Saturday 30 May 2020

बस स्टैंड-कहानी-देवेन्द्र कुमार

बस स्टैंड -कहानी-देवेन्द्र कुमार
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  मैं स्टैंड पर बस की प्रतीक्षा का रहा था।  तभी मैंने एक आवाज़ सुनी और उस तरफ देखा-एक युवती एक बच्चे से कह रही थी-‘चुप शैतान,नहीं तो वह दादा जी तुझे काली कोठरी में बंद कर देंगे। ’ वह मेरी तरफ इशारा कर रही थी। उसकी बात मुझे बुरी लगी।  मैं बच्चे के पास जाकर बोला-‘ बेटा,  तुम्हारी मम्मी गलत कह रही हैं।  मैं तो बच्चों से प्यार करता हूँ, उन्हें चाकलेट देता हूँ। ’ फिर मैंने उसकी माँ से पूछा- ‘क्या तुम मुझे जानती हो?’
  ‘जी नहीं। ’-उस ने कहा।
  ‘ तब तुम मुझे बच्चे की नजर में गिरा क्यों रही हो। मैं तो बच्चों को हँसाता हूँ-गुदगुदाता हूँ।  उन्हें हंसी की गोली खिलाता हूँ। ’      
   सुन  कर माँ-बेटा जोर से हंस पड़े, पूरा बस स्टैंड खिलखिलाने लगा।  बच्चे ने कहा-‘ दादाजी  हंसी की गोली मेरी मम्मी को भी खिला दीजिये,यह मुझे सदा डांटती रहती हैं। ’
  ‘ बेटा, मैंने तुम्हारी मम्मी के साथ साथ यहाँ खड़े सभी लोगों को हंसी की गोली खिला दी है।  तभी तो सब हंस रहे हैं। ’ मैंने बच्चे से कहा तो वहां खड़े फिर से हंसने लगे।  तभी बस आ गई, लोगों के साथ माँ-- बेटा भी चले गए।              
    तभी आवाज आई-‘ भगवान के नाम पे कुछ मिल  ’-यह चरण की गिडगिड़ाती आवाज थी।  वह बस स्टैंड के पास बैठ कर भीख माँगा करता है।  कई बार पुलिस उसे वहां से भगा चुकी है पर कुछ दिन  बाद वह दोबारा लौट आता है।  पूछने पर कहता है-‘और क्या करूं,कोई काम देता ही नहीं। ’ यानि उसने मान  लिया है कि वह भीख के लिए हाथ फ़ैलाने के अलावा और कुछ नहीं कर सकता।                                     
  बस की प्रतीक्षा कर रहा एक लड़का चरण को डांटने के बाद मुझसे बोला-‘ अंकल, क्या आपके पास ऐसी भी कोई गोली है जो इसका इलाज कर दे, यह सबको भीख मांग कर परेशान  करता है। मैं रोज     यहाँ से कालिज के लिए बस लेता हूं, आते ही इसकी पुकार सुनाई देती है। दिन  की ऐसी शुरुआत मुझे अच्छी नहीं लगती। ’
  यह एक कड़वी सच्चाई थी, भीख मांग कर लोगों को परेशान  करने की आदत के कारण चरण  जैसे एक लाइलाज रोग बण गया था।  हर कोई उससे छुटकारा पाना चाहता था। तो क्या मैं कुछ कर सकता था। मैंने कुछ सोचा और चरण  के सामने जा खड़ा हुआ। इससे पहले कि वह मेरे सामने हाथ फैलाता,मैंने कहा-‘ जानते हो आज तुम्हारा जन्मदिन  है और जिसका जन्मदिन  होता है वह किसी से मांगता नहीं,  मेहमानों को उपहार देता है। ’
  ‘मेरा जन्म दिन,,,, मैं.... ’चरण  हडबडा गया। वह कुछ समझ नहीं पा रहा था।
  हाँ, आज तुम्हारा जन्म दिन  है। फिर मैंने बस स्टैंड में खड़े लोगों से कहा-आज चरण का  जन्म  दिन  है| और इसने कसम खाई है कि अब से यह किसी के आगे हाथ नहीं फैलाएगा,मतलब यह कि हमारे चरण ने अपने  जन्म दिन  के शुभ अवसर पर कुछ नया काम करने का निश्चय कर लिया है। ’चरण मुंह बाए देखता खड़ा था। उसने धीरे से कहा-‘तो मैं क्या करूंगा अब?’
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  यह तो चरण  ने सही कहा था।  मैंने उसे भीख न  मांगने की कसम तो दिला दी थी,लेकिण इसके बाद वह क्या करेगा,कहाँ जाएगा, इसका इंतजाम कौन  करेगा। क्या मैं इस बारे में कुछ कर सकता था?जब मैं यह सोच रहा था तब चरण वीर सिंह के पास बैठा कुछ खा रहा था।  वीर सिंह बस स्टैंड के पास चने-चबैने का टोकरा लेकर बैठता है। वह चरण को कई बार समझा चुका है कि वह भीख माँगना छोड़ दे।  और चरण की इसी गंदी आदत के कारण उससे नफरत करता है। लेकिन  आज एकाएक सब कुछ बदल गया है।  वीर सिंह ने उसे कुछ खाने को दिया है और दोनों घुल मिल कर बातें कर रहे हैं।
  तभी मैंने प्रीतम को वहां से जाते हुए देखा और उसे पुकार लिया।  प्रीतम मेरे घर में अखबार डालता है।  मैंने उसे चरण के बारे में बताया।  कुछ देर तक चुप रहने के बाद उसने कहा-‘चरण के बारे में आप से मैं सहमत हूँ पर,,’  
   मैंने प्रीतम से कहा था कि क्या वह चरण को बेचने के लिए रोज अखबार दे सकता है?मैं समझ गया कि वह कुछ डर रहा है। मैंने उसे भरोसा देते हुए कहा-‘प्रीतम,मैं तुम्हारी आशंका समझ रहा हूँ पर तुम्हारे किसी भी नुक्सान  की जिम्मेदारी मेरी होगी। चरण के लिए  जो प्रयोग मैं करना चाहता हूँ उसमें तुम मेरी बहुत मदद कर सकते हो। ’
  आखिर प्रीतम ने मुझे सहयोग देने का वादा किया और कुछ देर में आने की बात कह कर चला गया। वह कुछ देर बाद लौटा तो उस दिन  के अखबार लेकर। प्रीतम ने एक प्लास्टिक शीट बिछा  कर उस  पर हिंदी और अंग्रेजी के अखबार करीने से रख दिए। तब तक मैं चरण को बता  चुका था कि उसे क्या करना है, बाकी उसे प्रीतम ने समझा दिया।  चरण अखबारों के सामने बैठा रहा,पर किसी ने भी अखबार नहीं खरीदा।
  मैंने कहा-‘चरण, आज पहला दिन  है,लोग तुमसे अखबार खरीदेंगे लेकिन  उससे पहले तुम्हें अपना हुलिया ठीक करना होगा। ’और मैं घर से एक जोड़ी कुरता पजामा ले आया। मैंने उसे कुछ पैसे दिए कि जाकर बाल कटवाने के साथ दाढ़ी भी साफ़ करा ले। फिर नहा कर कपडे बदल ले।  कुछ देर बाद चरण आया तो पहचाना ही नहीं जा रहा था। मैंने पूछा-‘आज तो तुमने कुछ खाया नहीं होगा। ’और उसे सड़क पार मदन  के ढाबे पर ले गया। एकाएक मदन  उसे पहचान  ही नहीं पाया।  फिर मैंने उसे पूरी बात बताई तो मदन  हंस कर बोला-‘यह तो कोई दूसरा ही चरण बन  गया है। रोज इसे देखते ही डांट कर भगा देता हूँ। पर आज तो इसकी दावत करने का दिन  है। ’        
  चरण कुर्सी पर बैठते हुए सकुचा रहा था लेकिन  मदन  ने कहा-‘ आज तुम्हारा नया जन्म हुआ है। तुम मेरे मेहमान  हो। ’ मैंने चाय पी और मदन  ने चरण को भर पेट खिलाया।  चरण फिर से अखबारों के सामने बैठ गया। मैं संतुष्ट भाव से घर चला आया।  शाम को दरवाजे की घंटी बजी,बाहर चरण खड़ा था।  उसने मुझे कई नोट थमा दिए।  
  बोला-‘ ये पैसे आपके हैं।  प्रीतम ने दिए हैं,कह रहा था कि अखबार बेचने का कमीशन है। ’
  ‘पर यह तो तुम्हारी मेहनत की कमाई  है।  तुम्हें खुश होना चाहिए कि ये भीख के पैसे नहीं हैं।  किसी ने तुम पर दया नहीं की है।  और यह कमीशन तुम रोज कमा सकते हो। ’
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  ‘क्या सच!’-चरण की आवाज से ख़ुशी फूटी पड रही थी। इसके बाद मैं उसे मदन के ढाबे पर ले गया। मैंने हंस कर कहा-‘मदन, आज चरण अपनी कमाई  के पैसो से डिनर करने आया है। ’जितनी देर चरण ने खाना खाया मैं और मदन बातें करते रहे।
  मदन ने कहा –‘आपकी तरह मैंने भी चरण के लिए कुछ सोचा है।  अखबार तो दोपहर तक ही बिकते हैं।  उसके बाद तो चरण खाली ही रहता है। अगर वह चाहे तो दोपहर के बाद मेरे ढाबे पर काम कर सकता है। मैं एक दो दिन में ही उसे पूरा काम समझा दूंगा।  दोनों समय का खाना और साथ में कुछ पैसे भी दूंगा।  और हाँ मेरे कुछ आदमी रात में सफाई के बाद यहीं सोते हैं। उनके लिए मैंने नहाने –धोने  का इंतजाम भी कर रखा  है।  चरण को सडको पर सोने की आदत है। उसे कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए। ’
   चरण को भला और क्या चाहिए था।  उसकी रातें तो सडक पर ही गुजरती थी, जहाँ से पुलिस कई बार भगा दिया करती थी।  अब चरण सचमुच बदल गया था। सुबह अखबार बेचना और दोपहर बाद मदन के ढाबे में काम करना उसकी दिनचर्या बन गई थी।
  एक शाम मैं मदन के ढाबे पर गया तो चरण काम में लगा हुआ था।  मुझे देख कर वह मेरे पास चला आया। मदन ने बताया कि अब तक उसके पास चरण के काफी पैसे जमा हो गए हैं।  ‘ मैं जब भी लेने के लिए कहता हूँ तो यह कह देता है  कि  इसे कोई जरूरत नहीं। ’ मैंने चरण की और देखा तो वह बोला-‘ आसपास मेरे जैसे और भी कई  चरण जरूर मिल जायेंगे आपको।  इन पैसों को अगर आप उन्हें सुधारने पर खर्च करें तो मुझे बहुत ख़ुशी होगी। ’ मैंने देखा,यह कहते हुए उसकी आँखों में गीलापन झलमला रहा था। (समाप्त)     

