Friday 18 December 2020

मिठाई---कहानी--देवेंद्र कुमार

मिठाई---कहानी--देवेंद्र कुमार

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पूरे घर में जाग गए थे सब लोग। अमित को सुबह की गाड़ी से आगरा जाना था दफ्तर के काम से। जाने से पहले वह पिता के पास विदा लेने गया। उन्होंने अमित के हाथ में एक छोटा सा कागज़ थमा दिया। अमित ने बिना पढ़े जेब में रख लिया। वह सोच रहा था-- कहीं गाड़ी छूट न जाये।

तभी बेटे अमर ने कहा – “ पापा, आगरा जा रहे हो तो ताजमहल जरुर देखना।’  अमित बेटे का मतलब समझ गया, जैसे वह कह रहा था- पापा अकेले ताजमहल मत देख लेना।

अमर का कन्धा थपथपाते हुए उसने कहा – ‘बेटा मैं तुम्हारा मतलब समझ रहा हूँ। आज तो मैं केवल एक दिन के लिए जा रहा हूँ। उसमें ताज देखने का मौका नहीं मिलेगा। और वैसे भी ताजमहल मैं तुम सबके साथ ही देखूंगा- यह वादा रहा।” कहकर उसने पत्नी और पिता की ओर देखा।

तभी पिता ने कहा-‘ मैंने जो कागज तुम्हें दिया है उस पर मेरे बचपन के दोस्त शम्भू का पता  लिखा  है। मैं बहुत समय से उनसे नहीं मिला हूँ।  इधर खबर मिली है कि वह बीमार चल रहे हैं। अगर तुम समय निकाल कर उन्हें देखने जा सको तो अच्छा रहेगा।’  

‘ मैं पूरी कोशिश करूंगा ।’ अमित ने कहा और बेटे अमर के गाल थपथपा कर घर से बाहर निकल गया। मन में बेटे की बात घूम रही थी। आगरा पहुँच कर अमित ने होटल में जाकर सामान रखा, फिर कुछ नाश्ता करके दफ्तर के काम से निकल पड़ा। दफ्तर के काम से फुर्सत पाते- पाते दोपहर बीत चुकी थी।  अब उसे पिता से मिले परचे का ध्यान आया। परचे पर एक पता लिखा था- e  502 आम्रपाली अपार्टमेंट्स । वह एक रिक्शा में बैठ कर चल दिया। फिर ध्यान आया कि किसी के घर पहली बार ख़ाली हाथ जाना ठीक नहीं रहेगा। हलवाई की दुकान के सामने रूककर उसने मिठाई ली और फिर आगे चल दिया।

आम्रपाली अपार्टमेंट्स एक बहुमंजिली इमारत थी। वह लिफ्ट से पांचवीं मंजिल पर पहुँच गया। जब वह फ्लैट नं 502 की ओर बढ़ा तो ठिठक गया। फ्लैट के दरवाज़े के आगे तथा गैलरी में काफी लोग जमा थे। हवा में बातों की भनभनाहट गूँज रही थी।

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अमित के कदम अपनी जगह ठिठक गए। कुछ पल असमंजस में खड़ा रहा, फिर पास वाले आदमी से पूछा तो पता चला कि पिताजी के मित्र शम्भूजी की मौत हो गई है। वह काफी समय से बीमार चल रहे थे। अमित को धक्का लगा। वह पिता के बारे में सोचने लगा। मित्र की मौत की खबर से उन्हें काफी दुःख होगा। उसकी नज़र हाथ के मिठाई के डिब्बे पर गई। वह मन ही मन सकुचा गया। समझ नहीं पाया कि मिठाई का क्या करे।! उसकी आँखें बचने का रास्ता खोजने लगीं। तभी दिखाई दिया दरवाज़े के बाहर एक छोटी सी अलमारी रखी थी। अमित ने मिठाई का डिब्बा अलमारी के ऊपर टिका दिया, फिर जूते उतार कर अंदर चला गया। किसी ने उसकी ओर ज्यादा ध्यान नहीं दिया। अमित ने अंदर एक लड़के को देखा , शायद वही शम्भूजी का बेटा था। कुछ देर उससे बात करके वह बाहर निकल आया। न चाहते हुए भी उसकी नज़रें अलमारी की ओर चली गईं ।मिठाई का डिब्बा अपनी जगह नहीं था। वह हैरान था कि ऐसे समय में कौन था जो मिठाई उठा ले गया!, पर उसने ज्यादा नहीं सोचा ,और आगे चला आया। वैसे भी मिठाई अब उसके लिए बेकार थी ,पर फिर भी बात दिमाग से नहीं निकल रही थी।

