Monday 24 August 2020

फूल मुस्कराए -कहानी-देवेन्द्र कुमार


फूल मुसकराए—कहानी—देवेन्द्र कुमार

        ========     


वे दोनों फूलों के पौधे बेचते थे। एक का नाम था रामू और दूसरा था फूलसिंह। दोनों ठेलों में रखकर गली-मोहल्ले में चक्कर लगाते थे। कभी-कभी तो वे साथ-साथ बस्ती में पहुँचते थे। तब दोनों में कहासुनी होने लगती थी। कहासुनी होने का कारण था-दोनों के पौधों की बिक्री का कम-ज्यादा होना।
फूलसिंह ने एक बार रामू से कह दिया था, “तुम मेरा पीछा क्यों करते हो? जहाँ मैं जाता हूँ, वहीं चले आते हो।
रामू बोला, “मैं भला पीछा क्यों करूँगा? मैं तो अपने टाइम पर घर से निकलता हूँ और बस्ती का चक्कर लगाता हूँ। अब अगर बीच में कहीं मैं और तुम मिल जाएँ तो इसमें मेरा क्या कसूर है। वैसे भी हममें भेंट मुलाकात होती रहे तो इसमें क्या बुरा है। कहकर वह मुसकरा दिया।
क्या बुरा है। फूलसिंह रामू की नकल उतारते हुए बड़बड़ाया। मैं नहीं मिलना चाहता हूँ तुमसे। तुम अलग टाइम पर आया करो।
नहीं मिलना चाहते तो मत मिला, पर मैं तो अपने समय पर ही आया करता हूँ। रामू बोला।
इसका मतलब यह कि तुम मुझसे जान बूझकर लड़ना चाहते हो। यह ठीक नहीं है। फूलसिंह ने गुस्से से कहा।
जब वे दोनों लड़ रहे थे ते वचनसिंह अपनी छाबड़ी लिए एक तरफ बैठा देख रहा थ। उसने कहा, “अरे, तो लड़ते क्यों हो। फूलों के पौधे दोनों बेचते हो। तुम दोनों भले ही अलग हो पर फूल तो एक हैं। इस तरह सुबह-सुबह लड़ना ठीक नहीं होता। वह देख रहा था कि बात बढ़ रही है। पर फूलसिंह शांत नहीं हुआ। वह जानता था कि उसकी बिक्री होती थी पर अक्सर रामू के सारे पौधे उस  से पहले बिक जाते थे। फूलसिंह ने कई बार सोचा था कि आखिर इसकी वजह क्या है।
आखिर एक सुबह उसने रामू से दो-दो हाथ करने की ठान ली। वह आगे था और रामू कुछ पीछे चल रहा था। मोड़ पर उसने अपना ठेला रामू के ठेले के सामने अड़ा दिया और चिल्लाया, “मैंने तुझे इतनी बार समझाया, परंतु मानता ही नहीं। अगर तू नहीं माना तो फिर देख लेना।
क्या देख लूँ। रामू ने हँसते हुए कहा। शायद वह लोगों को इसलिए पसंद था कि हरेक से मुसकरा कर बात करता था। शायद लोगों को उसका व्यवहर अच्छा लगता था। बोलचाल तो फूलसिंह की भी ठीक ही थी, पर लोगों को  रामू से पौधे खरीदना ज्यादा पसंद था। रामू का तो कोई दोष था नहीं, पर फूलसिंह यह समझता था कि उसकी बिक्री कम होने के पीछे रामू की ही कोई शरारत थी।
                                                1  
फूलसिंह अपने ठेले को गली के बीच में अड़ाए खड़ा था। रामू ने बगल से निकल जाना चाहा, पर संकरी गली में इतनी जगह ही नहीं थी कि दो ठेले अगल-बगल से निकल सकें। रामू ने कई बार कहा, “फूलसिंह, ठेला आगे पीछे कर लो, ताकि मैं आगे चला जाऊँ। पर फूलसिंह ने हठ ठान ली थी। मैंने तय कर लिया है कि तेरा ठेला मेरे ठेले से आगे नहीं जाएगा। तुझे मेरे पीछे-पीछे ही चलना होगा।
चने चबैने वाला वचनसिंह दोनों की बातें सुनकर मुसकरा रहा था। उसने रामू से कहा,’’ क्यों झगड़ा बढ़ाते हो। अगर वह तुम्हें रास्ता नहीं देना चाहता तो सही, कुछ देर इंतजार कर लो।‘’
