Thursday 29 April 2021

पिंजरा खो गया-कहानी-देवेंद्र कुमार

 

 पिंजरा खो गया-कहानी-देवेंद्र कुमार

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वीर  परेशान है। उसे दोस्तों के साथ मेले में जाना है। लेकिन माँ ने मना  कर दिया है।क्योंकि  वीर की  एक आँख लाल हो रही है। माँ ने कह दिया है कि आँख की लाली कम होने पर ही उसे मेले में जाने देंगी। इसलिए वीर बार बार दर्पण में अपनी आँख देखता है ,माँ ने कहा-'इस तरह बार बार दर्पण में देखने से लाली कम होने की जगह और भी बढ़ जाएगी।तुम लेट जाओ,मैं दवा डालती हूँ।आराम मिलेगा।'

 

लेकिन वीर को चैन कहाँ,थोड़ी थोड़ी देर में दर्पण के सामने खड़ा हो जाता है। आँख की लाली कम नहीं हुई।वह समझ चुका है ,अब मेले में नहीं जा सकेगा। वीर दर्पण के सामने खड़ा था ,तभी उसने एक चिड़िया को आँगन में गिरते देखा। अगले ही पल एक बिल्ली चिड़िया पर झपटी। वह    जोर से चिल्ला कर आँगन में दौड़ा तो बिल्ली भाग गई। वीर ने चिड़िया को उठा लिया और माँ को आवाज़ दी। चिड़िया के पंखों पर खून लगा था, तब तक वीर की माँ कमला  वहां आ गईं। उन्होंने कहा-''अरे,चिड़िया तो घायल है। इसे तो पक्षियों  के अस्पताल में दिखाना होगा। लेकिन इसे वहां ले कैसे जायेंगे !और हाँ तेरी आँखें तो अभी तक लाल हैं।'   वीर बोला -'चलो पहले  इस घायल चिड़िया को पक्षियों के अस्पताल ले चलें।'

 

    माँ एक बर्तन ले आयीं और उसमें कपडा बिछा कर धीरे से चिड़िया को लिटा दिया, फिर बर्तन को  एक जाली  से  ढक दिया, वीर से कहा-'लेकिन इस तरह वहां कैसे ले जाएंगे घायल चिड़िया को।

 

   वीर ध्यान से चिड़िया को देख रहा था। उसके पंख धीरे धीरे काँप रहे थे। तभी माँ ने कहा-'हाँ याद आया ,पड़ोस की रमा दादी के पास एक पिंजरा देखा है मैंने।उनसे मांग लाओ।चिड़िया को पिंजरे में पक्षियों के अस्पताल ले जाना ठीक रहेगा।

 

   पड़ोस की रमा दादी ने पिंजरे में एक तोता पाला हुआ था। तोते के पिंजरे को वह सदा अपने आस पास रखती थीं। दादी को तोता बहुत प्यारा था। लेकिन एक दिन न जाने कैसे पिंजरे का दरवाज़ा खुला रह गया और उनका प्यारा तोता उड़ गया। इस बात पर दादी कई दिन तक उदास रहीं वह  हरेक से एक ही मांग करती थीं कि उन्हें वैसा ही हरियल तोता चाहिए। खाली पिंजरे को सदा अपने आस पास रखती थीं। उन्हें लगता था जैसे किसी ने उनकी सबसे प्यारी चीज़ छीन ली हो।

   

   माँ ने वीर को  रमा दादी के पास भेज दिया। वीर ने देखा =दादी मटर छील रही थीं और तोते का खाली  पिंजरा उनके पास  रखा था। वीर ने दादी के पैर छुए फिर उन्हें चिड़िया के बारे में बताया और कहा-'घायल चिड़िया के लिए पिंजरा चाहिए।

 '

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 रमा दादी ने पिंजरे को अपने और पास खींच लिया और कहा-'यह पिंजरा तो मेरे हरियल तोते के लिए है। मैंने कई लोगों से तोता लाने  के लिए कह रखा है। जल्दी ही कहीं न कहीं से तोता मेरे पास आ जायेगा। इसलिए यह पिंजरा नहीं दे सकती।'

 

 वीर बोला -'चिड़िया को पक्षियों के अस्पताल ले जाना है। उसे पिंजरे में ही ले जा सकते हैं। थोड़ी देर के लिए दे दीजिये।

 

   'अगर इसी बीच कोई मेरे लिए तोता ले आया तो मैं क्या करूंगी। तुम अपनी चिड़िया के लिए पिंजरा बाजार से खरीद लो। '