Thursday 28 May 2020

घडी का बहाना-कहानी-देवेन्द्र कुमार

   घड़ी का बहाना -कहानी- देवेन्द्र कुमार     
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   अमल और मीना अपने बाबा रामदयाल से बहुत गुस्सा हैं। बात है भी नाराज़गी की। उस दिन दोनों बच्चे दौड़े दौड़े उनके पास चाकलेट की फरमाइश लेकर आये पर बाबा किसी दूसरे मूड में थे। उन्होंने दोनों को डपट कर भगा दिया-‘भागो, कोई चाकलेट वाकलेट नहीं मिलेगी।’ अमल और मीना ने माँ उमा से बाबा की शिकायत की,पिता सुरेश से भी कहा। ऐसा पहली बार हुआ था जब बाबा ने अमल और मीना को डांट दिया था। वह तो हमेशा बच्चों को उमा और सुरेश के गुस्से से बचाया करते थे। तब उस दिन ऐसा क्या हो गया था जो बाबा बच्चों पर यों बिगड़ उठे थे।पर बच्चों को कैसे पता होता।
   असल में उस दिन बाबा को  अपने बचपन के मित्र जय  शंकर के बारे में परेशान करने वाली खबर मिली थी-जय शंकर बहुत बीमार थे। बाबा जय शंकर से तुरंत मिलना चाहते थे, पर यह इतना आसान नहीं था। शंकर  दूसरे शहर में रहते हैं।बाबा अस्सी के हो गए हैं,स्वास्थ्य भी ठीक नहीं रहता है,अकेले जाना संभव नहीं। बेटा सुरेश बहुत व्यस्त रहता है, उससे अपने साथ चलने को कैसे कहें। वह इसी सोच -विचार में बैठे थे, तभी अमल और मीना चाकलेट की फरमाइश लेकर आ गए  और बाबा ने डांट  कर भगा दिया। उसके बाद उन्होंने जय शंकर से काफी देर तक बात की, तब उनकी बैचैनी कुछ कम हुई पर पूरी तरह नहीं। उन्होंने अमल और मीना को नाराज़ कर दिया था। उन्हें मनाना जरूरी हो गया था। पर कैसे!
  उन्होंने अमल और मीना को कई बार आवाज़ दी,पर दोनों नहीं आये। बच्चों को कल्पना भी नहीं थी कि बाबा उन्हें इस तरह झिड़क कर भगा सकते हैं, उन्हें भला कैसे पता होता कि बाबा का मन कितना परेशान था। बाबा अच्छी तरह समझ गए कि बच्चों को मनाने का कोई नया उपाय खोजना होगा।कुछ  देर सोचने के बाद बाबा अपनी अलमारी से एक पुरानी पिटारी लेकर आँगन में पड़ी कुर्सी पर आ बैठे।फिर उसमें से पुरानी हाथ घड़ियाँ  निकाल कर मेज़ पर रखने लगे। बच्चे पास नहीं आ रहे थे पर उनकी उत्सुक नज़रें बाबा पर टिकी थीं। बाबा ने जैसे अपने को सुनाने के लिए कहा-‘हर पुरानी घडी में एक कहानी बंद है।’
   ‘ हर घडी में एक कहानी बंद है’ इस वाक्य ने अमल और मीना की उत्सुकता को बढ़ा दिया, कुछ सकुचाते हुए दोनों बाबा के निकट चले आये।अमल ने पूछा-‘क्या कहानी घडी में बंद हो सकती है?’
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   बाबा ने कहा—‘घडी में ही क्यों, कहानी तो कहीं भी रह सकती है।लेकिन वह सब बाद में,पहले यह बताओ कि तुम दोनों ने अपने बाबा को माफ़ किया या नहीं।’और यह कहते हुए उन्होंने अपने कान पकड़ लिए  और ऐसा मुंह बनाया कि अमल और मीना खिलखिला उठे। बाबा ने झट  दो बड़ी चाकलेट उन्हें थमा दीं। मीना ने कहा-‘ बाबा,अब आप हमें इस घडी में बंद कहानी  सुनाइए।’ और उसने एक घडी हाथ  में उठा ली। उस घडी का डायल टूटा हुआ था,उसकी सुइयां भी गायब थीं।     
    बाबा बोले-‘इसमें बंद कहानी का हीरो तो मैं ही हूँ।’उन्होंने बताया-‘यह मेरे बचपन की बात है, तब मैं अमल जितना था। एक दिन की बात है,मेरे  पापा यानी तुम्हारे पड़ बाबा ऑफिस जाते समय अपनी रिस्ट वाच मेज पर भूल गए। बस मैंने घड़ी कलाई पर पहन ली और छत पर चला गया।तभी न जाने कहाँ से एक बंदर वहां आ गया, मैं बंदर से बचने के लिए भागा तो सीढ़ी पर फिसल गया। चोट तो ज्यादा नहीं आई पर रिस्ट वाच की जो हालत हुई वह तुम्हारे सामने है।’
  ‘तब तो आपके पापा ने खूब डांट लगाई होगी आपको,’अमल ने मुस्करा कर कहा।
  ‘ नहीं,उलटे मुझे खूब प्यार किया। उन्होंने कहा था-‘ रिस्ट वाच तो और आ जायेगी,पर तुझे चोट लगती तो मुझे बहुत दुःख होता।’
  अमल ने दूसरी रिस्ट वाच दिखा कर पूछा –‘और इसमें  कौन सी कहानी बंद है जो आप हमें सुनाने वाले हैं?’
  बाबा बोले –‘भई,यह कहानी खट्टी मीठी है।’
  ‘’खट्टी मीठी मतलब।’ मीना ने पूछा।
   बाबा कहने लगे '- यह घटना कोई दो वर्ष पहले की है।एक सुबह मैं चाय पी रहा था, साथ ही अखबार पर भी नज़र डाल लेता था।तभी फोन की घंटी बजी,मैं फोन में व्यस्त हो गया। फिर  दूध वाला आ गया, उसका नाम  विनय था। वह दूध की थैली रख कर चला गया। पर थोड़ी देर बाद विनय दुबारा आ गया।  अखबार वाले ने  उसकी कलाई पकड़ी हुई थी। बोला ‘आपके घडी-चोर को पकड़ कर लाया हूँ।’ और मेरी रिस्ट वाच मुझे थमा दी।