रामू ने कहा, “भैया, तुम्हारी बात ठीक है, पर मेरी समझ में यह नहीं रहा कि फूल सिंह ने ऐसी हठ क्यों ठान ली है।
छोड़ो इस बात को। आओ कुछ देर मेरे पास बैठ जाओ, तब तक फूलसिंह का गुस्सा भी ठंडा हो जाएगा। फिर चले जाना, यह आगे-पीछे की रेस नहीं है।
रामू ने ठेला एक तरफ कर लिया और फूलसिंह से बोला, “जाओ, तुम्हीं अपने फूलों के आगे ले जाओ। मेरे फूल पीछे रह जाएँगे तो कोई आफत नहीं जाएगी। फिर चेहरे पर पसीना पोंछता हुआ वचनसिंह के पास जा बैठा। इतनी देर में दो लोग वहाँ आकर रामू के ठेले पर लगे पौधे देखने लगे। फूलों के कई पौधे उन्हें पसंद गए। मोलभाव हुआ फिर सौदा हो गया। उन लोगों ने अपने घर का पता बता दिया। रामू से कहा, “पौधों के गमले हमारे घर छोड़ जाना। कहकर उन्होंने रामू को एडवांस के रूप में कुछ पैसे दिए और फिर आगे चले गए।
फूलसिंह कहीं गया नहीं था। वहाँ खड़ा-खड़ा यह सब देख रहा था। उसे गुस्सा गया। यह क्या! उसने रामू को अपने से आगे नहीं जाने दिया, पर फिर भी रामू ने कई पौधों का सौदा कर लिया। वह अपने गुस्से पर काबू नहीं कर पा रहा था। उसने मन ही मन कुछ सोचा और मोड़ पर ठेला रोके खड़ा रहा।
रामू को बताए पते पर पौधे पहुँचाने थे। अब तो उसे फूलसिंह के ठेले के पास से निकलना ही था। उसने कहा, “फूलसिंह, अब तो ठेला हटा लो। मुझे आगे जाना है।
मैंने कहा तू अपना ठेला मुझसे आगे नहीं ले जाएगा।
पर तुम आगे जा रहे हो, पीछे रहे हो। बस रास्ता रोके खड़े हो। यह क्या बात हुई। अच्छा हटो मुझे निकलने दो। कहकर रामू ने अपना ठेला आगे बढ़ाया, पर आगे नहीं निकल सका। उसने जैसे ही अपना ठेला निकालने की कोशिश की वैसे ही फूलसिंह ने अपने ठेले को आगे धकेला। उसका ठेला रामू के ठेले से जा टकराया। रामू का ठेला उलट गया। उस पर रखे पौधों के गमले सड़क पर गिर गए। कुछ तो गिरते ही टूट गए। सब तरफ पौधे और मिट्टी बिखर गई।
                                    2  
रामू सन्न रह गया। उसकी परेशानी देख फूलसिंह के चेहरे पर शरारत की हँसी गई। वचनसिंह अपनी छाबड़ी के पास बैठा यह सब देख रहा था। वह दौड़कर गया और गिरे हुए गमलों को उठाकर सड़क के किनारे रखने लगा, फिर पैरों से सड़क पर बिखरी मिट्टी भी एक तरफ सरका दी।
मन ही मन खुश होता हुआ फूलसिंह आगे चला। उसे उम्मीद थी कि आज वह रामू से ज्यादा पौधे बेच लेगा। उसने मुसकराते हुए मुड़कर रामू की तरफ देखा, बस तभी एक गड़बड़ हो गई। उसने ध्यान दिया  कि सड़क पर एक गड्ढ़ा था। उसका पैर फंस गया और वह जमीन पर जा गिरा। पैर की ठोकर से उसका ठेला उलट गया और रामू की तरह उसके पौधों  के गमले भी सड़क पर जा गिरे। सिर्फ इतना ही नहीं, गिरते समय उसका माथा भी सड़क से टकरा गया। वह बेहोश हो गया।
रामू और वचन ने दौड़कर फूलसिंह के उठाया, फिर उसे होश में लाने का उपाय करने लगे। वचन ने फूलसिंह के संभाला तब तक रामू ने औंधे पड़े ठेले को सीधा किया, फिर टूटे हुए गमले पौधे उठाने लगा। उसने साबुत गमले उठाये अैर वहीं रख दिए जहाँ वचन ने उसके गमले रखे थे |
तब तक फूलसिंह को  होश गया। उसने आँखें खोलीं तो वचन रामू दोनों बोले, “क्यों फूल, अब कैसे हो?”
