Sunday 27 November 2022

ऐसा कैसा खरगोश-कहानी- -- मर्जेरी विलियम्स बियांको= रूपांतर =देवेंद्र कुमार

 

ऐसा कैसा खरगोश-कहानी- --

मर्जेरी विलियम्स बियांको= रूपांतर =देवेंद्र कुमार

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   कैसी विचित्र बात थी-- एक था खरगोश , लेकिन नहीं भी था। आप पूछेंगे – तो फिर वह क्या था? वह था तो खरगोश लेकिन असली नहीं,  वह था एक खिलौना खरगोश। अब यह और बात थी कि वह खुद को असली खरगोश मानता था—हरी घास पर भागते फुर्तीले जीवित खरगोशों की तरह।वह खिलौना खरगोश रहता था जिम के घर में। जिम पांच वर्ष का लड़का था। उसे खिलौने बहुत पसंद थे। वह खिलोनों के पीछे दीवाना था। कोई मेहमान आता तो जिम के लिए खिलौनों का उपहार जरूर लाता। धीरे- धीरे जिम के पास बहुत सारे खिलौने जमा हो गए। पहले खिलौने  अलमारी में रखे जाते थे लेकिन फिर उनके लिए एक अलग कमरे की व्यवस्था करनी पड़ी। क्योंकि खिलौने हर जगह बिखरे नज़र आते थे।

 एक नौकर का यही काम था कि वह खिलौनों को उनकी सही जगह पर रख दे। खिलौने वाले कमरे का नाम रखा गया—जिम का खिलौना घर।जिम का ज्यादा समय अपने खिलौनों के बीच बीतता था। ऐसा कोई खिलौना नहीं था जो जिम के खिलौना घर में न हो।जब भी कोई जिम से पूछता कि उसका सबसे प्रिय खिलौना कौन सा है तो वह झट खरगोश की तरफ इशारा कर देता और उससे खेलने लगता। खरगोश मखमल का बना हुआ था और बहुत सुंदर दीखता था।  वैसे तो जिम के खिलौना घर में बहुत सारे खिलौने थे जो चाबी से चलते थे, उछलते- कूदते थे। तरह तरह के करतब दिखाते थे, पर सबसे प्रिय खिलौने का पद जिम ने मखमली खरगोश को ही दे रखा था। रात में भी जिम खरगोश को संग लेकर सोता था। वह उसे मखमली कहता था।  

      इससे खरगोश अपने को दूसरे खिलौनों से अलग और विशेष समझने लगा। वह अक्सर ही अन्य खिलौनों से दूर रहा करता था। सोचता था कहीं दूसरे खिलौनों के साथ खेलने से उसकी मखमली पोशाक गन्दी न हो जाए। भला खरगोश का यह गर्वीला व्यवहार दूसरे खिलौनों को कैसे अच्छा लग सकता था। वे सब अक्सर ही खरगोश के इस तरह उन सबसे दूर दूर रहने के बारे में चर्चा किया करते थे। कुछ खिलौनों ने खरगोश की शिकायत घोड़े से की, जो उन् में सबसे ज्यादा समझदार था। उसने साथी खिलौनों से कहा—“ मुझे भी उसका यह व्यवहार पसंद नहीं है। मैं उसे समझाने की कोशिश करूंगा।” 

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      एक दिन जब खरगोश अकेला बैठा था तो घोडा उसके पास गया, उसने कहा—‘ तुम्हारा अपने साथी खिलौनों से अलग थलग रहना ठीक नहीं है। आखिर तुम भी अन्य खिलौनों जैसे ही हो।’’  

     खरगोश ने कहा-‘’ तुम ठीक कह रहे हो, लेकिन सबको पता है कि जिम मुझे सबसे ज्यादा प्यार करता है। मैं रात में जिम के साथ सोता हूँ। ‘’

     घोडा बोला – हो सकता है कल जिम को तुमसे अच्छा खिलौना मिल जाए और वह उस खिलौने को ज्यादा प्यार करने लगे ,तब तुम्हारा क्या होगा?’

      ‘’ऐसा कभी नहीं होगा।’’—खरगोश ने कहा। लेकिन घोड़े की बात सुनकर वह मन ही मन कुछ परेशान जरूर हो गया था। घोड़े ने  एक डराने वाली बात और कह दी।’’ कहीं तुम अपने को सचमुच का जीवित खरगोश तो नहीं समझने लगे हो?तुम एक खिलौना खरगोश हो। क्या तुम जानते हो –जब खिलौने पुराने हो जाते हैं तो उन्हें फैंक दिया जाता है और उनकी जगह नए खिलौने आ जाते हैं।’’

       घोड़े के जाने के बाद खिलौना खरगोश सोच में डूब गया। वह सोच रहा था-‘ असली खरगोश कैसे होते हैं ?क्या मैं सचमुच का खरगोश नहीं हूँ।’’ लेकिन असली जीवित खरगोश को देखने का मौका कैसे मिले। फिर उसे जिम की बात याद आ गई  और उसकी चिंता कुछ कम हो गई। एक दिन की बात, जिम खरगोश को लेकर बाग़ में खेलने चला गया। उसने खरगोश को एक झाड़ी के पास रख दिया और अपने दोस्तों के साथ खेलने लगा। तभी जिम की माँ ने पुकारा और जिम घर में चला गया। हड़बड़ी में जिम खरगोश को बाग़ में ही भूल गया। शाम हो गई। ठंडी हवा बहने लगी, बाग़ में सन्नाटा छा गया। ओस गिरने लगी। खरगोश सोचने लगा—‘अब मेरा क्या होगा?क्या जिम को मेरी याद नहीं आएगी?’

