Thursday 16 February 2023

जोकर काम पर-कहानी-देवेंद्र कुमार

 

जोकर काम पर-कहानी-देवेंद्र कुमार

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सड़क पर काम चल रहा है। सड़क का एक हिस्सा नीचे धंस गया है। शायद नीचे पानी की पाइप लाइन फट गई है। गड्ढा खोदकर उसे घेर दिया गया है। लोहे के बोर्ड लगा दिए हैं, जिन पर लिखा  है-‘ सावधान, आदमी काम पर हैं।’ इसलिए वहां सड़क संकरी हो गई है। ट्रैफिक को नियंत्रित करने के लिए वहां सिपाही रामभज की ड्यूटी लगा दी गई है। 

दोपहर में एक घंटा काम बंद रहता है। तब रामभज भी वहां से चला जाता है। एक दोपहर वह लौटा तो देखा एक मजदूर बोर्ड पर कुछ लिख  रहा है-‘ आदमी’ शब्द पर कागज चिपका कर उस पर ‘जोकर’ लिख दिया गया था। जोकर काम पर’ – यह क्या है?’ उसने पूछा।। जवाब में एक मजदूर ने कहा-‘ मैने सही ही तो लिखा है, हमारे बीच एक जोकर मौजूद है।’ जिसे जोकर कहा गया था वह उठ कर रामभज के पास आ खड़ा हुआ। उसने कहा-‘ जी, पेशे से मैं जोकर हूँ। लेकिन सर्कस बंद हो गया और मैं बेरोजगार। उस का नाम डेविड था।

रामभज। बोला-‘ अगर तू जोकर है तो वही करतब दिखा जो सर्कस में दिखाया करता था। ‘

डेविड ने रामभज का डंडा थाम लिया और कुछ देर तक खामोश खड़ा रहा। सबकी आँखें उस पर टिकी थीं। एकाएक डेविड ने डंडा हवा में उछाला और फिर लपक कर पकड़ लिया। डेविड ने डंडे को एक बार फिर हवा में काफी ऊपर उछाल दिया और खुद भी उछला उसे हवा में पकड़ने के लिए,   फिर न जाने क्या हुआ – डंडा फुटपाथ पर आ गिरा और डेविड गड्ढे में। हवा में एक चीख गूंजी।

डेविड को बाहर निकाल कर पटरी पर लिटा दिया गया। वह बेहोश था।  अब तुरंत कुछ करना था। रामभज ने वहां से गुज़रती हुई एक कार को रोका फिर कई मजदूरों ने डेविड को सीट पर लिटा दिया। रामभज ने ड्राईवर से हॉस्पिटल चलने को कहा। डॉक्टर ने डेविड को देखा और उसे एडमिट कर लिया । डॉक्टर ने कहा कि डेविड को ठीक होने में कई दिन लगने वाले थे। डॉक्टर ने

दवा का परचा रामभज को थमा दिया। केमिस्ट की दुकान अंदर ही थी। दवाओं का बिल काफी ज्यादा था। रामभज की जेब में उतने पैसे नहीं थे। उसने केमिस्ट से कहा_ ‘मैं बाकी पैसे अभी लाकर देता हूँ।’ केमिस्ट मान गया। डेविड की मां गाँव में रहती थी। अब जो करना था उसे ही करना था।   

अगली सुबह ड्यूटी से पहले हॉस्पिटल जाकर डेविड का हालचाल लिया। डॉक्टर से बात की । डॉक्टर ने कहा कि हालत पहले से ठीक है| रामभज  ड्यूटी पर आ गया, तभी दिमाग में एक विचार आया। वह कुछ पल  सड़क पर लगे  बोर्ड की ओर देखता रहा_’जोकर काम पर ‘। फिर बढ़ कर नया कागज़ चिपका कर उस पर लिख दिया_ जोकर घायल है। उसे मदद चाहिए।

