Tuesday 29 August 2023

खरा खोटा —देवेन्द्र कुमार

 

खरा खोटा —देवेन्द्र कुमार

 

 

रंगी बाबा को सब सनकी कहते थे। उनकी आदतें कुछ विचित्र थीं। जैसे एक तो यही कि उन्होंने कभी कोई दुकान नहीं चलाई, लेकिन फिर भी मोमबत्तियाँ बेचा करते थे। हमारी गली में कोने वाले मकान में रहते थे। जब कभी रात को बिजली चली जाती तो वह झट छोटी-सी चौकी दरवाजे के पास रख लेते और मोमबत्तियाँ बेचना शुरू कर देते। उनकी इस सनक पर सब हँसते। मैं भी सोचता था कि भला इस तरह क्यों मोमबत्ती बेचते हैं रंगी बाबा? क्योंकि गली में और भी कई दुकानें थीं।


एक रात बत्ती गई तो रंगी बाबा हमेशा की तरह मोमबत्तियाँ रखकर बैठ गए। मैंने देखा कि कई लोगों ने उनसे मोमबत्ती खरीदी। मैं पास खड़ा देख रहा था। जब वह खाली हुए तो मेरी ओर देखकर मुसकराए। बोले, “क्यों, तुझे मोमबत्ती नहीं लेनी?”


मैंने कहा, “बाबा, आप मोमबत्ती ही क्यों बेचते हैं भला?”


बाबा ने मेरी ओर ध्यान से देखा। बोले, “इसलिए कि अँधेरा होता है। अँधेरे में उजाला तो होना ही चाहिए।और हँस पड़े। उनकी बात मेरी समझ में नहीं आई। शायद रंगी बाबा ने भी इसे जान लिया। बोले, “सुबह आना तो बताऊँगा।


सुबह मैं उनके पास गया तो उन्होंने स्नेह से बैठाया, फिर एक पुरानी थैली खोलकर मेरे सामने उलट दी। उसमें काफी रेजगारी थी। बाबा ने कहा, “यह मेरी कमाई है।


मैंने देखा उसमें ज्यादातर सिक्के खोटे थे।लेकिन ये सिक्के तो खोटे हैं। आपने इन्हें जमा करके क्यों रखा हैं?”


मैं जानता हूँ ये सिक्के खोटे हैं, इसीलिए तो जमा  कर रहा हूँ।बाबा ने कहा और जोर से हँस पड़े।


                                

मुझे हैरान देख उन्होंने कहा, “बेटा, यही कारण है कि मैं मोमबत्तियाँ बेचता हूँ। इसके पीछे एक कहानी है। एक रात मैं स्टेशन के पास वाली गली से जा रहा था। मैंने देखा एक बुढिया परेशान बैठी है। वह बड़बड़ा रही थी, ‘लोग, ’मुझे खोटे सिक्के

                                

दे जाते हैं।‘ पता चला उसे कम दिखाई देता था। उससे सामान खरीदने वाले इस बात को जानते थे और उसे ठग लेते थे। मैंने उससे बुढ़ापे में इस तरह दुकान लगाकर बैठने का कारण पूछा तो पता चला उसका जवान लड़का दुर्घटना का शिकार होकर घर में पड़ा था। इसीलिए उसे काम करना पड़ता था। बस, मैंने उससे सारे खोटे सिक्के लेकर बदले में खरे दे दिए। मैंने उससे कहा, माँ, तुम अपने खराब सिक्के मुझे दे दिया करो, मैं इन्हें चला दूँगा।सुनकर बेचारी खुश हो गई। मुझे दुआएँ देने लगी।‘


बाबा ने आगे कहा, “बेटा,  मन में छिपा पाप अँधेरे में बाहर आता है- मैंने इसे समझ लिया है। मैं तो चाहता हूँ दुनिया भर के खोटे सिक्के मेरे पास जाएँ। मैं जानता हूँ इस तरह अँधेरे में बैठकर मोमबत्ती बेचने से कुछ  लोग खोटे सिक्के अवश्य चलाने की कोशिश करेंगे, और ऐसा ही होता है। मैं खोटे सिक्के जमा करता जा रहा हूँ, इस तरह कम से कम इतने सिक्के तो अब एक से दूसरे के पास जाकर मनुष्यों को धोखा नहीं दे सकेंगे।


मैं क्या कहता, उनकी महानता देख, मेरा सिर झुक गया। अगर खोटे सिक्कों के ऐसे खरीददार और हों तो दुनिया ही बदल जाए।


जब मैं प्रणाम करके बाहर आने लगा तो बाबा ने मुझसे वचन लिया कि मैं इस बारे में किसी से कुछ नहीं कहूँगा और मैंने कहा भी नहीं। क्योंकि बात कहने की नहीं समझने की थी। आज उनके बारे में तब लिखा है जब वह इस दुनिया में नहीं हैं।(समाप्त )