Saturday 31 December 2022

चोट की दावत-कहानी -देवेंद्र कुमार

 

 

                चोट की दावत-कहानी -देवेंद्र कुमार    

                                               

 

   दोपहर का समय –- बच्चे स्कूलों से लौट रहे हैं। एक के बाद दूसरी बस आकर रूकती है,बच्चे शोर मचाते,हँसते-मुस्कराते उतरते हैं और प्रतीक्षा करते घर वालों के साथ चले जाते हैं। कुछ समय तक शोर और हड़बड़ी के बाद वातावरण शांत हो जाता है। सुबह और दोपहर में रोज यही क्रम चलता है। लेकिन वह दोपहर कुछ अलग थी। सोसाइटी के गार्ड रामबरन ने देखा गेट के बाहर वाली मुंडेर पर एक रोटी रखी है और उस तरफ नजरें गडाए एक लड़का खड़ा है।

     वह लड़का सोनू था। गार्ड सोनू को खूब जानता है। वह सड़क पर समय गुजारने और रात में फुटपाथ पर कहीं भी सो जाने वाले लड़कों में से है। सोनू कहाँ से आया था इस बारे में रामबरन भी औरों की तरह कुछ नहीं जानता। इन छोकरों के बारे में जानकारी जुटाने की जरूरत उसे कभी महसूस नहीं हुई। उसने सोनू को वहां आकर रुकने वाली कारों के शीशों पर झाडन फिरा कर कुछ मांगते और डांट खाकर पीछे हटते हुए कई बार देखा है। ऐसे में एक प्रश्न मन में उठता है—क्या इन बच्चों का कोई नहीं है।

     लेकिन इस समय सोनू मुंडेर पर रखी रोटी के पास पहरेदार की तरह क्यों खड़ा है भला। उसने पूछा —‘’ अरे इस रोटी की पहरेदारी क्यों कर रहा है? खाता क्यों नहीं?’’  

      ‘’ रोटी मेरी नहीं किसी और की है।’’

       ‘’किसकी?’’

      ‘’बालन की।’’

      बालन को भी जानता है रामबरन। बालन भीख मांगता है। और कुछ ऐसे वैसे काम भी करता है, जिन्हें कोई भी ठीक नहीं मानता। सोनू ने जो कुछ बताया उसका मतलब था—अभी  कुछ देर पहले स्कूल बस से उतरते हुए कोई बच्चा गिर पड़ा। तब सोनू और बालन वहीँ खड़े थे। बालन के हाथ में रोटी थी। उसने रोटी मुंडेर पर रखी और बढ़ कर रोते हुए बच्चे को उठा लिया, फिर सोसाइटी के अन्दर की तरफ चल दिया। बच्चे की माँ भी आगे आगे चल रही थी। बालन ने सोनू से रोटी का ध्यान रखने को कहा और जल्दी लौटने की बात कह कर अन्दर चला गया। बालन को अन्दर गए काफी देर हो गई थी और वह अब तक नहीं लौटा था|

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       रामबरन ने कहा —‘’ तू उसकी रोटी की पहरेदारी कब तक करेगा। इसे खा ले,  मेरे खाने के डिब्बे में एक रोटी बची हुई है, मैं उसे दे दूंगा।’’ तभी न जाने कहाँ से एक बच्चा दौड़ता हुआ आया और मुंडेर पर रखी रोटी उठा कर भाग गया। सोनू ‘चोर चोर’ चिल्लाता हुआ उसके पीछे दौड़ गया। रामबरन को हंसी आ गई। तभी उसने बालन को आते देखा। उसके हाथ में एक थैली लटक रही थी। मुंडेर पर रखी रोटी और सोनू को गायब देख कर वह चिल्लाया—‘’ चोर कहीं का। मेरी रोटी लेकर भाग गया।’’

      रामबरन ने बालन को पूरी बात बता दी। कहा—‘’उसका कोई कसूर नहीं है। ‘’

      बालन ने हाथ की थैली अखबार के पन्ने पर उलट दी। हंस कर बोला—‘‘अपनी तो दावत हो गई’’। वह ठीक ही तो कह रहा था। अखबार पर ढेर सारी पूरियां और मिठाई दिख रही थीं। रामबरन कुछ पूछता इससे पहले ही बालन पूरी कहानी सुना गया। उसने कहा—‘’बच्चे की चोट मामूली थी। माँ ने दवा लगा दी। मैं चलने लगा तो उन्होंने यह पूरी--मिठाई मुझे दे दी। साथ ही दस का नोट भी  दिया। ’’

