Saturday 31 July 2021

उड़ गईं छतरियाँ- कहानी-देवेंद्र कुमार ========

 

  उड़ गईं छतरियाँ- कहानी-देवेंद्र कुमार

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बारिश रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी। आकाश में घने काले बादल दौड़ रहे थे और नीचे सड़कों पर रंग-बिरंगे छातों की भीड़ थी। हरा, नीला, पीला, काला और भी कई रंगों के छाते पानी में भीगकर रोशनी में चमक रहे थे।

 

बारिश में सबसे ज्यादा परेशानी भीखू को होती थी। बारिश में छाता लगाए जल्दी-जल्दी घरों की ओर दौड़ते लोगों से भीख नहीं माँगी जा सकती थी। हाँ भीखू गली-बाजार में घूमकर भीख माँगता था। शायद इसीलिए किसी ने उसका नाम भीखू रख दिया था। पूछने पर वह भी अपना नाम भीखू ही बताता था, यानी उसे भिखारी से मिलते-जुलते अपने नाम से कोई दिक्कत या शिकायत नहीं थी।

 

जब भी कोई भीखू कहकर पुकारता तो वह उसकी ओर मुस्कराकर देखता था। लगातार मुस्कराने की इस आदत के कारण ही लोग उसे पसंद करते थे और भीख भी आसानी से मिल जाती थी। कई बार भीखू भीख माँगता, कोई छोटा-मोटा काम करता-- बोझा ढोता, बड़े-बूढ़ों और बच्चों को सड़क पार कराता, मुस्कराता और चला जाता।

 तो उस दिन सारा समय रुक-रुककर बारिश होती रही। जब बारिश थोड़ी धीमी होती तो भीखू फुटपाथ पर बैठता और जब तेज होती तो किसी जगह जाकर खड़ा हो जाता बूँदों की मार से बचने के लिए।

 

अँधेरा गाढ़ा होने लगा। आज भीखू का दिन बुरा बीता था। आज वह मुस्कराया नहीं था, छाते लगाए तेजी से बढ़ते लोगों को देखकर उसे मन-ही-मन चिढ़ हो रही थी। तभी खट की आवाज के साथ एक सिक्का उसके सामने रखे कटोरे में गिरा जिसमें पानी भरा था। भीखू बड़बड़ाया, “आज तो अगर छाता मिल जाए या कोई भला आदमी भीख में बरसाती दे दे तो बात बने। आज सिक्कों की भीख से बात बनने वाली नहीं।

 

तभी नाटे कद का एक आदमी झाड़ियों के पीछे से उसके पास खड़ा हुआ। वह देखने में किसी बच्चे जैसा लग रहा था, पर वह बच्चा नहीं बौना था। वैसा बौना नहीं जिसे हम कभी-कभी अपने आस-पास देखते हैं। वह था जमीन के अंदर रहने वाला बौना। जमीन के अंदर तो बारिश होती नहीं। इसलिए जब बारिश होती तो कई बौने ऊपर जाते। उन्हें बरसती बूँदों की आवाज भली लगती थी। परियाँ आकाश के परीलोक में रहती हैं और बौने जमीन के अंदर। कहते हैं परियों की तरह बौने भी जादू जानते हैं, पर निश्चय ही उनका जादू परियों जितना शक्तिशाली नहीं होता। और फिर बौने कुछ शरारत-पसंद, मजाकिया भी होते हैं।

 

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 भीखू बारिश को कोस रहा था और लोगों के प्रति उसके मन में गुस्सा उभर रहा था. तभी बौने ने उसकी बड़बड़ाहट सुन ली। बौने ने देखा भीखू बारिश में भीग रहा था और हड़बड़ाए लोग छातों की सुरक्षा में अपने-अपने घरों की ओर तेजी से चले जा रहे थे।

 

तभी बारिश रुक गई और एकाएक तेज हवा बहने लगी। हवा इतनी तेज थी मानो कोई तूफानी अंधड़ चल रहा है। और इससे पहले कि कोई कुछ समझ पाता, आदमियों और औरतों के हाथों के छाते एक झटके से आकाश में उड़ गए, मानो वह छतरियाँ नहीं, गैस से भरे गुब्बारे हों।

 

