Saturday 7 October 2023

ठोकर के बाद -देवेंद्र कुमार

 

ठोकर के बाद  -देवेंद्र कुमार

                     ==

 

परेश का काम मुँह अँधेरे शुरू हो जाता है। दूध की गाडी सुबह चार बजे चौक में लग जाती है। दूध की थैलियों को बड़ेबड़े थैलों में भर कर, साइकिल के हैंडलों पर लटका कर वह दूध- यात्रा पर निकल पड़ता है। हाउसिंग सोसाइटी के फ्लैट की घंटी बजाकर दूध देना और फिर अगले फ्लैटों पर यही क्रिया बार बार दोहराने से उसकी दिनचर्या का सूरज उगता है।

उसने फ्लैट की घंटी बजाने को हाथ बढाया तो पैर फिसल गया। परेश ने सँभलने की कोशिश की तो पैर फ़्लैट के दरवाजे के पास रखे गमले से टकरा गया। परेश ने देखा एक गमला टूट गया था। गमला टूटने से मिट्टी बाहर फ़ैल गई। उसमें लगा पौधा एक ओर झुक गया। तभी फ़्लैट का दरवाजा खुला। परेश के मुँह से निकला—”मैडम, माफ़ करना पैर फिसलने से गमला टूट गया।

मैडम ने दूध की थैली लेते हुए कहा—”हम कल यहाँ से जा रहे हैं। अपने पैसे ले जाओ।‘’ परेश ने हिसाब लगा कर पैसे बताये और लेकर अगले फ़्लैट की ओर चल दिया। टूटे गमले में कौन सा पौधा लगा है, यह देखना चाहता था, लेकिन अभी एकदम समय नहीं था।

अगली सुबह टूटे गमले में लगे पौधे को देखने चला गया। उसने देखा टूटे गमले में लगा पौधा एक तरफ को झुका हुआ था। परेश ने टूटे हुए गमले को संभाल कर उठा लिया | एक हथेली से झुके पौधे को सँभालते हुए सोसाइटी के दरवाजे की ओर बढ़ा। उसने गार्ड से पूछा—”इस गमले को पार्क में कहाँ रख दूँ?”गार्ड ने टूटे गमले को देखा और बोला—”इसकी जगह पार्क में नहीं मंदिर के पीछे है।

परेश मंदिर के पीछे चला गया। वहाँ कबाड़ का ढेर लगा हुआ था| कबाड़ के इस कब्रिस्तान में  कभी नहीं फैंकूँगा”—परेश ने जैसे अपने से कहा। और गमले को लेकर गेट पर चला आया। उसका मन हो रहा था कि पौधे को नए गमले में लगा कर अपने घर ले जाए और मुरझाएf फूल   को फिर से खिलते हुए देखे। लेकिन परेश के एक कमरे वाले घर में यह संभव नहीं था। घर का दरवाजा सीधे सड़क पर खुलता था, वहाँ आँगन जैसा कुछ नहीं था जहाँ पौधे रखे जा सकें। तभी एक पौधे वाला ठेला धकेलता हुआ सामने से गुजरा। परेश ने तुरंत पुकार लगाई। उसे एक उपाय सूझ गया था।

   उसने पौधे वाले को जल्दी से पूरी बात बता दी। कहा—”क्या तुम इस पौधे को अपने पौधों के बीच रख सकते हो? मैं इसके लिए तुम्हें पैसे भी दे सकता हूँ। मेरी गलती से इसकी यह हालत हो गई है। उस आदमी का नाम बलराम था। परेश ने 50 का नोट बलराम की ओर बढा दिया| बलराम ने परेश के हाथों से टूटा गमला लेकर ठेले पर रख लिया और धकेलता हुआ आगे चला गया। परेश को लगा जैसे सिर से बड़ा बोझ उतर गया हो। दिन भर दूकान पर काम करते हुए  एकाएक ख्याल आया कि पौधे वाले का नाम पता तो पूछा ही नहीं! कहाँ खोजेगा उसे।वह बैचैन हो गया। शाम को सोसाइटी पहुँचा। गार्ड से पौधेवाले के बारे में पूछा| उसने  बलराम का पता बता दिया। वह सोसाइटी में भी खाद देने आता था।

                                      1

 

अगली सुबह बलराम के दरवाज़े के सामने पहुँच कर पुकारा तो बलराम निकल कर आया। उसने परेश को पहचाना नहीं। कहा—”कौन, क्या चाहिए?”

