Friday 1 December 2023

काली कलम=देवेंद्र कुमार

 

काली कलम=देवेंद्र कुमार

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आज के दिन बाबाजी को काली कलम की जरुरत पड़ती है यह बात अजय को अच्छी तरह पता है।  आज१२ दिसम्बर है। आज के दिन बाबा काली कलम जरूर हाथ मैं लेते हैं।  शुरू में उसे यह बात चकित करती थी पर अब नहीं। क्योंकि एक दिन उसने यह बात पापा से पूछी तो उन्होने बताया था। वह  बोले –‘’ इसके पीछे एक दुःख भरी घटना है। आज तुम्हारी दादी की पुण्यतिथि है।  आज ही के दिन उनका स्वर्गवास हुआ था’’

पापा की बात सुन कर अजय को बहुत अचरज हुआ। वह सोचने लगा –‘भला दादी को याद करने का यह कौन सा तरीका हुआ? उसने पिछले साल १२ दिसम्बर को देखा था कि सुबह सुबह बाबा ने एक कागज लिया और फिर उस पर काली कलम से लकीरे खीचने लगे, उसके बाद लिखा -१२ दिसम्बर। इसके बाद बाबा कमरे से बाहर चले गये। मौक़ा देख कर अजय कमरे मैं चला गया और बाबा का  बनाया चित्र वह  देर तक देखता रहा पर कुछ समझ में नहीं आया। बाबा ने कागज पर जो कुछ बनाया था वह ठीक नहीं लग रहा था। कागज पर बनी रेखाओं मे दादी कहीं नहीं दिख रहीं थीं।

उसने पिता से पूछा तो वह बोले –‘’ मैं तो बहुत दिनों से देखता आ रहा हूँ, पर मैने कभी तुम्हारे बाबा से इस बारे में बात नहीं की। मैं समझता हूँ कि वह तुम्हारी दादी के जाने से बहुत दुखी हैं और १२ दिसम्बर के दिन उन्हे इसी तरह याद करते हैं।’’

 अजय ने कहा –‘’ पर पापा, बाबा ने जो कुछ बनाया है वह दादी का चित्र तो नहीं है।’’तब अजय के पापा ने कहा –‘’ दादाजी तुम्हारी दादी को इसी तरह याद करते हैं। यह बात तुम्हे पता नहीं, क्योंकि तब तुम बहुत छोटे थे।’’

अजय बोला – ‘’लेकिन उन्होने दादी का चित्र तो नहीं बनाया है।’’

पापा बोले ;’’–हाँ तुम ठीक कह रहे हो पर यह भी समझो कि तुम्हारे बाबा चित्रकार तो हैं नहीं, वह तो उन रेखाओं के माध्यम से अपनी भावना व्यक्त कर देतें हैं।’’

लेकिन घर में दादी के कितने फोटो  देखे हैं पुराने एल्बम में  मैने। बाबा उन  को भी तो सामने रख सकते हैं टेबल पर अपने सामने|’’ अजय ने कहा।

 “हाँ ,तुम ठीक कह रहे हो ,पर यह सुझाव उन्हे कौन दे ।’’  अजय के पापा ने कहा।

अजय देर तक इस बारे मैं सोचता रहा फिर पुराना एल्बम उठा लाया और देर तक देखता रहा, कुछ देर बाद बाबा के कमरे मैं गया तो देखा बाबा वहां नहीं हैं। टेबल पर काली कलम से बना रेखाचित्र रखा था। अजय ने वह चित्र उठाया और उसकी जगह एल्बम रख दिया ,फिर उसका वह पेज खोल दिया जिस पर बाबा और दादी के कई फोटो लगे थे। उन सभी में  दोनों साथ खडे थे। फिर चुपचाप बाहर चला आया। यह बात उसने पापा को बताई तो वह नाराज होने लगे। तभी बाबा आ गये, घर में  चुप्पी छा गयी। सब सोच रहे थे कि अब न जाने क्या होगा बाबा के कमरे से कोई आवाज नहीं आ रही थी। अजय ने झांक कर देखा बाबा एल्बम के पेज पलट रहे थे, वह काफी देर तक एल्बम देखते रहे फिर पुकारा –‘’यह एल्बम कौन रख गया यहाँ ?’’     