 

   वीर समझ गया कि रमा दादी  आसानी से मानने वाली नहीं। उसने कुछ सोचकर कहा-'मैं वादा करता हूँ कि आपके लिए  जल्दी ही  एक सुन्दर  तोता लेकर आऊंगा,।थोड़ी देर के लिए पिंजरा दे दीजिये| '

 

   आखिर रमा दादी ने वीर को पिंजरा दे दिया लेकिन एक शर्त लगा दी कि उसे एक तोता लेकर आना होगा उनके लिए।

 

   वीर ने घायल चिड़िया को पिंजरे में लिटा दिया फिर माँ के साथ पक्षियों के अस्पताल ले गया। वहां डाक्टर ने चिड़िया की जांच  करने के बाद उसके घाव पर दवा लगाते हुए कहा-'इसकी चोट जल्दी  ही ठीक हो जाएगी लेकिन इसके बाद चिड़िया को उडा  देना। पिंजरे में बंद मत रखना|’

 

   'जी,कभी नहीं,वैसे भी यह पिंजरा हमारा नहीं है। चिड़िया को यहां लाने के लिए किसी से उधार लिया है।'

 

   डाक्टर ने एक दिन बाद चिड़िया को फिर दिखाने  के लिए कहा|

 

 अगले  दिन- वीर माँ के साथ बाजार जा रहा था तो रमा दादी बालकनी में खड़ी थीं। उन्होंने पुकारा-'वीर, पिंजरा कब लौटाओगे ,और तोता लाने का वादा याद है न ?'

 

   वीर ने कहा -'दादी,प्रणाम। मैं जल्दी ही आपके लिए एक  तोता लेकर आऊंगा।'

 

   माँ न पूछा -दादी  के लिए तोता कहाँ से लाओगे! पता है न कि पक्षियों की खरीद और बिक्री पर प्रतिबन्ध है| ’

 

   'मालूम है माँ,पर मुझे रमा दादी को एक तोता भेंट करना ही है।'-कह कर वीर मुस्करा दिया।

  'और उनका पिंजरा भी तो वापस करना है। '

 

   'मैं उनका पिंजरा लौटने वाला नहीं।'

 

   ' क्यों?'

 

  वीर चुप रहा।

 

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   चिड़िया की चोट ठीक हो गई। वीर पिंजरा लेकर छत पर चला गया।उसने पिंजरे का दरवाज़ा खोल दिया, चिड़िया कुछ देर तक पिंजरे में ही रही और फिर उड़ गई। आकाश में बहुत से परिंदे उड़ रहे थे। वीर देखता रहा कि चिड़िया कहाँ गई ,पर कुछ पता न चला।

 

   अब दादी की शर्त पूरी करने की बारी थी। एक शाम वह एक झोला लेकर दादी के पास जा पहुंचा।

 

 

   रमा दादी ने पूछा -पिंजरा कहाँ है, और वह तोता जिसे लाने का वादा किया था तुमने?'

 

   वीर ने झोले में से एक खिलौना तोता बाहर निकाल कर कहा -'लीजिये अपना तोता दादी।

  वीर ने खिलौना तोते का बटन दबाया तो तोते के पंख हिले ,उसकी चोंच खुली और सुनाई दिया-

 मैं एक तोता हूँ। मैं हरी मिर्च खाता हूँ।'वीर ने कई बार यह क्रिया दोहराई। दादी अपलक देख रही थीं। उन्होंने कहा -'यह तो खिलौना है, मेरा तोता तो जीवित था। '

 

 वीर ने कहा-'अब पक्षियों की खरीद और बिक्री पर प्रतिबन्ध है। मुझे कहीं कोई चिड़ीमार परिंदे बेचता हुआ नहीं मिला। मैं  बहुत ढूंढ कर यह तोता आपके लिए लाया हूँ। '

और मेरा पिंजरा कहाँ है?'-दादी ने गुस्से से कहा।

 

'दादी,खिलौना तोते के लिए पिंजरे की जरूरत नहीं होगी।आप इसे कही भी रख सकती हैं, बच्चे इससे खेल सकते हैं |’  उसने आकाश की ओर  इशारा किया –दादी, परिंदे आकाश में उड़ते हैं, उस चिड़िया को भी मैंने ऊपर उडा  दिया|अब तो गुस्सा छोड़ दो मेरी प्यारी दादी। 'कह कर वीर ने दादी के पैर छू लिए।

 

