भूले
बिसरे- देवेन्द्र कुमार
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यश के पेट में दर्द था। माँ
सरिता उसे फैमिली- डाक्टर हरीश रायजादा के पास ले गईं। वह किसी मरीज को देख रहे थे। सरिता और यश उनके
केबिन के बाहर प्रतीक्षा करने लगे। वहां दीवार पर फूलों के दो सुंदर चित्र लगे थे।यश
देर तक उन चित्रों को देखता रहा। वह माँ से कुछ पूछने वाला था तभी उनका नंबर आ गया।
डॉ. हरीश और यश के पिता विनय बचपन के दोस्त थे।
डॉ. हरीश ने यश को देखा और दवा दे दी।फिर सरिता से बातें करने लगे।यश ने देखा कि
डॉ, की कुर्सी के पीछे भी फूलों का चित्र लगा था। उसने डॉ. हरीश से पूछ लिया—‘’अंकल, ये फूल कौन से हैं?’’
डॉ. हरीश हंस पड़े—‘’ यश,सच कहूँ तो मैं इन फूलों के बारे में कुछ नहीं जानता।’’ फिर
बताने लगे—एक दिन कोई मिलने वाले आये थे। उन्होंने मेरे पीछे लगे चित्र को देखा और
बोले- ‘’यह क्या! अब तुम गाँव के नहीं शहर
के बड़े डाक्टर हो।‘’ जहाँ आज फूलों का चित्र लगा है तब वहां गाँव के मेरे पुश्तैनी
घर का पुराना चित्र लगा था। अगले दिन वह फूलों के तीन चित्र ले आये।दो बाहर और एक
मेरे पीछे लगा दिया। मैंने उनसे फूलों के नाम पूछे तो उन्होंने कहा कि वह नहीं
जानते। पहले हर दिन जब मैं अपने केबिन में प्रवेश करता था तो सबसे पहले मेरी नज़र गाँव के घर पर पड़ती थी।’’—और डॉ. हरीश चुप
हो गए।
उस रात डॉ. हरीश देर तक अपने गाँव वाले घर के बारे में
सोचते रहे। अब गाँव में उनके परिवार का कोई नहीं रहता था। रह गया था बस पुराना
पुश्तैनी मकान। वह तो बहुत वर्षों से गाँव नहीं गए थे। लेकिन अब मन कह रहा था कि
उन्हें कम से कम एक बार तो अपने पुश्तैनी गाँव जाना ही चाहिए।
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दो दिन बाद रविवार था, डॉ.
हरीश गाँव की ओर चल दिए। उनकी कार अपने मकान के सामने रुकी तो जल्दी ही लोग इकट्ठे
हो गए। हरीश कार से उतर कर दरवाजे के सामने खड़े होकर देखने लगे। दरवाजे की बदरंग
लकड़ी में दरारें दिख रही थीं। दीवारें धसक गई थीं। खपरैल में जगह जगह छेद हो गए थे। कुंडे में
जंग लगा पुराना ताला लटक रहा था।तभी वहां जमा लोगों के बीच से निकल कर एक बूढा आगे
आया। वह गाँव का मुखिया था। हरीश ने
मुखिया के पैर छू कर अपना परिचय दिया तो मुखिया ने डॉ. को बाँहों में भर लिया।
बोले -–‘’जानते हो तुम्हारे दादा और मैं पक्के दोस्त थे। बाद में तुम्हारा परिवार शहर चला गया। आज
कितने वर्षों बाद तुम्हें गाँव की याद आई है।तुम्हें देख कर मुझे पुराने
दिन याद आ गए।’’
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हरीश चुप रहे , क्या कहते।
मुखिया ने कहा –‘’आओ मेरे घर चलो। तुम्हारा घर तो खंडहर हो चुका है।’’
हरीश ने कहा—‘‘पहले घर के
अंदर जाना चाहता हूँ।’’ हरीश ने दरवाजे को ठेला और अंदर घुस गए। सब तरफ मलबा और
कूड़ा बिखरा था।कच्चे आँगन में ऊँची घास उगी थी। डॉ.हरीश कुछ देर चुप खड़े रहे ।
आँखों के सामने पुराने दिनों की छवियाँ एक--एक करके आ रही थीं। उनमें माँ का चेहरा
सबसे उजला था। कोठों और दालान पर टूटे खपरैल से होकर धूप के टुकड़े गिर रहे थे।
मुखिया की पुकार सुनाई दी तो हरीश बाहर आ गए। मुखिया
हरीश के परिवार को अपने घर की ओर ले चले। मुखिया जी के घर के बाहर गाँव वालों का
झुण्ड जमा था। मुखिया जी ने हरीश का परिचय दिया तो एक गाँव वाले ने हरीश से कहा—‘‘हमारे
गाँव में इलाज के लिए कोई डाक्टर नहीं है। यह सुनकर अच्छा लगा कि आपका जन्म इसी
गाँव में हुआ था। क्या आप हमारा इलाज करेंगे?’’
