मिठाई---कहानी--देवेंद्र कुमार
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पूरे घर में जाग गए थे सब लोग। अमित को सुबह की
गाड़ी से आगरा जाना था दफ्तर के काम से। जाने से पहले वह पिता के पास विदा लेने गया।
उन्होंने अमित के हाथ में एक छोटा सा कागज़ थमा दिया। अमित ने बिना पढ़े जेब में रख
लिया। वह सोच रहा था-- कहीं गाड़ी छूट न जाये।
तभी बेटे अमर ने कहा – “ पापा, आगरा जा रहे हो तो ताजमहल जरुर देखना।’
अमित बेटे का मतलब समझ गया, जैसे वह कह रहा था- पापा अकेले ताजमहल मत देख
लेना।
अमर का कन्धा थपथपाते हुए उसने कहा – ‘बेटा मैं
तुम्हारा मतलब समझ रहा हूँ। आज तो मैं केवल एक दिन के लिए जा रहा हूँ। उसमें ताज
देखने का मौका नहीं मिलेगा। और वैसे भी ताजमहल मैं तुम सबके साथ ही देखूंगा- यह
वादा रहा।” कहकर उसने पत्नी और पिता की ओर देखा।
तभी पिता ने कहा-‘ मैंने जो कागज तुम्हें दिया है
उस पर मेरे बचपन के दोस्त शम्भू का पता
लिखा है। मैं बहुत समय से उनसे
नहीं मिला हूँ। इधर खबर मिली है कि वह
बीमार चल रहे हैं। अगर तुम समय निकाल कर उन्हें देखने जा सको तो अच्छा रहेगा।’
‘ मैं पूरी कोशिश करूंगा ।’ अमित ने कहा और बेटे
अमर के गाल थपथपा कर घर से बाहर निकल गया। मन में बेटे की बात घूम रही थी। आगरा
पहुँच कर अमित ने होटल में जाकर सामान रखा, फिर कुछ नाश्ता करके दफ्तर के काम से
निकल पड़ा। दफ्तर के काम से फुर्सत पाते- पाते दोपहर बीत चुकी थी। अब उसे
पिता से मिले परचे का ध्यान आया। परचे पर एक पता लिखा था- e 502 आम्रपाली अपार्टमेंट्स । वह एक रिक्शा में बैठ कर
चल दिया। फिर ध्यान आया कि किसी के घर पहली बार ख़ाली हाथ जाना ठीक नहीं रहेगा। हलवाई
की दुकान के सामने रूककर उसने मिठाई ली और फिर आगे चल दिया।
आम्रपाली अपार्टमेंट्स एक बहुमंजिली इमारत थी। वह
लिफ्ट से पांचवीं मंजिल पर पहुँच गया। जब वह फ्लैट नं 502 की ओर बढ़ा तो ठिठक गया। फ्लैट के दरवाज़े के आगे
तथा गैलरी में काफी लोग जमा थे। हवा में बातों की भनभनाहट गूँज रही थी।
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अमित के कदम अपनी जगह ठिठक गए। कुछ पल असमंजस में
खड़ा रहा, फिर पास वाले आदमी से पूछा तो पता चला कि पिताजी के मित्र शम्भूजी की मौत
हो गई है। वह काफी समय से बीमार चल रहे थे। अमित को धक्का लगा। वह पिता के बारे
में सोचने लगा। मित्र की मौत की खबर से उन्हें काफी दुःख होगा। उसकी नज़र हाथ के
मिठाई के डिब्बे पर गई। वह मन ही मन सकुचा गया। समझ नहीं पाया कि मिठाई का क्या
करे।! उसकी आँखें बचने का रास्ता खोजने लगीं। तभी दिखाई दिया दरवाज़े के बाहर एक
छोटी सी अलमारी रखी थी। अमित ने मिठाई का डिब्बा अलमारी के ऊपर टिका दिया, फिर
जूते उतार कर अंदर चला गया। किसी ने उसकी ओर ज्यादा ध्यान नहीं दिया। अमित ने अंदर
एक लड़के को देखा , शायद वही शम्भूजी का बेटा था। कुछ देर उससे बात करके वह बाहर निकल
आया। न चाहते हुए भी उसकी नज़रें अलमारी की ओर चली गईं ।मिठाई का डिब्बा अपनी जगह
नहीं था। वह हैरान था कि ऐसे समय में कौन था जो मिठाई उठा ले गया!, पर उसने ज्यादा नहीं सोचा ,और आगे चला आया। वैसे भी मिठाई
अब उसके लिए बेकार थी ,पर फिर भी बात दिमाग से नहीं निकल रही थी।
अमित लिफ्ट के आगे जा खड़ा हुआ। तभी उसने एक पुकार
सुनी। मुड़कर देखा तो एक आदमी उसे इशारा कर रहा था। फिर वह पास चला आया। उसने कहा -’
आप शायद मिठाई का डिब्बा खोज रहे हैं जिसे
आपने अलमारी पर रखा था। मैंने आपको डिब्बा रखते हुए देखा था।’ अमित चुप खड़ा रहा,
वह कहता भी क्या। फिर उसने पूरी बात बता दी। उस आदमी ने कहा-‘ मेरा नाम रामसरन है। मैं शम्भूजी का रिश्तेदार हूँ। मैने
एक लड़के को डिब्बा ले जाते हुए देखा था।
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अमित ने कुछ नहीं कहा। वह जल्दी से जल्दी वहां से
दूर चला जाना चाहता था। अमित लिफ्ट से नीचे आया तो रामसरन भी उसके साथ था। वह कह
