Thursday 29 February 2024

तस्वीर-कहानी-देवेंद्र कुमार

 

      तस्वीर-कहानी-देवेंद्र कुमार

                            ==

 

अजय सुबह हँसता हुआ  स्कूल गया था, लेकिन दोपहर को घर के दरवाजे पर स्कूल बस के ड्राइवर ने उसे सहारा देकर नीचे उतारा। अजय की माँ रचना से बोला, “मैडम,  कुछ देर पहले ही इसे तेज बुखार चढ़ आया। डाक्टर  को दिखाना होगा।

रचना अजय को गोद में उठाकर घर के अंदर लाई तो उसे खुद अपना बदन भी गरम लगने लगा। अजय का बदन बुखार से तप रहा था। अजय आँखें बंद किए कराह रहा था। एक बार तो रचना घबरा ही गई। फिर अजय के पापा धनंजय को दफ्तर में फोन पर अजय का हाल बताया।

कुछ देर बाद धनंजय का फोन गया। उन्होंने कहा कि डॉक्टर रायजादा शाम को अपने क्लिनिक जाते समय अजय को देखते हुए जाएँगे। तब तक  क्रोसीन की गोली देने तथा माथे पर गीली पट्टी  रखने को कहा है। डॉक्टर रायजादा उनके फैमिली डॉक्टर थे।

गोली देने और गीले पानी की पट्टी  माथे पर रखने से अजय का बुखार कुछ कम हुआ। रचना ने अजय को दूध पिलाया फिर उसे नींद गई। अजय की तबीयत में कुछ सुधार देखकर रचना को तसल्ली मिली। लेकिन फिर भी वह शाम को डॉक्टर रायजादा के आने की प्रतीक्षा करती रही।

शाम को पहले धनंजय घर आए। उन्होंने बताया कि आफिस से घर के लिए चलने से पहले भी डॉक्टर साहब से दोबारा बात कर ली थी। वह कुछ ही देर में जाएँगे। अभी धनंजय यह कह ही रहे थे कि दरवाजे की घंटी बजी। डॉक्टर रायजादा घर में गए। उन्होंने सावधानी से अजय को देखा फिर दवा लिखकर परचा धनंजय को देकर दवा लाने के लिए कहा। रचना से बोले, “चिंता की कोई बात नहीं है। एक-दो दिन में तबीयत ठीक हो जाएगी।

धनंजय दवा लाने बाजार गए। तब तक रचना चाय बनाने रसोई में चली गई। डॉक्टर रायजादा चलने लगे पर रचना ने चाय पीकर जाने को कहा तो वह अजय के पास बैठ गए। रचना चाय लेकर आई तो उसने डॉक्टर रायजादा को अजय के सिरहाने वाली दीवार के पास खड़े पाया। रचना ने देखा डॉक्टर रायजादा की नजरें अजय के पलंग के सामने वाली दीवार पर लगी तस्वीर पर टिकी थीं।

                          1

रचना ने मेज पर चाय का प्याला रखा तो आवाज से डॉक्टर रायजादा चौंक कर घूम पड़े। उन्होंने कहा, “बस, जरा उस तस्वीर को देख रहा था।

रचना ने कहा, “जी, परसों रात को हम बाजार में घूम रहे थे तो फुटपाथ पर एक आदमी फ्रेम की हुई तस्वीरें लिए बैठा था। यह तस्वीर मुझे अच्छी लगी थी। उसी से खरीदी थी।

डॉक्टर रायजादा चुपचाप चाय पीने लगे। रचना ने महसूस किया कि चाय पीते-पीते भी डॉक्टर रायजादा ने कई बार उस तस्वीर की ओर देखा था। रचना सोचने लगी, ‘क्या सचमुच यह तस्वीर इतनी इच्छी है कि डॉक्टर रायजादा को भी पसंद गई।

इसी बीच अजय के पापा दवा लेकर गए। डॉक्टर रायजादा ने समझा दिया कि दवाई कैसे देनी है, फिर उठ खड़े हुए। धनंजय ने फीस देने के लिए जेब से रुपए निकाले तो डाक्टर साहब मुस्करा उठे। बोले, “फिर ले लूँगा। कल शाम को क्लिनिक जाते हुए अजय को एक बार फिर देखता जाऊँगा। और हाँ, इसे दो-तीन दिन स्कूल मत भेजिए। आराम करने से तबीयत जल्दी ठीक हो जाएगी।

डाक्टर रायजादा चले गए। अजय दवा खाकर फिर लेट गया। रचना और धनंजय बातें करने लगे। इसी बीच उसने धनंजय को बताया कि कैसे डॉक्टर रायजादा दीवार पर लगी तस्वीर की ओर बार-बार देख रहे थे।

