Wednesday 27 September 2023

हवा और खुशबू की तरह = देवेन्द्र कुमार

 

 

                            हवा और खुशबू की तरह = देवेन्द्र कुमार

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    रामदास थक गए थे।  सोसाइटी की लिफ्ट ऊपर कहीं अटकी हुई थी, इसलिए लिफ्ट के सामने वाली सीढ़ियों की पैडी पर बैठ गए।  तभी कानों में आवाज आई—‘ लीजिये पानी पीजिये। ’ रामदास चौंक गए,देखा—सामने एक बच्चा पानी का गिलास लिए खड़ा है।  सचमुच प्यास से गला सूख रहा था।  उन्होंने पानी पी लिया फिर पूछा--‘ तुम्हें कैसे पता कि मुझे प्यास लगी है!’

    ‘मुझे बाबा ने बताया’—वह बोला और थोड़ी दूर पर बने पार्क की ओर इशारा किया।  रामदास ने उधर देखा तो एक व्यक्ति पार्क की रेलिंग के पास खड़ा नज़र आया।  वह इसी तरफ देख रहा था। नजरें मिलते ही उसने हाथ हिला दिया। रामदास ने सोचा—इस बच्चे के बाबा से जरूर मिलना चाहिए।  उस तरफ बढ़ते हुए  उन्होंने बच्चे से पूछा--‘तुम्हारा नाम क्या है।‘

    —‘ मेरा नाम अमर है, मैंने आपकी प्यास बुझाई लेकिन आपने आशीर्वाद तो दिया ही नहीं। ’ उसने कहा तो रामदास ने उसका सिर सहला कर कहा -–‘ जिस पल तुमने मुझे पानी का गिलास थमाया था तब से तुम्हें आशीर्वाद ही तो दे रहा हूँ। ’ और ठठा कर हंस पड़े।  उन्हें अमर का व्यवहार कुछ विचित्र लग रहा था।  बोले—‘अच्छा काम करने वाले को आशीर्वाद अपने आप मिल जाता है, मांगना नहीं पड़ता।’

   वह पार्क में जाकर अमर के बाबा अविनाश से मिले।  रामदास कुछ पूछते इससे पहले ही अविनाश ने कह दिया— आप को आश्चर्य हो रहा होगा अमर के व्यवहार पर लेकिन... ’

    ‘लेकिन क्या!’ रामदास ने जानना चाहा।

    अविनाश ने बताया—‘ अमर की माँ आरती बीमार चल रही है। इधर कई हफ्ते से अस्पताल में भर्ती है। माँ के अस्पताल जाने के बाद से अमर बहुत उदास रहने लगा था। बार बार माँ से मिलने की जिद करता था, लेकिन बच्चों का अस्पताल जाना मना है। सुबह नींद खुलते ही इसका सबसे पहला सवाल यही होता था कि माँ अस्पताल से कब वापस आएगी।बस यही रट लगाये रखता था, न ठीक से खाता, न दोस्तों के साथ खेलता!   

    ‘ लेकिन इसका इस तरह अनजान व्यक्ति को पानी पिलाना और फिर... ’

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     ‘और फिर आशीर्वाद माँगना—इसी बारे में पूछना चाहते हैं न आप’—अविनाश ने कहा—‘निश्चय ही आपको उसका व्यवहार विचित्र, अटपटा लगा होगा। ’

      रामदास ने हाँ में सिर हिला दिया।

     ‘अमर की उदासी से पूरा घर परेशान था।  हम सोचते रहते थे कि इसकी उदासी कैसे दूर की जाए। आखिर मुझे एक उपाय सूझ ही गया।’

      ‘कैसा उपाय।‘

      अविनाश ने अमर को अपनी गोद में भर लिया फिर कहा—‘जाओ खेलो।’ अविनाश उसके सामने रामदास से कुछ नहीं कहना चाहते थे। अमर झट पार्क में खेलते बच्चों की ओर दौड गया।

       ‘हाँ तो आपको कौन सा उपाय सूझ गया था।’ रामदास ने पूछा।

       अविनाश ने बच्चों के साथ खेलते अमर की ओर देखते हुए कहा—‘ कितने दिनों बाद मैं अमर को बच्चों के बीच खुश देख रहा हूँ।’ फिर बताने लगे— ‘हाँ तो एक सुबह जब अमर ने अपनी माँ के बारे में पूछा तो मुझे मौका मिल गया। मैंने कहा-‘अमर, तुम्हारी मम्मी की तबियत पहले से ठीक है,लेकिन अगर तुम चाहते हो कि वह और भी जल्दी  स्वस्थ होकर तुम्हारे पास आ जाये तो तुम्हें भी कुछ करना होगा।’