  मैंने मेज पर नज़र डाली-अरे! सचमुच मेरी रिस्ट वाच अपनी जगह नहीं थी। यानि अखबार वाला ठीक कह रहा था। विनय ही मेरी घडी उठा कर ले गया था। अखबार वाले ने बताया कि उसने विनय को तेजी से जाते देखा था।उसकी मुट्ठी में रिस्ट वाच थी, उसने विनय से पूछा तो विनय ने मान लिया कि घडी उसकी नहीं है।’इसे पुलिस को देना चाहिए।’यह सलाह देकर अख़बार वाला चला गया।
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   पुलिस का नाम सुन कर विनय रोने लगा, बोला-‘मैंने चोरी की है यह सुन कर तो मेरी माँ जीते जी ही मर जायेगी।पता नहीं मुझे क्या हो गया था जो आपकी घडी उठा कर ले गया।’
  ‘तो आपने घडी चोर को पुलिस को दे दिया होगा।’अमल ने पूछा।
  ‘नहीं क्योंकि वह चोर नहीं था। रिस्ट वाच के पास ही मेरा पर्स भी रखा था,जिसमें काफी रकम थी।’बाबा ने कहा।
  ‘तो फिर वह आपकी रिस्ट वाच क्यों ले गया था?’
  बाबा ने कहा -‘विनय ने बताया कि वह गाँव से शहर काम की तलाश में आया था। वह ऐसी जगह नौकरी कर रहा है जहाँ नियम बहुत कड़े हैं।अगर पहुँचने में दस मिनट की देर  हो जाए  तो आधे दिन  का वेतन काट लिया जाता है।वह समय पर पहुँचने की  बहुत कोशिश करता है पर फिर भी कई बार उसका वेतन कट चुका है। वह कब से घडी लेने की सोच रहा था पर इतने पैसे जमा ही नहीं होते। वह गाँव में अकेली रहती माँ को  एक बार भी पैसे नहीं भेज पाया है। मैंने कहा-‘ घबराओ मत,मैं पुलिस को नहीं बुला रहा हूँ। लेकिन इस तरह मेरी  घडी चुराना तो ठीक नहीं।’ वह मेरे पैर छूने के लिए झुकने लगा तो मैंने उसे कन्धों से थाम लिया और कहा-- अपनी माँ की कसम लो कि फिर कभी इस तरह का विचार मन में भी नहीं आने दोगे।’
    अमल और मीना चुप सुन रहे थे। ‘फिर विनय का क्या हुआ?’ दोनों ने एक स्वर में पूछ लिया।
   अगली सुबह विनय के बदले कोई दूसरा लड़का दूध देने आया,मैंने पूछा तो पता चला कि विनय बाहर खड़ा है। मैं ने दूध की थैली लौटाते हुए उससे विनय को अंदर भेजने को कहा।विनय आया और चुपचाप खड़ा हो गया। मैंने कहा—तुम कायर हो इसलिए मुझसे मुंह चुरा रहे हो।क्या इसी तरह माँ के  सपने पूरे करोगे।’ फिर मैंने उसके हाथ में एक नई रिस्ट वाच रख दी। कहा-अब समय पर दफ्तर पहुंचा करना। मैंने घडी पिछली शाम को ही मंगवा ली थी। उसने कहा-‘यह तो बहुत महंगी होगी।’ मैंने कहा कि घडी एक हज़ार रूपए की है। तुम धीरे धीरे इसकी कीमत चुका देना,तुम तो रोज हमारे घर दूध देने आते हो।जब जितने दे सको दे देना।’
  मीना ने कहा-‘आप कंजूस और क्रूर हो।आप नई घडी की जगह यह पुरानी  रिस्ट वाच भी दे सकते थे उसे।’
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   ‘न मैं क्रूर  र्हूँ और न ही कंजूस। लेकिन मैं घडी मुफ्त में देकर उसके स्वाभिमान को चोट नहीं पहुंचाना चाहता था।’बाबा ने कहा फिर एक लिफाफे में रखे कुछ नोट दिखा कर बोले-‘उसने अब तक सौ रूपए वापिस किये हैं। मैं सोच रहा हूँ कि अपने पास से कुछ रकम मिला कर विनय की माँ के बैंक खाते में भेज दूं।’
   ‘क्या यह बात विनय को पता नहीं चलेगी।’अमल बोला।
   ‘शायद न पता चले। वह क्या माँ के बैंक खाते की जांच करेगा।’बाबा बोले ‘इधर वह कुछ समय से गाँव गया हुआ है अपनी बीमार माँ को देखने के लिए।’
  ‘हम भी मिलना चाहेंगे आपके विनय से।’ मीना ने कहा।
   ‘अब विनय केवल मेरा नहीं हम तीनों का है। इस बारे में किसी से कुछ न कहना।’कह कर बाबा मुस्करा दिए।
    अमल ने एक और घडी हाथ में उठा कर पूछा-‘और इस घडी की क्या कहानी है?’
    बाबा ने कहा-‘आज यहीं पर बस।तुम्हारा बूढा बाबा थक गया है।लेकिन तुम दोनों को एक वादा करना होगा।’
     ‘कैसा वादा?’
    ‘यही कि मुझसे नाराज नहीं होगे।’
     ‘कभी नहीं।लेकिन आप भी हमें चाकलेट के लिए कभी मना नहीं करेंगे।’कहते हुए मीना और अमल घर से बाहर दौड़ गए।बाबा कमरे में जाकर पलंग पर लेट गए और मुंदी  पलकों के पीछे विनय का चेहरा उभर आया। लगा विनय माँ की गोद में सिर रखे लेटा है और माँ उससे लाड लड़ा रही है ।(समाप्त) 

