पिंजरा खो गया-कहानी-देवेंद्र
कुमार
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वीर परेशान है। उसे दोस्तों के साथ
मेले में जाना है। लेकिन माँ ने मना कर
दिया है।क्योंकि वीर की एक आँख लाल हो रही है। माँ ने कह दिया है कि आँख की लाली कम होने पर ही उसे
मेले में जाने देंगी। इसलिए वीर बार बार दर्पण में अपनी आँख देखता है ,माँ ने कहा-'इस तरह बार बार दर्पण में देखने से लाली कम होने की जगह और भी बढ़ जाएगी।तुम लेट जाओ,मैं दवा डालती हूँ।आराम मिलेगा।'
लेकिन वीर को चैन कहाँ,थोड़ी थोड़ी देर
में दर्पण के सामने खड़ा हो जाता है। आँख की लाली कम नहीं हुई।वह समझ चुका है ,अब मेले में नहीं जा सकेगा। वीर दर्पण के सामने
खड़ा था ,तभी उसने एक
चिड़िया को आँगन में गिरते देखा। अगले ही पल एक बिल्ली चिड़िया पर झपटी। वह
जोर से चिल्ला कर आँगन में दौड़ा तो
बिल्ली भाग गई। वीर ने चिड़िया को उठा लिया और माँ को आवाज़ दी। चिड़िया के पंखों पर
खून लगा था, तब तक वीर की माँ कमला वहां आ गईं। उन्होंने कहा-''अरे,चिड़िया तो घायल है। इसे तो पक्षियों के अस्पताल में दिखाना होगा। लेकिन इसे वहां ले कैसे जायेंगे !और हाँ तेरी
आँखें तो अभी तक लाल हैं।' वीर बोला -'चलो पहले इस घायल
चिड़िया को पक्षियों के अस्पताल ले चलें।'
माँ एक बर्तन ले
आयीं और उसमें कपडा बिछा कर धीरे से चिड़िया को लिटा दिया, फिर बर्तन को एक जाली से ढक
दिया, वीर से कहा-'लेकिन इस तरह वहां कैसे ले जाएंगे घायल चिड़िया को।’
वीर ध्यान से चिड़िया को देख रहा था। उसके पंख धीरे धीरे
काँप रहे थे। तभी माँ ने कहा-'हाँ याद आया ,पड़ोस की रमा दादी के पास एक पिंजरा देखा है मैंने।उनसे मांग
लाओ।चिड़िया को पिंजरे में पक्षियों के अस्पताल ले जाना ठीक रहेगा।‘
पड़ोस की रमा दादी ने पिंजरे में एक तोता पाला हुआ था। तोते के पिंजरे
को वह सदा अपने आस पास रखती थीं। दादी को तोता बहुत प्यारा था। लेकिन एक दिन न
जाने कैसे पिंजरे का दरवाज़ा खुला रह गया और उनका प्यारा तोता उड़ गया। इस बात पर
दादी कई दिन तक उदास रहीं वह हरेक से एक
ही मांग करती थीं कि उन्हें वैसा ही हरियल तोता चाहिए। खाली पिंजरे को सदा अपने आस
पास रखती थीं। उन्हें लगता था जैसे किसी ने उनकी सबसे प्यारी चीज़ छीन ली हो।
माँ ने वीर को रमा
दादी के पास भेज दिया। वीर ने देखा =दादी मटर छील रही थीं और तोते का खाली पिंजरा उनके पास रखा था। वीर ने दादी
के पैर छुए फिर उन्हें चिड़िया के बारे में बताया और कहा-'घायल चिड़िया के लिए पिंजरा चाहिए।
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1
रमा
दादी ने पिंजरे को अपने और पास खींच लिया और कहा-'यह पिंजरा तो मेरे हरियल तोते के लिए है। मैंने कई लोगों से
तोता लाने के लिए कह रखा है। जल्दी ही
कहीं न कहीं से तोता मेरे पास आ जायेगा। इसलिए यह पिंजरा नहीं दे सकती।'
वीर
बोला -'चिड़िया को पक्षियों के अस्पताल ले जाना है। उसे
पिंजरे में ही ले जा सकते हैं। थोड़ी देर के लिए दे दीजिये।‘
'अगर इसी बीच कोई मेरे लिए तोता ले आया तो मैं
क्या करूंगी। तुम अपनी चिड़िया के लिए पिंजरा बाजार से खरीद लो। '
वीर समझ गया कि रमा दादी
आसानी से मानने वाली नहीं। उसने कुछ सोचकर कहा-'मैं वादा करता हूँ कि आपके लिए जल्दी ही एक सुन्दर तोता लेकर आऊंगा,।थोड़ी देर के लिए
पिंजरा दे दीजिये| '
आखिर रमा दादी ने वीर को पिंजरा दे दिया लेकिन एक शर्त लगा
दी कि उसे एक तोता लेकर आना होगा उनके लिए।
वीर ने घायल चिड़िया को पिंजरे में लिटा दिया फिर माँ के साथ
पक्षियों के अस्पताल ले गया। वहां डाक्टर ने चिड़िया की जांच करने के बाद उसके घाव पर दवा लगाते हुए कहा-'इसकी चोट जल्दी ही
ठीक हो जाएगी लेकिन इसके बाद चिड़िया को उडा
देना। पिंजरे में बंद मत रखना|’
'जी,कभी नहीं,वैसे भी यह पिंजरा हमारा नहीं है। चिड़िया को यहां लाने के
लिए किसी से उधार लिया है।'
डाक्टर ने एक दिन बाद चिड़िया को फिर दिखाने के लिए कहा|
अगले दिन- वीर माँ के साथ बाजार जा रहा था तो रमा दादी बालकनी में खड़ी थीं। उन्होंने
पुकारा-'वीर, पिंजरा कब
लौटाओगे ,और तोता लाने का वादा याद है न ?'