अमित लिफ्ट के आगे जा खड़ा हुआ। तभी उसने एक पुकार सुनी। मुड़कर देखा तो एक आदमी उसे इशारा कर रहा था। फिर वह पास चला आया। उसने कहा -’ आप शायद मिठाई का डिब्बा खोज  रहे हैं जिसे आपने अलमारी पर रखा था। मैंने आपको डिब्बा रखते हुए देखा था।’ अमित चुप खड़ा रहा, वह कहता भी क्या। फिर उसने पूरी बात बता दी। उस आदमी ने कहा-‘ मेरा नाम  रामसरन है। मैं शम्भूजी का रिश्तेदार हूँ। मैने एक लड़के को डिब्बा ले जाते हुए देखा था।

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अमित ने कुछ नहीं कहा। वह जल्दी से जल्दी वहां से दूर चला जाना चाहता था। अमित लिफ्ट से नीचे आया तो रामसरन भी उसके साथ था। वह कह रहा था –‘ वह लड़का फूलवाले का नौकर है । वह फूल देने आया था। मैं फूल वाले को अच्छी तरह जानता हूँ। ‘ अमित ने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया। वह सोच रहा था कि पिता को उनके मित्र के निधन की सूचना कैसे देगा। वह आगे बढ़ा तो पीछे से रामसरन की आवाज़ आई-‘ अरे वाह ! फूलवाला तो यहीं खड़ा है। चलो उसी से पूछते हैं।’ ‘अमित ने मुड़ कर देखा तो रामसरन किसी से बात कर रहा था। उसन अमित को इशारे से बुलाया तो अमित वहां चला गया।

उसने सुना -फूलवाला कह रहा था-‘यह तो बहुत गलत किया मेरे नौकर श्याम ने। मैं उस चोर को अभी नौकरी से निकाल दूंगा ।’ फिर अमित से माफ़ी मांगता हुआ बोला-‘ वह काफी देर से गायब है। इसीलिए मुझे यहाँ आना पड़ा, उसका घर पास ही है। आइए बाबूजी, उसके घर चल कर खबर लेता हूँ।’

अमित ने कहा-‘ मुझे अभी दिल्ली लौटना है। मैं नहीं चल सकता। ‘ लेकिन फूलवाला बोला- ‘बाबूजी, बस पांच मिनट की ही तो बात है। आखिर वह आपका चोर है।’ रामसरन ने भी कहा तो अमित को मानना पड़ा । थोड़ी दूर जाकर फूलवाला एक दरवाजे के सामने रुक गया। उसने जोर से पुकारा-‘ओ श्याम, जरा बाहर तो निकल, देख मैं तेरा क्या हाल करता हूँ।’

दरवाज़ा खुला और एक आदमी बाहर निकला। उसने फूलवाले से कहा-‘ बाकी बातें बाद में ,लो पहले मुंह मीठा करो। आज हमारे घर लक्ष्मी पधारी है, श्याम के जन्म के इतने बरसों बाद बेटी

 हुई है।’ यह कहकर उसने मिठाई का डिब्बा आगे बढ़ा दिया। अमित चौंक उठा,  यह तो मिठाई का   वही डिब्बा था जो फ्लैट के बाहर रखी अलमारी के ऊपर से गायब हो गया था। उसे गुस्सा आ गया। फूलवाले ने मिठाई का डिब्बा परे ठेलते हुए कहा-‘ हम चोरी की मिठाई नहीं खाते। जरा श्याम को तो बुलाओ, उसने चोरी की है।’ फिर उसने अमित की ओर इशारा करके सारी घटना कह सुनाई।