Sunday 24 May 2020

मेरी मुनिया-कहानी-देवेन्द्र कुमार





                                मेरी मुनियाकहानी—देवेन्द्र कुमार
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      बाज़ार में जरूरी सामान खरीदने के बाद रचना रिक्शा से घर जा रही थी। बेटी जया साथ थी। एकाएक उसे लगा कि रह रह कर कोई चीज उसके बालों को छू रही है। एक सरसराहट सी होती थी। उसने रिक्शा रोकने को कहा और रिक्शा पर लगी तिरपाल के अंदर देखा- एक डोरी नीचे झूल रही थी। वही रिक्शा चलने पर रचना के बालों का स्पर्श करती थी  बार बार।
      रचना ने रिक्शा वाले से कहा—‘ रिक्शा के अंदर लटकती डोरी को काट क्यों नहीं देते। क्या कभी किसी सवारी ने इस बारे में नहीं कहा।’
      रिक्शा वाला सकपका कर बोला—‘ जी कई लोगों ने कहा, और मैंने लटकती डोरी को झटके से तोड़ने की कोशिश कई बार की,लेकिन मजबूत डोरी टूटी नहीं।’
      रचना ने कहा-‘डोरी झटके से नहीं टूटेगी। इसे काटना होगा। और फिर अपने झोले से एक कैंची निकालकर डोरी को काट दिया।
      ‘ मैडम, क्या आप कैंची साथ लेकर चलती हैं!’—रिक्शा वाले ने अचरज से कहा।
      ‘ मैं घर पर बच्चों के लिए पोशाकें तैयार करती हूँ, इसलिए झोले में सिलाई का सामान  रहता  हैं। इस समय भी बाज़ार से सिलाई का सामान खरीद कर घर जा रही हूँ।’-रचना ने कहा। फिर जया की फ्रॉक को छूते हुए बोली-‘ देखो इसे भी मैंने घर में ही तैयार किया है।’
       फ्रॉक सचमुच सुंदर थी। रिक्शा वाले का मन हुआ कि फ्रॉक को छू कर देखे पर साहस न हुआ।  
पर एक बात कहे बिना न रह सका—‘ मैडम जी, भला आपको सिलाई का काम करने की क्या जरूरत है। आप
      रचना ने बीच में ही टोक दिया—‘ हाँ मैं तो अच्छे खाते पीते घर की लगती हूँ तुम्हें, लेकिन क्या किसी का पहनावा देख कर उसके अमीर या गरीब होने का फैसला किया जा सकता है?’

