Saturday 29 April 2023

टूटा पंख -कहानी-देवेंद्र कुमार

 

टूटा पंख -कहानी-देवेंद्र कुमार

 

 

एक था किसान। तेज धूप में भी खेत में मेहनत कर रहा था। खेत के किनारे एक पेड़ था हरा-भरा, छायादार। पेड़ की ओर देखता तो मन करता कुछ देर आराम कर लें। पर फिर सोचता, “बस थोड़ा काम और निपटा लूँ, तब आराम करूँ।

तभी दो घुड़सवार वहाँ आकर रुके। घोड़े थकान और गर्मी से हाँफ रहे थे। दोनों सवार भी बेहाल थे। घोड़ों को पेड़ से बाँधा, फिर छाया में जा बैठे। अब किसान ने भी काम रोक दिया। जाकर उन्हें पानी दिया। हाल-चाल पूछने लगा। उन्होंने बताया, “हम राजधानी जा रहे हैं। दरबार में नौकरी मिली है। आज ही पहुँचना है। हम दूर से रहे हैं।

किसान भय और सम्मान के भाव से दोनों को देखने लगा। उसने तो बस राजा का नाम ही सुना था। राजधानी के भी किस्से ही सुने थे। उसे अपने काम से ही फुरसत नहीं मिलती थी। दोनों घुड़सवारों के पास भोजन था। उन्होंने भोजन किया तभी चिड़ियों का झुंड आकर जूठन चुगने लगा। पेड़ की शीतल छाया में बैठकर चिड़ियों की चहचहाहट सुनना किसान को अच्छा लगा, लेकिन तभी आनंद में बाधा पड़ी। दोनों सवारों ने एकाएक पत्थर उठाए और चिड़ियों पर फेंके। एक को छोड़ बाकी चिड़ियाँ उड़ गईं। वह इसलिए नहीं उड़ सकी क्योंकि पत्थर लगने से घायल हो गई थी। टूटे पंख पर खून दिखाई दे रहा था।

किसान का मन हुआ कि उन्हें कुछ कहे। भला चिड़ियों ने उनका क्या बिगाड़ा था, लेकिन चुप रहा। राजा के नाम से वह कुछ घबरा गया था। वह देखता रहा। दोनों व्यक्ति उठे और घोड़ों पर बैठकर वहाँ से चले गए। किसान ने घायल चिड़िया को उठाकर खून साफ किया, लेकिन पंख टूटने के कारण वह उड़ने से लाचार हो गई थी। किसान को उन घमंडी घुड़सवारों पर गुस्सा रहा था लेकिन वह भला क्या कर सकता था।

किसान चिड़िया को घर ले गया। पंख टूटी चिड़िया को खेत में छोड़ता तो जानवर उसे मार डालते। उसने चिड़िया को पिंजरे में रख दिया। उसे दाना-पानी दिया, लेकिन ऐसा क्या हमेशा चल सकता था‌?

                             1

दिन बीत रहे थे। किसान रोज चिड़िया का पिंजरा अपने साथ ले जाता और पेड़ की डाल से लटका देता। जब-जब उसे देखता तो मन में गुस्से की लहर उठने लगती। सोचता, ‘क्या ऐसे ही होते हैं राजा के लोग ! तो फिर राजा कैसा होगा?’

एक महीने बाद, संयोग से मुखिया के साथ राजधानी जाना हुआ। किसान चिड़िया का पिंजरा भी साथ ले चला। मुखिया ने पूछाइसे क्या राजा को भेंट देगा?”

किसान ने कहा, “हाँ।उसके मन में एक बात आई थी। मुखिया के साथ महाराज के दर्शन की अनुमति मिली। किसान ने पिंजरा महाराज के सामने रख दिया।

राजा हैरान ! पिंजरे में बंद घायल चिड़िया= ऐसा उपहार तो किसी ने आज तक नहीं दिया था। क्या यह किसान पागल है? राजा ने पूछ लिया, “क्या है यह?”

महाराज, यह चिड़िया अपनी शिकायत कहने आई है। न्याय चाहती है?”

मुखिया को लगा, वे दोनों कारागर में बंद कर दिए जाएँगे। किसान को साथ लाकर पछता रहा था।

पूरी बात बताओ।राजा ने कहा।

किसान को भय नहीं लगा। उसने पूरी घटना बता दी। कहा, “महाराज, इस चिड़िया का कोई दोष नहीं था। अपने टूटे पंख के कारण अब यह कभी नहीं उड़ सकेगी।

राजा ने कुछ सोचा। कहने लगे, “ठीक-ठीक याद करके बताओ यह घटना किस दिन हुई?”