रहा था –‘ वह लड़का फूलवाले का नौकर है । वह फूल देने आया था। मैं फूल वाले को
अच्छी तरह जानता हूँ। ‘ अमित ने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया। वह सोच रहा था कि
पिता को उनके मित्र के निधन की सूचना कैसे देगा। वह आगे बढ़ा तो पीछे से रामसरन की
आवाज़ आई-‘ अरे वाह ! फूलवाला तो यहीं खड़ा है। चलो उसी से पूछते हैं।’ ‘अमित ने मुड़
कर देखा तो रामसरन किसी से बात कर रहा था। उसन अमित को इशारे से बुलाया तो अमित
वहां चला गया।
उसने सुना -फूलवाला कह रहा था-‘यह तो बहुत गलत किया
मेरे नौकर श्याम ने। मैं उस चोर को अभी नौकरी से निकाल दूंगा ।’ फिर अमित से माफ़ी
मांगता हुआ बोला-‘ वह काफी देर से गायब है। इसीलिए मुझे यहाँ आना पड़ा, उसका घर पास
ही है। आइए बाबूजी, उसके घर चल कर खबर लेता हूँ।’
अमित ने कहा-‘ मुझे अभी दिल्ली लौटना है। मैं नहीं
चल सकता। ‘ लेकिन फूलवाला बोला- ‘बाबूजी, बस पांच मिनट की ही तो बात है। आखिर वह
आपका चोर है।’ रामसरन ने भी कहा तो अमित को मानना पड़ा । थोड़ी दूर जाकर फूलवाला एक
दरवाजे के सामने रुक गया। उसने जोर से पुकारा-‘ओ श्याम, जरा बाहर तो निकल, देख मैं
तेरा क्या हाल करता हूँ।’
दरवाज़ा खुला और एक आदमी बाहर निकला। उसने फूलवाले से
कहा-‘ बाकी बातें बाद में ,लो पहले मुंह मीठा करो। आज हमारे घर लक्ष्मी पधारी है,
श्याम के जन्म के इतने बरसों बाद बेटी
हुई है।’ यह कहकर उसने मिठाई का डिब्बा आगे बढ़ा
दिया। अमित चौंक उठा, यह तो मिठाई का वही
डिब्बा था जो फ्लैट के बाहर रखी अलमारी के ऊपर से गायब हो गया था। उसे गुस्सा आ
गया। फूलवाले ने मिठाई का डिब्बा परे ठेलते हुए कहा-‘ हम चोरी की मिठाई नहीं खाते।
जरा श्याम को तो बुलाओ, उसने चोरी की है।’ फिर उसने अमित की ओर इशारा करके सारी
घटना कह सुनाई।
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श्याम का पिता जैसे सन्न खड़ा रह गया। फिर उसने
तुरंत पुकारा –‘ ओ श्याम के बच्चे जरा बाहर तो निकल। तू घर में चोरी कि मिठाई कैसे
लाया ! आज तूने मेरी ख़ुशी ख़ाक में मिला दी। ‘ श्याम झट बाहर निकल आया। उसका
सर झुका हुआ था। श्याम के पिता की आँखों में आंसू थे। उसने कहा-‘ बाबू , सच मुझे
एकदम पता नहीं था कि यह चोरी की मिठाई है। आज मैं कितना खुश था कि घर में लक्ष्मी आई है।मैने तो अपने मेह्मानों का मुंह
बताशों से मीठा करवाया था। हम भला इतनी महंगी मिठाई कहाँ से ला सकते थे।’
फूलवाले ने श्याम से पूछा तो उसने जो बताया वह इतना
ही था कि जब वह फूल देकर निकला तो उसे
मिठाई का डिब्बा नज़र आया था, उसने सोचा कि गम के माहौल में मिठाई भला कौन खायेगा। उसे
लगा घर में बहन पैदा हुई है ,वह सबका मुंह मीठा करवा देगा। वह चोर नहीं है।उसने
दूकान पर कभी चोरी नहीं की।
अमित ने देखा श्याम रो रहा था।उसका पिता किसी
प्रतिमा की तरह खड़ा था। मिठाई का डिब्बा उसने जमीन पर टिका दिया था। कुछ पल
सन्नाटा रहा।फिर अमित ने डिब्बा उठा कर फूलवाले की तरफ बढ़ा दिया-‘ फूलवाले भाई,
तुम ने सुना नहीं, आज श्याम की बहन ने जन्म
लिया है। यह तो ख़ुशी का मौका है। गुस्सा थूक दो। ‘ और उसने मिठाई की एक डली उसके
हाथ पर रख दी,फिर बारी बारी से डिब्बा सबके बीच घुमा दिया।अमित ने श्याम और उसके
पिता से भी मिठाई खाने को कहा। उदासी की जगह मुस्कान ने ले ली। अमित ने श्याम के
पिता से पूछा -‘तुमने बेटी का नाम क्या रखा है। ‘
‘जी अभी तो कुछ सोचा नहीं।’ लड़की तो लक्ष्मी होती
है।’ वह बोला।
‘उसका नाम लक्ष्मी ही रखना।’ फिर अमित ने फूलवाले
की ओर देख कर पूछा -‘ क्या कहते हो?’
‘जी बढ़िया रहेगा।’ फूलवाला हंस रहा था।
अमित ने उससे कहा-‘ श्याम ने चोरी नहीं की है।इसे
नौकरी से मत निकालना।’
फूलवाले का गुस्सा दूर हो गया था।उसने श्याम से
कहा-‘चल, दुकान पर चल। अगर तू मुझे सुबह बता देता तो मैं खुद मिठाई लेकर तेरे घर आ
जाता।’
अमित का मन शम्भूजी की मौत से उदास हो गया था ,पर
अब उदासी में मिठास घुल गई थी। =====