जोकर काम पर-कहानी-देवेंद्र कुमार
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सड़क पर काम चल रहा है। सड़क
का एक हिस्सा नीचे धंस गया है। शायद नीचे पानी की पाइप लाइन फट गई है। गड्ढा खोदकर
उसे घेर दिया गया है। लोहे के बोर्ड लगा दिए हैं, जिन पर लिखा है-‘ सावधान, आदमी काम पर हैं।’ इसलिए वहां सड़क
संकरी हो गई है। ट्रैफिक को नियंत्रित करने के लिए वहां सिपाही रामभज की ड्यूटी
लगा दी गई है।
दोपहर में एक घंटा काम बंद
रहता है। तब रामभज भी वहां से चला जाता है। एक दोपहर वह लौटा तो देखा एक मजदूर
बोर्ड पर कुछ लिख रहा है-‘ आदमी’ शब्द पर
कागज चिपका कर उस पर ‘जोकर’ लिख दिया गया था। जोकर काम पर’ – यह क्या है?’ उसने पूछा।।
जवाब में एक मजदूर ने कहा-‘ मैने सही ही तो लिखा है, हमारे बीच एक जोकर मौजूद है।’
जिसे जोकर कहा गया था वह उठ कर रामभज के पास आ खड़ा हुआ। उसने कहा-‘ जी, पेशे से
मैं जोकर हूँ। लेकिन सर्कस बंद हो गया और मैं बेरोजगार।‘ उस का नाम डेविड था।
रामभज। बोला-‘ अगर तू जोकर है तो वही करतब दिखा जो
सर्कस में दिखाया करता था। ‘
डेविड ने रामभज का
डंडा थाम लिया और कुछ देर तक खामोश खड़ा रहा। सबकी आँखें उस पर टिकी थीं। एकाएक
डेविड ने डंडा हवा में उछाला और फिर लपक कर पकड़ लिया। डेविड ने डंडे को एक बार फिर
हवा में काफी ऊपर उछाल दिया और खुद भी उछला उसे हवा में पकड़ने के लिए, । फिर न जाने क्या हुआ – डंडा फुटपाथ पर आ गिरा और डेविड गड्ढे में। हवा में एक
चीख गूंजी।
डेविड को बाहर निकाल कर पटरी पर लिटा दिया गया। वह
बेहोश था। अब तुरंत कुछ करना था। रामभज ने
वहां से गुज़रती हुई एक कार को रोका फिर कई मजदूरों ने डेविड को सीट पर लिटा दिया।
रामभज ने ड्राईवर से हॉस्पिटल चलने को कहा। डॉक्टर ने डेविड को देखा और उसे एडमिट
कर लिया । डॉक्टर ने कहा कि डेविड को ठीक होने में कई दिन लगने वाले थे। डॉक्टर ने
दवा का परचा रामभज को थमा
दिया। केमिस्ट की दुकान अंदर ही थी। दवाओं का बिल काफी ज्यादा था। रामभज की जेब
में उतने पैसे नहीं थे। उसने केमिस्ट से कहा_ ‘मैं बाकी पैसे अभी लाकर देता हूँ।’
केमिस्ट मान गया। डेविड की मां गाँव में रहती थी। अब जो करना था उसे ही करना था।
अगली सुबह ड्यूटी से पहले
हॉस्पिटल जाकर डेविड का हालचाल लिया। डॉक्टर से बात की । डॉक्टर ने कहा कि हालत
पहले से ठीक है| रामभज ड्यूटी पर आ गया, तभी दिमाग में एक विचार आया। वह कुछ पल सड़क पर लगे बोर्ड की ओर देखता रहा_’जोकर काम पर ‘। फिर बढ़
कर नया कागज़ चिपका कर उस पर लिख दिया_ जोकर घायल है। उसे मदद चाहिए।
यह लिख कर रामभज ड्यूटी में व्यस्त हो गया। तभी
वहां एक कार आकर रुक गई। कार से उतर कर एक आदमी रामभज के पास आया। उसने कहा_’ यह
जोकर का क्या मामला है?’ रामभज ने संक्षेप में पूरी बात बता दी। “अस्पताल के अंदर
दवा की दूकान मेरी ही है।‘ उसने कहा। ‘आप वहां आकर मिल लें, मैं
मदद करूंगा।” रामभज को इसकी आशा नहीं थी। एक बड़ी चिंता दूर हो गयी थी।तीन चार दिन
में डेविड की तबियत में काफी सुधार हो गया
था। कुछ दिन बाद उसे हॉस्पिटल से छुट्टी मिल गई । ‘’ अब क्या इरादा है?‘रामभज
डेविड से पूछ रहा था।
‘सोचता हूँ गाँव चला जाऊं
माँ के पास। उन्हें चिंता हो रही होगी।’ –डेविड ने कहा।
‘हाँ, यही ठीक रहेगा।’_
रामभज ने कहा। डॉक्टर ने डेविड को कुछ दिन आराम करने की सलाह दी थी। बिना काम शहर
में रूकने का कोई फायदा नहीं था। रामभज उसी दिन डेविड को उसके गाँव छोड़ आया। गाँव
पास ही था। डेविड को सही- सलामत देख कर उसकी माँ बहुत खुश हुई।एक साधारण झोंपड़ी थी
पर साफ़ सुथरी। आगे फूल लगे थे और पीछे फलों के पेड़ और साग भाजी की क्यारियाँ।
रामभज समझ गया कि डेविड को
जल्दी ही कोई काम-धंधा करना होगा। चलते समय उसने डेविड से कहा-‘ कुछ दिन आराम कर
लो फिर शहर आ जाना। कुछ तो हो ही जाएगा। ‘ घर लौट कर वह पत्नी को डेविड के बारे में बताने लगा , तभी
उसका बेटा रजत वहां आ गया। डेविड के बारे में सुन कर बोला-‘ पापा, हमारे स्कूल की
बस रोज वहाँ से गुज़रती है जहां बोर्ड पर जोकर के बारे में लिखा हुआ है। हमारी
क्लास ने जोकर भाई के लिए कुछ पैसे जमा किये हैं। हम वह पैसे उन्हे देना चाहते हैं।’
‘ लेकिन उसे तो मैं अभी-अभी उसके
गाँव छोड़ कर आ रहा हूँ।’ पिता की यह बात सुनकर रजत कुछ देर चुप रहा फिर बोला-‘ तब
उन पैसों का क्या करें?’