सब तरफ सेअरे-अरे मेरा छाता...’ की आवाजें सुनाई देने लगीं। लेकिन पलक झपकते ही छतरियाँ लोगों के हाथों से निकलकर उड़ गईं। कोई कुछ नहीं कर सका। छाते उड़ते ही हवा जैसे जादू के जोर से थम गई और फिर शुरू हुई जोर की बारिश। यह बरसात बहुत तेज थी और बिना छातों के लोग एकदम भीग गए।

 

भीखू भी हड़बड़ा उठा। तभी उसने देखा कि उसके पास फुटपाथ पर एक छाता पड़ा है। भीखू ने छाता उठाकर कई बार खोला और बंद किया। वह समझ पाया कि छाता कौन दे गया था। तभी उसने एक नाटे कद के आदमी को जोर-जोर से हँसते देखा।

 

भीखू ने कहा, “पता नहीं यह छाता कौन छोड़ गया यहाँ?”

 

यह छाता मैंने दिया है तुम्हें। तुम अपने मन में छाते के बारे में सोच रहे थे और मैंने तुम्हारे मन की इच्छा पूरी कर दी।

 

भीखू ने कहा, “लेकिन यह तो एकदम नया छाता है। मैं इसे कैसे ले सकता हूँ, और तुम्हें तो मैंने आज पहली बार देखा है। यह तो कहो, तुमने मेरे मन की इच्छा को कैसे जान लिया?”

 

भीखू की बात सुनकर बौना फिर हँस पड़ा। उसने कहा, “देखो भीखू, हम बौने किसी के भी मन की बात बिना कहे ही समझ जाते हैं। हम जमीन के अंदर रहते हैं।

 

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परियों और बौनों के बारे में भीखू ने भी सुना था। वह कुछ डर गया। उसने कहा, “नहीं, मुझे यह छाता नहीं चाहिए। जो भी इस छाते को मेरे हाथ में देखेगा वही मुझे चोर समझेगा। यही साचेगा कि मेरे जैसे फटीचर भिखारी के पास यह छाता चोरी का ही हो सकता है।

 

बौना फिर हँसा। उसने कहा, “लोगों की चिंता करो। यह छाता तुम्हारे अलावा किसी दूसरे को दिखाई नहीं देगा, क्योंकि यह जादुई है और यह तुम्हें जमीन के नीचे रहने वाले बौने ने दिया है। तुम इसे रख लो। और हाँ, अभी तुमने लोगों के हाथों में थमे छाते उड़ते हुए देखे होंगे। वह भी मैंने किया था। तुम्हें लोगों पर गुस्सा था कि कोई छतरी भीख में क्यों नहीं दे सकता। असल में लोग स्वार्थी हैं। वे अपने अलावा किसी दूसरे के बारे में सोचते ही नहीं। मैंने उन लोगों के छाते उड़ाकर उनसे तुम्हारा बदला ले लिया है। क्यों अब तो खुश हो तुम।

 

भीखू ने देखा बारिश फिर तेज हो गई थी। लोग बिना छाते भीगने पर मजबूर थे। भीखू को बौने पर जोरों का गुस्सा गया। उसने बौने का दिया छाता फेंकते हुए कहा, “मुझे नहीं चाहिए तुम्हारा छाता। अरे, कैसे आदमी हो तुम! तुमने यह कैसे समझ लिया कि मैं लोगों से नाराज हूँ। वे सब मेरे अपने हैं। मेरा जीवन उन्हीं के सहारे चलता है। देखो तुम्हारी वजह से निर्दोष लोगों को कितनी मुश्किल का सामना करना पड़ा है। बच्चे-बूढ़े सभी तो भीग रहे हैं। नहीं, नहीं, यह तुमने अच्छा नहीं किया।

 

बौना ध्यान से भीखू की बात सुन रहा था। उसने कहा, “अगर तुम इन लोगों से नाराज नहीं हो तो ठीक है। मैं तो तुम्हारी मदद करने की कोशिश कर रहा था।कहकर बौने ने हाथ हिलाया-- छाते जैसे आकाश में उड़ गए थे उसी तरह फिर से हाथों में लौट आए।

 

अरे-अरे यह मेरा छाता वापस गया, लेकिन कैसे?” सब तरफ से ऐसी अचरज भरी आवाजे सुनाई देने लगीं। बौना अपना छाता उठाकर गायब हो गया था। बारिश हो रही थी और भीखू पहले की तरह फुटपाथ पर बैठा था। उसका मन शांत था।(समाप्त)