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श्याम का पिता जैसे सन्न खड़ा रह गया। फिर उसने तुरंत पुकारा –‘ ओ श्याम के बच्चे जरा बाहर तो निकल। तू घर में चोरी कि मिठाई कैसे लाया ! आज तूने मेरी ख़ुशी ख़ाक में मिला दी। ‘     श्याम झट बाहर निकल आया। उसका सर झुका हुआ था। श्याम के पिता की आँखों में आंसू थे। उसने कहा-‘ बाबू , सच मुझे एकदम पता नहीं था कि यह चोरी की मिठाई है। आज मैं कितना खुश था कि घर में  लक्ष्मी आई है।मैने तो अपने मेह्मानों का मुंह बताशों से मीठा करवाया था। हम भला इतनी महंगी मिठाई कहाँ से ला सकते थे।’

फूलवाले ने श्याम से पूछा तो उसने जो बताया वह इतना ही था कि जब वह फूल देकर निकला  तो उसे मिठाई का डिब्बा नज़र आया था, उसने सोचा कि गम के माहौल में मिठाई भला कौन खायेगा। उसे लगा घर में बहन पैदा हुई है ,वह सबका मुंह मीठा करवा देगा। वह चोर नहीं है।उसने दूकान पर कभी चोरी नहीं की।

अमित ने देखा श्याम रो रहा था।उसका पिता किसी प्रतिमा की तरह खड़ा था। मिठाई का डिब्बा उसने जमीन पर टिका दिया था। कुछ पल सन्नाटा रहा।फिर अमित ने डिब्बा उठा कर फूलवाले की तरफ बढ़ा दिया-‘ फूलवाले भाई, तुम ने सुना नहीं, आज श्याम की बहन ने जन्म लिया है। यह तो ख़ुशी का मौका है। गुस्सा थूक दो। ‘ और उसने मिठाई की एक डली उसके हाथ पर रख दी,फिर बारी बारी से डिब्बा सबके बीच घुमा दिया।अमित ने श्याम और उसके पिता से भी मिठाई खाने को कहा। उदासी की जगह मुस्कान ने ले ली। अमित ने श्याम के पिता से पूछा -‘तुमने बेटी का नाम क्या रखा है। ‘

‘जी अभी तो कुछ सोचा नहीं।’ लड़की तो लक्ष्मी होती है।’ वह बोला।

‘उसका नाम लक्ष्मी ही रखना।’ फिर अमित ने फूलवाले की ओर देख कर पूछा -‘ क्या कहते हो?’

‘जी बढ़िया रहेगा।’ फूलवाला हंस रहा था।

अमित ने उससे कहा-‘ श्याम ने चोरी नहीं की है।इसे नौकरी से मत निकालना।’

फूलवाले का गुस्सा दूर हो गया था।उसने श्याम से कहा-‘चल, दुकान पर चल। अगर तू मुझे सुबह बता देता तो मैं खुद मिठाई लेकर तेरे घर आ जाता।’

अमित का मन शम्भूजी की मौत से उदास हो गया था ,पर अब उदासी में मिठास घुल गई थी। =====

                                       

Monday 30 November 2020

दावत-कहानी-देवेंद्र कुमार ======= -

 

  दावत-कहानी-देवेंद्र कुमार

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 मौसम ठंडा था, तेज हवा बह रही थी ,लेकिन धूप गरम थी और दिन छुट्टी का था,इसलिए जहाँ धूप थी वहां लोग सपरिवार मौजूद थे। बच्चों की धमाचौकड़ी और किलकारियों के बीच खाना पीना चल रहा था। छोटे तिकोने पार्क में एक बड़ा परिवार धूप को घेर कर बैठा हुआ था। उन्हें पता नहीं था कि कोने में खड़े तीन जने भी धूप में बैठ कर रोटी खाना चाहते हैं।लेकिन उन लोगों को किसी ने मना तो नहीं किया था। धूप सबकी थी, उस पार्क में कोई कहीं भी बैठ सकता था।लेकिन फिर भी वे तीनों दूर खड़े थे, पता नहीं क्यों।  

