Sunday 30 May 2021

मेरे छाते की तरह ==

 

मेरे छाते की तरह

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एक दिन

मेरे हाथ में

नया छाता था

और मन में

बार-बार

यही आता था

पूछूं आकाश से

ऐ भाई!

तेरे बादलों का क्या हुआ?

बरसना क्यों भूल गए?

बस,

इसी तरह

जैसे मेरे हाथ में

नया छाता था

और मन में

बार-बार वही वही

आता था।

इसी तरह जुड़ते चले गए

अन्न से अकाल

जीवन से काल

और भी बहुत से सवाल

मुझसे

मेरे छाते की तरह।

      

        ---देवेंद्र कुमार              

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Saturday 29 May 2021

मरना नहीं--कहानी-देवेंद्र कुमार

 

निराशा और आशा

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कुछ दिन हुए,मेरे अपने , निकट परिजनों और मित्र परिवारों में अघट गया.कि मन सुन्न

हो गया, शब्द खो गए. निराशा और अवसाद ने जकड  लिया. निराशा का अँधेरा घना होता जा रहा था. फिर एकाएक कानों में गूंजा-'आखिर ऐसे कब तक?कोई दुःख अंतहीन नहीं हो सकता .जो नहीं रहे उनकी स्मृतियों को संजो कर रखें और फिर से सबके सुख दुःख में शामिल होकर शुभ कामनाएं और आशीर्वाद के माध्यम से जुड़े. इसी संदर्भ में मुझे अपनी कहानी-'मरना नहीं'याद आ गई। इसे कुछ समय पहले मैंने अपलोड किया था.तब यह केवल एक कहानी थी लेकिन अब मैं आज के सन्दर्भों में इसे आशा के सन्देश के रूप में फिर से आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूँ.     

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मरना नहीं--कहानी-देवेंद्र कुमार

 

   रामदयाल इस बड़ी दुनिया में अकेले रह गए थे। उनकी पत्नी की मृत्यु हो गई। वह दो-चार दिन ही बीमार रहीं। मोहल्ले वाले उन्हें अस्पताल ले गए। उन्होने ही भाग-दौड़ की। रामदयाल खुद बीमार थे। उनका लड़का मुंबई  में रहता है। कई वर्षों से घर नहीं आया था। मां की मृत्यु का समाचार मिलने पर उसने जवाब भेज दिया-‘‘बहुत उलझा हुआ हूं, फुरसत होने पर आऊंगा।

 

   पत्र पाने वाली रात रामदयाल तकिए में  मुंह गड़ाकर कितना रोए-कहना कठिन है। उनकी खुद की उम्र पैंसठ वर्ष हो गई थी। अब उन्हें हरदम लगता था जैसे दुनिया में उनके लिए कुछ भी शेष नहीं रहा है। पड़ोसियों ने उनका बहुत ख्याल रखा। पड़ोस के अनिल की बहू उन्हें पिता जी कहती, अनिल उनकी सेवा करता। हर समय कोई-न-कोई उनके पास मौजूद रहता। रात को अनिल उन्हीं के कमरे में सोता, लेकिन फिर भी रामदयाल की उदासी बढ़ती गई। वह जितना सोचते, यह विश्वास पक्का होता जाता कि अब इस दुनिया में रहना बेकार है। पत्नी की मौत और इकलौते बेटे की हृदयहीनता-दोनों ने उनके मन को जैसे तोड़कर रख दिया था। उन्होंने खाना-पीना छोड़ दिया। और एक सुबह घूमने के लिए निकले तो फिर लौटे नहीं। उनके कदम शहर से बाहर की ओर चलते चले गए।

 

    एक बस आगे की तरफ जा रही थी। रामदयाल बस में बैठ गए। कई घंटे की यात्रा के बाद जब बस एक घने जंगल में से गुजर रही थी, तो वह लघुशंका  के लिए नीचे उतरे और एक दिशा में बढ़ गए। थोड़ी देर बाद उन्होंने बस के भोंपू की आवाज सुनी। ड्राइवर उन्हें जल्दी करने को कह रहा था, लेकिन रामदयाल बाबू वहीं खड़े रहे। उन्होंने न लौटने का फैसला किया था। वह वन में खो जाना चाहते थे। अपने प्राण देना ही एकमात्र  रास्ता दिखाई दे रहा था।