       ‘’ वाह तेरे तो मजे आ गए।’’-- रामबरन ने कहा।’’ बच्चे को चोट लगी और तुझे पूरी,मिठाई और बख्शीश भी मिल गई।’’

       ‘’वह सब तो ठीक, पर बच्चे को चोट नहीं लगनी चाहिए थी।’’ तभी सोनू भागता हुआ आ गया।उसकी मुट्ठी मैं रोटी का टुकड़ा झाँक रहा था। बोला-- ‘’ मैंने भी रोटी- चोर को पकड़ कर ही दम लिया। छीना-- झपटी में आधी रोटी उसके हाथ में ही रह गई।’’

      बालन ने हंस कर उसका कन्धा थपथपा दिया,बोला—‘’ छोड़ रोटी की बात।ले पूरी और मिठाई खा।’’ दोनों ने छक कर खाया फिर भी काफी खाना बच गया। बची हुई भोजन सामग्री को थैली में डालते हुए हंस कर बोला—‘ऐसा पहली बार हुआ कि दिन में छक कर खाने के बाद रात का भी इन्तजाम हो गया हो।’’

       ‘’क्या ऐसा रोज नहीं हो सकता?’’सोनू ने पूछा|

       ‘’कम से कम भीख से तो कभी नहीं।’’—कहते हुए बालन सोनू का हाथ थाम कर चल दिया।

       ‘’तो फिर कैसे?’’

        सोनू को अपने सवाल का जवाब नहीं मिला। बालन एक पेड़ के नीचे बने छोटे से मंदिर के सामने हाथ जोड़ आँखें बंद कर खड़ा था। ‘’तुम भगवान से भी मांगते हो।’’—सोनू बोला।

     ‘’अपने लिए कुछ नहीं, बच्चों के लिए माँगा।’’

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     ‘’क्या?’’

     ‘’यही कि सब बच्चे ठीक रहें,किसी को चोट न लगे।’’

     ‘’लेकिन अगर बच्चे को चोट न लगती तो दावत कैसे होती।’’

    बालन ने सोनू के गाल पर चपत लगा दी, चिल्ला कर बोला—‘’फिर कभी ऐसी गलत बात मत कहना,’’ सुन कर सोनू सहम गया। वह सोच रहा था—‘आखिर मैंने ऐसा क्या गलत कह दिया। दावत की बात खुद बालन ने ही तो कही थी।’ पूरे दिन बालन और सोनू साथ साथ घूमते रहे।सोनू कुछ समझ नहीं पा रहा था। रात हुई तो भूख सताने लगी। रोज तो वह कारों के शीशे साफ़ करके या बोझ ढो कर रोटी का जुगाड़ कर लेता था,लेकिन उस दिन मौका नहीं मिला। लेकिन एक आशा थी कि जब बालन सुबह का बचा हुआ भोजन खाने बैठेगा तो उसे भी दावत में हिस्सा जरूर देगा। लेकिन उस रात भूखे ही रहना पड़ा। क्योंकि बालन ने भी कुछ नहीं खाया। क्या सोनू को पता था कि उसने बचे भोजन की थैली कूड़े मैं फैंक दी थी।

       सुबह दोनों सोसाइटी के गेट पर खड़े थे। बच्चे हँसते मुस्कराते हुए स्कूल बसों में चढ़ रहे थे। बालन खुश था। दोपहर में बच्चों के लौटते समय भी बालन सोनू का हाथ थामे हुए वहीँ मौजूद था। बच्चों के सोसाइटी में चले जाने के बाद सोनू ने कहा—‘’ आज किसी बच्चे को चोट नहीं लगी।’’

          ‘’मैंने भगवान से यही तो माँगा था।’’—बालन ने हंस कर कहा।

        ‘’ तो आज तुम्हारी दावत नहीं होगी। ’’—- कहते हुए सोनू भी हंस रहा था।

          ‘’आज से दूसरे के आगे हाथ फैलाना बंद।’

           ‘’तो खाना कैसे मिलेगा?’’—सोनू ने जानना चाहा।

           ‘’कोई और काम करेंगे।’’

           ‘’ क्या काम?’’

            ‘’सुबह और दोपहर बच्चों को देखेंगे। ‘’

           ‘’ बच्चों को देखना---यह कैसा काम है?’’

