अनोखा -कहानी-देवेंद्र
कुमार
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अमित के होठों से निकल गया-'वाह। ' उसने एक लड़के
को देखा जो जमीन पर सफ़ेद और लाल चाक से एक बहुत बड़ा रेखा चित्र
बना रहा था।रेखा चित्र में पेड और परिंदे
दिखाए गए थे। अमित से अपनी कला की प्रशंसा सुन कर भी लड़के ने उसकी तरफ नहीं देखा,सर झुकाये रेखाएं खींचता रहा। रेखा चित्र पर
कई सिक्के पड़े चमक रहे थे।
अमित ने माँ सरिता को
बुला कर दिखाया। सरिता बाजार में एक दुकान से जरूरी सामान खरीद रही थीं। उस विशाल
रेखा चित्र को देख कर वह भी चकित
रह गईं। उन्होंने कहा-'अमित, यह लड़का तो कुशल
चित्रकार है।’ चित्रकार लड़का
अमित की उम्र का यानि दस-ग्यारह साल का रहा होगा। उनकी बात
सुनकर पास के ढाबे से एक आदमी उनके पास आ खड़ा हुआ। वह था ढाबे का मालिक रमन। उसने कहा-'मैडम,यह भीम सेन है। हर दिन
यहाँ इसी तरह लाल और सफ़ेद चाक से ऐसे रेखा चित्र बनाया करता है।’'
'और ये सिक्के
कैसे पड़े हैं।'-सरिता ने पूछा।
'इसकी कलाकारी
देख कर कई लोग इनाम के रूप में सिक्के डाल जाते हैं पर भीम सिक्कों को कभी नहीं
उठाता। कहता है कि ये इनाम नहीं
भीख है। इनाम तो हाथ में दिया जाता है।'
‘ लड़का स्वाभिमानी है।
तो फिर इन सिक्कों का क्या होता है?-सरिता ने पूछा।
शाम को इसके जाने के बाद मैं ये सिक्के उठा लेता हूँ। '
'तुम सिक्कों का
क्या करते हो?'-सरिता ने
पूछा।'क्या इन्हें
अपने काम में लाते हो?’
रमन ने कहा-'मैडम,मैं तो ऐसा सोच भी नहीं सकता।
मैं भीम सेन को रोज खाना खिलाता हूँ।जब यह कहता है कि उसके पास देने को पैसे नहीं
हैं तब मैं समझा देता हूँ कि यह
भोजन उसे मिले इनाम के पैसों का है।’
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'कहाँ रहता हैं कलाकार भीम सेन?'अमित ने पूछा। इस पर रमन ने बताया कि भीम का कोई घर या माँ-बाप नहीं हैं। वह सड़क पर
मेहनत मजूरी कर के जीवन जीने वाले
अनेक बच्चों जैसा ही है।'मैं नहीं
जानता कि भीम या इस जैसे दूसरे बच्चे रात में कहाँ सोते हैं पर दिन में ये सड़क पर
भाग दौड़
करते
जरूर दिखाई देते हैं।'
'क्या भीम ने
तुम्हें बताया नहीं अपने घर परिवार के बारे में?'-सरिता ने
जानना चाहा।
‘सड़क पर रहने वाले सब बच्चों की
कहानी एक सी ही है। इन्हें कौन सड़क पर जीवन जीने के लिए
छोड़ गया,इस बारे में कुछ पता
नहीं। ‘
इसके बाद अमित माँ के साथ घर लौट आया,वह भीम सेन तथा उस जैसे दूसरे बच्चों के बारे में सोच रहा था। आखिर वे सड़कों पर क्यों रहते हैं,उनके घर परिवार कहाँ हैं ?उसने माँ से पूछा तो उन्होंने कहा-'कई बार बच्चों को बहला फुसला कर बुरे लोग ले आते हैं, कुछ बच्चे नाराज होकर घर से चले आते हैं और फिर वापस नहीं लौट पाते। इसके पीछे अनेक कारण हैं। ।कई संस्थाएं ऐसे बेघर बच्चों की भलाई के लिए काम करती हैं। यह समस्या बहुत बड़ी है। '
'माँ,भीम सेन तो बहुत अच्छा
कलाकार है। क्या उसके लिए हम कुछ कर सकते हैं?'