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      उस घने जंगल में दिन में भी पेड़ों के नीचे हल्का अंधेरा था। हर तरफ सुनसान। पत्तों में सांय-सांय हवा। हां, कभी-कभी आकाश में कोई परिंदा बोल उठता था। रामदयाल बाबू को जैसे होश नहीं था। झाडि़यों में अटकते, उलझते बढ़ रहे थे, पता नहीं किधर। धूप तेज हुई तो प्यास से गला सूखने लगा। अब वह एक ऊंचे कगार की ओर बढ़ रहे थे-आंखों के सामने एक दृश्य तैर रहा था-वह हवा में हाथ-पैर मारते हुए नीचे घाटी की ओर गिरे जा रहे हैं। हां, यही करना होगा।

 

      और फिर एकाएक उनके कदम रुक गए। जहां ढलान नीचे घाटी की ओर खुलता था, वहां दो लकडि़यां लगाकर रास्ता बंद किया था, वहां मोटे-मोटे अक्षरों में लिखा था-सावधान।रामदयाल बाबू ने इधर-उधर देखा पर कोई नजर नहीं आया। उनकी समझ में न आया कि इस घने जंगल में, जहां कहीं कोई नहीं है, लोगों को सावधान रहने की बात किसने लिखी। उन्होंने जरा बढ़कर झांका तो देखा आगे गहरी खाई थी। वह पीछे हट आए-न जाने क्यों उनका मन कांप उठा। वह एक तरफ बैठ गए। कुछ देर पहले रामदयाल आत्महत्या के लिए तैयार थे, लेकिन अब कुछ-कुछ डर लग रहा था।

 

 

    वह कुछ देर आंखें मूंदे बैठे रहे, फिर उठे। प्यास से गला खुश्क हो रहा था, लेकिन वहां भला पानी कहां मिलता। तभी उन्होंने देखा पास ही पत्थर की कूंडी में पानी भरा है। वहीं कुछ फल भी रखे दिखाई दिए। कुछ देर सोचते खड़े रहे-पिएं या न पिएं, फिर प्यास ने जोर मारा तो गटागट पानी पी गए। वहां रखे फल भी खा लिए। अब जाकर चित्त कुछ ठिकाने हुआ, लेकिन एक बात रह-रहकर परेशान कर रही थी-यह सब किसने किया है। यहां तो कोई नजर नहीं आता। कौन है वह?

 

 

   रामदयाल के मन से आत्महत्या का विचार निकल गया। वह जंगल में घूमने लगे। जगह-जगह उन्होंने सावधानलिखा देखा। कई पेड़ों पर जहरीले फलभी लिखा था। उन्होंने पाया कि अगर वह सब न लिखा होता तो कोई भी गिरकर अपने प्राण गंवा सकता था। घास में छिपे हुए गहरे गड्ढे, खतरनाक मोड़, जहरीले फल-सबके बारे में सावधान किया गया था।

 

   अब तक दोपहर ढल चुकी थी। रामदयाल जी ने जोर से पुकारा, ‘‘मेरे प्राण बचाने वाले भाई, मैं आपके दर्शन करना चाहता हूं।’’पत्तों के पीछे सरसराहट हुई और एक बूढ़ा हंसता हुआ सामने आ गया। उसने कहा-‘‘मैं बहुत देर से आपको देख रहा हूं, कहिए आप यहां कैसे आ गए?’’

 

   ‘‘सच कहूं, मैं आत्महत्या के इरादे से आया था लेकिन खाई के किनारे लिखे शब्दों ने मन बदल दिया।’’ रामदयाल कह गए।उस व्यक्ति ने पूछा, ‘‘अब क्या इरादा है?’’

