Monday 30 August 2021

चिड़िया लाटरी- कहानी -देवेंद्र कुमार

 

  चिड़िया लाटरी- कहानी -देवेंद्र कुमार

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एक सुबह बाबा  की नींद खुली तो खिड़की के शीशों पर  बारिश की बूंदों की आवाज़ सुनाई दी। घर में सब सो रहे थे।  बाबा ने दरवाज़ा खोला और गैलरी में निकल आये। मुंह पर गीली हवा का झोंका लगा। तभी कान में तोते की  टें टें की   आवाज़ आई।बाबा सोचने लगे -बारिश में इतनी सुबह तोता कहाँ से आया! वह कुछ और सोचते कि नीचे गार्ड रूम की गुमटी में गेटमैन रामजी दिखाई दिया, उसके हाथ में एक पिंजरा था। तोते की आवाज़ उसी में से आ रही थी।बाबा ने  छाता लिया और रामजी के पास जा पहुंचे।

 

पता चला दूध वाला जयराम तोते का पिंजरा लाया है। तभी जयराम दूध देकर आ गया। उसने बताया--जब मैं पास की गली से आ रहा था तभी तोते का पिँजरा दिखाई दिया, पिंजरा एक मकान के बाहर छज्जे लटका हुआ था। बारिश में भीगने के कारण तोता चीख रहा था। मैंने मकान का  दरवाज़ा खटखटाया पर कोई जवाब नहीं मिला।तभी किसी ने कहा कि मकान बंद है। सब लोग बाहर गए हैं। इस बीच तोता लगातार चीख रहा था। मैंने पिंजरा कुंडे से निकाला और यहां  ले आया।।'

 

कैसे निर्दयी होते हैं लोग जो अपने पालतू जीवों की जरा भी परवाह नहीं करते।'रामजी ने कहा तो बाबा बोले -'पक्षी  कभी पालतू  नहीं होते, यह बेचारा तो पिंजरे का कैदी है।''तो इसे मैं पाल लूँगा।'जयराम ने कहा तो बाबा बोले -'कभी नहीं, इसके पंख सूखने के बाद हम इसे खुले आकाश में उडा  देंगे|’

 

जल्दी ही पूरी सोसाइटी के बच्चे तोते के बारे में जान गये  और रामजी की गुमटी के बाहर जमा हो  गए। हर बच्चा तोते को छू कर देखना चाहता था। बाबा ने मना  कर दिया। और बता दिया कि वह तोते के पंख  सूखने की प्रतीक्षा कर रहे हैं।

 

बारिश रुक गई फिर धूप निकल आयी।तोता अब शांत था। उसके गीले पंख भी सूख गए थे। रामजी तोते  का पिंजरा लेकर एक फ़्लैट की छत पर चला गया, साथ में बाबा और बच्चों की टोली भी थी।हर बच्चा तोते को छू कर  देखना चाहता  था। पिंजरे को एक मेज़ पर टिका दिया गया,तभी रामजी ने बाबा को बच्चों की इच्छा  बताई तो बाबा ने कहा-'हर बच्चा बारी बारी से पिंजरे को छू सकता है  लेकिन एक शर्त है।

                                                                      

हर बच्चे को एक प्रण लेना होगा। बाबा से अनुमति  पाकर हर बच्चे ने पिंजरे  को छू कर कहा-'मैं कभी किसी पक्षी को पिंजरे में कैद नहीं करूंगा।इसके बाद जयराम ने पिंजरे का दरवाज़ा खोल दिया ।तोता तुरंत उड़ गया, कुछ पल नीले आकाश में तोता एक नन्हे हरे बिंदु की तरह दिखाई दिया और फिर आँखों से ओझल हो गया।

 

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'इसके बाद सब नीचे उतरने लगे तभी बाबा ठिठक गए-बोले-सबसे जरूरी काम तो रह ही गया ' सब बच्चे उनकी ओर अचरज के भाव से देखने लगे। आखिर बाबा किस जरूरी काम की बात कर रहे थे! बाबा ने पिजरा हाथ में लेकर दबाया तो पिंजरे के तार  टेढ़े हो गए उन्होंने कहा-;अगर यह पिंजरा हम यहीं छोड़ देते तो फिर कोई आज़ाद परिंदा इसमें कैद हो सकता था,' पिंजरे के तार टेढ़े हो गए थे,उसका दरवाज़ा टूट कर गिर गया था। बाबा ने पिंजरा जयराम के हाथ में थमा कर कहा-'इसे दूर फेंक दो। '