      कुछ देर बाद एक नौकर बाग़ में किसी काम से आया तो उसे खिलौना खरगोश दिखाई दे गया। नौकर ने खिलौना जिम को दे दिया और बोला—‘ इसे संभाल कर रखो नहीं तो खो जाएगा। ‘

      जिम ने खरगोश को गोद में लिया और उसे प्यार करने लगा।उसने नौकर से कहा—‘ यह कोई बेजान खिलौना नहीं जीता जागता खरगोश है। यह सदा मेरे साथ रहने वाला है।’’ जिम की यही बात खरगोश का मन ख़ुश कर देती थी। और वह खुद को असली और जीवित समझने लगता था। लेकिन घोड़े ने उसके मन में संदेह पैदा कर दिया था। और खिलौना खरगोश इसीलिए असली खरगोश को देखना और उससे मिलना चाहता था।            

      और फिर एक दिन मखमली खरगोश का सामना जीवित खरगोशों से हो ही गया। जिम मखमली को बाग़ में ले गया। उसने मखमली को झाड़ी के पास रख दिया और अपने दोस्तों के साथ खेल मैं मस्त हो गया। जिम और उसके साथी खेलते हुए बाग़ के दूसरे कोने में चले गए । मखमली चाहता था कि वह भी जिम के साथ रहे। लेकिन खिलौना खरगोश की यह इच्छा पूरी नहीं हो सकती थी। तभी दो खरगोश दौड़ते हुए वहां आ गए। वे दोनों मखमली को और मखमली उन्हें एकटक घूरते रहे। मखमली सोच रहा था—‘ जरूर ये चाबी से चलते होंगे।’ उधर दोनों खरगोश आपस में बातें कर रहे थे। एक ने दूसरे से कहा—‘ यह हमारी तरह नहीं बस एक खिलौना है। देखो तो किस तरह चुप चुप बैठा है। वह हमारी तरह उछल कूद नहीं कर रहा है। ‘

      एक खरगोश ने मखमली से पूछा —‘ तुम इस तरह क्यों बैठे हो?हम तो कभी चुप नहीं बैठते। आओ हमारे साथ खेलो।’’

      मखमली परेशान हो गया। वह समझ न सका कि क्या कहे ,पर कुछ तो कहना ही था। उसने कहा—‘ मैं अभी तक खेल ही रहा था। अब मैं थक गया हूँ। ‘’       

       तभी दूसरे खरगोश ने अपने साथी खरगोश से कहा—‘’ अरे,देखो इस के तो पिछले पैर ही नहीं हैं, यह तो खिलौना खरगोश है। मेरी-- तुम्हारी तरह जीवित खरगोश नहीं।’’

        मखमली जानता था उसके केवल अगले दो पैर ही हैं। उसका पिछला हिस्सा चपटा था। बोला- ‘’तो क्या हुआ ,क्या दो पैरों वाले खरगोश असली नहीं होते! होते हैं ,जरूर होते हैं।’’ मखमली ने कह तो दिया लेकिन वह समझ गया कि शायद वह असली खरगोश नहीं एक खिलौना खरगोश है। इस सच्चाई ने उसे अंदर तक हिला दिया। अब उसे महसूस होने लगा था कि वह असली नहीं खिलौना खरगोश है।

         समय बीत रहा था। जिम अब भी मखमली को हमेशा अपने साथ ही रखता था। रात को भी जिम मखमली को अपने साथ लेकर सोता था। लेकिन समय के साथ मखमली पुराना पड़ने  लगा था। उसकी मखमली कवरिंग के रोयें झड़ने लगे थे। अब वह भद्दा दिखने लगा था।जिम के लिए नए खिलौने आ गये थे। मखमली का यह हाल देख कर दूसरे खिलौने खुश थे। वे आपस में कहते थे –‘ अब आएगा मजा।’’ और सच जिम ने मखमली को अपने साथ सुलाना बंद कर दिया था। मखमली ने घोड़े से पूछा तो उसने कहा—‘ मनुष्यों की तरह खिलौने भी बूढ़े या पुराने हो जाते हैं। उनकी जगह नए खिलौने आ जाते हैं। ‘’