      ‘क्या?’—अमर ने पूछा था। ‘तब मैंने उसे समझाया कि उसे अपनी माँ के लिए आशीर्वाद इकट्ठे करने चाहिएं। इलाज और लोगों के आशीर्वाद मिल कर उसकी माँ को और भी जल्दी स्वस्थ कर देंगे। फिर मैंने बताया कि आजकल गर्मी का मौसम है। अगर वह प्यासे लोगों को पानी पिलाएगा तो वे उसे आशीर्वाद देंगे। बस तभी से मैं उसे लेकर शाम को पार्क में आ जाता हूँ। साथ में एक बड़े थर्मस में ठंडा पानी रहता है। वह घूम घूम कर लोगों को ठंडा पानी पिलाता है। पानी पीकर लोग कहते हैं—शाबाश बच्चे, खुश रहो, घर लौट कर मैं पूछता हूँ—‘आज कितने आशीर्वाद मिले?’ अमर कहता है कि  उसने चार लोगों को ठंडा पानी पिलाया। मैं कहता हूँ—‘वाह,तुमने चार आशीर्वाद इकट्ठे कर लिए अपनी माँ के लिए। देखना वह और भी जल्दी ठीक हो जाएगी। ’ सुन कर वह खुश हो जाता है। बस इस तरह अमर की उदासी दूर हो गयी। अब वह माँ की बीमारी के बारे में नहीं पूछता,  अपनी माँ के लिए आशीर्वाद इकट्ठे करने की धुन में रहता है।’   

      ‘वाह!  अमर की उदासी दूर करने की क्या खूब तरकीब निकली आपने। ’—कह कर रामदास हंस पड़े।

      अविनाश भी मुस्करा दिए।  बोले—‘ मैंने ही अमर को यह कहकर आपके पास भेजा था कि  पानी पिलाने के बाद आशीर्वाद लेना मत भूलना।’

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     रामदास सारी बात समझ गए। उनकी आँखों के सामने अस्पताल के पलंग पर लेटी एक युवती का चित्र तैर गया—अमर की माँ। उन्होंने मन ही मन उसके शीघ्र स्वस्थ होने का आशीर्वाद दिया—एक बार नहीं कई बार। फिर अविनाश से बोले—‘‘मैं भी अमर की माँ को देखना चाहता हूँ। आपके साथ चल सकता हूं क्या।‘

      ‘आप क्यों तकलीफ़ करेंगे। आरती मेरा मतलब अमर की माँ पहले से काफी ठीक है। मुझे उम्मीद कि उसे कुछ ही दिन में अस्पताल से छुट्टी मिल जाएगी।’ फिर मिलने की बात कह कर रामदास लौट आये।  

       अगली शाम रामदास पार्क जा पहुंचे पर अविनाश और अमर नहीं दिखाई दिए। उन्होंने सोसाइटी के गार्ड से उनके फ़्लैट का पता लिया और जाकर दरवाजे की घंटी बजा दी। रामदास को देख कर अविनाश अचरज में पड़ गए। रामदास ने कहा –‘ अमर और आपको पार्क में नहीं देखा तो पता करने चला आया। मैं आज आपके साथ अस्पताल चलना चाहता था।‘

       ‘आज मैं अस्पताल नहीं जाऊंगा।  अमर की तबियत ठीक नहीं है। इसके पापा और दादी गए   हैं।‘ कहते हुए अविनाश उन्हें कमरे में ले गए। अमर पलंग पर लेटा था। उसकी आँखें बंद थीं।  रामदास पलंग के खड़े हुए कुछ देर उसकी ओर देखते रहे। फिर अविनाश के साथ बाहर आ गए।  उनसे कहा— ‘आजकल मौसम बहुत गरम है, बीमार माँ के लिए आशीर्वाद जुटाने के उत्साह में इसने बहुत भागदौड कर डाली है, इसीलिए ज्वर आ गया है। अब तो इसे देख भाल की जरूरत है।’