 

जयराम ने उछाल कर पिंजरे को फेंक दिया। पर यह क्या !पिंजरा जमीन पर नहीं गिरा बल्कि जाकर एक पेड़ की डाली से लटक गया। तुरंत एक चिड़िया टूटे हुए पिंजरे में गई और फिर झट उड़ गई,इसके बाद और भी कई चिड़ियों ने वैसा ही किया। देख कर बच्चे ताली बजाने लगे। बाबा ने हंस कर कहा-'लगता है अभी इस पिंजरे की कहानी ख़त्म नहीं हुई।'

 

'कहानी !'रामजी के स्वर में अचरज बोल रहा था।'

 

हाँ ,देखो न अब चिड़िया इसमें आ जा रही है,'जैसे उनका नया घर हो।'

 

जयराम ने कहा-मैं पेड़ पर चढ़ कर पिंजरे की फेंक दूंगा।'

 

बाबा ने कुछ सोचते हुए कहा-'नहीं यह सब करने की जरूरत नहीं, क्यों न इस टूटे हुए पिंजरे को चिड़ियों का मेहमान घर बना दिया जाए। 'वह कैसे ?' एक बच्चे ने पूछा|

 

'रामजी,  तुम हर सुबह ड्यूटी पर आने के बाद मेहमान चिड़ियों के दाने और पानी का इंतजाम करोगे।।'

 

बस मैं समझ गया।'रामजी ने कहा और दो छोटी कटोरियाँ ले आया।वह पेड़ पर चढ़ गया और जयराम ने पानी और दाना पकड़ा दिया रामजी ने सावधानी से  एक कटोरी में पानी और दूसरी में दाने रख दिए। बच्चे चिल्ला उठे-'तैयार हो गया चिड़ियों का मेहमान घर।'फिर उन्होंने एक साथ कहा-'हम भी चिड़ियों के मेहमान घर में दाना और पानी रखना चाहते हैं।'

 

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'जो बच्चा पेड़ पर चढ़ना जानता हो वह अपना हाथ उठाये।'बाबा ने कहा तो बच्चे चुप खड़े रहे रामजी ने कहा-;ये ठहरे शहर में रहने वाले बच्चे ,इन्हें दुनिया भर की खबर  है पर पेड़ पौधों के बारे में नहीं जानते। मैं तो गाँव से आया हूँ वहां लोग पेड़ पौधों के बीच रहते हैं। 'रामजी यह कह रहा था और बच्चे चुप और उदास खड़े थे। तभी राम जी  ने कहा -बच्चो,उदास मत हो। आज के बच्चे इतना कुछ जानते हैं हम जिसकी कल्पना भी नहीं कर सकते| 'उसने बाबा से कुछ कहा और वहां से चला गया।

 

 कुछ देर बाद रामजी आया तो उसके साथ दो जने और थे। वे बिजली घर की गाडी धकेलते हुए ला रहे थे। उन्होंने गाडी को पेड़ से सटा  कर लगा दिया। फिर कहा-रामजी हमारा दोस्त है। इसने बच्चों की इच्छा बताई तो हमें उपाय सूझ गया। 'अरे सचमुच, गाडी के मचान पर खड़े होकर  कोई बच्चा भी डाली से लटकते पिंजरे को छू सकता था।

बिजलीघर का सब स्टेशन पास में था। उस गाडी के मचान पर खड़े होकर कर्मचारी तारों की मरम्मत और खम्भों के बल्ब   बदलने का काम किया करते थे। अपनी समस्या का समाधान जानकार बच्चे खुश हो गए। सब एक साथ कहने लगे-पहले मैं पहले'मैं….’

बाबा ने कहा –‘ ।सब बच्चे तो एक साथ मचान पर खड़े नहीं हो सकते| इसका एक तरीका है।

और सोसाइटी के पार्क में चले आये। बच्चा टोली पीछे पीछे थी। बाबा ने हर बब्च्चे के नाम की पर्चियां बनाई, फिर एक बच्चे से एक पर्ची उठाने को कहा,  अनुज की पर्ची निकली तो वह ख़ुशी से उछल  पड़ा।  बाबा बच्चा टोली के साथ बाहर आये तो बिजली घर की गाडी को देख कर चौंक पड़े,इस बीच गाडी को धो पोंछ कर उसका हुलिया ही बदल दिया गया था। उस पर एक फूल माला लटक रही थी

 

बाबा ने हंस कर कहा- यह फूल माला क्यों,क्या हम पूजा करने जा रहे हैं!

