Friday 13 May 2022

भूला बिसरा - कहानी-देवेंद्र कुमार ==

 

भूला बिसरा - कहानी-देवेंद्र कुमार

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मुन्नी स्कूल जाने के लिए तैयार खड़ी थी, लेकिन आज स्कूल जाने का मन नहीं था। उसने माँ से फिर कहा, “मम्मी, इससे तो अच्छा है, मैं आज स्कूल ही जाऊँ।

माँ को पता था कि आज मुन्नी स्कूल क्यों नहीं जाना चाहती। असल में स्कूल में उसे घर से पाँच फूल बनाकर लाने को कहा गया था। मुन्नी ने कोशिश की पर फूल उसे बनाना आता ही था। क्लास में अध्यापिका ने कितनी फुर्ती से फूलों का गुच्छा बनाकर दिखाया था। मुन्नी आश्चर्य से आँखें फाड़े देखती रह गई थी। घर आकर उसने माँ से फूल बनाने को कहा तो माँ ने कहा, “मैंने तो कभी फूल बनाए नहीं। मुझे पता नहीं कैसे बनाते हैं।

रात को पापा दफ्तर से लौटे तो मुन्नी ने उनसे मदद माँगी, पर पापा ने कहा, “बिटिया, ऐसे होमवर्क तो स्कूल में लड़कियों को दिए जाते हैं। मैंने तो ऐसे    काम कभी किए नहीं, शायद तुम्हारी मम्मी कुछ मदद कर सकें।

तब मुन्नी ने बताया कि मम्मी तो पहले ही मना कर चुकी हैं तो पापा ने कह दिया, “बनाने का झंझट छोड़ो। कल बाजार से लेती जाना। बाजार में ऐसे फूल आसानी से मिल जाते हैं।

मुन्नी की आँखें भीग गईं। उसने तय कर लिया कि वह बाजार से तैयार फूल तो कभी नहीं खरीदेगी। बाजार से फूल खरीदकर उन्हें अपने द्वारा बनाया हुआ बताना तो बेईमानी होगी। उसका मन झूठ बोलने को तैयार हुआ। उसने स्कूल ने जाने का निश्चय किया, पर माँ जोर देती रहीं कि स्कूल जाना ठीक नहीं होगा।

मुन्नी तैयार होकर आँगन में खड़ी थी। उसे कुछ समझ में नहीं रहा था कि करे तो क्या करे। उसे पता था कि उसकी कई सहेलियाँ शिल्प कला में सदा अच्छी चीजें बनाकर लाती थीं। अध्यापिका भी सदा उन लड़कियों को शाबासी दिया करती थी। बस, मैं ही ऐसी हूँ जिसे कुछ नहीं आता। मुन्नी ने खुद से कहा और आँखें आँसुओं से भर गईं।

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तभी आवाज सुनाई दी, “माई, कुछ मिल जाए।कोई भिखारिन दरवाजे पर खड़ी थी। मुन्नी की मम्मी ने गुस्से से कहा, “बस, सुबह-सुबह गए माँगने वाले। जा मुन्नी, मना कर दे। कह दे हाथ खाली नहीं है।मुन्नी ने देखा दरवाजे पर एक बूढ़ी औरत खड़ी थी, बिखरे बाल, फटे पुराने कपड़े और नंगे पैर। उसे देखकर मुन्नी सोचने लगी, ‘आखिर लोग ऐसी हालत में क्यों रहते हैं। क्या इन्हें खाने को नहीं मिलता।अंदर से मुन्नी ने मम्मी की आवाज सुनी, ‘मुन्नी, उस औरत से जाने के लिए कह दो। पता नहीं कहां से जाते हैं सुबह-सुबह।

मुन्नी ने माँ की बात तो दोहरा दी पर उसकी आँखों के आँसू दरवाजे पर खड़ी भिखारिन ने देख लिए। उसने बढ़कर मुन्नी का सिर थपथपा दिया। बोली, “बेटी, रो क्यों रही हो। चुप हो जाओ, मुझे बताओ शायद मैं तुम्हारी कुछ मदद कर सकूँ।