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   ‘जी ’ रिक्शा वाला बस इतना ही बोल पाया। उसे अपनी पुरानी कमीज और रचना तथा जया के परिधान का फर्क एकदम साफ़ दिखाई दे रहा था।रचना की बात का वह भला क्या जवाब दे सकता था। रिक्शा रचना के घर के बाहर रुक गई। रचना ने रिक्शा वाले को पैसे देते हुए कहा—‘वैसे तुम्हारी बात कुछ गलत भी नहीं है।घर में चाहे जैसे भी रहें पर बाहर निकलते समय तो ठीक ठाक पोशाक पहननी ही   पड़ती  है।’ फिर जया की ओर इशारा करते हुए कहा—‘इसके पापा काफी समय से  बीमार चल रहे हैं,इस कारण नौकरी भी जाती रही। उनके इलाज और घर चलाने के लिए मुझे सिलाई का काम’ फिर वह एकाएक चुप हो गई। उसे लगा कि एक अनजान रिक्शा वाले से घर के अंदर की बात नहीं कहनी चाहिए थी। अपने पर मन ही मन उसे  गुस्सा भी आया, लेकिन  अब क्या हो सकता था। बात तो कही जा चुकी थी।   
    रिक्शा वाले ने पूछा—‘ मैडम,साहब को क्या तकलीफ है?’    
    रचना ने अनमने ढंग से कहा—‘ उनके पेट में दर्द रहता है, काफी इलाज के बाद भी आराम नहीं पड़ा है।’ फिर झट अंदर चली गई। दरवाजा बंद हो गया। पर रचना ने नहीं देखा कि रिक्शा वाला देर तक दरवाजे के बाहर खड़ा रहा,पता नहीं क्यों।
   अगली दोपहर दरवाजे की घंटी बजी, दरवाजे के बाहर कल वाले रिक्शा वाले को देख कर रचना चौंक गई। वह कुछ पूछती इससे पहले ही रिक्शा वाले ने कहा—‘’ मैडम, माफ़ करना आपको तकलीफ देने चला आया और फिर एक पुडिया रचना की और बढ़ाते हुए बोला—‘आप कह रही थीं  न कि साहब के पेट में काफी दिनों से दर्द हो रहा है। मैं एक अच्छे वैद्धजी को जानता हूँ, उन्ही से पेट दर्द की दवा लाया हूँ उनके इलाज से बीमार जल्दी ठीक हो जाते हैं।’
  रचना बरबस मुस्करा उठी। उसने कहा—‘ हर पेट  दर्द की दवा एक नहीं होती।क्योंकि पेट दर्द का कारण एक नहीं होता। पर मुझे यह देख कर अच्छा लगा कि तुम जया के पापा के लिए दवा लेकर आये हो।मैंने तो यों ही हल्का सा जिक्र किया था जया के पापा के पेट दर्द के बारे में, पर तुमने याद रखा और दवा ले आये।तुमने वैद्ध जी को इस दवा के लिए कितने पैसे दिए वह मैं तुम्हें दे सकती हूँ पर यह दवा नहीं ले सकती।’ कह कर रचना ने पर्स खोला तो रिक्शा वाले ने कहा—‘मैडम, मैंने इस दवा के लिए कोई पैसा नहीं दिया।’ वह जाने के लिए मुडा फिर रुक कर कमरे में खेलती जया की और देख कर बोला—‘ मैडम, अगर आप नाराज न हों तो एक बात कहूँ।‘ हाँ, कहो क्या कहना चाहते हो।’ वह समझ नहीं पाई कि यह अनजान रिक्शा वाला अब क्या कहना चाहता है।रिक्शा वाले ने कहा—‘ मैडमजी, मैं कह रहा था कि जैसी फ्रॉक आपने अपनी बेटी के लिए बनाई है,क्या वैसी ही पोशाक मेरी मुनिया के लिए भी बना देंगी ?’
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   रचना ने कहा—‘ मैं तो बच्चों की पोशाकें तैयार करती रहती हूँ, तुम्हारी मुनिया के लिए भी  बना दूँगी। तुम अपनी मुनिया को ले आना फ्रॉक का नाप देने के लिए। नाप लेकर मैं बता दूँगी कि कितना कपडा लगेगा, कपडा लाकर दोगे तो फिर पोशाक तैयार होने में देर नहीं लगेगी।’
   ‘मैडम जी,मेरी मुनिया तो दूर गाँव में अपनी माँ के साथ रहती है। नाप देने के लिए उसका आना मुश्किल है।मैं हाल में गाँव से लौटा हूँ। अब तो कई महीने बाद ही जाना हो सकेगा।’
  ‘तब तो मुश्किल है,बिना नाप लिए तो तुम्हारी मुनिया की पोशाक नहीं बन सकेगी।’
  रिक्शा वाला कुछ देर असमंजस में खड़ा रहा, फिर  जया की ओर इशारा करके बोला—‘मैडम जी,मैं तो कहता हूँ कि मेरी मुनिया  और आपकी बिटिया की कद काठी एक जैसी ही है,आप बस अपनी बेटी के नाप की पोशाक बना दें।वह मेरी मुनिया को एकदम फिट आएगी’ –यह कह कर उसने सौ का नोट रचना की ओर बढ़ा दिया।
    रचना को कुछ विचित्र लगा। उसने कहा –‘हर किसी की कद काठी अलग होती है,इसलिए नाप भी  अलग होता है, पर तुमने जिद ठान ली है इसलिए मैं जया के नाप की फ्रॉक बना तो दूँगी,लेकिन छोटी बड़ी हो जाए तो मुझे दोष न देना।’
   ‘कभी नहीं।’—रिक्शा वाले ने कहा तो रचना ने सौ का नोट ले लिया।कहा—‘ एक हफ्ते बाद आकर फ्रॉक ले जाना।’ रिक्शा वाला चला गया लेकिन रचना को सब अजीब लग रहा था।कुछ विचित्र था वह अनजान रिक्शा वाला।फिर सब कुछ भूल कर रचना घर के कामों में लग गई। जया के पापा को डाक्टर के पास ले गई तो पता चला कि उनकी तबियत अब पहले से ठीक है। इस अच्छी खबर से उत्साहित होकर रचना मन लगा कर सिलाई के काम में जुट गई। उसने जया के नाप की दूसरी फ्रॉक बना डाली। एक सप्ताह बीत गया पर रिक्शा वाला फ्रॉक लेने नहीं आया। फिर १५ दिन पीछे चले गए,पर वह अब भी नहीं आया। रचना कुछ उलझन में पड़ गई।आखिर वह क्यों नहीं आया। फिर दिमाग में जैसे बिजली सी कोंध गई।अरे उसने रिक्शा वाले का नाम –पता तो लिया ही नहीं। अब उसे ढूंढ कर फ्रॉक कैसे दे पाएगी।
                                                         


