Thursday 6 September 2018

फूलों की किताब--देवेन्द्र कुमार--कहानी बच्चों के लिए


फूलों की किताब—देवेन्द्र कुमार—कहानी बच्चों के लिए
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==कैसी होती है फूलों की किताब?क्या उसे भी दूसरी पुस्तकों की तरह पढ़ा जा सकता है? बच्चे इस किताब को पढना चाहते हैं,लेकिन पढ़ायेगा कौन?==  

       अमर हाउसिंग सोसाइटी में आज विशेष समारोह था। सब तरफ गहमागहमी और भागदौड़ थी| और क्यों न हो, हाल ही में अमर सोसायटी को विशेष पुरस्कार मिला था-- इलाके में सर्वश्रेष्ठ उद्यान के रख-- रखाव के लिए। इनाम में सरकार की तरफ से एक ट्राफी और नकद दिया गया था। सचमुच सोसाइटी के उद्यान की सुंदरता देखते ही बनती थी। करीने से कटी-छंटी हरी घास जो गुदगुदे कालीन जैसी लगती थी। सब तरफ क्यारियों व गमलों में रंग-बिरंगे फूलों की बहार थी।
       जब से सोसाइटी के उद्यान को पर्यावरण पुरस्कार मिला था, रामबरन की इज्जत बढ़ गई थी। वह सोसाइटी का मेहनती माली था जो हर समय घास और फूलों की देखरेख में लगा रहता था। उसे कड़ी धूप में पसीने से तर बतर काम में लगे देखा जा सकता था।
       लेकिन सोसाइटी के बच्चों के लिए यह पुरस्कार एक आफत ही बन गया जैसे। शाम को बच्चों की टोली बाग में रोज धमाचौकड़ी मचाया करती थी। वे फुटबाल और क्रिकेट भी खेला करते थे। पर उस शाम बच्चे बाग में आए तो वहां दो गार्ड मौजूद थे। जैसे ही बच्चों ने फुटबाल उछालनी शुरु की, गार्डों ने टोका-अब बाग में फुटबाल नहीं खेली जाएगी।
       क्यों?” अजय ने पूछा। वह बच्चों की टोली का लीडर था। बच्चे उस की अगुआई में रहते थे।
       क्यों का जवाब तो सोसाइटी के प्रेजीडेंट देंगे।एक गार्ड बोला- उन्हीं का हुक्म है।और उसने एक तरफ लगे बोर्ड की तरफ इशारा कर दिया। बोर्ड पर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा था- बाग में फुटबाल खेलना मना है।
       यह बोर्ड शायद आज और अभी ही लगाया गया था। क्योंकि सुबह जब पुरस्कार समारोह हो रहा था, तब तो यह बोर्ड था नहीं।
       हम तो खेलेंगे।अजय ने गार्ड को झिड़क दिया और अपने साथियों को लेकर फुटबाल खेलने में जुट गया।
       गार्ड तो सोसाइटी के नौकर ठहरे। उन्होंने बच्चों से उलझना ठीक न समझा। जाकर सोसाइटी के प्रेजीडेंट से शिकायत कर दी। रमेश जी सोसाइटी के अध्यक्ष थे। कुछ देर बाद वह बाग में आ गए। उन्होंने कहा- बच्चो,
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 आपको स्कूल और घर-दोनों जगह नियमों का पालन करना चाहिए। अब हमारे उद्यान को पुरस्कार मिल गया है- इसलिए इसका विशेष ध्यान रखना होगा। फुटबाल खेलने से घास दब जाती है, क्यारियों में लगे फूल नष्ट हो जाते हैं। फुटबाल खेलनी है तो सोसाइटी से बाहर जाकर खेलो।
       वह अपनी बात कहकर चले गए। बच्चे समझ नहीं पाए कि वे क्या करें। क्योंकि अब तक तो वे हमेशा  बाग में ही खेलते आ रहे थे। हाँ, क्रिकेट खेलने पर जरूर झगड़ा होता था, क्योंकि बिजली की ट्यूब टूटती थीं और खिड़कियों के शीशे क्रैक हो जाते थे।
       बच्चे समझ गए कि अब वे बाग में फुटबाल नहीं खेल पायेंगे। वे फुटबाल बीच में रखकर झुण्ड के रूप में बैठ गये। तभी अमित ने कहा- ऐसे बात नहीं बनेगी। हमें कुछ करना होगा।
       क्या करना होगा?”-- रजत ने पूछा।
       सत्याग्रह करना होगा और क्या। पता है न बापू ने सत्याग्रह करके ही अंग्रेजों की नींद उड़ा दी थी। हमें भी वही करना चाहिए।
       बस बच्चों का सत्याग्रह शुरु हो गया। उन्होंने किसी से कुछ नहीं कहा, शोर नहीं मचाया, नारे भी नहीं लगाए, बस फुटबाल बीच में रखकर चुपचाप बैठ गए। बच्चों को इस तरह चुप बैठे देखकर सब हैरान थे। क्योंकि वे तो जितनी देर बाग में रहते थे, धमाचौकड़ी मचाते ही रहते थे, एक पल को भी खामोश नहीं बैठते थे।
       बच्चों को यों चुप बैठे देखा तो बाबू रामदास वहां चले आए। वह स्कूल के रिटायर्ड प्रिंसिपल थे। वे बच्चों से प्यार करते थे और बच्चे भी उनका सम्मान करते थे। रामदास बच्चों के पास आ खड़े हुए। बीच में रखी फुटबाल की ओर देखा। बोले-- आज तुम्हारी टोली खामोश क्यों है?”
       हमें खेलने से मना कर दिया है। इसलिए हम खेलेंगे नहीं।-- अमित ने कहा।