 यह लिख कर रामभज ड्यूटी में व्यस्त हो गया। तभी वहां एक कार आकर रुक गई। कार से उतर कर एक आदमी रामभज के पास आया। उसने कहा_’ यह जोकर का क्या मामला है?’ रामभज ने संक्षेप में पूरी बात बता दी। “अस्पताल के अंदर दवा की दूकान  मेरी ही है। उसने कहा। आप वहां आकर मिल लें, मैं मदद करूंगा।” रामभज को इसकी आशा नहीं थी। एक बड़ी चिंता दूर हो गयी थी।तीन चार दिन में  डेविड की तबियत में काफी सुधार हो गया था। कुछ दिन बाद उसे हॉस्पिटल से छुट्टी मिल गई । ‘’ अब क्या इरादा है?‘रामभज डेविड से पूछ रहा था।

‘सोचता हूँ गाँव चला जाऊं माँ के पास। उन्हें चिंता हो रही होगी।’ –डेविड ने कहा।

‘हाँ, यही ठीक रहेगा।’_ रामभज ने कहा। डॉक्टर ने डेविड को कुछ दिन आराम करने की सलाह दी थी। बिना काम शहर में रूकने का कोई फायदा नहीं था। रामभज उसी दिन डेविड को उसके गाँव छोड़ आया। गाँव पास ही था। डेविड को सही- सलामत देख कर उसकी माँ बहुत खुश हुई।एक साधारण झोंपड़ी थी पर साफ़ सुथरी। आगे फूल लगे थे और पीछे फलों के पेड़ और साग भाजी की  क्यारियाँ।

रामभज समझ गया कि डेविड को जल्दी ही कोई काम-धंधा करना होगा। चलते समय उसने डेविड से कहा-‘ कुछ दिन आराम कर लो फिर शहर आ जाना। कुछ तो हो ही जाएगा। ‘ घर लौट कर  वह पत्नी को डेविड के बारे में बताने लगा , तभी उसका बेटा रजत वहां आ गया। डेविड के बारे में सुन कर बोला-‘ पापा, हमारे स्कूल की बस रोज वहाँ से गुज़रती है जहां बोर्ड पर जोकर के बारे में लिखा हुआ है। हमारी क्लास ने जोकर भाई के लिए कुछ पैसे जमा किये हैं। हम वह पैसे उन्हे देना चाहते हैं।’

‘ लेकिन उसे तो मैं अभी-अभी उसके गाँव छोड़ कर आ रहा हूँ।’ पिता की यह बात सुनकर रजत कुछ देर चुप रहा फिर बोला-‘ तब उन पैसों का क्या करें?’

रामभज समझ नहीं पा रहा था कि रजत से क्या कहे। अगले दिन स्कूल से लौटने के बाद रजत ने रामभज को बताया कि प्रिंसिपल सर ने कल उसे मिलने के लिए बुलाया है। अगले दिन रामभज जाकर रजत के प्रिंसिपल से मिला। उन्होंने कहा-‘ बच्चे गाँव जाकर डेविड से मिलना और उसे जमा की गई रकम देना चाहते हैं।’

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वह बच्चों की टोली को डेविड के पास ले जाने को तैयार हो गया। प्रिंसिपल ने स्कूल की ओर  से बस का प्रबंध कर दिया था। बच्चों की टोली को देख कर डेविड और उसकी माँ तो ख़ुशी से जैसे पागल हो गए। बच्चों को डेविड से मिल कर बहुत अच्छा लगा। वे डेविड को पैसे देने को उतावले थे पर रामभज ने उन्हें मना कर दिया। विदा लेते समय उसने डेविड से कहा –‘ अब तुम ठीक हो गए हो। शहर आकर स्कूल के और  बच्चों से भी  मिल लो। ‘

कुछ दिन बाद डेविड गाँव से आ गया। रामभज उसे रजत के स्कूल ले गया। प्रिंसिपल ने ‘डेविड से कहा-‘ हमारे स्टूडेंट्स तुम्हारे सर्कस वाले करतब देखना चाहते हैं।’