      ‘’ फिर पुराने खिलौनों के साथ क्या होता है?’’—मखमली ने डरे हुए स्वर में पूछा।

       ‘’ पुराने या टूटे खिलौनों को कहीं फेंक दिया जाता है। और उन्हें भुला दिया जाता है। ‘’ —घोड़े ने कहा। सुनकर मखमली गहरी उदासी में डूब गया।

        उन्हीं दिनों जिम बीमार हो गया। घर वाले घबरा गए। इलाज होने लगा, लेकिन जिम का ज्वर उतरने का नाम ही नहीं ले रहा था। एक के बाद दूसरा डाक्टर बदला गया। जिम अब भी मखमली को अपने साथ रखना चाहता था। लेकिन् डाक्टर ने मना कर दिया। उसने कहा—‘खिलौनों को जिम से दूर रखना चाहिये क्योंकि इससे बीमारी बढ़ सकती है।’’  वैसा ही किया गया। इससे मखमली दुखी हो गया। वह सोचता था—‘जब जिम की बीमारी दूर हो जायेगी तो जिम उसे फिर से अपनी गोदी में भर लेगा। ‘ लेकिन अब ऐसा कभी नहीं होने वाला था।

        कुछ दिन बाद जिम का बुखार उतर गया। जिम की माँ उसे खिड़की के सामने कुर्सी पर बैठा देती । जिम खेलने के लिए बाग़ में जाना चाहता था। लेकिन अभी उसका रोग पूरी तरह ठीक  नहीं हुआ था। और फिर डाक्टर ने उसे कुछ समय के लिए सागर तट वाले किसी नगर में ले जाने की सलाह दी। यात्रा की तैयारी होने लगी।पूरे घर में भाग दौड़ मची थी। मखमली खुश था कि उसे भी जिम के साथ समुद्र देखने का अवसर मिलेगा। मखमली ने इससे पहले समुद्र नहीं देखा था। लेकिन जिम के पुराने खिलौने उससे दूर कर दिए गए। क्योकि डाक्टर ने कहा कि पुराने खिलौनों में रोगाणु हो सकते हैं इसलिए जिम के लिए नए खिलौने लाने होंगे।

      डाक्टर की बात सुनकर मखमली घबरा गया। उसने देखा कि एक नौकर खिलौनों को बोरी में डाल रहा था।मखमली ने चाहा कि वह कहीं छिप जाए ताकि बोरी में बंद होने से बच सके। लेकिन वह कोई जीवित खरगोश तो था नहीं कि भाग कर कहीं छिप जाता। वह था एक खिलौना खरगोश। वह भला कहाँ जा सकता था? मखमली ने जिम की ओर देखा। वह आँखें बंद किये बिस्तर पर लेटा  था। जिम मखमली की कोई मदद नहीं कर सकता था। जिम के सारे खिलौने कई बोरियों में बंद कर दिए गए। फिर घर का नौकर उन्हें बाग़ में काम करते हुए माली के पास ले गया। उससे कहा कि वह इन पुराने खिलौनों को जला दे। माली ने कहा कि हाथ का काम पूरा करके वह पुराने खिलौनों को जला देगा।   

         माली की बात मखमली ने सुनी और समझ गया की उसका अंत आ चुका है।अब कुछ  नहीं हो सकता था। उधर जिम के लिए नये, सुंदर खिलौने आ गये थे। वह खिलौनों से घिरा बैठा था। लेकिन उसका चेहरा उदास था, पता नहीं क्यों। नए खिलौनों में एक खरगोश भी था। लेकिन वह मखमली तो नहीं था। क्या जिम को पता था कि उसके प्यारे मखमली के साथ क्या होने जा रहा था।उसे भला कैसे पता हो सकता था।

         अपना काम पूरा करके माली अपनी कुटिया में चला गया। उसे पुराने खिलौनों को जलाने की बात याद ही नहीं रही। धीरे धीरे दिन ढल गया, ठंडी हवा बहने लगी। बाग़ में सन्नाटा छा  गया। तभी बाग़ के कोने मैं एक फूल चमक उठा।उसकी पंखुड़ियां फ़ैल गईं और फिर एक परी वहां  खड़ी  दिखाई दी। परी खिलौनों की बोरियों के पास आ खड़ी हुई। तुरंत खिलौने जैसे किसी जादू से बोरियों से बाहर आ गये। अब सारे खिलौने परी के  सामने एक पंक्ति में खड़े थे। तभी मखमली ने एक मीठी आवाज सुनी—परी ने कहा—‘’ मैं उन खिलौनों का ध्यान रखती हूँ जिन्हें पुराना होने पर फैंक दिया जाता है,उन्हें मैं अपना दोस्त बना लेती हूँ।’’

      ‘’फिर क्या होता है?’’ खिलौनों ने एक साथ पूछा।

   जवाब मैं एक मीठी हंसी सुनाई दी। और मखमली खरगोश को लगा जैसे उसका बदन हिल रहा हो।एकाएक वह उछला और घास पर भागने लगा जीवित खरगोश की तरह।  