भिखारिन के कहने पर मुन्नी कुछ सींकें, गोंद और रंगीन कागज ले आई। भिखारिन दरवाजे के बाहर बैठकर उन चीजों की सहायता से फूल बनाने लगी। बात की बात में भिखारिन ने रंगीन कागजों के कई फूल बनाकर मुन्नी को थमा दिए। फूल बहुत सुंदर बने थे। फिर मुन्नी से भी खुद फूल बनाने को  कहा। भिखारिन मुन्नी को बताती रही कि फूल कैसे बनाते हैं। और सच उस दिन पहली बार मुन्नी ने अपने हाथों से एक सुंदर फूल तैयार किया था। तब तक मुन्नी के मम्मी-पापा भी आँगन में निकल आए थे और दिलचस्पी से भिखारिन को कागज के फूल बनाते  हुए देख रहे थे।

बहुत सुंदर!” मुन्नी के पापा ने कहा।

ऐसे फूल बनाना कहाँ सीखा तुमने?” मुन्नी की मम्मी ने पूछ लिया।

भिखारिन हौले से मुस्करा दी। उसने कहा, “जब मैं बहुत छोटी थी तो माँ को इस तरह सुंदर फूल बनाते हुए देखा करती थी। मेरे पिताजी फूलों को बाजार में बेचने के लिए जाते थे। लेकिन इस बात को तो बहुत समय हो गया। मैं कहाँ से कहाँ गई। पर आज मुन्नी को देखकर माँ का फूल बनाना याद गया। पता नहीं कैसे बने हैं फूल।कहकर भिखारिन माथे पर आया पसीना पोंछने लगी।

आओ अंदर जाओ, बैठ जाओ।मुन्नी की माँ ने कहा। और प्लेट में खाने के लिए कुछ ले आईं। तब तक मुन्नी भिखारिन के बनाए सुंदर फूल लेकर खुश-खुश स्कूल चली गई थी। क्योंकि उन फूलों में उसके अपने हाथ में बनाए फूल भी शामिल थे। मुन्नी की माँ के कहने पर भी भिखारिन आँगन के अंदर नहीं आई। बाहर से ही बोली, “चलती हूँ, आज भीख लेने का मन नहीं है। फिर किसी दिन आऊँगी।और भिखारिन तुरंत वहाँ से चली गई।

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मुन्नी की माँ आश्चर्य में डूबी सोचती रह गई, ‘भिखारिन कुछ देर पहले बार-बार भीख माँग रही थी। पर अब ऐसा क्या हो गया जो देने पर भी बिना लिए चली गई।

दोपहर में मुन्नी स्कूल से आई तो खूब खुश थी। अध्यापिका ने उसके फूलों को अच्छा बताया था। पर यह कहते-कहते वह फिर उदास हो गई। मुन्नी ने कहा, “लेकिन सारे फूल तो मेरे बनाए हुए थे नहीं, उन्हें भिखारिन अम्माँ ने बनाया था।

अरे तो तुम उसी से अच्छी तरह सीख लेना कि सुंदर फूल कैसे बनाए जाते हैं।मुन्नी की मम्मी ने हँसकर कहा।

तो क्या वह फिर आएगी? कब आएगी?”

यह तो पता नहीं कब आएगी, पर उसने कहा है कि भीख लेने फिर कभी आएगी।मुन्नी की माँ ने कहा और अपने काम में लग गईं।

मुन्नी दरवाजे पर खड़ी हुई और इधर-उधर देखने लगी। शायद वह बूढ़ी भिखारिन कहीं नजर जाए।

मुन्नी अगली सुबह स्कूल जाते समय बुढ़िया भिखारिन की प्रतीक्षा करती रही पर वह भिखारिन फिर कभी नहीं दिखाई दी। शायद उसने मुन्नी के घर से भीख लेने का फैसला किया था। आखिर मुन्नी के घर से ऐसा क्या मिल गया था उसे जो वह फिर कभी वहाँ नहीं आई। उसे अपना भूला बिसरा बचपन मिल गया था -भले ही थोड़ी देर के लिए।  (समाप्त )