            ‘’इससे ख़ुशी मिलेगी तो आधा पेट अपने आप भर जाएगा।’’

        ‘’और बाकी आधा?’’—सोनू ने पूछा

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           ‘’आधी भूख मिटाने के लिए काम करेंगे।’’    

         ‘’ हाँ काम करेंगे, किसी से कुछ मांगेगे नहीं। ‘’

         अगली और उसके बाद आनेवाली हर सुबह और दोपहर के समय बालन और सोनू हँसते मुस्कराते बच्चों को देखते खड़े रहते थे। पता नहीं उन्हें कोई काम मिला या नहीं।पर बच्चों की  देख भाल का काम उन्होंने किसी से पूछे बिना संभाल लिया था। (समाप्त )

           

 

Friday 30 December 2022

घड़ी का बहाना -कहानी- देवेन्द्र कुमार

 

                                                     

                                    घड़ी का बहाना -कहानी- देवेन्द्र कुमार     

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   अमल और मीना अपने बाबा रामदयाल से बहुत गुस्सा हैं। उस दिन दोनों दौड़े दौड़े चाकलेट की फरमाइश लेकर आये पर बाबा किसी दूसरे मूड में थे। उन्होंने डपट कर भगा दिया-‘ कोई चाकलेट वाकलेट नहीं मिलेगी।’ अमल और मीना ने माँ उमा से बाबा की शिकायत की,पिता सुरेश से भी कहा। ऐसा पहली बार हुआ था जब बाबा ने अमल और मीना को डांट दिया था।

   असल में उस दिन बाबा को  बचपन के मित्र जय  शंकर के बारे में परेशान करने वाली खबर मिली थी-जय शंकर बहुत बीमार थे। बाबा जय शंकर से तुरंत मिलना चाहते थे, पर यह इतना आसान नहीं था। शंकर  दूसरे शहर में रहते हैं।बाबा पिच्चासी वर्ष  के हो गए हैं, ,अकेले जाना संभव नहीं। बेटा सुरेश बहुत व्यस्त रहता है, उससे साथ चलने को कैसे कहें। वह इसी सोच में बैठे थे, तभी अमल और मीना चाकलेट की फरमाइश लेकर आ गए  और बाबा ने डांट  कर भगा दिया। उसके बाद उन्होंने फोन पर जय शंकर से काफी देर तक बात की, तब बैचैनी कुछ कम हुई । उन्होंने अमल और मीना को नाराज़ कर दिया था। उन्हें मनाना जरूरी हो गया था।

  उन्होंने अमल और मीना को कई बार आवाज़ दी,पर दोनों नहीं आये। बाबा अच्छी तरह समझ गए कि बच्चों को मनाने का कोई नया उपाय खोजना होगा।कुछ देर सोचने के बाद बाबा अलमारी से  पुरानी पिटारी लेकर आँगन में कुर्सी पर आ बैठे।फिर उसमें से पुरानी हाथ घड़ियाँ  निकाल कर मेज़ पर रखने लगे। बच्चे पास नहीं आ रहे थे पर उनकी नज़रें बाबा पर टिकी थीं। बाबा ने जैसे अपने को सुनाने के लिए कहा-‘हर पुरानी घडी में एक कहानी बंद है।’

   ‘ हर घडी में एक कहानी बंद है’ इस वाक्य ने अमल और मीना की उत्सुकता को बढ़ा दिया, कुछ सकुचाते हुए दोनों बाबा के निकट चले आये।अमल ने पूछा-‘क्या कहानी घडी में बंद हो सकती है?’

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   बाबा ने कहा—‘घडी में ही क्यों, कहानी तो कहीं भी रह सकती है।लेकिन वह सब बाद में,पहले यह बताओ कि तुम दोनों ने अपने बाबा को माफ़ किया या नहीं।’और यह कहते हुए उन्होंने अपने कान पकड़ लिए  और ऐसा मुंह बनाया कि अमल और मीना खिलखिला उठे। बाबा ने झट  दो बड़ी चाकलेट उन्हें थमा दीं। मीना ने कहा-‘ बाबा,अब आप हमें इस घडी में बंद कहानी  सुनाइए।’ और उसने एक घडी हाथ  में उठा ली। उस घडी का डायल टूटा हुआ था,उसकी सुइयां भी गायब थीं।     