वे तीन थे-- रामवीर,बीरन और फत्ते। वे धूप में बैठ कर आराम से खाना खा सकते थे,लेकिन फिर भी इन्तजार कर रहे थे। क्यों भला?  उनके हाथ में कागज़ में लिपटी रूखी रोटियाँ, प्याज और हरी मिर्चें थीं। तरह तरह के स्वादिष्ट पकवानों का आनंद लेते लोगों के बीच रोटी के पैकेट खोल कर वे तीनों अपने गरीब भोजन का मजाक नहीं उडवाना चाहते थे। इसलिए इन्तजार कर रहे थे कि दावत का आनंद लेते लोग उठ कर जाएँ तो वे भी धूप का मजा लेते हुए भोजन कर सकें।

तभी फत्ते ने बीरन से कहा—‘अरे देखो, देखो तो सही, वह औरत उस बच्चे को कैसे मार रही है।’’

बीरन बोला—‘’हाँ मैंने सब देखा है। कई बच्चे कुछ देर से खाना खाते लोगों के आस पास मंडरा रहे थे। फिर उनमें से एक ने झपट्टा मार कर कुछ उठाया और भागने लगा, तभी वहां बैठी एक औरत ने देख लिया और उसे पकड़ कर पीटने लगी।’’  ’’

‘’शायद बच्चा भूखा होगा,इसलिए मौका देख कर खाने की कोई चीज उठाई और भाग खड़ा हुआ,पर पकड़ा गया और।खैर अब छोड़ो भी, देखो उनकी दावत ख़त्म हो गई ,वे लोग जा रहे हैं। ‘’ —फत्ते ने कहा और फिर उस तरफ बढ़ चला। धूप वाली जगह अब खाली हो गई थी। लेकिन वह बैठ न  सका ,क्योंकि उस जगह जूठन और कचरा बिखरा हुआ था। तीनों जने कुछ देर चुप खड़े रह गए।

                                      

फिर कूड़ा करकट उठा कर डस्ट बिन में डालने लगे। कागज में लिपटी रोटियां नीचे घास पर पड़ी थीं। लेकिन सफाई का काम बीच में ही रुक गया। क्योंकि एक सिपाही डंडा हिलाता आ पहुंचा। उसने कहा—‘‘रुको ,रुक जाओ। जो कुछ हाथ में है नीचे डाल दो।’’

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तीनों ने वैसा ही किया,उनकी समझ में नहीं आ रहा था कि बात क्या है।

‘‘क्या उठा रहे थे?’’—सिपाही ने डंडे से जमीन पर पड़े कचरे को टटोला।

‘’जी यहाँ सफाई कर रहे थे बैठने से पहले। ‘’—फत्ते ने कहा।

‘’क्यों?’’

‘’खाना खाने के लिए।’’—राजवीर ने कहा।

अब सिपाही की नजर घास पर पड़े तीन पैकटों पर टिक गई थी -–‘’इनमें क्या है?’’

‘’ इनमें ’’—बीरन कहते कहते रुक गया।

‘’खोलो इन्हें।’’

अब मजबूरी थी ।रूखी रोटियां, प्याज और हरी मिर्चें देख कर सिपाही जोर से हंसा और डंडा हिलाता हुआ चला गया।

राजबीर, फत्ते और बीरन घास पर बैठ गए,खाना सामने खुला पड़ा था। ‘’पहले गंदे हाथ तो धो  

 लें।’’—कहता हुआ फत्ते कोने में लगे हैण्ड पंप की ओर बढ़ गया। तीनों हाथ साफ़ करके भोजन करने आ बैठे,पर शुरू न कर सके। इतनी देर में वहां कई बच्चे आ खड़े हुए थे। राजबीर ने देखा एक बच्चे के माथे पर सूख गए खून का निशान था। तो क्या यह वही था जिसे खाना चुराने के लिए पिटाई खानी पड़ी थी। उसने इशारे से उस बच्चे को अपने पास बुलाया तो सारे बच्चे चले आये। वे आठ थे।

