परी से मिलना है—कहानी—देवेन्द्र कुमार
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ग्रेटर नॉएडा के परी चौक के बारे में बहुत लोग जानते हैं।वहाँ
गोल चक्कर में सोने के रंग वाली अनेक परियां पंख फैलाये कमल पुष्पों में खड़ी दिखाई
गई हैं, यह कहानी उन्हीं की है।
दादी माँ रजत को हर रात
कहानी सुना कर नींद की गोदी में ले जाती हैं| लेकिन इधर एक समस्या आ खड़ी हुई है।
रजत ने जिद ठान ली है कि उसे परियों को देखना
है, उनसे बातें करनी हैं।भला ऐसा कैसे हो सकता है! परियों की कहानियां तो
न जाने कब से कही सुनी जा रही हैं,पर किसी ने परियों को अपनी आँखों से
देखने या उनसे बातें करने का दावा तो कभी नहीं किया।
लेकिन रजत की जिद के लिए
दादी अपनी सुनाई परी कथा को ही दोषी मानती हैं। एक रात उन्होंने ऐसी परियों की
कहानी सुनाई थी, जो किसी कारण से दिन निकलने से पहले परी लोक वापस नहीं लौट सकी
थीं। परी लोक के नियम के अनुसार धरती पर उतरने वाली परियों को दिन निकलने से पहले
हर हाल में परी लोक में वापस लौटना होता है, नहीं तो उनकी उड़ने की शक्ति समाप्त हो
जाती है। और फिर उन्हें सदा के लिए धरती पर ही रहना पड़ता है।
रजत ने पूछा कि वह कौन सा कारण
था तो दादी ने कहा-‘ जब परियां
परी लोक वापस जाने लगीं तो उन्हें किसी के रोने की आवाज़ सुनाई दी, बस वे खोज में निकल पडीं और इतने में
दिन निकल आया, उनकी उड़ने की शक्ति समाप्त हो गई। वे परी लोक वापस नहीं लौट सकीं।’
रजत ने कहा था –‘जब उन परियों को अब सदा के लिए हमारी
धरती पर ही रह्ना है तब तो वे कहीं न कहीं जरूर मिल सकती है।’
‘ शायद कहीं मिल जाएँ वे परियां। उन्हें
खोजना होगा।’
‘कहाँ,किस जगह?’रजत ने पूछा तो दादी ने आँखें मूँद लीं
जैसे सो गई हों।क्योंकि उनके पास रजत के इस
प्रश्न का कोई उत्तर नहीं था।लेकिन रजत ने
ठान लिया था कि चाहे जैसे हो,वह धरती पर रहने को अभिशप्त परियों को खोज कर
ही रहेगा।
सुबह रजत ने दादी से फिर
पूछा कि परियों को कहाँ खोजना चाहिए? उस दिन रविवार था, रजत के पापा रमेश चाय पी रहे थे। उन्होंने
रजत की बात सुनी तो हंस कर कहा-‘मुझे मालूम है कि परियां कहाँ मिल सकती
हैं। मैं तो ऑफिस जाते समय रोज ही उस जगह से गुजरता हूँ।’ फिर उन्होंने परी चौक के बारे में रजत
को बताया।सुनते ही रजत ख़ुशी से उछल पड़ा !
उसने कहा–‘ पापा,प्लीज मैं तो आज ही उन परियों से मिलना
चाहता हूँ।’
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रमेश उसे स्कूटर पर बैठा
कर परी चौक के गोल चक्कर पर ले गए। रजत अपलक मुग्ध भाव से उन चमचम करती
परी-प्रतिमाओं को देखता रह गया। उनके पंख इस तरह फैले हुए थे जैसे वे उड़ने को तैयार हों। ‘पर ये तो परियों की प्रतिमाएं हैं, मैं तो सचमुच की परियों से मिलना चाहता
हूँ। रजत ने कहा।
‘ उसके लिए तो तुम्हें रात भर जाग कर
परियों के आने की प्रतीक्षा करनी होगी।क्योंकि वे रात के अँधेरे में ही अपने छिपने की जगह से बाहर
निकल कर इधर उधर घूमती हैं।’
‘क्या वे रात में हमारे घर में भी आ
सकती हैं !’
‘जरूर आ सकती हैं।’-रमेश ने कहा। ‘हो सकता है परियां सचमुच कभी हमारे घर
आई हों।’
‘और हम उन्हें न देख सके हों।’—रजत ने निराश स्वर में कहा।
‘हाँ।क्योंकि परियां हर किसी को अपने
जादू से गहरी नींद में सुला देती हैं। इसलिए कोई भी उन्हें नहीं देख सकता।’
‘दिन के उजाले में परियां कहाँ छिप कर
रहती हैं?’-रजत ने जानना चाहा।
रमेश को रजत की उत्कंठा
में परी कथा जैसा आनंद आ रहा था।जैसे वह खुद भी कहानी के एक पात्र बन गए थे।
उन्होंने इधर उधर देखा तो पास के फुटपाथ
पर दो औरतें और एक बच्ची बैठी दिखाई दीं।रमेश ने उनकी ओर संकेत करते हुए कहा
-‘हम
वहां चलें तो शायद कुछ पता चल सके।’फिर रजत और रमेश उन के पास जा पहुंचे।
रजत ने लड़की से पूछा-‘क्या तुम परी हो?’
‘मेरा नाम तो रमा है।लड़की ने कहा और
मुस्करा दी।पास बैठी दोनों औरतों ने कहा-‘हम परी चौक पर बैठती हैं इसलिए तुम
हमें परियां कह सकते हो।’ पता चला एक का नाम झुमिया और दूसरी का नंदा था।
झुमिया भुट्टे भून रही थी और नंदा सरकंडों की टोकरी बनाने में जुटी
थी।रमा रंगीन गेंदें उछाल कर लपक रही थी।’
रजत ने पूछा –‘तुम्हारा घर कहाँ है?’