       तो क्या करोगे?”- - रामदास ने पूछा।
       सत्याग्रह।-- जवाब मिला। हम फुटबाल की शोक सभा कर रहे हैं।
       क्यों?”
       फुटबाल मर गई है इसलिए।-- बच्चों ने कहा।
       फुटबाल कभी नहीं मरेगी और बच्चे भी जरूर खेलेंगे।-- रामदास ने कहा।
       लेकिन कैसे?”-- अमित ने पूछा। रामदास की बात उसकी समझ में नहीं आ रही थी।
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       देखो, तुम फुटबाल लेकर कहीं भी जा सकते हो। दूर या पास के मैदान में कहीं भी, लेकिन फूलों के तो पैर हैं नहीं। वे चोट खाकर भी अपनी जगह खड़े रहने के लिए मजबूर हैं।
       फूल घायल, लेकिन कैसे?”-- कई बच्चों ने एक साथ जानना चाहा।
       आओ मेरे साथ।-- और रामदास बच्चों की टोली को बाग के कोने में ले गए। उन्होंने एक पौधे की तरफ इशारा किया। वहां एक पौधा झुका हुआ था, उसकी एक टहनी बीच से टूट गई थी। कई फूल भी टूटकर गिर गए थे।
       ‘’यह है तुम्हारी फुटबाल की करतूत।‘’-- रामदास ने कहा-- इसीलिए कह रहा हूँ कि फुटबाल को फूलों से दूर ले जाओ तो अच्छा रहेगा। तुम्हें खेलने से कोई नहीं रोकता। फूल बोल नहीं सकते इसलिए उनकी ओर से किसी को तो बोलना चाहिए।-- रामदास ने कहा और फूलों के पौधे के पास जमीन पर बैठ गए। फिर बोले-- अब जरा फूलों की फर्स्ट एड हो जाए।और हंस दिए।
       फूलों की फर्स्ट एड!-- बच्चों की आवाज में अचरज था| वे रामदास को देख रहे थे। रामदास ने जेब से एक डोरी निकाली, फिर जमीन पर पड़ी एक डंडी उठाकर उसके सहारे से टूटी हुई टहनी को बाँधकर सीधा कर दिया| फिर जमीन पर पडे़ फूलों को नीचे की मिट्टी में दबा दिया।
       अमित ने कहा-- सर, आपने ठीक कहा। कल जब हमने शाट मारा था तो फुटबाल इसी कोने में आकर गिरी थी। उसी की चोट से डाली झुक गई है। यह तो सचमुच गलत हुआ।
       रामदास ने कहा- बच्चो, जो बीत गया, उस पर पछताने से कुछ नहीं होगा। पर मैं चाहता हूँ तुम फुटबाल के शोक में सत्याग्रह न करो। कल शाम को मैं तुम्हें पीछे वाले मैदान में ले चलूंगा। बड़े मैदान में तुम मजे से फुटबाल खेल सकते हो। हां, एक बात और है।
       वह क्या?”- -बच्चों ने पूछा।
       तुममें से कुछ बच्चों ने स्कूल में फर्स्ट एड की ट्रेनिंग जरूर ली होगी। वैसा ही कुछ यहां भी करना होगा।
       पर वह फर्स्ट एड फूलों पर कैसे काम करेगी?”-- अमित ने कहा।
       उसी तरह जैसे मैंने किया है।रामदास बोले-- तुम फुटबाल मैदान में खेलो, पर फूलों का भी ध्यान रखो। तेज हवा में, किसी का पैर लगने से, कोई भारी चीज गिरने से फूलों को चोट लगती है। वे घायल हो जाते हैं, पर वे बोल नहीं सकते। इसलिए हम पौधों और फूलों की तकलीफ नहीं समझ पाते।
       बच्चों का झुण्ड चुपचाप रामदास जी की बात सुन रहा था।
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       रामदास ने फिर कहा- स्कूल में तुम किताबें पढ़ते हो, पर एक किताब फूलों और पौधों की भी होती है। उसे भी पढ़ना सीखो, और इसमें तुम्हारी मदद करेगा रामबरन माली। उसे पेड़-पौधों के बारे में बहुत सी बातें पता है। वह तुम्हें इनके बारे में नई-नई जानकारियां दे सकता है।
       बच्चों ने देखा अपना नाम सुनकर पास खड़ा माली रामबरन हंस रहा था।
       हम खाली समय में खेलेंगे और अपना थोड़ा समय फूलों को भी देंगे। क्यों रामबरन भैया?”-- अमित बोला।
       हां, बच्चा लोगों। अगर तुम चाहो तो मैं फूलों के बारे में बहुत सी जानकारी दे सकता हूँ।-- रामबरन माली ने कहा।
       बच्चों ने सत्याग्रह वापस ले लिया। अब उन्हें फुटबाल का शोक मनाने की जरूरत नहीं थी। अगली शाम मास्टर रामदास बच्चों को बड़े मैदान में ले गए। वहां उन्होंने जमकर फुटबाल के खेल का आनन्द लिया। सब बच्चे बहुत खुश थे।
       खेलने के बाद बच्चे सोसाइटी लौटे तो सीधे रामबरन माली के पास गए। बोले-माली काका, फुटबाल का पीरियड खत्म, अब आप हमें फूलों और पेड़-पौधों की किताब पढ़ाइए।
       जरूर पर आप सबको मुझे पेड़-पौधों का मास्टर कहना होगा।
       जरूर कहेंगे फूलों के मास्टर रामबरन भैया।-- बच्चों ने एक साथ कहा तो रामबरन और मास्टर रामदास हंस पड़े। बच्चे तालियां बजा रहे थे। उन्हें पढ़ने के लिए फूलों की किताब जो मिल गई थी।( समाप्त)