       ‘’तुमने खाना चुराया था?’’—उसने पूछ लिया।

       ‘’भूख लगी थी। ‘’—बच्चे ने कहा और रोटियों की तरफ देखने लगा। तीनों ने महसूस किया कि आठ जोड़ी आँखें जैसे रोटियों पर रेंग रही थीं। तीनों ने एक दूसरे की ओर देखा—बच्चों से घिरे रह कर वे रोटी कैसे खा सकते थे। बच्चों के हाव भाव से लग रहा था कि वे भूखे थे।

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‘’तीनों ने जेबें टटोल कर पैसे निकाले फिर बीरन ने फत्ते से कहा—‘‘इन बच्चों के लिए कुछ खाने को ले आओ।’’ वह मन ही मन कह रहा था—‘‘हम इन बच्चों के जाने के बाद या इनके साथ ही खा सकते हैं।’’    

         फत्ते के जाने के बाद बीरन और रामबीर बच्चों से बातें करने लगे।सभी सात-आठ वर्ष के रहे होंगे। वे कहाँ रहते हैं,उनके माँ –बाप कौन हैं तथा ऐसे ही दूसरे सवालों के जवाब किसी बच्चे के पास नहीं थे। लेकिन इतना साफ़ था कि वे उन हज़ारों बच्चों में थे जो शहर की सड़कों पर रहते हैं,        तभी फत्ते लौट आया। वह दो ब्रेड और चने-मुरमुरे लाया था। ब्रेड को रैपर हटा कर बच्चों के सामने रख दिया गया। बच्चों ने लेने के लिए हाथ बढ़ाये तो बीरन ने टोक दिया –‘‘पहले हाथ धो कर आओ फिर खाना शुरु करना।’’ जवाब बच्चों की हंसी ने दिया। वे दौड़ कर हैण्ड पंप पर जा पहुंचे। काफी देर तक हैण्ड पंप चलने की आवाज आती रही। वे पानी से खेल कर रहे थे। बीच बीच में आवाजें सुनाई दे रही थीं—‘गरम गरम।’ शायद बच्चों को हैण्ड पंप से निकलते गुनगुने पानी में मज़ा आ रहा था।

         एकाएक बीरन को शरारत सूझी, वह चिल्लाया—‘’ब्रेड ख़त्म।’’ इतना सुनते ही बच्चों की टोली दौडती हुई वापस आ गई। उनके हाथों से पानी टपक रहा था।आते वे ब्रेड पर टूट पड़े, फिर जैसे कोई भूली बात याद आ जाये, उन्होंने इन तीनों की ओर भी ब्रेड के पीस बढ़ा दिए—‘’तुम भी तो खाओ।’’ बीरन,फत्ते और रामवीर ने ब्रेड के स्लाइस ले लिए फिर अपनी रोटियाँ ब्रेड के साथ रख दीं। कुछ देर में वहां केवल ब्रेड के रैपर रह गए,बच्चा टोली ने हरी मिर्चें तक चट कर डाली थीं।

         दावत ख़त्म हो चुकी थी,सूरज पश्चिम में उतर रहा था,हवा ठंडी हो गई थी। अपने घरों की ओर लौटते परिन्दों का शोर गूँज रहा था। ‘‘क्या कल भी हमें खाने को मिलेगा?’’—बच्चा टोली पूछ रही थी। रामवीर ने पूछा –‘’लेकिन तुम सब मिलोगे कहाँ?’’

       ‘’ दिन में सड़क पर और रात में पुल के नीचे जोगी बाबा के साथ।’’—एक आवाज़ आई।

       ‘’यह जोगी बाबा कौन हैं?’—फत्ते ने पूछा।

      ‘’दिन में पता नहीं पर रात में पुल के नीचे ही मिलते हैं। कभी कभी वे हमें गीत और कहानियां भी सुनाते हैं।’’—बच्चे कह रहे थे।

       ‘’क्या तुम्हारे जोगी बाबा हमें भी सुनायेंगे गीत और कहानी?’’—बीरन ने हंस कर पूछा ।

     ‘’पहले यह बताओ ,क्या कल दिन में भी मिलेगा आज जैसा खाना?’’—बच्चा टोली पूछ रही थी।

                                                        