     कुछ देर बाद माली को भूला काम याद आया –अरे उसे तो पुराने खिलौनों को जलाना था। वह बाग़ में आया पर खिलौनों की बोरियां गायब थीं। माली ने बहुत खोजा पर पुराने खिलौने कहीं न मिले।क्योकि अब वे खिलौने नहीं रहे थे । अच्छी परी ने अपने जादू से उन्हें जीवन दान दे दिया था।                                                                                                                                                       ( समाप्त )  

 

 

 

लेखक परिचय =

 

मर्जेरी विलियम्स बियांको—जन्म—22 जुलाई 1881 लन्दन में

                       निधन—4 सितम्बर 1944 न्यूयार्क में

बच्चों की प्रसिद्ध लेखिका। पिता बैरिस्टर थे। बचपन में खिलौनों से खेलते समय उनकी कहानियाँ बनाया करती थीं।जब नौ वर्ष की थीं तो परिवार न्यूयार्क आकर बस गया।मर्जेरी को कहानियाँ लिखने का शौक था।लन्दन के एक प्रकाशक के लिए कहानियाँ लिखीं।  1902 में बड़ों का उपन्यास छपा पर बाद में बाल साहित्य लेखन की ओर मुड़ गईं । विवाह के बाद इटली में रहने लगीं। पच्चीस संकलन और बाल साहित्य की अनेक पुस्तकें प्रकाशित। ‘the velveteen  rabbit इनकी सबसे मशहूर कृति है।

Friday 25 November 2022

फूल जैसी लड़की(HEIDI) -लेखिका -योहन्ना स्पायरी-(रूपान्तर =देवेंद्र कुमार)

 

फूल जैसी लड़की(HEIDI) -लेखिका -योहन्ना स्पायरी-(रूपान्तर =देवेंद्र कुमार)  

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एक थी लड़की सुन्दर सलोनी लेकिन अनाथ। उसके पिता एक दुर्घटना में मारे गए इसी दुःख                 में माँ भी चली गई। नन्ही हाइडी को उसकी मौसी ने पाला  था।वह स्विट्ज़रलैंड के एक गांव में रहती थी,  तभी एक समस्या आ गई। हाइडी की मौसी को शहर में नौकरी मिल  गई।वह हाइडी को अपने साथ नहीं ले जा सकती थी।अब क्या किया जाये -यही सोचते हुए उसे हाइडी के बाबा का ध्यान आया। बाबा गाँव से दूर पहाड़ी पर अपनी कुटिया में रहते थे।किसी से नहीं मिलते थे। उन्होंने कभी हाइडी की भी खोज खबर नहीं ली थी। गाँव वाले उन्हें सनकी बूढा कहते थे। 

मौसी हाइडी को बाबा के पास छोड़ने चल दी। प्रश्न यही था -क्या बाबा हाइडी को अपने पास रखने को तैयार होंगे !आज तक तो उन्होंने अपनी पोती कोई भी खबर नहीं ली थी| अब जो भी हो, हाइडी की मौसी को तो नौकरी पर जाना ही था। 

मौसी हाइडी को लेकर बाबा के पास जा पहुंची| बाबा कुटिया के बाहर बैठे थे। मौसी कुछ कहती इससे पहले ही हाइडी  ने बाबा को हेलो कहा और उनसे जा लिपटी। कुछ इस तरह जैसे वह बाबा को बहुत अच्छी तरह जानती  हो। हाइडी की मौसी ने  उन्हें सब कुछ बता दिया। कुछ इस तरह जैसे कह रही हो -अब आपको हाइडी की देख रेख करनी होगी।

बाबा उलझन में पड  गए| वह समझ नहीं पा  रहे थे कि नन्ही  हाइडी कैसे रहेगी उनके साथ , उधर हाइडी बाबा की कुटिया में घूम रही थी। सोच रही थी-मेरे बाबा की कुटिया कितनी सुन्दर है|बाबा ने  हाइडी की  मौसी से क्रोधित स्वर में कहा –जाओ,चली जाओ। फिर कभी मत आना यहाँ। पर उन्होंने हाइडी  कुछ नहीं कहा। क्या उन्होंने अपनी पोती को अपना लिया था? हाइडी  का भोला  चेहरा देख कर मन में स्नेह जाग उठा। वह सोच रहे थे-आखिर इस नन्ही मुन्नी का क्या कसूर है। मैंने पहले इसकी  खबर क्यों नहीं ली।

जल्दी ही हाइडी  का परिचय पीटर से हो गया। वह उम्र में हाइडी से बड़ा था। पीटर चरागाह में बकरियां चराता था।दोनों दोस्त बन गए,हाइडी पीटर के साथ खूब घूमती थी। सर्दी के मौसम में पीटर बकरियां चराना छोड़  स्कूल जाता था। एक दिन पीटर ने बाबा से कहा -'कभी हाइडी के साथ हमारे घर आइये।'  एक दिन बाबा हाइडी के साथ पीटर के घर गए  बर्फ गाडी –स्लेज- में बैठ  कर}|  उस दिन बर्फ गिर रही थी। हाइडी को बहुत मज़ा आया।पीटर की दादी देख नहीं पाती  थी। उन्होंने हाइडी  का चेहरा छू कर उसे प्यार किया।