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  एक दिन बाज़ार गई तो आस पास से गुजरने वाले रिक्शा वालों  को ध्यान से देखती गई। शायद वह कहीं दिख जाए,लेकिन वह रिक्शा वाला कहीं नहीं दिखाई दिया। ऐसा कई बार हुआ। लेकिन एक दिन वह मंदिर की सीढ़ियों पर बैठा दिखाई दे गया। रचना ने रिक्शा रुकवाई और लगभग भागती हुई उसके पास जा पहुंची,और गुस्से से कहा—‘भले आदमी अपनी मुनिया की फ्रॉक लेने क्यों नहीं आये?’रचना ने देखा उसके पैरों पर पट्टियाँ बंधी थीं। ‘मेरे पास तुम्हारा नाम और पता ठिकाना भी नहीं था।’
    वह हाथ जोड़ता हुआ खड़ा होने लगा पर लड़खड़ा गया—‘माफ़ करना मैडम, मुझे बीच बचाव करते हुए चोट लग गई इसीलिए नहीं आ सका। ठीक होते ही मैं आकर मुनिया की फ्रॉक ले जाऊँगा। मेरा नाम जगन है। वैसे यह मंदिर मेरा ठिकाना है।’
    ‘ठीक है, जल्दी आने की कोशिश करना।’ कह कर रचना घर चली आई।घर के सामने रिक्शा से उतरने लगी तो रिक्शा वाले ने कहा—‘ मैडम, क्या आप जगन को जानती हैं?’
   ‘नहीं तो’—और रचना ने फ्रॉक वाली बात बता दी। तब रिक्शा वाले ने कहा –‘जगन अच्छा आदमी नहीं है,वह आपसे झूठ कह रहा था कि उसे चोट झगडे में बीच बचाव करते हुए लगी थी। सच यह है कि वह चोरी करते हुए पकड़ा गया था, तब लोगों ने उसे मारा था। वह कई बार जेल जा चुका  है। जहाँ तक मुझे मालूम है,जगन का कोई  घर परिवार नहीं है| हम रिक्शा वाले साल में एक दो बार गाँव जरूर जाते हैं अपने परिवार की खोज खबर लेने के लिए।लेकिन हमने तो उसे कहीं आते जाते नहीं देखा,बीच बीच में   वह गायब हो जाता है, बाद में पता चलता है कि वह जेल में था। आप उससे सावधान रहें।’ अपनी बात कह कर रिक्शा वाला तो चला गया,पर रचना को गहरी उलझन में डाल गया।  क्या सच था क्या झूठ यह समझन मुश्किल था।
  एक दिन रचना मंदिर के पुजारी से मिली। क्योकि अक्सर जगन को वहीँ देखा जाता था। पुजारी ने कहा—‘  जगन के बारे में लोग तरह की बातें करते हैं।कुछ लोग उसे अच्छा कहते हैं तो कई  नज़रों में जगन खराब आदमी है।पर मैंने  उसे कोई गलत काम करते हुए नहीं देखा।वह अक्सर लोगों की पैसों से मदद करता है, लेकिन इसी बात पर आपस में झगडा भी हो जाता है। सही गलत का फैसला करना कठिन है। ‘कई दिन पहले जगन  सात-आठ साल की एक  लड़की को लेकर मेरे पास आया था,लड़की रो रही थी| उसने बताया कि लड़की उसे रोती हुई मिली थी। मैंने उसे लड़की को पुलिस को सोंपने को कहा पर वह पुलिस से डरता था कि कही उसे लड़की भगाने  के जुर्म में सज़ा न हो जाए। उसने कहा कि वह लड़की को उसके गाँव छोड़ने जा रहा है।बस तभी से उसका कुछ पता नहीं है। कोई नहीं जानता कि उस लड़की का क्या हुआ। पर मैं समझता हूँ कि वह उस लड़की के साथ कुछ गलत नहीं करेगा|’
   रचना घर लौट आई, अब वह  गहरी उलझन में थी। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि जगन के बारे में दूसरे लोगों की बातें कितनी सच थीं और कितनी  झूठ। यह बात उसकी समझ से बाहर थी  कि  
 जगन ने अपना  कोई घर परिवार न होते हुए भी अपनी बेटी मुनिया के लिए जया के नाप की फ्रॉक बनवाने की जिद क्यों की थी।क्या वह जया में ही अपनी बेटी की छवि देख रहा था जो केवल उसकी कल्पना में ही थी। क्या जगन फिर कभी आएगा अपनी मुनिया की फ्रॉक लेने के लिए।कौन जाने।==        
   
 









































































