      ‘मैं भी यही सोच रहा हूँ। अब आरती की तबियत में काफी सुधार हो गया है। हो सकता है कि उसे जल्दी छुट्टी मिल जाए|’ तभी अमर की आवाज आई—‘ बाबा।’ अविनाश के साथ रामदास भी कमरे में चले गए। रामदास ने बढ़ कर अमर के सिर पर हाथ रख दिया—‘ तुम्हारा एक आशीर्वाद मेरे पास रह गया था, वही देने आया हूँ।’

      ‘तो क्या उस दिन आप आशीर्वाद देना भूल गए थे।’—अमर ने पूछा।

       ‘भूला नहीं था। तुम्हारी मम्मी के लिए तो आशीर्वाद उस दिन दे दिया था, तुम्हारे लिए आज देने आया हूँ। ’—रामदास ने हंस कर कहा।

      ‘पर आशीर्वाद मुझे दिखाई क्यों नहीं देता?’

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       ’क्या तुम हवा को देख सकते हो?’

       ‘नहीं|’

       ‘और फूलों की सुगंध?’

       ‘वह भी नहीं दिखाई देती।’   

       ‘उसी तरह आशीर्वाद होता है। वह हमारे मन में रहता है। जब हम किसी के अच्छे काम से प्रसन्न हो कर उसे आशीर्वाद देते हैं तो वह तुरंत पाने वाले को मिल जाता है हवा और खुशबू की तरह।’—कह कर रामदास ने हौले से अमर के कपोल थपथपा दिए, फिर बाहर चले आए।

                अविनाश और रामदास हर शाम पार्क में मिलते रहे। अब अविनाश अमर को साथ नहीं लाते थे, क्योंकि मौसम अब भी बहुत गरम था। और फिर एक शाम अविनाश ने रामदास को बताया कि आरती को अस्पताल से छुट्टी मिल गई है। रामदास ने हंस कर कहा—‘आखिर अमर की मेहनत रंग ले आई।’ दोनों हंस पड़े।  अमर ने उन दोनों के बीच दोस्ती का पुल बना दिया था—पुल के एक छोर पर अमर था और दूसरे पर आशीर्वाद। ( समाप्त)     

     

                                

Monday 25 September 2023

बच्चे फूल हैं -देवेंद्र कुमार

 

बच्चे फूल हैं -देवेंद्र कुमार

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सुबह का समय। छुट्टी का दिन था। अभी सूरज पूरी तरह उगा नहीं था। सैलानी बाग में सैर कर रहे थे। हल्की हवा बदन पर अच्छी लग रही थी। पेड़-पौधों के पत्ते और टहनियों पर झूलते सुंदर सुगंधित फूल धीरे-धीरे हिल-डुल रहे थे जैसे आपस में बातें कर रहे हों। फूलों की मीठी-मीठी खुशबू हवा में तैर रही थी।

 

  दो व्यक्ति एक क्यारी के पास रुककर वहां खिले फूलों को देखने लगे। बहुत सुंदर दृश्य था। एक ने दूसरे से कहा-‘‘अद्भुत। अति सुंदर।’’

 

दूसरे ने जवाब दिया-‘‘आपने ठीक कहा। फूल ऐसे लग रहे हैं जैसे सुंदर-सलोने बच्चों के झुंड।

 

-‘‘हां, बच्चे इन फूलों जैसे सुकोमल होते हैं।’’ दोनों व्यक्ति कुछ देर फूलों की क्यारी के पास रुककर इसी बारे में बातें करते  रहे -फूलों जैसे बच्चों और बच्चों जैसे फूल।

 

फूल भी उनकी बातें ध्यान से सुन रहे थे। उन दोनों के जाने के बाद एक फूल ने दूसरे फूल से कहा-‘‘तुमने सुना इन दोनों ने क्या कहा।

 

‘‘हां, सुना। वे बच्चों की तुलना हम फूलों से कर रहे थे।

‘‘लेकिन बच्चे तो मनुष्य की संतान हैं। वे हम फूलों जैसे कैसे हो सकते हैं।’’

 

दूसरा फूल बोला-‘‘यह सब मैं नहीं जानता। लेकिन अक्सर ही मां-बाप कहते हैं-मेरा बच्चा फूलों जैसा कोमल है, नाजुक है।’’

 