 इसी तरह दो वर्ष बीत गए हाइडी ने वहां मौसम के कई रंग देखे थे। उसकी नन्ही दुनिया में थे -उसके प्यारे  बाबा, पीटर,उसकी माँ और नेत्रहीन दादी।और थे  नीला आकाश,हरीभरी धरती,गिरती बर्फ,उछलते झरने,सुगंध भिखेरते रंग बिरंगे फूल|

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लेकिन एक बार फिर समस्या हो गई। हाइडी की मौसी उसे वापस ले जाने आ पहुंची थी। उसने बाबा से कहा-'शहर में एक बच्ची बीमार है। उसका नाम क्लारा है। वह अमीर आदमी की बेटी है। क्लारा के पैर  खराब हैं, वह चल फिर  नहीं सकती। व्हील चेयर पर बैठी रहती है। उसके पिता सीसमान व्यापार के सिलसिले में अक्सर शहर से बाहर रहते हैं। क्लारा की माँ नहीं हैं।घर में नौकर तो हैं पर क्लारा का कोई दोस्त नहीं है, अगर हाइडी उसके साथ रह सके तो बहुत अच्छा होगा। इससे हाइडी  का जीवन भी बदल सकता है। यह शहर में रहकर पढाई कर सकती है,इसके  नये दोस्त बन सकते हैं।

लेकिन बाबा ने हाइडी को भेजने से मना  कर दिया। तभी उन्हें काम से कहीं जाना पड़ा। अब मौसी को मौका मिल  गया। भोली हाइडी मौसी के बहकावे में आ गई। किसी तरह बहला फुसला कर मौसी उसे अपने साथ शहर ले गई। क्लारा हाइडी को देख कर बहुत खुश हुई'।उसे अकेलेपन की सहेली मिल गई थी। हाइडी को बाबा की याद आ रही थी। पर उसे क्लारा से भी सहानुभूति हो गई  ,सोचती थी--'क्लारा के पैर  कैसे ठीक होंगे। कुछ दिन बीते, क्लारा को हाइडी का साथ अच्छा लगता था,पर हाइडी  उदास रहने लगी थी। क्लारा के पिता का घर बहुत शानदार था। लेकिन हाइडी को तो खुले वातावरण में, हरियाली के बीच रहने की आदत थी।

क्लारा की गवर्नेस रोटेनमॉयर कड़े स्वाभाव की थी। वह हाइडी को अनपढ़ गंवार समझती थी और उसे डांटती रहती थी। हाइडी  का मन बैचैन रहने लगा। उसे हर पल अपने प्यारे बाबा की याद आती रहती थी। वह जैसे भी हो बाबा के पास लौट जाना चाहती लेकिन यह नहीं हो सकता था। वह गांव से दूर अनजान शहर में थी।

कुछ दिन बाद क्लारा के पिता घर लौट आये। क्लारा ने उनसे हाइडी की बहुत तारीफ की। बेटी को खुश देख कर सीसमान  संतुष्ट हो गए। फिर क्लारा की दादी वहां आई। वह क्लारा के लिए सुन्दर  चित्रों से सजी कहानियों की किताब लाई  थी। हाइडी किताब के पन्ने  पलटने लगी, कई चित्र पहाड़ और देहात के थे। चित्रों  में पहाड़,हरे भरे चरागाह और रंग बिरंगे फूल देख कर हाइडी रोने लगी। उसकी पीड़ा भला कौन जान सकता था|

एक सुबह नौकर घर का दरवाज़ा खोलने गया तो देखा द्वार खुला हुआ था। नौकर ने द्वार अपने हाथ से बंद किया था, तो रात में द्वार किसने खोला और क्यों ! सीसमान ने पता लगाने का निश्चय किया और रात में छिप  कर बैठ गए | कुछ देर बाद  सीसमान  ने देखा कि किसी ने द्वार खोला। टार्च के प्रकाश में हाइडी नज़र आई।आखिर द्वार क्यों खोला था हाइडी ने! पूछने पर वह कुछ न बता सकी।उसे डाक्टर को दिखाया गया |डाक्टर ने जांच की तो पता चला हाइडी नींद में चलती  थी। हाइडी के बारे में पूरी बात जान कर  डाक्टर ने सीसमान से कहा-' बच्ची को उसके गाँव भेज देना चाहिए| उसका मन अपने बाबा से मिलने के लिए बैचैन है|”

 

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हाइडी  के जाने की बात सुन कर क्लारा उदास हो गई। पर क्लारा के पिता ने बेटी को समझा बुझा कर  हाइडी को नौकर के साथ उसके गाँव भेज दिया।  बाबा से लिपट कर हाइडी खूब रोई ,बाबा की आँखें भी बरस रही थीं।

शहर में क्लारा बहुत उदास रहने लगी थी। हाइडी  उसके लिए ख़ुशी बन कर आई थी जो उससे छीन ली गई थी। हाइडी से मिलने को बैचैन थी क्लारा। उसकी उदासी कैसे दूर हो सकती थी!