    बाबा बोले-‘इसमें बंद कहानी का हीरो तो मैं ही हूँ।’उन्होंने बताया-‘यह मेरे बचपन की बात है, तब मैं अमल जितना था। एक दिन की बात है,मेरे  पापा यानी तुम्हारे पड़ बाबा ऑफिस जाते समय अपनी रिस्ट वाच मेज पर भूल गए। बस मैंने घड़ी कलाई पर पहन ली और छत पर चला गया।तभी न जाने कहाँ से एक बंदर वहां आ गया, मैं बंदर से बचने के लिए भागा तो सीढ़ी पर फिसल गया। चोट तो ज्यादा नहीं आई पर रिस्ट वाच की जो हालत हुई वह तुम्हारे सामने है।’

  ‘तब तो आपके पापा ने खूब डांट लगाई होगी आपको,’अमल ने मुस्करा कर कहा।

  ‘ नहीं,उलटे मुझे खूब प्यार किया। उन्होंने कहा था-‘ रिस्ट वाच तो और आ जायेगी,पर तुझे चोट लगती तो मुझे बहुत दुःख होता।’

  अमल ने दूसरी रिस्ट वाच दिखा कर पूछा –‘और इसमें  कौन सी कहानी बंद है ?’

   बाबा कहने लगे '- यह घटना कोई दो वर्ष पहले की है।एक सुबह मैं चाय पी रहा था, साथ ही अखबार पर भी नज़र डाल लेता था।तभी फोन की घंटी बजी,मैं फोन में व्यस्त हो गया। फिर  दूध वाला आ गया, उसका नाम  विनय था। वह दूध की थैली रख कर चला गया। पर थोड़ी देर बाद विनय दुबारा आ गया।  अखबार वाले ने उसकी कलाई पकड़ी हुई थी। बोला ‘आपके घडी-चोर को पकड़ कर लाया हूँ।’ और मेरी रिस्ट वाच मुझे थमा दी।

  मैंने मेज पर नज़र डाली-अरे! सचमुच मेरी रिस्ट वाच अपनी जगह नहीं थी। यानि अखबार वाला ठीक कह रहा था। विनय ही मेरी घडी उठा कर ले गया था। अखबार वाले ने बताया कि उसने विनय को तेजी से जाते देखा था।उसकी मुट्ठी में रिस्ट वाच थी, उसने विनय से पूछा तो विनय ने मान लिया कि घडी उसकी नहीं है।’इसे पुलिस को देना चाहिए।’यह सलाह देकर अख़बार वाला चला गया।

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   पुलिस का नाम सुन कर विनय रोने लगा, बोला-‘मैंने चोरी की है यह सुन कर तो मेरी माँ जीते जी ही मर जायेगी।पता नहीं मुझे क्या हो गया था जो आपकी घडी उठा कर ले गया।’

  ‘तो आपने घडी चोर को पुलिस को दे दिया होगा।’अमल ने पूछा।

  ‘नहीं क्योंकि वह चोर नहीं था। रिस्ट वाच के पास ही मेरा पर्स भी रखा था,जिसमें काफी रकम थी।’बाबा ने कहा।

  ‘तो फिर वह आपकी रिस्ट वाच क्यों ले गया था?’

  बाबा ने कहा -‘विनय ने बताया कि वह गाँव से शहर काम की तलाश में आया था। वह ऐसी जगह नौकरी कर रहा है जहाँ नियम बहुत कड़े हैं।अगर पहुँचने में दस मिनट की देर  हो जाए  तो आधे दिन  का वेतन काट लिया जाता है।वह समय पर पहुँचने की  बहुत कोशिश करता है पर फिर भी कई बार उसका वेतन कट चुका है। वह कब से घडी लेने की सोच रहा था पर इतने पैसे जमा ही नहीं होते। वह गाँव में अकेली रहती माँ को  एक बार भी पैसे नहीं भेज पाया है। मैंने कहा-‘ घबराओ मत,मैं पुलिस को नहीं बुला रहा हूँ। लेकिन इस तरह मेरी  घडी चुराना तो ठीक नहीं। अपनी माँ की कसम लो कि फिर  इस तरह का विचार मन में नहीं आने दोगे।’

