब वह फूल देकर निकला  तो किसी ने उसे मिठाई का डिब्बा देकर कहा कि यहाँ इस माहौल में मिठाई कोई खायेगा नहीं ,इसे किसी मंदिर में बाँट देना. ‘’बस मैं डिब्बा लेकर चला आया ,रास्ते मुझे बापू मिले ,वह अस्पताल से आ रहे थे उन्होंने मुझे बहन के जन्म की खबर दी तो मन ख़ुशी से भर गया, पता नहीं क्यों मैंने डिब्बा उन्हें थमा दिया| मैंने अपने आप डिब्बा अलमारी पर से नहीं उठाया था|‘

अमित ने देखा श्याम का पिता किसी प्रतिमा की तरह खड़ा था। मिठाई का डिब्बा उसने जमीन पर टिका दिया था। कुछ पल सन्नाटा रहा।अमित को लगा अचानक घर में बेटी के जन्म की खुशी  पर उदासी की काली छाया चढ़ गई है| यह तो ठीक नहीं हुआ,  अमित ने डिब्बा उठा कर फूल वाले की तरफ बढ़ा दिया-‘ फूल वाले भाई, तुम ने सुना नहीं आज श्याम की बहन ने जन्म लिया है। यह तो ख़ुशी का मौका है। ‘ और उसने मिठाई की एक डली उसके हाथ पर रख दी,फिर श्याम और उसके पिता से भी मिठाई खाने को कहा। उदासी की जगह मुस्कान ने ले ली।

अमित ने श्याम के पिता से पूछा  -;तुमने नवजात बेटी का क्या नाम रखा है?'

‘जी अभी तो कुछ सोचा नहीं। लड़की तो लक्ष्मी होती है।’ वह बोला।

‘उसका नाम लक्ष्मी ही रखना।’ फिर अमित ने फूल  वाले की ओर देख कर पूछा -‘ क्या कहते    हो?’

‘जी बढ़िया रहेगा।’ फूल वाला हंस रहा था।

अमित का मन शम्भूजी की मौत से उदास हो गया था ,पर अब उदासी में मिठास घुल गई थी।

श्याम और उसके बापू के उदास चेहरे भी मुस्कान से खिल उठे थे. |

                                                                                                                                (समाप्त )                 

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