फूलसिंह कुछ बोल पाया। तब तक वचन दौड़कर चाय वाले से चाय और कुछ खाने का सामान ले आया। माथे पर मामूली चोट थी। इसी बीच रामू जाकर मोहल्ले में रहने वाले कंपाउंडर रमेश को बुला लाया। उन्होंने मरहम पट्टी कर दी। रामू ने पैसे देने चाहे पर रमेश ने लिए नहीं। हँसकर बोले, “कभी तुमसे फूलों का एक गमला ले लूँगा। बस वही मेरी फीस होगी। सुनकर सब हँस पड़े।
अब रामू और फूलसिंह के ठेले के पास-पास खड़े थे। उनके ठेलों में अब थोड़े से ही गमले दिखाई दे रहे थे, क्योंकि ज्यादातर गमले टूटे हुए थे। खाद की बोरियाँ गिरकर फट गई थीं। पूरी सड़क पर पौधों की गीली मिट्टी और खाद बिखरी थी। एक तरफ बहुत सारे फूलों के पौधे पड़े थे जो ठेलों के गिरने से दब कुचल गये थे।
वचन ने फूलसिंह से कहा, “भैया, समझो बहुत कुशल हुई। तुम जिस तरह गिरे थे उसमें चोट ज्यादा भी सकती थी। चलो जो हुआ उसे भूल जाओ। अब दोनों अपने-अपने गमले छांट लो। फूलसिंह ने देखा सामने कई साबुत गमले रखे थे। उनमें लगे फूल धीरे-धीरे हवा में हिल रहे थे। पर यह कैसे पता चले कि कौन सा गमला उसका था और कौन सा रामू का। क्योंकि वचन ने दोनों के साबुत गमले पासपास रख दिए थे। वह देखता रहा, सोचता रहा, पर उसकी आँखें अपने फूलों को रामू के फूलों से अलग नहीं पहचान पाई। एक सी हरियाली, एक से फूल और गमले भी एक से। क्योंकि दोनों एक ही नर्सरी से पौधे लाया करते थे।
उसके मुँह से निकला -फूल तो एक से हैं। कैसे पहचानूं कि कौन से मेरे हैं और कौन से रामू के।‘
वचन बोला, “चलो यह हिसाब किताब तो बाद में हो जाएगा, पहले चाय पीकर कुछ खा लो। फिर अपने-अपने घर जाकर आराम करो। आज का दिन अच्छा नहीं रहा।
फूल सिंह ने रामू का हाथ पकड़ लिया। बोला, “लो तुम भी खाओ। कैसे कहूँ कि आज का दिन बुरा रहा। दिन तो अच्छा ही रहा है। जो टूट फूट होनी थी हो गई। उसके मन का सारा गुस्सा निकल गया था।
उस दिन के बाद से रामू और फूलसिंह में कोई कहासुनी नहीं हुई। दोनों साथ-साथ ही बस्ती में पौधे बेचने आया करते थे। देखने वाले हैरान थे कि फूलसिंह और रामू की दुश्मनी दोस्ती में कैसे बदल गई। यह रहस्य पता था केवल वचनसिंह को, पर वह किसी को  कुछ बताने वाला नहीं था।==