डेविड ने कहा;’ काफी दिन हो गए सर्कस बंद हुए।’

 ‘ तो क्या हुआ।  बच्चों के लिए क्या इतना भी नहीं करोगे।’  कह कर प्रिंसिपल हंसने लगे। आखिर डेविड राजी हो गया। सर्दी का मौसम था। स्कूल के ग्राउंड पर गुनगुनी धूप बिखरी थी। पूरा स्कूल वहां जमा था। डेविड के लिए जोकर की पोशाक का बंदोबस्त कर लिया था। जोकर की पोशाक में डेविड सामने आया तो सब बच्चे तालियाँ बजाने लगे। डेविड को सर्कस के दिन याद आ गए । वह अपने करतब दिखाने लगा। पूरा ग्राउंड रह रह कर तालियों से गूंजने लगा। बाद में प्रिंसिपल ने उसे एक लिफाफा दिया। कहा_’यह बच्चों की ओर से तुम्हारे लिए है। ‘

डेविड ने तुरंत लिफाफा लौटा दिया। बोला-‘’ मैं ये पैसे कभी नहीं ले सकता।’ अब रामभज को अपनी बात कहने का अवसर मिला। उसने कहा;’ ये पैसे तुम्हारे लिए नहीं हैं। ये हैं तुम्हारी माँ और तुम्हारे मजदूर दोस्तों के लिए ।’

प्रिंसिपल ने कहा-‘ डेविड, तुम्हे गुजारे के लिए कुछ तो करना ही होगा, तब फिर यही क्यों नहीं। मैं कोशिश करूंगा कि दूसरे स्कूलों में भी तुम खेल दिखाओ। अपने दोस्तों की उसी तरह मदद करो जैसे उन्होंने तुम्हारी की है|’

सड़क की मरम्मत हो चुकी थी। रामभज की ड्यूटी कहीं और लग गई थी, जोकर वाला बोर्ड अब फुटपाथ पर रखा था, उस पर जोकर की ड्राइंग बनी थी। नीचे लिखा था =धन्यवाद(समाप्त )

 

 

 

 

           

Sunday 12 February 2023

बहुत प्यास लगी है-कहानी-देवेंद्र कुमार

 

                                  बहुत प्यास लगी है-कहानी-देवेंद्र कुमार

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  एक था चोर।  उसका नाम नहीं मालूम। वैसे नाम कुछ भी हो ,वह कहीं का रहने वाला हो ; क्या इतना काफी नहीं कि  वह एक चोर था। हाँ तो रात में जब सब नींद की  गोद में आराम कर रहे थे,  तब वह जाग रहा था। उसका इरादा चोरी करने का था। और  फिर  वह चुपचाप चल दिया।सब तरफ सन्नाटा था। कहीं कोई नहीं था।                                 

  तभी न जाने क्या हुआ,उसका गला  सूखने लगा,बहुत जोर की प्यास लगने लगी। उसने पानी की खोज में इधर उधर देखा पर सूनी सड़क पर भला पानी कहाँ मिलता! वह,मेरा मतलब चोर, जरा रुकिए,मैं उसे लगातार चोर कह रहा हूँ, क्या यह ठीक है ?अभी तक, मेरा मतलब आज की रात , उसने किसी के घर में चोरी नहीं की है चलिये पहले उसका कोई नाम रख दिया जाए। मैं और आप उसे नहीं जानते,क्या हम उसे अनजान के नाम से पुकार सकते हैं ?हाँ यही ठीक रहेगा।

  अनजान नामक एक व्यक्ति रात के समय सूनी सड़क पर पानी खोज रहा था। प्यास से उसका गला सूख रहा था।  इधर उधर देखा तो थोड़ी दूर एक कुआं नज़र आया। अनजान तेज क़दमों से कुएं के पास जा पहुंचा। अब वह  पानी के एकदम पास खड़ा था। लेकिन पानी कैसे मिले,उसके पास लोटा -डोर जैसा तो कुछ था नहीं,तो पानी कैसे पिए! पानी के इतने  निकट पहुँच कर उसकी प्यास और तेज हो गई थी। अब कैसे क्या करे, वह यही सोच कर बैचैन हो गया। तभी पास के मकान का दरवाज़ा खुला और एक आदमी बाहर निकला। उसके हाथ में पानी से भरा लोटा और  गिलास था।