  मेरी मुनियाकहानी—देवेन्द्र कुमार

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      बाज़ार में जरूरी सामान खरीदने के बाद रचना रिक्शा से घर जा रही थी। बेटी जया साथ थी। एकाएक उसे लगा कि रह रह कर कोई चीज उसके बालों को छू रही है। एक सरसराहट सी होती थी। उसने रिक्शा रोकने को कहा और रिक्शा पर लगी तिरपाल के अंदर देखा- एक डोरी नीचे झूल रही थी। वही रिक्शा चलने पर रचना के बालों का स्पर्श करती थी  बार बार।
      रचना ने रिक्शा वाले से कहा—‘ रिक्शा के अंदर लटकती डोरी को काट क्यों नहीं देते। क्या कभी किसी सवारी ने इस बारे में नहीं कहा।’
      रिक्शा वाला सकपका कर बोला—‘ जी कई लोगों ने कहा, और मैंने लटकती डोरी को झटके से तोड़ने की कोशिश कई बार की,लेकिन मजबूत डोरी टूटी नहीं।’
      रचना ने कहा-‘डोरी झटके से नहीं टूटेगी। इसे काटना होगा। और फिर अपने झोले से एक कैंची निकालकर डोरी को काट दिया।
      ‘ मैडम, क्या आप कैंची साथ लेकर चलती हैं!’—रिक्शा वाले ने अचरज से कहा।
      ‘ मैं घर पर बच्चों के लिए पोशाकें तैयार करती हूँ, इसलिए झोले में सिलाई का सामान  रहता  हैं। इस समय भी बाज़ार से सिलाई का सामान खरीद कर घर जा रही हूँ।’-रचना ने कहा। फिर जया की फ्रॉक को छूते हुए बोली-‘ देखो इसे भी मैंने घर में ही तैयार किया है।’
       फ्रॉक सचमुच सुंदर थी। रिक्शा वाले का मन हुआ कि फ्रॉक को छू कर देखे पर साहस न हुआ।  
पर एक बात कहे बिना न रह सका—‘ मैडम जी, भला आपको सिलाई का काम करने की क्या जरूरत है। आप
      रचना ने बीच में ही टोक दिया—‘ हाँ मैं तो अच्छे खाते पीते घर की लगती हूँ तुम्हें, लेकिन क्या किसी का पहनावा देख कर उसके अमीर या गरीब होने का फैसला किया जा सकता है?’

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   ‘जी ’ रिक्शा वाला बस इतना ही बोल पाया। उसे अपनी पुरानी कमीज और रचना तथा जया के परिधान का फर्क एकदम साफ़ दिखाई दे रहा था।रचना की बात का वह भला क्या जवाब दे सकता था। रिक्शा रचना के घर के बाहर रुक गई। रचना ने रिक्शा वाले को पैसे देते हुए कहा—‘वैसे तुम्हारी बात कुछ गलत भी नहीं है।घर में चाहे जैसे भी रहें पर बाहर निकलते समय तो ठीक ठाक पोशाक पहननी ही   पड़ती  है।’ फिर जया की ओर इशारा करते हुए कहा—‘इसके पापा काफी समय से  बीमार चल रहे हैं,इस कारण नौकरी भी जाती रही। उनके इलाज और घर चलाने के लिए मुझे सिलाई का काम’ फिर वह एकाएक चुप हो गई। उसे लगा कि एक अनजान रिक्शा वाले से घर के अंदर की बात नहीं कहनी चाहिए थी। अपने पर मन ही मन उसे  गुस्सा भी आया, लेकिन  अब क्या हो सकता था। बात तो कही जा चुकी थी।   
    रिक्शा वाले ने पूछा—‘ मैडम,साहब को क्या तकलीफ है?’    
    रचना ने अनमने ढंग से कहा—‘ उनके पेट में दर्द रहता है, काफी इलाज के बाद भी आराम नहीं पड़ा है।’ फिर झट अंदर चली गई। दरवाजा बंद हो गया। पर रचना ने नहीं देखा कि रिक्शा वाला देर तक दरवाजे के बाहर खड़ा रहा,पता नहीं क्यों।
   अगली दोपहर दरवाजे की घंटी बजी, दरवाजे के बाहर कल वाले रिक्शा वाले को देख कर रचना चौंक गई। वह कुछ पूछती इससे पहले ही रिक्शा वाले ने कहा—‘’ मैडम, माफ़ करना आपको तकलीफ देने चला आया और फिर एक पुडिया रचना की और बढ़ाते हुए बोला—‘आप कह रही थीं  न कि साहब के पेट में काफी दिनों से दर्द हो रहा है। मैं एक अच्छे वैद्धजी को जानता हूँ, उन्ही से पेट दर्द की दवा लाया हूँ उनके इलाज से बीमार जल्दी ठीक हो जाते हैं।’
  रचना बरबस मुस्करा उठी। उसने कहा—‘ हर पेट  दर्द की दवा एक नहीं होती।क्योंकि पेट दर्द का कारण एक नहीं होता। पर मुझे यह देख कर अच्छा लगा कि तुम जया के पापा के लिए दवा लेकर आये हो।मैंने तो यों ही हल्का सा जिक्र किया था जया के पापा के पेट दर्द के बारे में, पर तुमने याद रखा और दवा ले आये।तुमने वैद्ध जी को इस दवा के लिए कितने पैसे दिए वह मैं तुम्हें दे सकती हूँ पर यह दवा नहीं ले सकती।’ कह कर रचना ने पर्स खोला तो रिक्शा वाले ने कहा—‘मैडम, मैंने इस दवा के लिए कोई पैसा नहीं दिया।’ वह जाने के लिए मुडा फिर रुक कर कमरे में खेलती जया की और देख कर बोला—‘ मैडम, अगर आप नाराज न हों तो एक बात कहूँ।‘ हाँ, कहो क्या कहना चाहते हो।’ वह समझ नहीं पाई कि यह अनजान रिक्शा वाला अब क्या कहना चाहता है।रिक्शा वाले ने कहा—‘ मैडमजी, मैं कह रहा था कि जैसी फ्रॉक आपने अपनी बेटी के लिए बनाई है,क्या वैसी ही पोशाक मेरी मुनिया के लिए भी बना देंगी ?’
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   रचना ने कहा—‘ मैं तो बच्चों की पोशाकें तैयार करती रहती हूँ, तुम्हारी मुनिया के लिए भी  बना दूँगी। तुम अपनी मुनिया को ले आना फ्रॉक का नाप देने के लिए। नाप लेकर मैं बता दूँगी कि कितना कपडा लगेगा, कपडा लाकर दोगे तो फिर पोशाक तैयार होने में देर नहीं लगेगी।’
   ‘मैडम जी,मेरी मुनिया तो दूर गाँव में अपनी माँ के साथ रहती है। नाप देने के लिए उसका आना मुश्किल है।मैं हाल में गाँव से लौटा हूँ। अब तो कई महीने बाद ही जाना हो सकेगा।’
  ‘तब तो मुश्किल है,बिना नाप लिए तो तुम्हारी मुनिया की पोशाक नहीं बन सकेगी।’
  रिक्शा वाला कुछ देर असमंजस में खड़ा रहा, फिर  जया की ओर इशारा करके बोला—‘मैडम जी,मैं तो कहता हूँ कि मेरी मुनिया  और आपकी बिटिया की कद काठी एक जैसी ही है,आप बस अपनी बेटी के नाप की पोशाक बना दें।वह मेरी मुनिया को एकदम फिट आएगी’ –यह कह कर उसने सौ का नोट रचना की ओर बढ़ा दिया।
    रचना को कुछ विचित्र लगा। उसने कहा –‘हर किसी की कद काठी अलग होती है,इसलिए नाप भी  अलग होता है, पर तुमने जिद ठान ली है इसलिए मैं जया के नाप की फ्रॉक बना तो दूँगी,लेकिन छोटी बड़ी हो जाए तो मुझे दोष न देना।’
   ‘कभी नहीं।’—रिक्शा वाले ने कहा तो रचना ने सौ का नोट ले लिया।कहा—‘ एक हफ्ते बाद आकर फ्रॉक ले जाना।’ रिक्शा वाला चला गया लेकिन रचना को सब अजीब लग रहा था।कुछ विचित्र था वह अनजान रिक्शा वाला।फिर सब कुछ भूल कर रचना घर के कामों में लग गई। जया के पापा को डाक्टर के पास ले गई तो पता चला कि उनकी तबियत अब पहले से ठीक है। इस अच्छी खबर से उत्साहित होकर रचना मन लगा कर सिलाई के काम में जुट गई। उसने जया के नाप की दूसरी फ्रॉक बना डाली। एक सप्ताह बीत गया पर रिक्शा वाला फ्रॉक लेने नहीं आया। फिर १५ दिन पीछे चले गए,पर वह अब भी नहीं आया। रचना कुछ उलझन में पड़ गई।आखिर वह क्यों नहीं आया। फिर दिमाग में जैसे बिजली सी कोंध गई।अरे उसने रिक्शा वाले का नाम –पता तो लिया ही नहीं। अब उसे ढूंढ कर फ्रॉक कैसे दे पाएगी।
                                                         