सर्दियों का मौसम था, गांव में बर्फ गिर रही थी। हाइडी  को अब क्लारा की याद आ रही थी।कैसी होगी वह? इस मौसम में हाइडी कहीं जा नहीं सकती थी।बाबा ने तय किया कि वह हाइडी  को नीचे गांव में ले जाएंगे | गांव के लोग हैरान थे- बाबा इतने वर्षों बाद  गाँव में कैसे आ गए। वहां हाइडी पीटर और उसकी नेत्रहीन दादी से मिली।

 मौसम बदला और हाइडी के बाबा को क्लारा का पत्र मिला |वह हाइडी से मिलने आ रही थी। बाबा ने हाइडी को बताया तो वह बहुत खुश हुई। वह क्लारा को भूल नहीं पाई थी। क्लारा के साथ उसकी दादी भी आई थी। साथ में एक नौकर क्लारा की व्हील चेयर ले कर आया था। हाइडी और उसके बाबा क्लारा को व्हील चेयर में दूर तक घुमाने ले जाते। क्लारा  का सारा समय अब तक घर के अंदर ही बीता था। गांव की ताज़ी हवा ने  जैसे उसका कायाकल्प कर दिया।

 लेकिन अब क्लारा को शहर वापस जाना था। हाइडी  के बाबा ने क्लारा की दादी से कहा-'क्यों न आप क्लारा को मेरे पास रहने दें। यहाँ रहकर क्लारा बहुत खुश है, उसे हाइडी का साथ अच्छा लगता है। मैं और हाइडी उसका खूब ध्यान रखेंगे। क्लारा भी यही चाहती  थी। उसकी दादी मान गईं।

अब क्लारा का पूरा दिन हाइडी के साथ खुली हवा में फूलों के बीच बीतता था। उसके पीले गालों का रंग गुलाबी हो चला। बाबा हर सुबह उसके पैरों की मालिश करते   फिर व्यायाम करवाते। उन्हें आशा थी कि एक न एक दिन उसके पैर  जरूर ठीक हो जायेंगे।एक दिन बाबा दोनों सखियों को चरागाह में छोड़ गए। कुछ दूर रंगारंग फूल खिले थे, हाइडी क्लारा का हाथ पकड़ कर आगे ले गई, -कहा-‘ देखो इन फूलों को।' क्लारा ने कहा -'मैं चल नहीं सकती'

हाइडी ने कहा -'कोशिश करके देखो। 'तब तक पीटर भी वहां आ गया। क्लारा को दोनों ने  थामा हुआ था। क्लारा धीरे धीरे पैर  रखने लगी।  उसके कदम लड़खड़ा रहे थे पर वह एक के बाद दूसरा कदम बढ़ा रही थी। यह तो पहली बार हुआ था।फिर तो वह रोज ही चलने का अभ्यास करने लगी। तब हाइडी और पीटर उसे दोनों और से संभाले रहते थे।

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हाइडी  के दादा ने क्लारा के पिता को पत्र लिखा- -'आप लोग तुरंत आइये।'

सीसमान अपनी माँ के साथ गांव आ पहुंचे। उन्होंने क्लारा को चलते हुए देखा तो ख़ुशी से रो पड़े,यह तो चमत्कार हो गया था। सीसमान ने बाबा को धन्यवाद दिया  तो उन्होंने कहा- हरीभरी धरती,आकाश,पहाड़  और रंगबिरंगे  फूलों को  धन्यवाद दो, मुझे नहीं ' उन्होंने आगे कहा-'में  बहुत बूढा हो गया हूँ। मेरे बाद दुनिया में हाइडी का  कोई नहीं है।'

सीसमान और क्लारा की दादी ने कहा -हम हाइडी के हैं हाइडी हमारी है (समाप्त)

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लेखिका परिचय =योहन्ना स्पायरी =जन्म =१२जून ,१८२७,हिरजाल,स्विट्ज़रलैंड में

निधन =७  जुलाई,१९०१,जूरिख में।  कहते हैं हाइडी  एक सच्ची कहानी है.लेखिका एक बार हाइडी से मिली थीं दोनों मित्र बन गई थी ===

Monday 21 November 2022

आशीर्वाद -कहानी-देवेंद्र कुमार

 

 

आशीर्वाद -कहानी-देवेंद्र कुमार

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दादी का दीपक जला कर आशीर्वाद देना  मशहूर हो गया है।  सुबह दादी नियम से भगवान की प्रतिमा के सामने दीपक जलाती हैं ,लेकिन  एक दोपहर उनकी बहू रमा ने उन्हें दीपक जलाते हुए देखा तो बोली-माँजी ,आप शायद भूल गई सुबह आप पूजा कर चुकी  हैं।