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‘बेटा घर तो बड़े लोगों के होते हैं,हमारी तो छोटी सी
झोंपड़ी है-वह भी बिना दरवाजे की।’नंदा बोली।
‘ क्या मैं उसे देख सकता हूँ-‘ रजत ने कहा तो झुमिया दोनों को झोंपड़ी
पर ले गई। रजत ने देखा कि सचमुच झोंपड़ी में दरवाज़ा नहीं था। अंदर तीन लोग बैठे
भोजन कर रहे थे। ‘वे तीनों कौन हैं जो खाना खा रहे थे।’-रमेश ने पूछा।
‘हमारे बेटे हैं, और वे तीन ही क्यों और भी कई हैं।’-झुमिया बोली।
नंदा ने बताया-‘एक दिन हलकी बारिश हो रही थी,तभी तीन लोग भुट्टे लेने आये।भुट्टे
खाते हुए वे आपस में बातें कर रहे थे।एक बोला –‘ आज तो भुट्टे से पेट भरना होगा,’ दूसरे ने कहा-‘ढाबे वाला पिछला बकाया चुकाने पर ही
खाना देगा।’ तीसरा बोला-‘पता नहीं मालिक से पगार कब मिलेगी।’ मैं उनकी मुश्किल समझ कर तीनों को अपनी
झोंपड़ी पर ले गई।मैंने खाना बनाकर तीनों को खिलाया।और कहा-‘माँ के होते हुए उसके बेटे भूखे नहीं
रह सकते।’
झुमिया ने कहा कि वे तीनों
पास ही मजदूरी करते हैं। उन तीनों के अलावा
उनके और भी कई साथी मेरा पकाया खाना खाते हैं। कई जनों ने अपने खाने के
पैसे देने चाहे पर मैंने उनसे पैसे कभी नहीं लिए। लेकिन वे जब चाहें आटा और भोजन पकाने के लिए दूसरा
जरूरी समान ले आते हैं | मैं रोज इतनी रोटियां बना कर रखती हूँ कि आठ-दस जाने पेट भर सकें।’रजत ने देखा था कि डिब्बे में बहुत
सारी’ रोटियां थीं।
रजत सोच रहा था –बिना पैसे लिए इतने लोगों को खाना कोई
परी ही खिला सकती है।यह तो परी का जादू है।उसने रमेश से कहा-‘पापा,परसों मेरा जन्म दिन है,क्या मैं इन्हें बुला सकता हूँ?’उसे जवाब न देकर रमेश ने झुमिया और
नंदा से कहा-परसों मेरे बेटे का जन्मदिन है। यह आप तीनों को बुलाना चाहता है।’
दोनों ने रजत के सिर पर हाथ
रखते हुए कहा-‘हम जरूर आयेंगे।आप अपना पता बता दें।’
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‘मैं खुद आकर आपको ले जाऊँगा।’-रमेश ने कहा।
‘नहीं उसकी जरूरत नहीं है। हम खुद
आयेंगे,’- नंदा बोली।
इसके बाद रमेश और रजत वापस
लौट आये। रमेश को लग रहा था कि उसने परियों को खोज लिया है।
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रजत के जन्मदिन की शाम ==–पूरा कमरा रंग बिरंगी रोशनियों से
जगमगा रहा था।मेहमान आ चुके थे लेकिन रजत को नंदा,झुमिया और रमा की प्रतीक्षा थी। और फिर
वे तीनों आ गईं।नंदा और झुमिया साफ़ सुथरे वस्त्रों में थीं, रमा रंग बिरंगे परिधान में बहुत सुंदर
लग रही थी।नंदा और झुमिया ने दो थैलियाँ रजत को थमा दीं, उनमें दो सुंदर गुड़ियां थीं।रजत को लगा
जैसे खिलौना गुड़ियाँ मुस्कराई हों और होंठ हिले हों। यह उसकी कल्पना थी या सच,पता नहीं। उसने रमा से पूछा-‘ और तुम मेरे लिए क्या गिफ्ट लाई हो?’
‘ मैं सब मेहमानों को परी नृत्य
दिखाऊंगी।’-रमा ने कहा और मुस्करा दी।
‘परी नृत्य! क्या तुमने परियों को नाचते
हुए देखा है?’-रजत के स्वर में आश्चर्य बोल्र रहा था।
नंदा ने कहा-‘ एक दिन हमारे पास वाले पार्क में कुछ
लड़कियां नाच रही थीं।उन्हीं को देख कर सीखा है रमा ने।’
और फिर रमा नाचने लगी।उसके
खुले केश जैसे हवा में उड़ रहे थे। कमरे में मधुर संगीत तैर रहा था। सब ताली बजा
रहे थे। अद्भुत था रमा का परी नृत्य। फिर झुमिया और नंदा ने कहा-अब हमें आज्ञा
दीजिए। हमें एक और समारोह में जाना है।’ बहुत कहने पर भी उन तीनों ने कुछ नहीं
खाया और चली गईं। सारे मेहमान देर तक रमा
के परी नृत्य की चर्चा करते रहे।
समारोह समाप्त हुआ। मेहमान
चले गए।रजत ने दोनों गुड़ियाँ अपने पलंग के पास वाली मेज पर रख दीं और एकटक देखने
लगा-क्या गुड़ियों के होंठ हिल रहे थे! और फिर कानों में एक मधुर स्वर गूँज उठा।’तुम परियों से मिलना चाहते हो न।’
‘हाँ।’-रजत ने अलसाए स्वर में कहा और नींद ने
उसे अपनी गोद में छिपा लिया।(समाप्त)
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