Saturday 26 February 2022

तितली वृक्ष-कहानी-देवेंद्र कुमार

      तितली वृक्ष-कहानी-देवेंद्र कुमार

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उस हरे-भरे जंगल में एक विचित्रता थी। वह थी, खूब हरे-भरे पेड़ों के बीच खड़ा एक विशाल पत्र-विहीन वृक्ष। जंगल के उस क्षेत्र में खूब बारिश होती थी। वहाँ से दो छोटी नदियाँ भी गुजरती थीं। जंगल में हर कहीं हरियाली की भरपूर छटा के बीच रंग-बिरंगे फूलों की सुंदरता दिखाई देती थी। सुबह-शाम पक्षियों के शोर से पूरा जंगल गूँज उठता। जंगल के बीचोंबीच एक विशाल झील थी। उस झील में  कमल खिलते थे। झील को देखने पर्यटक दूर-दूर से आया करते थे।

 

उस हरियाली के बीच पत्र-विहीन सूखा वृक्ष एक अजूबे की तरह लगता था। केवल इतना ही नहीं, सूखे वृक्ष के आस-पास एक बड़े घेरे में जमीन बंजर थी। तेज बारिश के बाद भी उस जमीन पर घास की एक पत्ती तक नहीं उगती थी। लोग आते, दाँतों तले उँगली दबाए उस स्थान को देखते। वे तरह-तरह की बातें करते। कहते, ‘यह क्यों सूख गया है!’ वृक्ष लोगों की बातें सुनता तो उसका मन उदास हो जाता, कभी वह भी हरा-भरा था।

 

  परिंदों के झुंड  आते पर एक भी परिंदा सूखे पेड़ के पास फटकता। पर एक शाम अद्भुत  घटना घटी। वृक्ष ने देखा, एक चिड़िया उड़ती हुई आई। पहले उसने वृक्ष के कई चक्कर लगाए फिर धीरे से सूखी डाली पर उतरी। वृक्ष को जैसे विश्वास ही नहीं हो रहा था। क्या वह गलती से उसकी डाली पर उतरी थी और  अपनी गलती पता चलते ही उड़ जाएगी।

 

  सूखे वृक्ष के मन की बात जैसे चिड़िया के मन में पहुँच गई। उसने धीरे से पंख फड़फड़ाए फिर बोली, “पेड़ भाई, आज तो मैं केवल आपसे मिलने आई हूँ।

 

वृक्ष ने कहा, “चिड़िया बहन, आज कितने वर्षों बाद किसी पक्षी के पंखों ने मेरी सूखी डालियों को छुआ है।

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चिड़िया बोली, “इससे पहले भी अनेक बार मैंने तुम्हें पत्र-विहीन देखा है पर  मैंने तुम्हारा दर्द नहीं समझा। परंतु जब एक बार घायल होने पर मैं झाड़ियों में अकेली पड़ी रही, तब मुझे तुम्हारा ध्यान आया कि तुम अकेलेपन की पीड़ा को कैसे झेलते हो! उसी समय मैंने निश्चय कर लिया था कि स्वस्थ होते ही मैं तुम्हारे पास आऊँगी।

 

उस रात वह सूखा वृक्ष और चिड़िया बातें करते रहे। अगले दिन सुबह चिड़िया दाने की खोज में निकल गई। वृक्ष दिन भर बेचैन रहा कि वह लौटकर आएगी भी या नहीं। लेकिन दिन ढलने पर चिड़िया उसके पास लौट आई। अब तो रोज का यही क्रम हो गया। वृक्ष का अकेलापन दूर हो गया। पर एक दिन यह क्रम टूट गया। एक सुबह चिड़िया गई तो लौटी ही नहीं। वृक्ष को अकेलापन फिर से डराने लगा।

 

दिन बीतते गए। एक सुबह जंगल पक्षियों की चहचहाहट से गूँज उठा। उनके झुँड कलरव करते वृक्ष के पास से गुजर गए। वह उदासी से पक्षियों को देखता रहा। अचानक एक सुंदर-सी तितली उड़ती हुई आई और उसकी नंगी डाल पर बैठ गई। वृक्ष के दुख की तरंगें तितली को छू गईं। उसने पंख फड़फड़ाए और बोली, “दादा, आप इतने उदास क्यों हैं?”

 

वृक्ष बोला, “प्यारी तितली! तुम्हारी ही तरह एक चिड़िया मेरे पास आई थी। उसने कई दिन तक मेरा साथ दिया। मैं बहुत प्रसन्न था पर एक दिन वह गई तो लौटी ही नहीं।

 

तितली ने सूखे वृक्ष को आश्वासन दिया। वह बोली, “मैं अपनी सखियों के साथ मिलकर तुम्हारी दोस्त चिड़िया को खोजने की कोशिश करूँगी।वह निराश भाव से सब सुनता रहा। तितलियों का झुँड दिन भर चिड़िया को खोजता रहा, पर उसका कुछ पता चला। शाम को जब लौटीं तो खामोश थीं। आखिर क्या कहतीं! वृक्ष बिना कहे ही सब समझ गया। तितलियाँ भी उसका दुख समझ रही थीं। दिन निकला तो एक विचित्र दृश्य दिखाई दिया। उस वृक्ष की डालियों पर इंद्रधनुषी तितलियाँ रंगीन फूलों की तरह दिखाई दे रही थीं। अद्भुत  दृश्य था वह! ऐसा तो कभी किसी ने नहीं देखा था। तब से तितलियों ने फैसला किया कि वे सूखे वृक्ष को अकेला छोड़कर कहीं नहीं जाएँगी। अब तो वह तितलियों से भरा सूखा पेड़ तितली वृक्षके नाम से प्रसिद्ध हो गया। यह बात  सभी तितलियों को मालूम हो गई। सबने एक-दूसरे को वचन दिया कि वे वृक्ष को अकेला नहीं छोड़ेंगी। तितलियों का एक झुँड उड़कर जाता  तो दूसरा बैठता।

 

लोग तितलियों से भरे उस पेड़ को देखने आने लगे। अचानक वृक्ष की जड़ के पास एक बेल फूट निकली। धीरे-धीरे बेल उस पर चढ़ती गई। वह हरा-भरा दिखने लगा। चिड़ियाँ वहाँ बसेरा करने लगीं। उनके चहचहाने से पूरा वन-प्रदेश गूँजने लगा। चारों ओर हर्ष और उल्लास की हिलोरें उठतीं क्योंकि सूखा वृक्ष हरा-भरा लगता था।

 

रंग-बिरंगी तितलियों के झुँड अब भी दिन भर उस पर मँडराते रहते थे।(समाप्त)