   ‘फिर विनय का क्या हुआ?’ दोनों ने एक स्वर में पूछ लिया।

   अगली सुबह विनय के बदले कोई दूसरा लड़का दूध देने आया,मैंने पूछा तो पता चला कि विनय बाहर खड़ा है। मैं ने उससे विनय को अंदर भेजने को कहा।विनय आया और चुपचाप खड़ा हो गया। मैंने कहा—तुम कायर हो इसलिए मुझसे मुंह चुरा रहे हो।क्या इसी तरह माँ के  सपने पूरे करोगे।’ फिर मैंने उसके हाथ में एक नई रिस्ट वाच रख दी। कहा-अब समय पर दफ्तर पहुंचा करना। मैंने घडी पिछली शाम को ही मंगवा ली थी। उसने कहा-‘यह तो बहुत महंगी होगी।’ मैंने कहा कि घडी एक हज़ार रूपए की है। तुम धीरे धीरे इसकी कीमत चुका देना,तुम तो रोज हमारे घर दूध देने आते हो ,जब जितने दे सको दे देना।’

  मीना ने कहा-‘आप कंजूस और क्रूर हो।आप नई घडी की जगह पुरानी  रिस्ट वाच भी दे सकते थे उसे।’

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   ‘न मैं क्रूर  र्हूँ और न ही कंजूस। लेकिन मैं घडी मुफ्त में देकर उसके स्वाभिमान को चोट नहीं पहुंचाना चाहता था।’बाबा ने कहा फिर एक लिफाफे में रखे कुछ नोट दिखा कर बोले-‘उसने अब तक सौ रूपए वापिस किये हैं।

हम भी मिलना चाहेंगे आपके विनय से।’ मीना ने कहा।

   ‘अब विनय केवल मेरा नहीं हम तीनों का है। इस बारे में किसी से कुछ न कहना।’कह कर बाबा मुस्करा दिए।

    अमल ने एक और घडी हाथ में उठा कर पूछा-‘और इस घडी की क्या कहानी है?’

    बाबा ने कहा-‘आज यहीं पर बस।तुम्हारा बूढा बाबा थक गया है।लेकिन तुम दोनों को एक वादा करना होगा।’

     ‘कैसा वादा?’

    ‘यही कि मुझसे नाराज नहीं होगे।’

     ‘कभी नहीं।लेकिन आप भी हमें चाकलेट के लिए कभी मना नहीं करेंगे।’कहते हुए मीना और अमल घर से बाहर दौड़ गए।बाबा कमरे में जाकर पलंग पर लेट गए और मुंदी  पलकों के पीछे विनय का चेहरा उभर आया। लगा विनय माँ की गोद में सिर रखे लेटा है और माँ उससे लाड लड़ा रही है ।(समाप्त)                  

 

 

Sunday 25 December 2022

जन्मदिन अखबार का -कहानी-देवेंद्र कुमार ===

 

 

                   जन्मदिन अखबार का -कहानी-देवेंद्र कुमार

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  अखबार देखते ही विनय का माथा गरम हो गया। पता नहीं यह किसकी बेहूदगी थी।   अखबार के पहले पन्ने पर किसी ने जगह जगह ‘जन्मदिन’ शब्द टेढ़े मेढ़े अक्षरों में लिख दिया था। उन्होंने तुरंत अखबार वाले जीतू को फोन मिलाया। उससे अखबार की नई प्रति लेकर आने को कहा। जीतू कई वर्षों से उनके घर रोज अखबार डालता आ रहा है। इससे पहले ऐसा तो कभी नहीं हुआ था। 

  जीतू ने माफ़ी मांगते हुए कहा कि वह तुरंत अखबार की नई कापी लेकर आ रहा है। उसने बताया कि और भी कई घरों से ऐसी शिकायत मिली है। कुछ देर बाद जीतू अखबार की नई प्रति लेकर आ गया। साथ में छह-सात साल का एक लड़का भी था। वह था उसका बेटा चमन। जीतू ने चमन के बाल पकड़ कर झिंझोड़ते हुए कहा-‘ साहबजी, यह सब इसी शैतान की करतूत है।   इसकी तो मैं अच्छी तरह खबर लूँगा। आपसे मैं इतना ही कह सकता हूँ कि आगे ऐसी गलती कभी नहीं होगी।’ विनय को पता चला कि उसके चार पड़ोसियों के अख़बारों पर भी इसी तरह ‘जन्म दिन’ शब्द लिखा मिला था। जीतू ने उन चारों के घरों में भी ख़राब अखबार के बदले नई प्रतियाँ दे दीं।  वे थे-- रामनिवास,जयंत, विलास और दयाल। 