   उसने गिलास अनजान को थमाते हुए कहा-'लो पानी पी लो। 'अनजान गट गट पानी पी गया,उस आदमी ने गिलास को फिर भर दिया। अब अनजान को चैन मिला। उसने पूछा -'भाई,आप कौन हैं? आप को कैसे पता चला कि मैं प्यासा हूँ।'

  उस व्यक्ति ने कहा-'मेरा नाम अमित है। मैं कमरे में बैठा कुछ लिख रहा था,तभी मेरी नज़र खिड़की से बाहर चली गई। मैंने तुम्हें कुएं के पास खड़े देखा और तुरंत समझ गया कि तुम प्यासे हो,अन्यथा इस समय कुएं के पास न खड़े होते।'

  अनजान ने अमित को अपनी प्यास बुझाने के लिए धन्यवाद दिया। वह सोच रहा था -अगर पीने को पानी न मिलता तो न जाने क्या हो जाता।

  तभी अमित ने पूछा -' अरे, मैंने तुम्हारा नाम तो पूछा ही नहीं,और यह तो कहो आधी रात के समय कहाँ जा रहे हो ? इस समय तो कोई सवारी मिलने से रही।'

  अनजान चुप रहा ,कहता भी क्या!

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  अमित बोला-'आओ,अंदर आओ,कुछ देर बाद चले जाना,'  अनजान कुछ पल सोचता खड़ा रहा। अचानक लगी प्यास से उसकी योजना गड़बड़ा गई थी, जो  कुछ करने निकला था वह अब नहीं हो सकता था। फिर वह चुपचाप अमित के पीछे पीछे उसके घर में चला गया।

  अनजान ने देखा सब तरफ शेल्फों में बहुत सारी किताबें लगी थीं, मेज पर कागज़ फैले थे। एक तरफ पलंग बिछा था। उसने पूछा -'क्या आप यहाँ अकेले रहते हैं?'

  'नहीं परिवार के साथ रहता हूँ। यह कमरा घर के बाहरी हिस्से में है। मैं यहाँ लिखता पढता हूँ। कई बार देर रात तक काम करता हूँ। घर में किसी को परेशानी न हो,इसीलिए यह कमरा चुना है मैंने। 'अमित ने कहा और अनजान को पलंग पर बैठने का संकेत किया।

    इतनी किताबें देख कर उसे अचरज हो रहा था। 'ये किताबेंक्या आपने सबको पढ़ लिया है? ' अनजान के प्रश्न पर अमित मुस्करा दिया। बोला-'सब तो नहीं पर ज्यादातर को पढ चुका  हूँ|

 मैं पेशे से पत्रकार हूँ और बच्चों के लिए कविता-कहानी भी लिखता हूँ।'-और उसने एक किताब अनजान को थमा दी। अनजान किताब के पन्ने  उलटने लगा। पुस्तक में बच्चों के गीत थे। हर पृष्ठ पर सुन्दर  चित्र बने थे। मुख  पृष्ठ पर अमित का नाम छपा हुआ था।एकाएक अनजान गीत गुनगुनाने लगा। बोला -'पढ़ कर अपना बचपन याद आ गया।                                                                  

    'सबका बचपन खट्टा -मीठा होता है। मैं अपने बचपन से जुड़ा रहूँ इसलिए भी बच्चों के लिए लिखता हूँ। अमित ने कहा फिर पूछने  लगा-'तुम भी बताओ न अपने बचपन के बारे में।'