 

बिजली घर के कर्नचारी ने कहा-'साहब ,पूजा ही तो है।आज तो इस गाडी का शुभ दिन है। हम तो सोच भी नहीं सकते थे कि कभी  बच्चे इस पर खड़े होकर चिड़ियों से बात करेंगे। '

 

अनुज ने मचान  पर खड़े होकर चिड़ियों के मेहमान घर की कटोरियों में दाना और पानी रख दिया बच्चे बहुत खुश थे। बाबा ने इसे नाम दिया है -चिड़िया लाटरी। देखे मेरी पर्ची कब निकलती है। (समाप्त )।

Wednesday 25 August 2021

आइसक्रीम- बाल गीत-देवेंद्र कुमार

आइसक्रीम- बाल गीत-देवेंद्र कुमार

 

आइसक्रीम-आइसक्रीम

ठंडम-ठंडम आइसक्रीम

धत् तेरी गरमी तो देखो

पिघल गई लो आइसक्रीम

 

अब क्या होगा, कैसे होगा

मचल गई लो आइसक्रीम

बर्फ मंगाओ, इसे जमाओ

जम जाए तो मिलकर खाओ

 

मेरी मानो तो कहता हूं

झटपट खाओ, खाते जाओ

जैसी भी है अच्छी ही है

आइसक्रीम-आइसक्रीम

 

ठंडम-ठंडम आइसक्रीम

पिघलम-पिघलम आइसक्रीम

लेकर आओ आइसक्रीम

खाकर जाओ आइसक्रीम।

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Friday 20 August 2021

अकेला गुब्बारा-कहानी-देवेंद्र कुमार =========

 

   अकेला गुब्बारा-कहानी-देवेंद्र कुमार     

                                                                                                                                                             

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 शाम का समय ,बढ़िया मौसम --हवा  धीरे धीरे बह रही थी बाग़ में खिले सतरंगी फूलों की सुगंध फैलाती हुई। तभी हवा की नज़र एक गुब्बारे पर गई  जो फुटपाथ पर पड़ा था। आने जाने वाले गुब्बारे के पास से गुज़र रहे थे,लेकिन कोई बेचारे गुब्बारे  पर ध्यान नहीं दे रहा था। कोई  बच्चा वहां होता  तो दौड़ कर उसे जरूर  उठा  लेता।  हवा ने  जैसे अपने से कहा-गुब्बारा अकेला क्यों ,इसे तो किसी बच्चे के हाथ में  होना चाहिए। उसने गुब्बारे को छुआ तो  वह फूल कर ऊपर   उठा और  हवा में तैरने लगा।

 

अब हवा किसी बच्चे को खोज रही थी। और एक बच्चा दिख भी गया- लेकिन उसे बुखार था। वह आँखें बंद किये  लेटा था। बच्चे की माँ उसका माथा थपक रही थी। माँ बच्चे के बारे में  चिंता कर रही थी, कारण था कि दवा ख़त्म हो गई थी ,बच्चे के पिता घर में नहीं थे।किसी काम से बाहर गए थे,वह रात में देर से लौटने वाले थे,पर बीमार बच्चे को तुरंत दवा की जरूरत थी।

 

हवा समझ गई कि इस समय बच्चे को गुब्बारे की नहीं,दवा की जरूरत है। दवा का परचा  मेज पर  रखा था। हवा के झोंके से दवा का परचा उडा और हवा ने उसे केमिस्ट की दूकान में काउंटर पर टिका दिया।  वहां कई लोग खड़े थे।केमिस्ट ने परचा देखा और उसमें लिखी दवाएं निकाल कर एक थैली में  पर्चे पर रख दीं और फिर एक ग्राहक को दवाई देने में व्यस्त हो गया।  हवा के झोंके ने  दवाओं की थैली ले जाकर बच्चे की माँ के सामने उलट दी। वह हैरान रह गई कि दवाएं कौन रख गया!  फिर बच्चे को दवा देकर संतोष की सांस ली।

 

हवा ने एक अच्छा काम कर दिया था। अब अकेले गुब्बारे को किसी बच्चे के हाथ में थमाना था। हवा गुब्बारे को  अपने साथ उडा  ले चली।  कुछ दूर जाने के बाद हवा को एक बच्चा नज़र आया जो एक ढाबे  के बाहर खडा रो रहा था।। हवा ने सोचा-अगर गुब्बारा इस बच्चे को मिल जाए तो यह रोना भूल कर जरूर हंस  देगा। पर बच्चे को भूख लगी थी और उसने खाना माँगा तो मालिक ने उसे मारते हुए कहा-'मैंने तुझे काम के लिए रखा है,तेरा पेट भरने के लिए  नहीं। जब देखो रोटी रोटी करता रहता है। जब काम पूरा हो जायेगा तभी खाना मिलेगा।'