 रमा दादी ने उसे गोद  में भर लिया, कहा-'शैतान कहीं का।'वह मुस्करा रही थीं। खिलौना तोता बोल रहा था -'मैं हरी मिर्च खाता हूँ। '

 

 वीर घर आ गया। टूटा हुआ पिंजरा कूड़े दान में पड़ा था। ।(समाप्त ) ,

Tuesday 27 April 2021

कहानी मेरी दोस्त-कहानी-देवेंद्र कुमार

 

                                         कहानी मेरी दोस्त-कहानी-देवेंद्र कुमार                                              

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बाबा की एक आदत अजीब लगती है पूरे घर को -- वह हर समय जेब में कागज और पेन रखते हैं।भोजन करते समय भी कागज़ पेन  जेब में रहते ही हैं। कई बार पूछने पर मुस्करा कर  कहते  हैं - यह सब मेरी मित्र के लिए रखना पड़ता है, न रखूं तो वह गुस्सा हो जाती है।

 

कोई समझ नहीं पाता कि आखिर बाबा अपनी किस मित्र के बारे में यह बात कहते हैं। इस बारे में ज्यादा प्रश्न करने का साहस कोई नहीं कर पाता, पर एक दिन उनके पोते अमित  ने जिद ठान ली कि  हर समय बाबा की जेब में रहने वाले कागज़ और पेन का रहस्य जान कर ही रहेगा। उसने कई बार पूछा तो बाबा ने कहा-' अगर जेब में कागज़ पेन न रखूं तो मेरी दोस्त कहानी नाराज़ हो कर चली जाती है। ' फिर बार बार बुलाने पर भी नहीं आती। ''

 

‘’अजीब दोस्त है कहानी जिसके लिए आपको हर समय जेब में कागज़ और पेन रखना पड़ता है, ऐसा क्यों !

 

बाबा ने समझाया-मैं कहानियां लिखता हूँ,पर लिखने से पहले कहानी को पास बुलाना होता है। कहानी सदा हड़बड़ी में रहती है इसलिए जब वह कुछ कहे तो उसे तुरंत कागज़ पर नोट करना होता है, इसीलिए काग़ज़ पेन रेडी रखता हूँ। देखो हमारे आसपास हर समय कुछ न कुछ घटता रहता है,हर घटना में कई कहानिया मौजूद रहती हैं। अब यह लेखक का काम है कि  वह किस पर कहानी लिखता है। अगर कथा सूत्र को तुरंत  नोट न किया जाये तो कहानी खो जाती है और फिर वापस नहीं आती

 

        बाबा,क्या मैं भी कहानी से दोस्ती कर सकता हूँ?' अमित ने पूछा।

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    जरूर कर सकते हो। तुमसे दोस्ती करके कहानी को अच्छा लगेगा।इतना सुनते ही अमित ने कमीज की जेब में छोटा सा  कागज़ रख कर पेन लगा लिया।बोला -' अब मुझे क्या करना होगा?'

 

'जब तुम कोई घटना देखो और तुम्हे ऐसा लगे कि इस  पर कहानी बन सकती है, तो झट उस घटना को नोट कर लो। फिर बाद में उस पर सोच कर  लिखो -बस कहानी बन जाएगी। ' बाबा ने कहा।

 

     'इस में आप को मेरी सहायता करनी होगी।'

 

    'जरूर करूँगा।'और बाबा ने अमित का कन्धा थपथपा दिया। 

अगले दिन अमित की मम्मी ने देखा तो हंस कर कहा- तो अब तुम  अपने बाबा की नक़ल करने लगे। 'यह नक़ल नहीं है ,मैं भी बाबा की तरह कहानी से दोस्ती करूंगा , मुझे भी उनकी तरह लेखक बनना है।'-अमित ने कहा।                                                                                                                 

कई दिन बीत गए,बाबा अमित से  पूछते--'मिली कहानी ? ' जवाब में अमित कोरा कागज़ दिखा कर निराश स्वर में कहता-' नहीं।' और बाबा उसके बाल सहला कर कहते-जल्दी ही कहानी मिल जाएगी उदास मत हो,’

 और फिर एक दिन अमित ने बाबा को कागज़ दिखाया -उस पर लिखा था 'कबूतर '

बाबा ने हँसते हुए कहा-'तो कहानी से तुम्हारी भेंट हो ही गई, पूरी कहानी सुनाओ।'

 

अमित ने बताया-मैं स्कूल बस से उतरा तो किसी ने कहा-'अरे देखो घायल कबूतर ' पर मुझे घायल कबूतर कहीं दिखाई नहीं दिया मैंने जल्दी से लिख लिया -पता नहीं घायल कबूतर  कहाँ गया !क्या इसमें कहानी है?'