 

   ‘‘सोच रहा हूं क्या करूं।’’ रामदयाल ने कहा और उनकी आंखें भर आईं। बूढ़े के पूछने पर उन्होंने अपनी रामकहानी कह सुनाई। जब उन्होंने बात खत्म की तो उनकी आंखों से लगातार आंसू गिर रहे थे। एकाएक उन्होंने पूछा-‘‘लेकिन आपने अपना परिचय नहीं दिया।

    बूढ़े ने कहा-‘‘जो आपका परिचय है वही मेरा भी है। मेरा नाम है नरसिंह। क्या सुनाऊं! अनेक वर्ष हो गए। एक दिन मैं अपने बेटे के साथ इस जंगल से गुजर रहा था। तभी बेटा घास में छिपे गहरे गड्ढे में गिर गया। वह इतना नीचे गिरा था कि मैं वहां पहुंच भी नहीं सकता था। मेरी दुनिया अंधेरी हो गई। पत्नी पहले ही मर गई थी। अब तो कुछ भी नहीं बचा था जीवन में। मैंने तय किया कि मैं भी उसी गड्ढे में कूदकर जान दे दूं।’’रामदयाल जी ध्यान से सुन रहे थे।

 

    नरसिंह ने आगे कहा-‘‘मैं कूदने जा रहा था, एकाएक मन ने कहा-‘ यह कायरता है। हो सकता है, इसी तरह लोग आकर इस छिपे गड्ढे में गिरते रहें। नहीं, यह ठीक नहीं। पहले इसका कुछ प्रबंध करना चाहिए। बस, मैंने गड्ढे के चारों ओर पेड़ की डालियां खड़ी करके उन्हें लताओं से बांध दिया।’’

                                                                        2

   ‘‘फिर?’’ रामदयाल ने पूछा।

 

    ‘‘फिर मुझे लगा कि ऐसे खतरनाक स्थान तो इस जंगल में और भी होंगे। मैंने देखा, मेरे बेटे की जान लेने वाले गड्ढे के पास ऐसे ही दूसरे स्थान भी थे। बस, मैंने निश्चय  कर लिया कि जंगल में जब तक एक भी ऐसा खतरनाक स्थान रहेगा, मैं नहीं मरूंगा।’’ वह दिन था और आज का दिन है, मैं इसी जंगल में रह रहा हूं-अभी मेरा काम खत्म नहीं हुआ। खतरनाक स्थानों पर मैंने चेतावनियां लिखकर लगा दी हैं। कौन-से फल जहरीले हैं और कौन-से खाने लायक, यह भी जान लिया है। जंगल इतना खतरनाक नहीं रह गया है जितना पहले था। मैंने कई भटके लोगों को रास्ता बताया है। खाने-पीने की सामग्री दी है, नहीं तो शायद वे मर जाते। और हर बार मुझे लगा कि आत्महत्या न करने का मेरा निश्चय गलत नहीं था।’’ रामदयाल गंभीर होकर नरसिंह की बातें सुन रहे थे। एकाएक नरसिंह ने कहा-‘‘रात हो रही है, जंगली जानवरों का डर है। सुबह आपको जंगल से बाहर जाने का रास्ता बता दूंगा। आइए।’’

 

 

    नरसिंह  रामदयाल को एक गुफा में ले गया। उसके बाहर आग जलाकर दोनों लेट गए। रात को जंगली जानवरों की आवाजें सुनाई दीं। कभी दूर, कभी एकदम पास। सुबह रामदयाल की नींद खुली तो नरसिंह ने कहा-‘‘चलिए, आपको जंगल से बाहर जाने वाले रास्ते पर छोड़ दूं।’’

 

    ‘‘लेकिन मुझे कहीं नहीं जाना।’’

 

    ‘‘तब कहां जाएंगे, क्या इरादा है?’’ नरसिंह ने आश्चर्य से पूछा।

 

     ‘‘मैं यहीं रहूंगा, आपके साथ।’’ रामदयाल ने कहा-‘‘अभी जंगल में ऐसे बहुत-से स्थान हैं जहां देखभाल की जरूरत है- मैंने मरने का इरादा छोड़ दिया है।

    ‘‘क्या सच।’’ कहते हुए नरसिंह की आंखें चमक उठीं।

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      ‘‘हां, मैने देख लिया है जीवित रहकर दूसरों को मरने से बचाया जा सकता है।’’ रामदयाल ने कहा और मुसकरा उठे। ‘‘मरने के लिए एक दुख है तो जीने के लिए सौ सुख भी कम हैं।’’ और गुफा से बाहर आ गए। सूरज पेड़ों के पीछे से ऊपर उठ रहा था।(समाप्त)

 

Monday 17 May 2021

उड़ गईं छतरियाँ- कहानी-देवेंद्र कुमार ========

 

