Saturday 21 April 2018

साइकिल--देवेन्द्र कुमार-- बाल कहानी


                     साइकिल
  
                           --देवेन्द्र कुमार

चक्की की धड-- धड गूँज रही है. प्रकाश की चक्की में आटा पिस रहा है.आटा पीसने के साथ प्रकाश रसोई का और भी जरूरी सामान बेचता है. धंधा अच्छा चलता है. लेकिन अपनी हंसी को अंदर छिपा कर रखता है. खास तौर पर जब रमेश की ओर देखता है-- माथे पर बल ओर गाल फूले हुए, जैसे अंदर गुस्सा भरा हो. इस समय रमेश चक्की के पास खड़ा है, पूरे बदन पर आटे का पाउडर पुता हुआ है. वह पूरी मेहनत से ड्यूटी करता है लेकिन प्रकाश को लगता है कि वह अपने बाप से आधी मेहनत करता है. रात में दुकान बंद होने के बाद वह दुकान के बाहर वाले फट्टे पर सोता है. नहाने के लिए सामने लगा सरकारी नल काम देता है. कपड़ों की पोटली रात में सिरहाना बन जाती है, रमेश को कोई शिकायत नहीं है.लेकिन प्रकाश... 
रमेश का बाप बालन कई सालों से प्रकाश की चाकरी कर रहा था, ज्यादा पैसे की उम्मीद में उसने अपने बेटे रमेश को भी गाँव से बुला लिया था. प्रकाश ने कहा था –‘’ में इसके लिए आधी पगार दूंगा,क्योकि यह अभी छोटा है.’ कुछ समय बाद बालन को गाँव जाना पड़ा बीमार माँ की देख भाल के लिए तो उसने रमेश को पीछे छोड़ दिया. जाते जाते रमेश से कहता गया—‘’बेटा,मन लगा कर मेहनत से काम करना. मेरी बदनामी मत कराना.’’
रमेश कड़ी मेहनत करता है. आटा पीसने के अलावा वह घरों में पिसा हुआ आटा पहुँचाने भी जाता है. आज प्रकाश को पहली बार खुश देखा है रमेश ने. क्यों न हो. पुराना उधार न चुकाने के बदले एक ग्राहक से उसकी साइकिल झटक ली थी प्रकाश ने, वही साइकिल दुकान के सामने पेड़ से टिकी हुई है. साइकिल पुरानी है ,पर रमेश को लगता है कुछ तो मदद मिलेगी. अब कंधे पर आटे का ड्रम तो नहीं ढोना पड़ेगा.
दोपहर में प्रकाश ने उसे एक पर्ची देकर कहा—‘इस पते पर आटा पहुंचा आओ,और हाँ जल्दी लौटना, मटर गश्ती में मस्त मत हो जाना.’
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रमेश ने आटे का ड्रम उठाया और साइकिल के केरिअर पर टिका दिया. फिर साइकिल का हैंडल थामने को हुआ तो प्रकाश की झिडकी सुनाई दी—‘ यह क्या! यह साइकिल आटा ढोने के लिए नहीं ली है मैंने. अपने पैरों से काम लेने की आदत बिगाड़ने की कोशिश मत करो, ‘’ रमेश का मन धक्क से रह गया, लेकिन फिर अपने को संभाल कर उसने ड्रम को कंधे पर रखा और डगमगाता हुआ चल दिया. प्रकाश ग्राहकों में व्यस्त हो गया. ग्राहकों से निपटने के बाद प्रकाश ने साइकिल की ओर नजर घुमाई तो चौंक पड़ा. यह क्या! साइकिल अपनी जगह पर नहीं थी. वह बडबडाया –‘ मेरे मना करने के बाद भी वह कामचोर ड्रम को साइकिल पर रख कर ले ही गया. आने दो बदमाश को, ऐसी खबर लूँगा कि ...’’ तभी उसने रमेश को ड्रम कंधे पर रखे आते देखा तो जोर से चिल्लाया—‘ साइकिल कहाँ है?मेरे मना करने पर भी ...’’