  जीतू ने उन चारों के सामने भी अपने बेटे चमन को बुरा भला कहा और उससे सख्ती से निपटने का वादा किया। इस तरह डांट फटकार से बच्चा बुरी तरह घबरा गया और जोर जोर से रोने लगा। उस समय विनय की पत्नी जया वहीँ खड़ी थीं। उन्होंने चमन को चुप कराते हुए जीतू से कहा-‘ बच्चे से बात करने का यह कौन सा तरीका है। क्या तुम रोज अपने बेटे के साथ ऐसा ही व्यवहार करते हो। 

  जया की फटकार सुन कर जीतू हडबडा गया। माफ़ी मांगने के स्वर में बोला-‘ नहीं मैडमजी, मैं और मेरी पत्नी चमन से बहुत प्यार करते हैं। असल में आज की  घटना ने मुझे कुछ परेशान कर दिया, क्योंकि इस कारण मैं कई घरों में अखबार नहीं पहुँचा सका। कल उनकी भी शिकायत सुननी पड़ेगी मुझे। 

  जया ने चमन से प्यार भरे स्वर में पूछा-‘ बेटा,तुमने अख़बार पर ‘जन्मदिन’ क्यों लिखा था भला?’

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  ‘ आज मेरा जन्म दिन है।’-कहते हुए चमन रो पड़ा।  

  ‘क्या सचमुच आज चमन का जन्मदिन है?’-विनय ने जीतू से पूछा। 

  ‘जी हाँ, है तो सही।’-जीतू ने कहा। 

  ‘तो आज के शुभ दिन पर भी उसे यों डांट फटकार रहे हो। भई आज तो चमन का दिन है,इसे गिफ्ट मिलने चाहियें। क्या बेटे का जन्मदिन तुम इसी तरह मनाया करते हो!’-जया ने व्यंग से कहा। 

  ‘जी, मैं तो सारा दिन काम में ही लगा रहता हूँ। हम जैसों के लिए तो हर दिन एक जैसा गुजरता है। ’-जीतू बोला। ‘अखबार बांटने के लिए सुबह बहुत जल्दी घर से निकलना होता है। नींद भी पूरी नहीं होती। इसके जन्म दिन पर इसकी माँ हलवा बनाती है। फिर दोनों माँ बेटा मंदिर जाते हैं।   शाम को मेरे घर लौटने पर हम इसे आइसक्रीम खिलाने ले जाते है। बस कुछ इसी तरह मनाते है चमन का जन्मदिन। 

  ‘ तो फिर आज ऐसा क्या हुआ कि इतने मुंह अँधेरे तुम चमन को अपने साथ ले गए?’- विनय के पडोसी दयाल ने पूछा।  

     ‘ रोज सुबह 4 बजे चौक पर अखबारों के ट्रक आते हैं। मैं और मेरे साथी लोग मांग के हिसाब से अख़बार लेते हैं।  फिर उन्हें घर घर पहुँचाने के लिए निकल जाते हैं। रोज तो मैं अकेला ही जाता हूँ। पर दो दिन पहले मुझे चमन के नानाजी की बीमारी की खबर मिली। मेरी पत्नी तुरंत उनसे मिलने चली गई।  घर में रह गए मैं और चमन।   मैं इसे घर पर अकेला नहीं छोड़ सकता था, इसीलिए चमन को साथ ले गया था।   वहां जब मैं हिसाब किताब में लगा था, तब न जाने कब इसने कई अखबारों पर पेन से जन्मदिन लिख डाला होगा।   और मैंने बिना देखे अखबार आप लोगों के घरों में डाल दिए। बस यही गलती हो गई मुझसे।’-जीतू ने बताया। 

  जया ने कहा-‘ अब मैं पूरी बात समझ सकती हूँ। चमन के दिमाग में अपने जन्मदिन की बात घूम रही होगी। बस उसने कई अखबारों पर ‘जन्मदिन’ लिख डाला। किसी बच्चे के लिए अपने जन्मदिन से बड़ी बात और क्या हो सकती है भला। 

 ‘ अब इस घटना को भुला कर हमें चमन का जन्मदिन मनाने के बारे में सोचना चाहिए।’—जया ने हंस कर कहा और चमन को गुदगुदा दिया।   चमन जोर से हंस पड़ा। 