लेकिन इस तस्वीर में ऐसी क्या खास बात है?” धनंजय ने उस तरफ देखते हुए कहा। रचना ने भी एक बार फिर ध्यान से उस तस्वीर को देखा। तस्वीर में देहात का दृश्य था- एक पोखर। पोखर के पीछे दूर पहाड़ी और पोखर के पास बनी एक झोंपड़ी। झोंपड़ी के बाहर एक औरत बैठी हुई दिखाई गई थी। औरत का चेहरा स्पष्ट नहीं था। आकाश में सूरज डूब रहा था। परिंदे उड़ रहे थे। रचना ने कहा, “यह तो एक साधारण तस्वीर है। भला डॉक्टर रायजादा को इसमें ऐसी क्या खास बात नजर गई।

अगली सुबह अजय की तबीयत काफी ठीक थी। रचना से आँखें मिलीं तो वह हँस पड़ा। बेटे को स्वस्थ देखकर रचना का मन संतोष से भर उठा, तभी रचना की नजर एक बार फिर उस तस्वीर पर टिक गई। वह समझ पाई कि इस तस्वीर में ऐसी  क्या विशेष बात है जो डॉक्टर रायजादा बार-बार देख रहे थे।

शाम को डॉक्टर रायजादा फिर आए। रचना उनके हाव-भाव ध्यान से देख रही थी। उसने देखा कमरे में प्रवेश करते ही  डाक्टर  रायजादा ने उस तस्वीर को देखा था।

                         2

डाक्टर  ने अजय की जाँच करके कहा, “एकदम ठीक। बस, कल दवा और लेनी होगी।तभी धनंजय भी आफिस से लौट आए। दोनों ने हाथ मिलाए। रचना ने डॉक्टर साहब से चाय के लिए कहा तो उन्होंने एक बार तो मना किया, फिर दोबारा कहने पर हाँ कह दी। रचना चाय लेकर आई तो उसने डॉक्टर को बड़े ध्यान से फिर उसी तस्वीर की ओर देखते पाया। चाय पीते हुए डॉक्टर रायजादा छिपी नजरों से उसी तस्वीर को ताकते रहे।

चाय पीकर डॉक्टर रायजादा चलने लगे तो धनंजय ने कहा, “डॉक्टर साहब, आपने कल भी फीस नहीं ली थी। यह लीजिए दो दिन की फीस।और डॉक्टर साहब की ओर रुपए बढ़ाए। डॉक्टर रायजादा ने रुपए धनंजय को लौटाते हुए कहा, “रुपए रहने दीजिए। अगर फीस में आप वह तस्वीर दे सकें तो मुझे बहुत अच्छा लगेगा।और उन्होंने दीवार पर लगी तस्वीर की ओर इशारा कर दिया।

धनंजय ने तस्वीर दीवार से उतारी और पैक करके डॉक्टर रायजादा को थमाते हुए कहा, “डॉक्टर साहब, यह तस्वीर फीस नहीं, हमारी ओर से उपहार है। फीस के रुपए तो आपको लेने ही होंगे।रचना ने बीच में कहा, “डॉक्टर साहब, इस साधारण तस्वीर में आपकी इतनी रुचि क्यो हैं?”

यह साधारण तस्वीर नहीं।डॉक्टर रायजादा बोले, “आपको शायद पता नहीं, आज भी मेरी माँ गाँव में अकेली रहती हैं। मैं मरीजों में व्यस्त रहने के कारण बहुत दिनों से उनसे मिलने नहीं जा पाया हूँ। और वह मेरे बार-बार कहने पर भी शहर आने को तैयार नहीं। कमरे की दीवार पर लगी इस तस्वीर ने मुझे कल फिर से माँ की याद दिला दी। मन उनसे मिलने को बेचैन हो उठा। अब मैं जल्दी से जल्दी गाँव जाऊँगा, और उन्हें अपने साथ लेकर ही आऊँगा। वह चाहे कितना भी मना क्यों करें।

रचना और धनंजय चुपचाप डॉक्टर रायजादा की बातें सुन रहे थे। उन्हें लग रहा था जैसे बोलते समय डॉक्टर साहब का स्वर कुछ काँप रहा था।

डाक्टर  रायजादा तस्वीर लेकर चले गए। बहुत कहने पर भी उन्होंने फीस के रुपए नहीं लिए।

धनंजय ने रचना से कहा, “डॉक्टर साहब सचमुच अपनी माँ से बहुत प्यार करते हैं।

जैंसे मैं।कहते हुए अजय दौड़कर रचना से लिपट गया। कमरे में हँसी गूँज उठी।(समाप्त)