उड़ गईं छतरियाँ- कहानी-देवेंद्र कुमार

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बारिश रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी। आकाश में घने काले बादल दौड़ रहे थे। और नीचे सड़कों पर रंग-बिरंगे छातों की भीड़ थी। हरा, नीला, पीला, काला और भी कई रंगों के छाते पानी में भीगकर रोशनी में चमक रहे थे।

 

बारिश में सबसे ज्यादा परेशानी भीखू को होती थी। बारिश में छाता लगाए जल्दी-जल्दी घरों की ओर दौड़ते लोगों से भीख नहीं माँगी जा सकती थी। हाँ भीखू गली-बाजार में घूमकर भीख माँगता था। शायद इसीलिए किसी ने उसका नाम भीखू रख दिया था। पूछने पर वह भी अपना नाम भीखू ही बताता था, यानी उसे भिखारी से मिलते-जुलते अपने नाम से कोई दिक्कत या शिकायत नहीं थी।

 

जब भी कोई भीखू कहकर पुकारता तो वह उसकी ओर मुस्कराकर देखता था। लगातार मुस्कराने की इस आदत के कारण ही लोग उसे पसंद करते थे और भीख भी आसानी से मिल जाती थी। कई बार भीखू भीख माँगता, कोई छोटा-मोटा काम करता-- बोझा ढोता, बड़े-बूढ़ों और बच्चों को सड़क पार कराता, मुस्कराता और चला जाता। हाँ, तो उस दिन सारा समय रुक-रुककर बारिश होती रही। जब बारिश थोड़ी धीमी होती तो भीखू फुटपाथ पर बैठता और जब तेज होती तो किसी जगह जाकर खड़ा हो जाता बूँदों की मार से बचने के लिए।

 

अँधेरा गाढ़ा होने लगा। आज भीखू का दिन बुरा बीता था। आज वह मुस्कराया नहीं था, छाते लगाए तेजी से बढ़ते लोगों को देखकर उसे मन-ही-मन चिढ़ हो रही थी। तभी खट की आवाज के साथ एक सिक्का उसके सामने रखे कटोरे में गिरा जिसमें पानी भरा था। भीखू बड़बड़ाया, “आज तो अगर छाता मिल जाए या कोई भला आदमी भीख में बरसाती दे दे तो बात बने। आज सिक्कों की भीख से बात बनने वाली नहीं।

 

तभी नाटे कद का एक आदमी झाड़ियों के पीछे से उसके पास खड़ा हुआ। वह देखने में किसी बच्चे जैसा लग रहा था, पर वह बच्चा नहीं बौना था। वैसा बौना नहीं जिसे हम कभी-कभी अपने आस-पास देखते हैं। वह था जमीन के अंदर रहने वाला बौना। जमीन के अंदर तो बारिश होती नहीं। इसलिए जब बारिश होती तो कई बौने ऊपर जाते। उन्हें बरसती बूँदों की आवाज भली लगती थी। परियाँ आकाश के परीलोक में रहती हैं और बौने जमीन के अंदर। कहते हैं परियों की तरह बौने भी जादू जानते हैं, पर निश्चय ही उनका जादू परियों जितना शक्तिशाली नहीं होता। और फिर बौने कुछ शरारत-पसंद, मजाकिया भी होते हैं।

 

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 भीखू बारिश को कोस रहा था और लोगों के प्रति उसके मन में गुस्सा उभर रहा था. तभी बौने ने उसकी बड़बड़ाहट सुन ली। बौने ने देखा भीखू बारिश में भीग रहा था और हड़बड़ाए लोग छातों की सुरक्षा में अपने-अपने घरों की ओर तेजी से चले जा रहे थे।

 

तभी बारिश रुक गई और एकाएक तेज हवा बहने लगी। हवा इतनी तेज थी मानो कोई तूफानी अंधड़ चल रहा है। और इससे पहले कि कोई कुछ समझ पाता, आदमियों और औरतों के हाथों के छाते एक झटके से आकाश में उड़ गए, मानो वह छतरियाँ नहीं, गैस से भरे गुब्बारे हों।

 

सब तरफ सेअरे-अरे मेरा छाता...’ की आवाजें सुनाई देने लगीं। लेकिन पलक झपकते ही छतरियाँ लोगों के हाथों से निकलकर उड़ गईं। कोई कुछ नहीं कर सका। छाते उड़ते ही हवा जैसे जादू के जोर से थम गई और फिर शुरू हुई जोर की बारिश। यह बरसात बहुत तेज थी और बिना छातों के लोग एकदम भीग गए।