  ‘ लेकिन चमन की माँ तो यहाँ है नहीं। मुझे तो हलवा बनाना आता नहीं।’-जीतू ने कहा।इस पर सब हंस दिए। जया ने कहा-‘जीतू, अखबार पर जन्मदिन शब्द लिखने के कारण इस बेचारे को तुम्हारी कड़ी  फटकार सुननी पड़ी है, हम सभी चमन के दोषी हैं। क्यों न हम सब मिल कर इसका जन्मदिन मनाएं’-सभी ने जया के प्रस्ताव का समर्थन किया। तय हो गया कि शाम के समय जया के घर पर चमन का जन्मदिन मनाया जायेगा। जया ने जीतू से कह दिया कि शाम को वह चमन के  साथ उनके घर पर आ जाए। 

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  जीतू ने संकोच भरे स्वर में कहा-‘ आप लोग क्यों तकलीफ करेंगे भला। चमन की माँ के आने के बाद हम लोग मना लेंगे इसका जन्म दिन हर बार की तरह।‘  

  ‘जन्म दिन का फंक्शन तो उसी दिन मनाया जाता है जिस दिन बच्चे का जन्म होता है। ’-दयाल ने कहा। ‘चमन का अगला जन्म दिन तुम जैसे चाहो मना लेना। पर आज तो तुम्हारे बेटे के जन्मदिन का उत्सव हम सब मिल कर मनाएंगे।’

  अब क्या कहता जीतू। वह चमन के साथ चला गया। शाम को चमन के साथ जया के घर पहुंचा तो अचरज से देखता रह गया। कमरा रंगारंग रोशनी से जगमगा रहा था।  रामनिवास,जयंत,विलास,दयाल  और विनय के परिवारों के अलावा और भी अनेक बच्चे वहां मौजूद थे। चमन को देखते ही सब ताली  बजाने लगे। मेज पर एक सुंदर केक रखा था,जिस पर ‘चमन 7’ लिखा था। जीतू एक बड़े बॉक्स में मिठाई लाया था। संगीत की मीठी धुन गूँज रही थी। केक काटने के बाद सब बच्चे मिलकर डांस करने लगे।  चमन बहुत खुश था। जीतू ने कहा-‘ मेरे बेटे का ऐसा जन्म दिन तो कभी नहीं मना।’

  जया ने हंस कर कहा-‘अब चमन को अखबार पर ‘जन्मदिन’ लिख कर याद नहीं दिलाना पड़ेगा।   हर वर्ष चमन का जन्मदिन हम सब इसी तरह मिल कर मनाया करेंगे।‘ कमरे में संगीत और बच्चों  की खिल खिल गूँज रही थी।   (समाप्त)    

 

 

Saturday 24 December 2022

चढ़ता पानी-कविता-देवेंद्र कुमार ==

 

    चढ़ता पानी-कविता-देवेंद्र कुमार

                             ==

धन्यवाद ईश्वर

नदी बहाने के लिए

धन्यवाद इंजीनियर

मजबूत पुल के लिए

सुरक्षित खड़ी है भीड़

तमाशा चढ़ते हुए पानी का

देख रहे हैं  हम सब               

सुना है कहीं पीछे

लील गई नदी गाँव के गाँव

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पानी चढ़ता जा रहा है

पुल के खम्भे पर बना खतरे का निशान

उछलता  पानी छू  रहा है उसे

उत्तेजित सनसनी

नदी  कब पार करेगी खतरे  का निशान

चर्चा हो रही है.

बिक रहा है नाश्ता

और गुब्बारे लाल नीले

लग रही है शर्त

बढ़ेगा कितना और पानी 

अरे यह क्या!

चढ़ना रुक गया पानी का

नदी उतार पर है

निराश हो गए लोग

मतलब खतरे का निशान

रह जाएगा अनछुआ

चलो घर चले

अब कुछ नहीं होगा यहां

उतार पर है सनसनी

उतरते पानी की तरह

रुको जरा देखो ,अरे

लहर  ने  फिर सिर उठाया है

देखो देखो खतरे का निशान

अब डूबने ही वाला है. 

ठहर जाओ

देख कर ही चलेंगे

डूबना खतरे के निशान  का

तालियां -लहर फिर उछली

नहीं मानेगी

जरूर पार करेगी

लाल निशान 

न मानेगी नदी

न घर जाएंगे हम

तमाशा अधूरा छोड़ कर

       ==