       बीरन,फत्ते और रामवीर की आँखें मिलीं ,सोचने में कुछ पल लगे—

            ‘’ हाँ,कल भी दावत होगी। ‘’—तीनों ने एक साथ कहा।

        बच्चे उछलते हुए चले गए। ये तीनों खड़े थे कल की दावत के बारे में सोचते हुए।

                                                                     ( समाप्त)  

 

Wednesday 25 November 2020

बुरी लाइन-कहानी-देवेंद्र कुमार

 

                         बुरी लाइन-कहानी-देवेंद्र कुमार

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   शाम ढल चुकी थी। बाजार बंद होने लगा था। कई दुकानों में इक्के दुक्के ग्राहक नज़र आ रहे थे। लेकिन एक दुकान के बाहर खरीदारों की भीड़ थी। लम्बी लाइन लगी थी, लोग आगे बढ़ने के लिए धक्का मुक्की कर रहे थे। 'पापा,यहाँ इतनी भीड क्यों! देखिये न कितनी लम्बी लाइन लगी है।क्या सामान बिकता है यहां?'रजत ने पिता भुवन से पूछा।

   रजत अपने पिता के साथ मौसी के घर से लौट रहा था। दोनों रिक्शा में थे। रजत ने एक दुकान के बाहर भीड़ और लम्बी लाइन देख कर आश्चर्य से पूछा था।

  भुवन ने कहा -'यह एक बुरी लाइन है। अच्छे लोग इस लाइन में कभी खड़े नहीं होते। यहाँ शराब बिकती है। यहाँ न जाने कितने अविनाश और रंजीत जैसे लोग खड़े रहते हैं और उन पैसों से शराब खरीदते हैं जिन्हें घर परिवार और बच्चों पर खर्च होना चाहिए। इसी बुरी आदत के कारण ऐसे लोगों के घर वाले दुखी रहते हैं| '

      ‘'पापा ,कौन हैं ये अविनाश और रंजीत?'

     भुवन ने बेटे की बात का जवाब नहीं दिया। रिक्शा बाजार से गुजर कर घर के सामने रुक गई। अंदर जाकर भुवन  रजत के बाबा विशाल से बातें करने लगे।पर रजत उसी बुरी लाइन के बारे में सोचता रहा-'कैसे होते हैं शराब पीने वाले लोग ?' पिता के कहे नाम कानों में गूंजते रहे। कुछ देर बाद मौका पाकर उसने पिता से पूछा-'क्या आप अविनाश और रंजीत को जानते हैं?'

   भुवन उस समय कुछ लिख रहे थे। बोले-'मैं किसी को नहीं जानता।'और फिर लिखने में व्यस्त हो गए। भुवन ने जवाब दे दिया था पर रजत की तसल्ली नहीं  हुई।वह सोच रहा था-जब पापा अविनाश और रंजीत को नहीं जानते तो फिर उन्हें कैसे पता कि वे दोनों उस बुरी लाइन में खड़े थे!

   छुट्टियों के दिन थे,इसलिए रजत अपने बाबा विशाल के साथ सुबह बाग़ में घूमने चला जाता था। उस दिन वह बाग़ में दूसरे बच्चों के साथ खेल रहा था तो उसने सुना-कोई अविनाश का नाम पुकार रहा था। रजत ने उस व्यक्ति की ओर  देखा जिसे अविनाश कह कर पुकारा गया था।

     एक युवक कुछ बच्चों के बीच बैठा था। बच्चे खिलखिला रहे थे।' तो यह है अविनाश जिसके बारे में पापा ने बताया था'।और  रजत  उसके पास जाकर खड़ा हो गया।

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   'तुम्हारा  नाम अविनाश है?'

   'हाँ मैं ही अविनाश हूँ।'

   'तो तुम उस बुरी लाइन में खड़े होते हो।'

    'बुरी लाइन! यह  क्या कह रहे हो तुम।'यह कहते हुए अविनाश उठ कर रजत की ओर बढ़ा तो रजत भाग कर बाबा के पास चला आया ,वह कुछ डर गया था।

    अविनाश ने विशाल को नमस्कार किया। और पूछने लगा-'न जाने यह बच्चा किस बुरी लाइन की बात कर रहा है।'