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         हवा ने देखा-ढाबे में कई लोग खाना खा रहे थे। तंदूर के पास एक  टोकरी में कई रोटियां रखी थीं। हवा के झोंके ने छुआ तो एक रोटी  न जाने कैसे  बच्चे के हाथ में आ गई,पहले तो वह चौंक उठा फिर रोटी खाने लगा ।रोटी का टोकरी से बच्चे के हाथ में पहुंचना किसी ने नहीं देखा था।कोई कैसे देखता ,यह तो हवा ने चुपचाप किया था। बच्चा रोटी खाने के बाद गुब्बारे से खेलने लगा था। हवा को अच्छा लगा लेकिन वह ढाबे वाले से नाराज़ थी, जो इतने छोटे   बच्चे से ढाबे में मेहनत करवा रहा था। हवा एक बोर्ड को उड़ा लाई, उस पर लिखा था-देखो इस जालिम आदमी को। यह बच्चों से बंधुआ मज़दूरी करवाता है। देखते देखते वहां कई लोग आ जुटे। वे ढाबे वाले को बुरा भला कह रहे थे। पुलिस में शिकायत होने की बात सुन कर वह बुरी तरह घबरा गया। कहने लगा कि आगे से ऐसा बुरा काम कभी नहीं करेगा।

 

 इस बीच टोकरी में रखी सारी  रोटियां गायब हो गईं। हवा ने उन रोटियों को भूखों के पास पहुंचा दिया था। हवा ने निश्चय किया कि जब कहीं उसे कोई भूखा दिखाई देगा तो  रोटियों की ऐसी चोरी वह बार बार करेगी 

 

      बच्चा खुश था और गुब्बारे के साथ मस्ती कर रहा था। उसे खुश देख कर हवा को अच्छा लगा। लेकिन अब हवा कुछ और सोच रही थीं उसे तो पूरी दुनिया के चक्कर काटने थे, यही तो करती थी  वह हर रोज। आखिर इस बच्चे को  कहाँ कहाँ लिए फिरूंगी मैं! इसे  अपने माँ बाप के साथ होना चाहिए आखिर कोई बच्चा अपने माँ बाप से दूर क्यों हो जाता है, यह तो कभी नहीं होना चाहिए। हवा ने देखा बहुत दूर गांव में एक औरत झोंपड़ी के बाहर  उदास खड़ी थी। वह अपने बेटे के बारे में सोच रही  थी | आपने ठीक समझा, शहर के ढाबे में मज़दूरी करने वाला बच्चा ही उसका बेटा  रजत  था रजत को उसकी माँ ने पडोसी के साथ शहर भेजा था, क्योंकि पडोसी ने रजत को अच्छे स्कूल में पढाने  का वादा किया था। लेकिन उसने रजत को  ढाबे वाले के हवाले करके बदले में पैसे ले लिए थे| 'रजत की माँ जब भी पूछती  तो शैतान पडोसी कह देता कि रजत मन लगा कर पढ़ाई कर रहा है।

हवा ने तुरंत रजत को उसकी माँ के पास पहुंचा दिया। रजत जैसे किसी जादू से माँ सामने प्रकट हो गया।रजत को देखते ही माँ ने उसे गोदी में भर लिया और रोने लगी। वह बार बार पूछ रही थी-'बता  तुझे कौन छोड़ गया !लेकिन रजत भला क्या जवाब देता, वह भी माँ से लिपट कर रो रहा था।खबर मिलते ही वहाँ पूरा गांव इकठ्ठा हो गया। सब हैरान थे। जब रजत माँ से लिपट कर रो रहा था तो गुब्बारा सच्चे दोस्त की तरह वहीँ मंडराता रहा।

 

     हवा पूरे गांव की ख़ुशी में शामिल हो गई थी। उसने निश्चय कर लिया कि वह अपने परिवार से बिछुड़े हुए बच्चों को रजत की तरह ही वापस लाने का अच्छा काम जरूर करेगी। मैं और आप सब जानते हैं कि यह काम बहुत कठिन है, हवा के जादुई स्पर्श के बिना करना होगा यह कठिन काम ,क्या हम सब आगे आने के लिए तैयार हैं ? (समाप्त)