वीर ने कहा -'दादी,प्रणाम। मैं जल्दी ही आपके लिए एक तोता लेकर आऊंगा।'
माँ न पूछा -दादी
के लिए तोता कहाँ से लाओगे! पता है न कि पक्षियों की खरीद और बिक्री पर प्रतिबन्ध है| ’
'मालूम है माँ,पर मुझे रमा दादी को एक तोता भेंट करना ही है।'-कह कर वीर मुस्करा दिया।
'और उनका पिंजरा भी तो वापस करना है। '
'मैं उनका पिंजरा लौटने वाला नहीं।'
' क्यों?'
वीर
चुप रहा।
2
चिड़िया
की चोट ठीक हो गई। वीर पिंजरा लेकर छत पर चला गया।उसने पिंजरे का दरवाज़ा खोल दिया, चिड़िया कुछ देर तक पिंजरे में ही रही और फिर
उड़ गई। आकाश में बहुत से परिंदे उड़ रहे थे। वीर देखता रहा कि चिड़िया कहाँ गई ,पर कुछ पता न चला।
अब दादी की शर्त पूरी करने की बारी थी। एक शाम वह एक झोला
लेकर दादी के पास जा पहुंचा।
रमा दादी ने पूछा ‘-पिंजरा कहाँ है, और वह तोता जिसे
लाने का वादा किया था तुमने?'
वीर ने झोले में से एक खिलौना तोता बाहर निकाल कर कहा -'लीजिये अपना तोता दादी।’
वीर ने खिलौना तोते का बटन दबाया तो तोते के पंख हिले ,उसकी चोंच खुली और सुनाई दिया-
मैं एक तोता हूँ। मैं हरी मिर्च खाता हूँ।'वीर ने कई बार यह क्रिया दोहराई। दादी अपलक देख रही थीं। उन्होंने कहा -'यह तो खिलौना है, मेरा तोता तो
जीवित था। '
वीर ने
कहा-'अब पक्षियों की खरीद और
बिक्री पर प्रतिबन्ध है। मुझे कहीं कोई चिड़ीमार परिंदे बेचता हुआ नहीं मिला।
मैं बहुत ढूंढ कर यह तोता आपके लिए लाया
हूँ। '
‘और मेरा पिंजरा कहाँ है?'-दादी ने गुस्से से कहा।
'दादी,खिलौना तोते के लिए पिंजरे की जरूरत नहीं होगी।आप
इसे कही भी रख सकती हैं, बच्चे इससे खेल
सकते हैं |’ उसने आकाश की ओर
इशारा किया –‘दादी, परिंदे आकाश में उड़ते हैं, उस चिड़िया को भी मैंने ऊपर उडा दिया|अब तो गुस्सा छोड़ दो मेरी प्यारी दादी। 'कह कर वीर ने
दादी के पैर छू लिए।
रमा दादी ने उसे गोद में भर लिया, कहा-'शैतान कहीं का।'वह मुस्करा रही थीं। खिलौना तोता बोल रहा था -'मैं हरी मिर्च खाता हूँ। '
वीर घर आ गया। टूटा हुआ पिंजरा कूड़े दान में पड़ा था। ।(समाप्त ) ,