          दादी ने कहा -'भूली नहीं हूँ।  यह नया उजाला है नन्ही मुन्नी के लिए ,' फिर समझाया-'‘कामवाली रत्ना ने कुछ देर पहले मुझे बताया है, हमारे पड़ोस में आज एक बच्ची का जन्म हुआ है।  मैं तो कहीं आती जाती नहीं। इसी तरह आशीर्वाद दे रही हूँ उसे। ' सुनकर अच्छा लगा रमा को।  यह सूचना उसे  भी दी थी  रत्ना ने।  लेकिन  इस तरह दीप  जला कर दूर से आशीर्वाद देने की तो कल्पना भी नहीं थी उसे।अब से थोड़े थोड़े समय के बाद इस तरह दादी का दीपक जलने लगा।  ऐसा दोपहर और संध्या समय ही होता था।  क्योंकि रत्ना दोपहर और शाम को ही बर्तन साफ़ करने आया करती थी।  दादी ने उसे समझा दिया था कि ऐसी अच्छी सूचना वह उन्हें जरूर दिया करे।

रत्ना कई घरों में साफ़ सफाई करती थी।  अन्य कामवालियों से भी  रोज बातचीत होती थी।  इसलिए ऐसे सुसमाचार उसे मिलते रहते  थे।  एक दोपहर दरवाज़े की घंटी बजी।  बाहर रमा की परिचित विभा खड़ी थी  साथ में उसका बेटा विजय भी था। पता चला आज विजय का जन्मदिन था,  विजय ने दादी से आशीर्वाद लिया ,विभा ने रमा को परिवार सहित आने का निमंत्रण दिया।  इस तरह जाने अनजाने दादी के दीपक ने कई नए सम्बन्ध बना दिए थे।  यह सुखद था।  रमा और उसके बच्चे तरुण तथा जया पहली बार बधाई देने नए परिवारों में गए थे।  साथ में रमा के पति  गोपेश भी  रहते थे।  ऐसे समारोह से लौटने के बाद गोपेश माँ को बताना  नहीं भूलते थे कि कैसे सब उनके आशीर्वाद की चर्चा करते हैं।सुनकर वह मुस्करा देतीं।

            एक दोपहर  काम खत्म करके रत्ना  घर  जा रही थी तो  सोसाइटी के गार्ड दिलीप ने टोका -रत्ना ,आजकल दादी के साथ तुम्हारी भी खूब चर्चा होती है,तुम बड़े घरों की अच्छी ख़बरें दादी को देती हो ,पर कभी कभी हम जैसों के  साधारण समाचार भी सुना दिया करो उन्हें, तो हमें भी आशीर्वाद मिल सकता है।  '

        रत्ना ने कहा-'तुम अपने को साधारण क्यों कह रहे हो,जैसे तुम वैसी मैं। जरा सोचो ,अगर मैं माजी को ऐसे समाचार न दूँ तो क्या वे उन्हें आशीर्वाद  देंगी ,जिन्हें तुम 'बड़े लोग ' कह रहे हो। ' दिलीप ने कहा- 'कल  मेरे बेटे का जन्मदिन था।।  

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रत्ना चुपचाप चली गई ,शाम को उसने दिलीप से कहा- 'माजी ने तुम्हारे बेटे को आशीर्वाद दिया है।  

      "कब, कैसे !"-दिलीप इतना ही कह सका।

      रत्ना ने कहा-तुम्हारे बेटे के लिए दादी ने दीपक जलाया लेकिन मुझे फटकार मिली।  उन्होंने कहा कि मैंने कल ही उन्हें यह समाचार क्यों नहीं दिया मैं यह कैसे कहती कि तुमने मुझे आज ही बताया था।  वैसे मेरी बेटी आज पांच साल की हो गई है।  'यह अच्छी खबर दिलीप ने दादी को दी। अगले दिन दादी ने रत्ना को फिर डांटा  कि बेटी के जन्मदिन की खबर उसने क्यों नहीं दी।  रत्ना चुप खड़ी रही। क्या कहती। दादी ने कहा-'इस तरह संकोच करना ठीक नहीं। मुझे भी अपनी माँ समझो।

      एक दोपहर रत्ना काम करने आई तो चुप चुप थी।  दादी ने पूछा -'क्या बात है रत्ना ?क्या आज कोई अच्छी  खबर नहीं है।

      रत्ना ने कहा-'खबर तो है पर बताने लायक नहीं है।  

      'ऐसी क्या खबर जो मेरे लिए नहीं है।  फिर भी सुना दे।

      रत्ना ने उदास स्वर में कहा-'आज एक तेज रफ़्तार कार  ने बूढ़े भिखारी को कुचल दिया।  बेचारा००० और चुप हो गई ।

     ' क्या कार वाल पकड़ा गया ?-दादी ने उतावले स्वर में पूछा ।

    'नहीं ,वह इतनी तेज कार चला रहा था कि कोई कुछ भी नहीं देख पाया। कुछ बच्चे पीछे दौड़े जरूर पर वह रुका नहीं।'

'  तो कार वाला यह देखने के लिए भी नहीं रुका कि उसने कितना बड़ा काण्ड कर डाला है'-दादी ने गुस्से से कहा।  फिर पूछने लगीं - तो कोई  अभागे को अस्पताल भी नहीं ले गया!'