खामोशी छा गई। हवा का झोंका आया तो फूल फिर से डालियों पर हिलडुल करने लगे। फूल ने हवा से पूछा तो हवा ने भी वही कहा। फूल बोला-‘‘मैं भी देखना चाहता हूं उन बच्चों को जिनकी तुलना उनके मां-बाप हमसे करते हैं। लेकिन मैं भला कैसे कहीं जा सकता हूं। मैं तो टहनी से जुड़ा हूं।’’ तभी हवा का दूसरा तेज झोंका आया और पौधे को हिला गया। एक कोमल टहनी पौधे से अलग हो गई। टहनी पर एक फूल खिला हुआ था। हवा फूलवाली टहनी को उड़ा ले चली ।

 

 

 

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‘‘वाह!’’ फूल ने कहा। उसे लग रहा था जैसे वह बंधन मुक्त हो गया है। अब कहीं भी जा सकता है। हवा फूल को उडाए लिए जा रही थी। आगे कूड़े का बड़ा ढेर पड़ा था|  हवा कूड़े के ढेर के ऊपर से गुजरी तो बदबू से सामना हुआ। फूल ने देखा दो बच्चे कूड़े के ढेर में जैसे कुछ खोज रहे थे। कूड़े में से निकालकर कुछ चीजें पास में रखी एक बड़ी बोरी में डालते जा रहे थे।

 

फूल ने हवा  से पूछा-‘‘क्या इन बच्चों को हम फूलों जैसा कहा जा सकता है?’

हवा बोली-‘‘भले ही ये दोनों बच्चे गंदे और मैले-कुचैले हैं, पर शायद इनके मां-बाप को इनका चेहरा फूलों जैसा सुंदर लगता होगा।’’

 

फूल ने कहा-‘‘ये तो बहुत गंदे हैं। देखो तो सब तरफ कितनी बदबू फैली है।

 

हवा बोली-‘‘ये गरीब हैं न। घर गंदा, बस्ती गंदी। पेट भरने के लिए इन बच्चों के मां-बाप कूड़े के ढेर में से काम लायक चीजें चुनकर बेचते हैं, तब इनका घर चलता है। ये बच्चे इस काम में अपने मां-बाप की मदद करते हैं। लो, इनसे बात करो। इनका हाल-चाल पूछो।’’ इतना कहकर हवा ने फूल को बच्चों के पास कूड़े के ढेर पर छोड़ दिया और आगे चली गई। अब फूल कूड़े के बड़े ढेर पर पड़ा हुआ सोच रहा था-‘‘यह मैं कहां आ गया!’’

 

दोनों बच्चों के नाम थे किशोर और कमल। कूड़े के ढेर में काम लायक चीजें ढूंढ़ते हुए एकाएक कमल के हाथ रुक गए। उसने गहरी सांस ली। उसके मुंह से निकला-‘‘वाह! कितनी अच्छी खुशबू है।

 

किशोर ने कमल की ओर देखा। बोला-‘‘इस बदबू के बीच खुशबू कहां से आ गई।’’ फिर उन दोनों की नजर एक साथ फूल पर जा टिकीं। लाल रंग का सुंदर फूल। इसी में से भीनी-भीनी  खुशबू आ रही थी। दोनों ने फूल को उठाने के लिए हाथ बढ़ाए फिर रुक गए। दोनों की हथेलियां गंदगी से काली हो रही थी।

 

‘‘फूल को मत छुओ। उसे देखो। देखो न हमारे हाथ कितने गंदे हैं।’’ कमल बोला। मेरी मां कहती है फूल कोमल होते हैं। उन्हें तो दूर से देखना चाहिए। छूना या तोड़ना नहीं चाहिए।’’

 

किशोर ने कहा-‘‘अरे, हमने इस फूल को तोड़ा कहां है। यह तो हवा में उड़कर अपने आप हमारे पास आ गया है। मैंने तो कभी किसी फूल को छूकर नहीं देखा है।’’ कहते-कहते किशोर ने फूल को उठाकर अपने गाल से लगा लिया।

 

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‘‘अरे, ये फूल गंदा हो जाएगा। शीशे में अपना मुंह तो देख ले जरा।’’ कमल ने उसे चिढ़ाया। पर किशोर फूल को इसी तरह अपने गाल से सटाए खड़ा रहा, फिर जोर-जोर से सूंघने लगा। ‘‘वाह, कितनी अच्छी खुशबू है।’’