परेश हडबडा कर बोला—”टूटा हुआ गमला...उसी के बारे में... अब बलराम ने पहचान लिया—”बाबू, ऐसी भी क्या हड़बड़ी है! मैं आपका टूटा हुआ गमला लेकर कहीं भागा नहीं जा रहा हूँ। आप अपना गमला ले जाओ और अपने 50 रुपये भी।

परेश समझ गया कि इतनी सुबह आकर उसने बलराम को नाराज कर दिया है। झट थैले में से दूध की थैली निकालकर बोला—”अरे नहीं बलराम भय्या, मैंने तो सोचा था कि सवेरे की चाय तुम्हारे साथ पियूँगा। लो जरा चाय तो बनवाओ।

बलराम बोला—”तो हमारे घर में दूध नहीं है जो दूध लेकर आए हो। परेश ने जल्दी से बता दिया कि वह सुबह क्या काम करता है। बलराम परेश को घर के पीछे अपनी छोटी सी  नर्सरी में ले गया। पुकार कर पत्नी से कहा—”जरा दो चाय और कुछ खाने को ले आओ। मेहमान आए हैं।

परेश ने देखाटूटे गमले को एक नए गमले में रख दिया गया था, पौधा एक डंडी के सहारे सीधा खड़ा था। अब उतना मुरझाया भी नहीं लग रहा था। बोला—”बलराम भय्या, तुमने तो फूल   का कायाकल्प कर दिया है।‘’ तभी बलराम की पत्नी और बेटा वहाँ आ गए। पत्नी के हाथों में चाय के प्याले थे। बेटे ने नाश्ते की प्लेट पकड़ रखी थी। बलराम ने बताया कि गाँव में उनका बाग़ था। एक बार फसल बर्बाद होने पर कर्ज लेना पड़ा। कर्ज चुका नहीं और बाग़ सेठ का हो गया। तब से शहर में जूझ रहा है। परेश ने भी अपने परिवार के बारे में बताया, चाय पीते-पीते जैसे दोनों दोस्त हो गए थे। चलतेचलते परेश ने पूछा—”यह टूटा हुआ गमला...

बलराम बोला—”यह टूटा हुआ गमला तुम्हारे फूल की पहचान है। अगर टूटे हुए गमले को हटा दिया तो फिर मैं भी नहीं पहचान सकूंगा|’’

परेश ने पूछाक्या हम सवेरे की चाय साथ-साथ पी सकते हैं?” बलराम से पहले उसकी पत्नी बोल उठी—” लेकिन दूध लेकर मत आना।‘’

लेकिन अगली सुबह परेश ने देखादरवाजे पर ताला लगा था। पता चला कल रात में बलराम के बेटे की तबीयत खराब हो गई। उसे अस्पताल ले जाना पड़ा। परेश ने अनुमान लगायाबलराम बेटे को सरकारी अस्पताल में ही ले गया होगा। वहाँ पहुँचा तो बलराम मिल गया। परेश को देखकर चौंक गया। परेश बोला—”मैं अभी आया।

अस्पताल के बाहर कई चाय वाले बैठे थे। परेश ने पूछा—”किसी के पास थर्मस है?” एक चाय वाले ने बताया—”है तो सही पर पैसे रख कर देंगे। परेश ने पैसे जमा करा दिए। कई कप चाय भरवा ली। नाश्ते के लिए भी ले लिया। बलराम से बेटे की तबीयत के बारे में पूछा तो उसने बताया—”बुखार पहले से कम है लेकिन पूरी तरह ठीक होने में एक दो दिन और लगेंगे|”

 परेश ने कहा—”पहले भाभीजी को चाय देकर आओ। फिर हम दोनों चाय पिएँगे। चाय पीते पीते परेश ने बलराम से कह दिया कि कोई चिंता करे। सब ठीक हो जाएगा। बलराम ने कसकर परेश का हाथ पकड़ लिया। बोला कुछ नहीं। उस खामोश पकड़ ने सारी बात कह दी थी। बच्चे को दो दिन बाद अस्पताल से छुट्टी मिल गई। उन्हें घर पहुँचा कर परेश चलने लगा तो बलराम की पत्नी ने कहा—”कल से हर सुबह की चाय हमारे साथ पीना। पर उस चाय में दूध आपका नहीं होगा। यह मेरी शर्त है।‘’

परेश मुसकरा कर रह गया। अब हर सुबह की चाय बलराम का परिवार परेश के साथ पीता थापिछवाड़े की नर्सरी में ताज़े सुगन्धित फूलों के बीच । (समाप्त )


 

 

No comments:

Post a Comment