    रत्ना चुप खड़ी थी। दादी उठी और अपने मंदिर में दीप  जला दिया।  रत्ना ने कहा' यह दीपक किस लिए ?'

    उस अभागे के लिए जिसे ऐसी  मौत मिली। ' उन्होंने उदास स्वर में कहा।  उस शाम उन्होंने खाना नहीं खाया। । रमा ने कई बार कहा  पर उन्होंने मना  कर दिया।  वह उस अनजान भिखारी के बारे में सोच रही थीं।  मन बैचैन था।  रात में नींद नहीं आई।  

    अगले दिन  रत्ना आई तो दादी ने फिर पूछा -'कुछ पता चला उस कारवाले का?'

    रत्ना  ने कहा  -'नहीं। '

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      इसके बाद हर बार पूछने पर यही उत्तर मिलता था।  एक दिन रत्ना ने कह ही दिया-'उसका कोई होता तो पुलिस में शिकायत करता, सड़कों पर तो आये दिन ऐसा होता रहता है '

     दादी ने कहा-'कोई तो कुछ जानता होगा उसके बारे में।

     रत्ना बोली-'मैंने कई बार उस भिखारी को गार्ड दिलीप से बातें करते हुए देखा था।  शायद उसे कुछ पता हो।

    दादी ने दिलीप को बुलवा लिया| दिलीप ने बताया कि वह भिखारी को पसंद नहीं करता था,  सोचता था कि सोसाइटी के बाहर भिखारी के बैठने से सोसाइटी की शान खराब होती है।  'लेकिन एक दिन कुछ ऐसा हुआ कि मेरा मन बदल गया  '-दिलीप ने कहा।  

      दादी ध्यान से सुन रही थीं।

       'शाम का समय था। अचानक एक आवाज़ सुनाई दी -चोर चोर पकड़ो।  एक बदमाश  सड़क पर किसी महिला का पर्स झटक कर भाग रहा था।  भिखारी उस बदमाश से उलझ गया,तब तक और लोग भी आ गए। पर्स महिला को मिल गया । लेकिन छीना झपटी में भिखारी घायल हो गया। तब मैंने अपने  कम्पाउंडर मित्र से उसकी  मरहम पट्टी करवा दी।  पर्स वाली महिला ने उसे कुछ पैसे देने चाहे पर भिखारी ने नहीं लिए -उसने कहा-'  मैंने एक बुरे आदमी से लड़ाई की ,इसका कैसा इनाम। '

     उस दिन के बाद अक्सर मैं उसे अपने साथ खाना खिला देता था।  बातों बातों में उसने बताया था कि वह हमेशा से ऐसा नहीं था।  गांव में  उसका भी घर परिवार था जो बाढ़ में तबाह हो गया। इधर उधर भटकते हुए बहुत समय बीत गया और आज वह बेआसरा भिखारी बन कर जी रहा है।   

       अगली सुबह दादी ने गोपेश को बुलाया।  कहा- 'चिट्ठी लिखवानी है। '

      गोपेश ने आश्चर्य से कहा -' यह तो मैं पहली बार सुन रहा हूँ। भला किसे चिट्ठी लिखवाना चाहती है आप?'

     दादी ने पुलिस थानेदार को पत्र लिखवाया ,जिसमें भिखारी के कार से कुचल कर मर जाने की शिकायत थी। दादी चाहती थीं कि पुलिस उसके हत्यारे को सजा दिलवाये।

      दादी का पत्र पाकर थानेदार ने कहा-' किसी अनजान भिखारी के लिए ऐसा पत्र मैं पहली बार देख रहा हूँ।  उसने  भी दीपक जला कर आशीर्वाद देने वाली गोपेश की माँ के बारे में किसी से सुना था। उसने कहा -;'गोपेशजी,उस दुर्घटना का कोई गवाह नहीं है,फिर भी मैं मामले की जांच करूंगा। '

      इसके बाद दादी ने गोपेश को कई बार पता करने भेजा ,पर हर बार  एक ही जवाब मिलता था -'मामले की जांच हो रही है।  '

      और कुछ हो न हो पर अनजान भिखारी जैसे दादी का अपना हो गया है।  सुबह पूजा करते समय वह प्रार्थना करती हैं -'भगवान्, भिखारी के हत्यारे की जरूर दंड देना।'(समाप्त )