और कुछ देर बाद डाक्टर हरीश कुछ मरीजों
की जांच कर रहे थे। उन्होंने सभी मरीजों के पर्चे तैयार कर दिए लेकिन वह अपने साथ
कोई दवा तो लेकर आये नहीं थे। तभी मुखिया जी ने बताया कि पास के कसबे में केमिस्ट
की दुकान है। डॉ० हरीश ने ड्राईवर को पर्चे लेकर भेज दिया।साथ में एक गाँव वाला भी
गया। हरीश ने साधारण खांसी –बुखार की दवाओं के साथ मरहम पट्टी का
सामान तथा बच्चों के लिए कुछ टॉनिक भी मंगवा लिए। ड्राईवर को समझा दिया कि सब
पर्चो की दवाएं अलग अलग लिफाफों में मरीजों के नाम लिखवा कर लाये। ड्राईवर के
लौटने के बाद सब रोगियों को समझा दिया कि दवाएं कैसे लेनी हैं। कुछ बच्चों की
चोटों की मरहम-पट्टी भी कर दी गई।
अब तक दिन ढलने लगा था। डॉ० चलने को तैयार हुए तो मुखिया जी ने पूछा —‘’घर
का क्या करने की सोच रहे हो? क्या फिर कभी आओगे?’’
‘’में
अगले रविवार को फिर आऊंगा। आना ही पड़ेगा। मैं मरीजों को बीच में कैसे छोड़ सकता हूँ
भला। ‘’
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सुन
कर मुखिया जी खुश हो गए। उन्होंने कहा –‘’बेटा, अगर ऐसा है तो मैं तुम्हारे घर की
मरम्मत करवा देता हूँ। ‘’
अगले रविवार को डाक्टर की कार गाँव में अपने घर
के आगे रुकी तो वह हैरान रह गए। पुराने घर का तो काया पलट हो चुका था। दीवारों की
मरम्मत हो चुकी थी। नया छप्पर डाल दिया गया था। हरीश ने देखा आँगन से घास गायब थी ।पूरा
घर जैसे नया हो गया था। आँगन में बड़ी दरी
पर बहुत से गाँव वाले बैठे थे। फिर हरीश ने अपने पुराने मरीजों की जांच की और कुछ
नए लोगों को देखा। इसके बाद हरीश ने
मुखिया जी से एक नए आदमी का परिचय करवाया। वह था रामसरन कम्पाउण्डर जिसे हरीश अपने साथ लेकर आये थे। उन्होंने
मुखिया जी से कहा—‘’ इसका गाँव बिरसा पुर यहाँ से ज्यादा दूर नहीं है। दिन में यह गाँव में रह कर मरीजों को दवा देगा और
रात में साइकिल से अपने गाँव चला जाया करेगा। ‘’
यह सुनकर मुखियाजी तो बहुत खुश हो गए।
उन्होंने कहा—‘’इससे अच्छा कुछ नहीं हो सकता। लेकिन कम्पाउण्डर और दवाओं का खर्च ...’’
डॉ, हरीश ने बीच में ही टोक दिया और बोले—‘’ आपको इन सब के लिए चिंता नहीं करनी
होगी। मैं इस गाँव का डाक्टर हूँ। मैं मानता हूँ कि शहर जाकर मैं अपने गाँव को भूल
गया था, पर अब एक डाक्टर के रूप में यहाँ के लिए कुछ करना चाहता हूँ । गाँव के लोग
स्वस्थ रहें, इतना कर सकूं तो मुझे संतोष होगा।’’
गांव से लौट कर उन्होंने अपने मित्र विनय को फोन किया। डॉ० हरीश ने कहा ‘’–यश को लेकर आना मेरे क्लिनिक पर।
‘’
शाम के समय विनय और सरिता यश के साथ डॉ० हरीश के क्लिनिक पर जा पहुंचे। यश डॉ० हरीश के केबिन में गया तो चौंक पड़ा। डॉ० हरीश की कुर्सी के पीछे फूलों की जगह दूसरे ही
चित्र लगे थे। हरीश ने कहा -–‘’मैं जिन फूलों को नहीं पहचानता उनके चित्र हटवा दिए
हैं मैंने। ये चित्र मेरे गाँव वाले घर और गाँव वालों के हैं। तुम इनके बारे में
जो पूछना चाहो मैं बता सकता हूँ। तुम्हारे प्रश्न का उत्तर पाने के लिए ही मुझे अपने भूले बिसरे गाँव जाना पड़ा।उसे भूलने की गलती फिर कभी नहीं करूंगा |'(समाप्त )'
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