 ‘’ सेठ जी, मैं साइकिल नहीं ले गया था, आपने मना जो कर दिया था .’’—रमेश ने कहा. ‘’और आने जाने की मेहनत भी बेकार रही. वहां तो ताला लगा था. ‘’
प्रकाश ने इधर उधर देखा पर साइकिल कहीं न दिखाई दी. वह सोच रहा था—इससे तो यही अच्छा होता कि रमेश ही साइकिल ले जाता. तब चोरी तो न जाती. कुछ देर प्रकाश साइकिल चोरी जाने का दुःख मनाता रहा. फिर कुछ ऐसा हुआ जिसकी कल्पना भी नहीं थी.
एक साइकिल सवार चक्की के सामने आकर रुका. वह पास में रहने वाला चेतराम था. साइकिल से उतर कर उसने हाथ जोड़ कर कहा—‘ प्रकाश भाई ,माफ़ करना ,मैं साइकिल बड़ी मजबूरी में ले गया था. ‘’ फिर उसने बताया कि उसका बच्चा सीढ़ी से गिर कर घायल हो गया, वह रिक्शा की खोज में सड़क पर आया पर कोई रिक्शा नहीं मिली. तब उसे पेड़ से टिकी साइकिल दिखाई दी. उसने कहा—‘ आप ग्राहकों से घिरे हुए थे, और मैं घबराया हुआ था. बच्चे को तुरंत डाक्टर के पास ले जाना जरूरी था इसलिए मैं साइकिल ले गया. आप जितने पैसे कहेंगे मैं तुरंत देने को तैयार हूँ.’’—कहते हुए उसने जेब से कुछ नोट निकाल लिए.
प्रकाश को जैसे कहीं चोट लगी, उसने चेतराम के हाथ थाम लिए. लज्जित स्वर में बोला—-  नहीं भाई इसकी कोई जरूरत नहीं. साइकिल किसी काम तो आई. बताओ बच्चा कैसा है? ‘’
‘’बच्चा अब ठीक है. अगर समय पर साइकिल न मिलती तो न जाने बच्चे का क्या होता.’’—चेतराम ने कहा. प्रकाश ने उसके घर का पता पूछ लिया.वह पास की गली में रहता था.  उसके जाने के बाद प्रकाश ने रमेश से कहा—‘’ अच्छा हुआ साइकिल की वजह से बच्चे की मरहम पट्टी जल्दी हो सकी.’’ रमेश ने कुछ नहीं कहा. वह अचरज से प्रकाश की ओर देखता रह गया. इस प्रकाश को पहले तो कभी नहीं देखा था उसने.
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शाम को दुकान बंद करने के बाद प्रकाश ने कहा—‘ चलो बच्चे का हाल पूछ लें. ‘ चेतराम  का घर ज्यादा दूर नहीं था. प्रकाश को देख कर वह चकित रह गया. बच्चे के माथे पर पट्टी बंधी थी. बच्चा उसे देख कर मुस्कराया तो प्रकाश भी हंस पड़ा. उसने धीरे से बच्चे का हाथ सहला दिया.
बाहर रमेश साइकिल थामे खड़ा था. प्रकाश साइकिल लेकर घर चला गया और रमेश बंद चक्की के बाहर फट्टे पर सोने चला आया. पर देर तक नींद नहीं आई. सुबह प्रकाश चक्की पर आया, साइकिल साथ थी. उसने एक जंजीर देकर रमेश से पेड़ के तने के साथ बाँध कर ताला लगाने को कहा. फिर चाबी रमेश को देते हुए बोला —‘’ इसे संभाल कर रखना. कोई काम के लिए मांगने आये तो कभी मना मत करना, और हाँ जब आटा देने जाओ तो आटे का ड्रम कैरिअर पर रख कर ले जाया करना.’’
रमेश ने साइकिल को पेड़ से बाँधने के बाद, चाबी एक डोरी में पिरो कर गले में पहन ली एक ताबीज की तरह.  ( समाप्त )