रामभज समझ नहीं पा रहा था कि
रजत से क्या कहे। अगले दिन स्कूल से लौटने के बाद रजत ने रामभज को बताया कि
प्रिंसिपल सर ने कल उसे मिलने के लिए बुलाया है। अगले दिन रामभज जाकर रजत के
प्रिंसिपल से मिला। उन्होंने कहा-‘ बच्चे गाँव जाकर डेविड से मिलना और उसे जमा की
गई रकम देना चाहते हैं।’
2
वह बच्चों की टोली को डेविड
के पास ले जाने को तैयार हो गया। प्रिंसिपल ने स्कूल की ओर से बस का प्रबंध कर दिया था। बच्चों की टोली को
देख कर डेविड और उसकी माँ तो ख़ुशी से जैसे पागल हो गए। बच्चों को डेविड से मिल कर
बहुत अच्छा लगा। वे डेविड को पैसे देने को उतावले थे पर रामभज ने उन्हें मना कर
दिया। विदा लेते समय उसने डेविड से कहा –‘ अब तुम ठीक हो गए हो। शहर आकर स्कूल के और बच्चों से भी मिल लो। ‘
कुछ दिन बाद डेविड गाँव से आ
गया। रामभज उसे रजत के स्कूल ले गया। प्रिंसिपल ने ‘डेविड से कहा-‘ हमारे
स्टूडेंट्स तुम्हारे सर्कस वाले करतब देखना चाहते हैं।’
डेविड ने कहा;’ काफी दिन हो
गए सर्कस बंद हुए।’
‘ तो क्या हुआ। बच्चों के लिए क्या इतना भी नहीं करोगे।’ कह कर प्रिंसिपल हंसने लगे। आखिर डेविड राजी हो
गया। सर्दी का मौसम था। स्कूल के ग्राउंड पर गुनगुनी धूप बिखरी थी। पूरा स्कूल
वहां जमा था। डेविड के लिए जोकर की पोशाक का बंदोबस्त कर लिया था। जोकर की पोशाक
में डेविड सामने आया तो सब बच्चे तालियाँ बजाने लगे। डेविड को सर्कस के दिन याद आ
गए । वह अपने करतब दिखाने लगा। पूरा ग्राउंड रह रह कर तालियों से गूंजने लगा। बाद
में प्रिंसिपल ने उसे एक लिफाफा दिया। कहा_’यह बच्चों की ओर से तुम्हारे लिए है। ‘
डेविड ने तुरंत लिफाफा लौटा
दिया। बोला-‘’ मैं ये पैसे कभी नहीं ले सकता।’ अब रामभज को अपनी बात कहने का अवसर
मिला। उसने कहा;’ ये पैसे तुम्हारे लिए नहीं हैं। ये हैं तुम्हारी माँ और तुम्हारे
मजदूर दोस्तों के लिए ।’
प्रिंसिपल ने कहा-‘ डेविड,
तुम्हे गुजारे के लिए कुछ तो करना ही होगा, तब फिर यही क्यों नहीं। मैं कोशिश करूंगा
कि दूसरे स्कूलों में भी तुम खेल दिखाओ। अपने दोस्तों की उसी तरह मदद करो जैसे
उन्होंने तुम्हारी की है|’
सड़क की मरम्मत हो चुकी थी।
रामभज की ड्यूटी कहीं और लग गई थी, जोकर वाला बोर्ड अब फुटपाथ पर रखा था, उस पर
जोकर की ड्राइंग बनी थी। नीचे लिखा था =धन्यवाद(समाप्त )