महाराज! आज पूरे दो महीने हो गए।किसान बोला।

राजा ने आदेश दिया, “पिछले दो महीनों के दौरान नियुक्त राजकर्मचारियों को हाजिर करो।

थोड़ी देर बाद अनेक राजकर्मचारी दरबार में हाजिर थे। सब घबरा रहे थे। राजा ने पूछा, “इस चिड़िया को देखो। कोई पहचानता है इसे?”

कैसी विचित्र बात! भला चिड़िया को कोई कैसे पहचान सकता था? सबने मना कर दिया।

लेकिन चिड़िया तुममें से दो जनों को पहचानती है।राजा ने कहा। किसान ने उन दोनों कर्मचारियों की ओर संकेत कर दिया था। राजा ने उन दोनों से आगे आने को कहा। बोला, “तुम दोनों ने इस चिड़िया पर पत्थर फेंके थे। यह ठीक दो महीने पहले एक किसान के खेत में हुआ था। झूठ मत कहना। वह किसान भी यहाँ मौजूद है।दोनों ने किसान को देखा तो घबरा गए। उन्हें तो ठीक से याद भी नहीं था कि उस दिन क्या हुआ था। बस, हल्की-सी याद भर थी, लेकिन किसान और पिंजरे में बंद चिड़िया को देखकर पूरी घटना याद ही गई। वे कुछ बोल सके। सिर झुकाए खड़े रहे। फिर कहा, “हमसे भूल हुई। क्षमा दीजिए महाराज।

कभी नहीं! मेरी नौकरी में आने से पहले ही तुममें इतना अहंकार गया। जो कुछ तुमने चिड़िया के साथ किया, वही जनता के साथ नहीं करोगे, इसका क्या ठिकाना। मैं तुम्हें इसी समय नौकरी से अलग करता हूँ। आज अँधेरा होने से पहले राजधानी छोड़ कर  निकल जाओ, नहीं तो कड़ा दंड मिलेगा।

दोनों अपराधी सन्न खड़े थे। दरबार में खामोशी थी। एक घायल चिड़िया इस तरह शिकायत कर सकती थी, ऐसी कल्पना तो किसी को नहीं थी।

किसान संतुष्ट था और पंख- टूटी चिड़िया इस सबसे बेखबर पिंजरे में फुदक रही थी। राजा ने किसान से कहा, “इन अपराधियों को दंड दिलवाकर तुमने इनाम के लायक काम किया है। बोलो, क्या चाहिए?”

महाराज, मेरा इनाम तो मिल गया। चिड़िया नहीं जानती, लेकिन उसे न्याय मिल गया है। मुझे और कुछ नहीं चाहिए। अब कर्मचारी ऐस करते हुए डरेंगे।

राजा ने देना चाहा, पर किसान ने कुछ नहीं लिया। भला चिड़िया की तकलीफ का क्या मूल्य हो सकता था। उसने कहा, “महाराज, मैं इसी चिड़िया को वापस गाँव ले जाना चाहता हूँ।

लेकिन इसे तो तुम भेंट देने के लिए लाए थे।राजा मुस्कराया।

महाराज, मेरे जैसा गरीब किसान भला क्या भेंट दे सकता है आपको। यह बेचारी तो न्याय माँगने आई थी।

ठीक है, तुम इसे ले जा सकते हो, लेकिन एक बात  है।

क्या महाराज!” अब किसान कुछ डरा। मालूम राजा क्या शर्त लगा दे।

यदि भविष्य में ऐसी कोई घटना देखो तो हमें तुरंत बताना। डरना मत।

अब किसान की जान में जान आई वह तो बिना बात घबरा रहा था। उसने हँसते हुए सिर झुका दिया।

अगले दिन गाँव पहुँचा तो राजा से मिलकर आई चिड़िया को देखने सारा गाँव जुटा। किसान के पैर जैसे धरती पर नहीं पड़ रहे थे। उसने कहा, “महाराज ने कहा है कि यह चिड़िया जब चाहे उनसे मिल सकती है।

और तुम?” किसी ने पूछा।

मुझे तो उन्होंने इस चिड़िया की देखभाल की नौकरी पर रख दिया है। अब ठीक से काम करना होगा। वरना क्या ठिकाना, अपनी भी शिकायत हो जाए।

किसान की बात पर जोर का ठहाका लगा |और पंख- टूटी चिड़िया, उसी तरह पिंजरे में फुदक रही थी। शायद उसे पता चल गया था कि उसे न्याय मिल गया है।(समाप्त )