  अनजान का मन जैसे उड़ कर अपने बचपन में जा पहुंचा ,'बोला -'मेरा बचपन गाँव में बीता,भरा पूरा परिवार था। पर वह सब तो पीछे छूट गया। अब तो मैं शहर में अकेला ही रहता हूँ। 'कहते हुए उसका स्वर उदास हो गया। मन  बचपन और वर्तमान की तुलना कर रहा था।

  अमित ने कहा-तो ताज़ा कीजिये अपने बचपन के दिन।'

  अनजान की आँखों के सामने अपने बचपन की किताब के पन्ने खुल गए। बोला  -हमारा गाँव नदी किनारे और खूब हरा भरा था।थोड़ी दूर पर एक टीला था, जिसे गाँव वाले मल्लू का पहाड़ कहते थे,वैसे टीला बहुत ऊँचा नहीं था।

   'तो फिर उसका नाम मल्लू का पहाड़ क्यों था?'-अमित ने पूछ लिया।

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  अनजान ने कहा-'हमारे गाँव में एक था मल्लू पहलवान। वह हर रोज टीले पर दौड़ कर चढ़ जाता और वहां कसरत करता था।जब वह दूर से भागता हुआ आता और बिना रुके टीले पर चढ़ जाता तो सब तालिया बजाते। हम बच्चों को उस तमाशे में खूब मज़ा आता था।' कह कर वह खिलखिला उठा। बोला -'और जिस दिन कथक्कड़ बाबा आते तो उस दिन सारा गाँव उन्हें घेर कर बैठ जाता।'

   कौन थे कथक्कड़ बाबा?'

     'पता नहीं उनका असली नाम क्या था। वह जब आते, किस्से सुनाते। लोग उन्हें घुमक्कड़ बाबा भी कहते थे क्योंकि वह हर समय यात्रा पर ही रहते थे।

     घुमक्कड़ कथक्कड़ ,वाह!'

      'जब आते तो अपनी यात्राओं के किस्से सुनाते| उनकी यात्रा कथाएं बहुत मजेदार होती थीं।' –अनजान ने कहा।

      उनके कुछ किस्से तो जरूर याद होंगे आपको। क्या कभी किसी  ने उन कहानियों को लिख कर रखा।?'

      अनजान ने इंकार में सर हिला दिया|

      'तो अब आप उनके किस्सों को लिखिए। मेरे लेख और कहानियां अनेक अखबारों में प्रकाशित  होते हैं।आपकी रचनाएँ भी छप सकती हैं। '।मुझे लगता है कथक्कड़ के किस्से पाठकों को जरूर पसंद आएंगे।'

      'लेकिन मैंने तो कभी कुछ लिखा नहीं। '-अनजान ने कहा।

     'अरे, बातों में कितना समय निकल गया। मैंने तो आपको चाय के लिए भी नहीं पूछा| मैं अभी चाय बना कर लाता हूँ। 'अमित ने कहा-मैं  कमरे से सीधे रसोई में जा सकता हूँ। तब तक आप किताबें देखिये।-कह कर अमित दूसरे दरवाज़े से घर के अंदर चला  गया|

     अनजान को जैसे होश आया। वह तुरंत वहां से चला जाना चाहता था।अब तक उसने अपने बारे में अमित को कुछ नहीं बताया था।क्या बिना कुछ कहे चले जाना ठीक होगा? उसने मेज से कागज़ उठा कर लिखा –मैं अपना परिचय दिए बिना नहीं जा सकता। उसने अपना सच लिखा और तेजी से बाहर निकल गया।

     अमित चाय लेकर लौटा तो अनजान नहीं था। उसने वह कागज़ उठा लिया, जिस पर अनजान अपना सच लिख कर चला गया था।

  मैं   नहीं जानता कि अनजान कहाँ चला गया है! सच तो यह है कि मैं और आप उसका असली नाम भी नहीं जानत |यह कहना मुश्किल है कि वह कहाँ जाएगा,क्या करेगा। शायद वह अपनी किताब को फिर से लिखे। मैं समझता हूँ आप भी यही सोच रहे हैं। (समाप्त ) ।