' चलो तुम्हारे घायल कबूतर की कहानी को आगे बढ़ाते हैं।'     

कहते हुए बाबा अमित के साथ सोसाइटी के गेट पर चले आये। उन्होंने वहां खड़े गार्ड से पूछा -तो उसने बताया-' जी बाबूजी,एक घायल कबूतर नीचे गिरा था। उस पर एक बिल्ली झपटी तो उसे हमने भगा दिया,फिर किसी ने कहा कि  उसे जीतू भिखारी उठा ले गया।

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यह जीतू कौन है ?' -अमित ने पूछा। बाबा जीतू  जानते थे वह  सबके सामने हाथ फैला कर अपने लिए  रोटी  का जुगाड़ करता था।कई बार बाबा ने भी उसकी मदद की थी। आखिर जीतू घायल कबूतर को कहाँ ले गया होगा ,यही सोच रहे थे अमित के बाबा|  जीतू उन्हें अगली सुबह मिला। उन्होंने   घायल कबूतर के बारे में पूछा तो वह बोला -'बाबूजी, घायल कबूतर को मैं पक्षियों के अस्पताल ले गया था। वहां डाक्टर उसका इलाज कर रहा है। अभी  मैं वहीँ से आ रहा हूँ।

 

'कल तुमने एक बहुत अच्छा काम किया है। 'कहते हुए बाबा ने अपनी जेब में हाथ डाला तो जीतू बोला  -बाबूजी ,आप कई बार  मदद करते हैं , पर आज मैं आपसे   कुछ नहीं लूँगा। घायल कबूतर की जान बचा  कर मुझे अच्छा लगा, बस इतना ही काफी है।

 

फिर जीतू बाबा और अमित को पक्षियों के अस्पताल ले गया। वहां डाक्टर ने बताया कि कबूतर पहले से ठीक है। स्वस्थ होते ही हम उसे आकाश में उडा देंगे।'

अमित ने पूछा -क्या कबूतर को खुले आकाश में छोड़ना ठीक होगा। वह फिर घायल हो सकता है। '

बाबा ने समझाया -परिंदों को खुला आकाश पसंद है ,पिंजरे की कैद नहीं।'

 

जीतू ने कहा कि  अस्पताल के कर्मचारी रजत ने उसे साथ में खाना खिलाया है। ,उसने माँगा नहीं था।

रजत बोला -बाबू जी मैं तो हमेशा जीतू से कहता हूँ कि किसी के आगे हाथ न फैलाये ,कोई दूसरा काम करे। कल  इसने एक घायल कबूतर  की जान बचा कर एक अच्छा काम किया ,इसीलिए मैंने इसे अपने साथ खाना खिलाया। मैं तो कहता हूँ अगर यह दूसरों के आगे हाथ न फैलाये,  इसी तरह घायल

परिंदो की मदद करता रहे तो मैं इसे रोज अपने साथ  खाना खिला सकता हूँ।'

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बाबा ने कहा -'भला इससे अच्छी बात और क्या होगी। यह तो सारा दिन इधर से उधर घूमता रहता है। बस यह जब किसी घायल पक्षी को देखे तो यहाँ इलाज के लिए ले आये और तुम इसे अपने साथ खाना खिलाओगे| '

 

;जी बाबूजी।'-रजत ने कहा।

 

लेकिन अगर किसी दिन जीतू कोई घायल पक्षी न ला सके तो क्या इसे खाना नहीं खिलाओगे?-अमित ने पूछा

 

तो क्या हुआ। मेरे लिए इतना ही बहुत है कि यह भीख मांगना छोड़ कर घायल पक्षियों की सेवा करने लगा है।'रजत ने कहा और जीतू की ओर देख कर मुस्करा दिया।

 

जीतू खुश था कि उसे दूसरों के आगे हाथ नहीं फैलाना पड़ेगा।

और फिर वह दिन जब इलाज से ठीक हुए कबूतर की खुले आकाश में उडा दिया गया। तब वहां बाबा,अमित और जीतू मौजूद थे|

अब जीतू ने नया काम संभाल लिया था वह खुश था और सबसे ज्यादा प्रसन्न था अजित क्योंकि कहानी से उसकी दोस्ती हो गई थी। (समाप्त )