 

भीखू भी हड़बड़ा उठा। तभी उसने देखा कि उसके पास फुटपाथ पर एक छाता पड़ा है। भीखू ने छाता उठाकर कई बार खोला और बंद किया। वह समझ पाया कि छाता कौन दे गया था। तभी उसने एक नाटे कद के आदमी को जोर-जोर से हँसते देखा।

 

भीखू ने कहा, “पता नहीं यह छाता कौन छोड़ गया यहाँ?”

 

यह छाता मैंने दिया है तुम्हें। तुम अपने मन में छाते के बारे में सोच रहे थे और मैंने तुम्हारे मन की इच्छा पूरी कर दी।

 

भीखू ने कहा, “लेकिन यह तो एकदम नया छाता है। मैं इसे कैसे ले सकता हूँ, और तुम्हें तो मैंने आज पहली बार देखा है। यह तो कहो, तुमने मेरे मन की इच्छा को कैसे जान लिया?”

 

भीखू की बात सुनकर बौना फिर हँस पड़ा। उसने कहा, “देखो भीखू, हम बौने किसी के भी मन की बात बिना कहे ही समझ जाते हैं। हम जमीन के अंदर रहते हैं।

 

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परियों और बौनों के बारे में भीखू ने भी सुना था। वह कुछ डर गया। उसने कहा, “नहीं, मुझे यह छाता नहीं चाहिए। जो भी इस छाते को मेरे हाथ में देखेगा वही मुझे चोर समझेगा। यही साचेगा कि मेरे जैसे फटीचर भिखारी के पास यह छाता चोरी का ही हो सकता है।

 

बौना फिर हँसा। उसने कहा, “लोगों की चिंता करो। यह छाता तुम्हारे अलावा किसी दूसरे को दिखाई नहीं देगा, क्योंकि यह जादुई है और यह तुम्हें जमीन के नीचे रहने वाले बौने ने दिया है। तुम इसे से रख लो। और हाँ, अभी तुमने लोगों के हाथों में थमे छाते उड़ते हुए देखे होंगे। वह भी मैंने किया था। तुम्हें लोगों पर गुस्सा था कि कोई छतरी भीख में क्यों नहीं दे सकता। असल में लोग स्वार्थी हैं। वे अपने अलावा किसी दूसरे के बारे में सोचते ही नहीं। मैंने उन लोगों के छाते उड़ाकर उनसे तुम्हारा बदला ले लिया है। क्यों अब तो खुश हो तुम।

 

भीखू ने देखा बारिश फिर तेज हो गई थी। लोग बिना छाते भीगने पर मजबूर थे। भीखू को बौने पर जोरों का गुस्सा गया। उसने बौने का दिया छाता फेंकते हुए कहा, “मुझे नहीं चाहिए तुम्हारा छाता। अरे, कैसे आदमी हो तुम! तुमने यह कैसे समझ लिया कि मैं लोगों से नाराज हूँ। वे सब मेरे अपने हैं। मेरा जीवन उन्हीं के सहारे चलता है। देखो तुम्हारी वजह से निर्दोष लोगों को कितनी मुश्किल का सामना करना पड़ा है। बच्चे-बूढ़े सभी तो भीग रहे हैं। नहीं, नहीं, यह तुमने अच्छा नहीं किया।

 

बौना ध्यान से भीखू की बात सुन रहा था। उसने कहा, “अगर तुम इन लोगों से नाराज नहीं हो तो ठीक है। मैं तो तुम्हारी मदद करने की कोशिश कर रहा था।कहकर बौने ने हाथ हिलाया-- छाते जैसे आकाश में उड़ गए थे उसी तरह फिर से उनके हाथों में लौट आए।

 

अरे-अरे यह मेरा छाता वापस गया, लेकिन कैसे?” सब तरफ से ऐसी अचरज भरी आवाजे सुनाई देने लगीं। बौना अपना छाता उठाकर गायब हो गया था। बारिश हो रही थी और भीखू पहले की तरह फुटपाथ पर बैठा था। उसका मन शांत था।(समाप्त)