‘‘क्या फूल की सारी खुशबू तू खुद ही सूंघ लेगा। जरा मुझे भी तो छूने दे इस फूल को।’’ कमल ने याचना भरे स्वर में कहा।

 

‘‘जरा अपना मुंह और अपनी हथेलियां तो देख।’’ कहकर किशोर मुस्कराया और उसने फूलदार टहनी कमल को थमा दी। ‘‘सचमुच बहुत अच्छी खुशबू है। न जाने गंदगी के इस ढेर पर इतना सुंदर सुगंधित फूल कहां से आ गया।’’ कमल ने कहा। फिर दोनेां बारी-बारी से फूल को छूते और सूंघते रहे। वे गंदगी के ढेर से काम लायक चीजें ढूंढ़ने का अपना काम भूल चुके थे।

 

‘‘इस तरह हम फूल को बार-बार छुएंगे तो यह मुरझा जा जाएगा। इसकी खुशबू खत्म हो जाएगी।’’ किशोर ने कहा।

 

‘‘चलो, यहां से चलें और साफ-सुथरी जगह पर बैठकर इस फूल से इसका हाल-चाल पूछे।’’ कमल बोला।

 

‘‘मगर बोरी नहीं भरी तो बप्पा नाराज हो जाएंगे।

पर कमल ने जैसे किशोर की बात सुनी ही नहीं थी। उसकी आंखें कूड़े के ढेर पर कुछ खोज रही थी। कुछ दूरी पर एक टूटा हुआ गमला पड़ा था। कमल ने गमले को उठा लिया, फिर मिट्टी डालकर फूलदार टहनी को गमले में बिठा दिया।

 

‘‘हाँ , अब बन गई बात!’’ किशोर ने कहा। कई बार बाग से गुजरते हुए गमलों में लगे फूल देखे हैं मैंने।’’

 

‘‘पर यह गमला तो टूटा हुआ है। फूल इसमें कैसे टिकेगा?’’

 

‘‘मैं इसे घर ले जाऊंगा।’’ किशोर बोला-‘‘और इसे मां को दे दूंगा। वह इसे संभालकर रखेगी। कुछ दिन बाद टहनी पर और भी फूल आ जाएंगे।

‘‘दम घुट जाएगा  बेचारे फूल का झोपड़ी में। फूलों को हवा और धूप चाहिए।’’

 

‘‘तब क्या करें?’

‘‘फूल को यही रहने दो। बोरी भरने का काम भी तो पूरा करना है। वरना डांट पड़ेगी।’’ कमल ने  भरी बोरी को हिलाकर देखा। वह फूल को भूल जाना चाहता था। पर आंखें थी कि उस तरफ से हट ही नहीं रही थी।

 

किशोर और कमल फिर से अपने काम में लग गए। पास में टूटे गमले  में फूल हवा में हिलडुल रहा था।

 

‘‘मैं तो फूल से बात करूंगा।’’ कमल ने बोरी को एक तरफ रखते हुए कहा-काम तो हर रोज ही करते हैं।

‘‘आओ फूल से बातें करें।’’

3  

 

‘‘हां, दोस्ती करें। इस काम में हाथ गंदे करते हुए सारा दिन बीत जाता है।

 

‘‘सुबह-शाम कुछ पता ही नहीं चलता।’’

 

‘‘मैं बप्पा से कहूंगा कि कूड़े में हाथ गंदे न करें। कमल ने कहा।

 

‘‘मैं भी यही कहूंगा।’’ किशोर ने हां में हां मिलाई। ‘‘लेकिन वह तो कूड़े वाला काम ही जानते हैं। हमसे भी यही करवाते हैं।’’

 

‘‘मैं तो फूलों का काम करूंगा।

‘‘फूलों का काम! कैसा काम!’’

 

‘‘कोई भी काम...फूलों के बीच रहूंगा। फूलों से बात करूंगा। कूड़े से नफरत है मुझे।

’’

‘‘मुझे भी...आओ अपने इस दोस्त से बात करें।’’ और दोनों टूटे गमले को बीच में रखकर बैठ गए। कूड़े के विशाल ढेर से बदबू आ रही थी। नीले आकाश में परिंदे शोर कर रहे थे। टूटे गमले में लगा फूल खुश था, उसे दो नए दोस्त मिल गए थे। तीन फूल हंस रहे थे।(समाप्त)