'हाँ, कुछ तो जरूर किया जा
सकता है। '-कह कर सरिता
घर के काम में लग गईं।
अमित अगले दिन स्कूल गया तो उसने ड्राइंग
टीचर अविनाश को भीम सेन के बारे में बताया। बीच में समय निकाल कर अविनाश अमित
के साथ भीम सेन की कलाकारी देखने जा
पंहुचे। उस समय भी भीम सेन रेखा चित्र बनाने में लगा था। अविनाश अचरज के भाव से
उसका कला कौशल देखते रहे। रमन भी पास आकर खड़ा हो गया। भीम सेन ने खेलते हुए बच्चों का रेखांकन
किया था। अविनाश को रमन ने बताया कि भीम सेन काफी समय से ऐसे रेखा चित्र बनाता आ
रहा है। हर दिन वह नया रेखांकन करता है,क्योंकि सफाई करने से पिछले दिन वाला चित्र मिट जाता है।
अविनाश सोच रहे थे
-अगर भीम ये रेखाचित्र कागज़ या ड्राइंग शीट पर बनाता तो इन रेखांकनों को सुरक्षित रखा जा सकता था। उन्होंने भीम को
स्कूल में बुलाने का निश्चय किया ,प्रिंसिपल ने हामी भर
दी।
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और एक दोपहर भीम सेन
रमन के साथ स्कूल आ पहुंचा। स्कूल के बड़े प्रांगण में छात्र आ गए, सब अध्यापक भी खड़े थे।
उनके बीच भीम ने जमीन पर एक बड़ा रेखाचित्र बनाया,उसमें भीड़ के बीच
कलाकार को चित्र बनाते हुए दिखाया गया था।
सबने भीम को शाबासी दी।
अविनाश ने ड्राइंग बुक और कलर पेन्सिलों का बॉक्स उसे देते हुए कहा-'भीम,अब तुम ड्राइंग शीट पर
रंगों से चित्र बनाया करो। ।जमीन पर तुम चाक से जो रेखा चित्र बनाते हो वे तो मिट
जाते हैं ,तुम्हें हर
रोज नया चित्र
बनाना पड़ता है। कागज़ पर बने रेखा चित्र सुरक्षित रहेंगे।'
पर मैं इस कॉपी को
रखूँगा कहाँ ,मेरे पास तो
कोई जगह नहीं है। '-भीम ने कहा।उसकी
आवाज में उदासी थी।।
रमन ने भीम का कन्धा
थपथपा दिया,कहा-'इसकी चिंता मत करो,जैसा मास्टरजी कह रहे
हैं वैसा करो।'
भीम ने कागज़ पर दो
रंगीन रेखा चित्र बनाये। रमन ने प्रिंसिपल को धन्यवाद दिया। अविनाश से कहा-'मास्टरजी,अब से भीम कागज़ पर
चित्र बनाएगा।’
भीम को कागज पर रेखा चित्र बनाना अच्छा लगा।
इन्हें सुरक्षित रखा जा सकता था। वह सोच रहा था'-अगर सारे चित्र कागज़
पर बनाये होते तो मेरे चित्र सुरक्षित रहते,मैं उन्हें कभी भी देख
सकता था।
कई लोगों ने रमन से
पूछा-' क्या भीम ने
चित्र बनाना बंद कर दिया है, क्या वह कहीं
चला गया है।?' इस पर रमन ने
उन्हें ड्राइंग बुक में भीम के बनाये रंगीन चित्र दिखा कर कहा कि
अब भीम कागज़ पर ही चित्र बनाया करेगा।
रमन
ने अविनाश को बताया कि भीम के प्रशंसक अब उसके बनाये चित्र नहीं देख पा रहे हैं, क्या इस का कोई उपाय है?'
रमन की बात सुन कर अविनाश के मन में एक नया
विचार आया।।उन्होंने अपने प्रिंसिपल से
कहा-'सर,हमारे स्कूल के बच्चे
प्रतिभाशाली हैं, कई छात्रों
ने चित्र कला
प्रतियोगिताओं में इनाम जीते हैं। पर उनके
पुरस्कृत चित्र स्कूल की अलमारी में रखे हैं, 'फिर रमन की बात का
जिक्र किया। कहा-‘क्या हम इन
पुरस्कृत चित्रों का सार्वजानिक प्रदर्शन नहीं कर सकते। यह एक अनूठा प्रयोग होगा।‘'
प्रिंसिपल साहब को अविनाश का विचार बहुत
अच्छा लगा। योजना बन गई कि पुरस्कृत चित्रों को लैमिनेट करवा कर किसी खुली जगह पर
रखा जा सकता है, जहाँ आने जाने
वाले इन्हें देख सकें|
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अविनाश ने यह विचार रमन को बताया तो वह उन्हें पास की शान मार्किट में ले गया।
वहां फुटपाथ के साथ साथ कई दुकानों के आगे रेलिंग लगी हुई थी।
अविनाश ने दुकानवालों को चित्रों के बारे
में बताया तो वे खुश हो गए, और फिर एक दिन बच्चों
के बनाये सुन्दर चित्र रेलिंग पर लगा दिए
गए, उनमें भीम
सेन के रेखा चित्र भी थे। जिसने देखा वही देखता रह गया। जल्दी ही वहां इस अद्भुत
प्रदर्शनी के देखने वालों की भीड़ लगने लगी।
बच्चे खुश थे कि दर्शक उनके बनाये चित्र देखने आ रहे हैं। कई दर्शकों ने चित्र खरीदे। हर चित्र का दाम था पचास रुपये। आप सोच रहे होंगे कि उन पैसों का क्या हुआ जो चित्रों की बिक्री से मिलते थे
उन पैसों को बच्चों की एक संस्था' मेरा 'बचपन 'को दे दिया जाता था।वह
संस्था सड़क पर जीवन बिताने वाले बेघर बच्चों के लिए भोजन,पढाई तथा दूसरे प्रबंध
करती थी। भीम सेन और उस जैसे दूसरे कई बच्चे 'मेरा बचपन'संस्था के साथ रहने
लगे थे। इसकी शुरुआत भीम सेन के बनाये चित्रों से हुई थी। बच्चों के बनाये
चित्रों की अद्भुत प्रदर्शनी देखने वालों
की संख्या बढ़ती ही जा रही है।आइये ,हम भी प्रदर्शनी को
देखने चलें। (समाप्त )
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