                                                  3
  एक दिन बाज़ार गई तो आस पास से गुजरने वाले रिक्शा वालों  को ध्यान से देखती गई। शायद वह कहीं दिख जाए,लेकिन वह रिक्शा वाला कहीं नहीं दिखाई दिया। ऐसा कई बार हुआ। लेकिन एक दिन वह मंदिर की सीढ़ियों पर बैठा दिखाई दे गया। रचना ने रिक्शा रुकवाई और लगभग भागती हुई उसके पास जा पहुंची,और गुस्से से कहा—‘भले आदमी अपनी मुनिया की फ्रॉक लेने क्यों नहीं आये?’रचना ने देखा उसके पैरों पर पट्टियाँ बंधी थीं। ‘मेरे पास तुम्हारा नाम और पता ठिकाना भी नहीं था।’
    वह हाथ जोड़ता हुआ खड़ा होने लगा पर लड़खड़ा गया—‘माफ़ करना मैडम, मुझे बीच बचाव करते हुए चोट लग गई इसीलिए नहीं आ सका। ठीक होते ही मैं आकर मुनिया की फ्रॉक ले जाऊँगा। मेरा नाम जगन है। वैसे यह मंदिर मेरा ठिकाना है।’
    ‘ठीक है, जल्दी आने की कोशिश करना।’ कह कर रचना घर चली आई।घर के सामने रिक्शा से उतरने लगी तो रिक्शा वाले ने कहा—‘ मैडम, क्या आप जगन को जानती हैं?’
   ‘नहीं तो’—और रचना ने फ्रॉक वाली बात बता दी। तब रिक्शा वाले ने कहा –‘जगन अच्छा आदमी नहीं है,वह आपसे झूठ कह रहा था कि उसे चोट झगडे में बीच बचाव करते हुए लगी थी। सच यह है कि वह चोरी करते हुए पकड़ा गया था, तब लोगों ने उसे मारा था। वह कई बार जेल जा चुका  है। जहाँ तक मुझे मालूम है,जगन का कोई  घर परिवार नहीं है| हम रिक्शा वाले साल में एक दो बार गाँव जरूर जाते हैं अपने परिवार की खोज खबर लेने के लिए।लेकिन हमने तो उसे कहीं आते जाते नहीं देखा,बीच बीच में   वह गायब हो जाता है, बाद में पता चलता है कि वह जेल में था। आप उससे सावधान रहें।’ अपनी बात कह कर रिक्शा वाला तो चला गया,पर रचना को गहरी उलझन में डाल गया।  क्या सच था क्या झूठ यह समझन मुश्किल था।
  एक दिन रचना मंदिर के पुजारी से मिली। क्योकि अक्सर जगन को वहीँ देखा जाता था। पुजारी ने कहा—‘  जगन के बारे में लोग तरह की बातें करते हैं।कुछ लोग उसे अच्छा कहते हैं तो कई  नज़रों में जगन खराब आदमी है।पर मैंने  उसे कोई गलत काम करते हुए नहीं देखा।वह अक्सर लोगों की पैसों से मदद करता है, लेकिन इसी बात पर आपस में झगडा भी हो जाता है। सही गलत का फैसला करना कठिन है। ‘कई दिन पहले जगन  सात-आठ साल की एक  लड़की को लेकर मेरे पास आया था,लड़की रो रही थी| उसने बताया कि लड़की उसे रोती हुई मिली थी। मैंने उसे लड़की को पुलिस को सोंपने को कहा पर वह पुलिस से डरता था कि कही उसे लड़की भगाने  के जुर्म में सज़ा न हो जाए। उसने कहा कि वह लड़की को उसके गाँव छोड़ने जा रहा है।बस तभी से उसका कुछ पता नहीं है। कोई नहीं जानता कि उस लड़की का क्या हुआ। पर मैं समझता हूँ कि वह उस लड़की के साथ कुछ गलत नहीं करेगा|’
   रचना घर लौट आई, अब वह  गहरी उलझन में थी। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि जगन के बारे में दूसरे लोगों की बातें कितनी सच थीं और कितनी  झूठ। यह बात उसकी समझ से बाहर थी  कि  
 जगन ने अपना  कोई घर परिवार न होते हुए भी अपनी बेटी मुनिया के लिए जया के नाप की फ्रॉक बनवाने की जिद क्यों की थी।क्या वह जया में ही अपनी बेटी की छवि देख रहा था जो केवल उसकी कल्पना में ही थी। क्या जगन फिर कभी आएगा अपनी मुनिया की फ्रॉक लेने के लिए।कौन जाने।==