   क्या बात है रजत ,बुरी लाइन का क्या मतलब है?'विशाल ने पूछा।

    'पापा कह रहे थे।और …' रजत इतना ही कह पाया।

    विशाल ने अविनाश से कहा-'माफ़ करना बेटा ,शायद इसे खुद ही पता नहीं कि यह क्या कह रहा है।

     अविनाश फिर से हँसते खिलखिलाते बच्चों के बीच चला गया। 'बाग़ से घर लौटते समय रजत ने बता दिया जो कुछ भुवन ने बुरी लाइन के बारे में कहा था।

     बाग़ से घर लौटने के बाद विशाल ने भुवन को बाग़ में हुई घटना के बारे में बताया और पूछने लगे-'यह बुरी लाइन का क्या चक्कर है और तुम अविनाश और रंजीत को कैसे जानते हो?'

  भुवन ने कहा-'पिता जी, एक दिन मैं बाजार से गुजर रहा था। वहां मैंने देखा कि पुलिस वाले दो युवकों को पकड़ कर ले जा रहे थे। वहां जमा लोग कह रहे थे कि ये दोनों अविनाश और रंजीत चोर हैं,ये लोगों को परेशान करते हैं। इन दोनों को कड़ी सजा मिलनी चाहिए।'

   'तो तुम अविनाश और रंजीत को नहीं जानते।'

   'जी नहीं। मैंने तो पहली बार उन दोनों को पुलिस के साथ देखा था। '-भुवन ने कहा।

   विशाल ने कहा-' क्या तुम जानते हो कि शराब की दुकान के बाहर लगी  लाइन की चर्चा करते हुए तुमने अविनाश और रंजीत के नाम लिए थे रजत के सामने। इस कारण रजत के कोमल मन ने अविनाश के नाम को ही बुरा मान लिया है। आज बाग़ में जो कुछ हुआ वह ठीक नहीं था। तुम्हें भविष्य में इस बात का ध्यान रखना होगा।

  भुवन को महसूस हुआ कि उनसे बड़ी भूल हो गई,उसे तुरंत सुधारना चाहिए।

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अगली सुबह भुवन पिता और रजत के साथ बाग़ में गए,पिछली सुबह की तरह अविनाश आज भी बच्चों के बीच बैठा था। वह बच्चा टोली को एक कहानी सुना रहा था। अविनाश पेशे से अध्यापक था और बच्चों के लिए कहानियां लिखता था। भुवन ने कुछ सोचा और बच्चा टोली के पास जाकर बैठ गए। कहानी पूरी हुई तो भुवन ने संकेत से बुलाया। अविनाश उठकर भुवन के पास आ  गया।

 भुवन ने कहा-'कल मेरे बेटे ने आपसे बहुत गलत व्यवहार किया , मैं उसके लिए क्षमा मांगता हूँ और फिर शराब की दूकान के बाहर लगी लाइन के बारे में बताया तो अविनाश हंस पड़ा। -'अब मैं पूरी बात समझ गया हूँ। 'बच्चों का कोमल मन हर अच्छी बुरी बात को झट ग्रहण कर लेता है । रजत ने यही समझ लिया है कि हर अविनाश और रंजीत बुरे होते हैं ,अन्यथा वह मुझसे इस तरह कभी बात न करता। खैर जो कुछ हुआ उसे भूल जाना चहिये।'

 अब भुवन को मौका मिला-'बोले-'अगर आप सचमुच उसकी बात को भूल चुके हैं तो कल दोपहर की चाय हमारे साथ पीजीए। और आपको सपरिवार आना है।'

   अविनाश ने तुरंत हामी भर दी। अगले दिन वह पत्नी  लता और बेटे तरल के साथ आ गया।उसने बच्चों की कहानियों की नई किताब रजत को दी। रजत और तरल में झट दोस्ती हो गई। विदा लेते समय अविनाश ने रजत से कहा-'अब तुम्हारी बारी है।मेरे पास बच्चों की किताबों की बड़ी लाइब्रेरी है,’

   रजत ने कहा-'अंकल ,हम सब जरूर आएंगे। इतनी ही देर में मैं और तरल दोस्त बन गए हैं। '

   एक बुरी घटना ने नई दोस्ती को जन्म दे दिया था। (समाप्त )