पापा ने अजय की ओर  देखा जैसे कह रहे हों अब तुम जानो। अजय कुछ देर सकुचाता हुआ खडा रहा फिर अन्दर जाकर बोला –‘’ जी,मैने रखा है। आज दादी की पुण्य तिथि हैं न इसीलिए देख   रहा  था। आप और दादी कितने अच्छे लग रहे हैं साथ साथ इन फोटोग्राफ्स में।’’

बाबा के चेहरे पर मुस्कान आ गयी, अजय को गोद मैं भर कर बोले –‘’ ये फोटो  अलग अलग समय पर खीचे गये थे।’’ इसके बाद बाबा देर तक उसे  अपने और अजय की दादी के चित्रों का इतिहास बतलाते रहे, बीच बीच मैं वे मुस्करा भी देते थे, पूरे घर में उन दोनों की हंसी गूँज रही थी। अब बाबा उदास नहीं थे। जब अगला १२ दिसम्बर आया तो बाबा ने पेपर और काली कलम को हाथ नहीं लगाया, उनकी टेबल पर एल्बम खुला हुआ रखा था। उन्होने अजय को पुकारा –‘’अजय, क्या अपनी दादी से नहीं मिलोगे?’’     

     अजय मुस्कराता हुआ बाबा के पास चला आया। अब बाबा को काली कलम की जरुरत नहीं। यह बात अजय पहले ही जान चुका था (समाप्त )

सर्दी की चादर--कहानी-देवेंद्र कुमार

 

 

सर्दी की चादर--कहानी-देवेंद्र कुमार  

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स्कूल में चित्रकला प्रतियोगिता हुई। सबसे अच्छे तीन चित्रों को पुरस्कार मिला। उसमें रचना का बनाया गुलाब के पौधे का चित्र भी था। स्कूल की ओर से तीनों विजेताओं को पुरस्कार दिए गए। समारोह समाप्त होने के बाद  रचना की माँ प्रतिभा प्रिंसिपल से मिलीं। पुरस्कार के लिए धन्यवाद दिया। फिर कहा- रचना बताती है कि स्कूल के बाग में गुलाब के बहुत सुंदर-सुंदर पौधे हैं।

हां हैं तो सही। हमें बच्चों के साथ-साथ फूलों से भी प्यार हैं।प्रिंसिपल ने कहा। फिर प्रतिभा और रचना को प्रिंसिपल गुलाब वाटिका दिखाने ले गई|

रचना एक छोटे से गमले में लगे सुंदर गुलाब के सामने जा खड़ी हुई और देर तक खड़ी देखती रही। लगा वह कुछ कहना चाहती है, पर कह नहीं पा रही है। प्रिंसिपल ने पूछा- रचना, क्या गुलाब का पौधा तुम्हें पसंद है? क्योंकि तुम काफी देर से इसके सामने खड़ी हो।‘’

उत्तर में रचना कुछ बोली नहीं, पर धीरे से हां में सिर हिला दिया। उसकी आंखें अब भी गुलाब के फूलों पर टिकी थीं। रचना की मां ने कहा- इसे फूलों से बहुत प्यार है।

प्रिंसिपल हंस पड़ीं। फिर उन्होंने ब्रश व पेंट लेकर गुलाब के गमले पर लिख दिया – रचना| फिर बोलीं-- अब यह गुलाब रचना का हो गया। यह इस गमले को घर ले जा सकती है।

प्रिंसिपल से गुलाब का उपहार पाकर रचना बहुत खुश हुई। दोनों माँ-बेटी ने उन्हें धन्यवाद दिया और घर चली आईं  पूरे रास्ते रचना गुलाब के गमले को गोद में लिए बैठी रही, गमले  का  रंग उसके कपड़ों पर लग गया|माँ ने पौधे को नीचे रखने को कहा,पर रचना ने मना  कर दिया.वह गुलाब को एक पल के लिए भी अपने से अलग नहीं करना चाहती थी। रचना ने घर पहुँच कर  गुलाब का गमला अपने पलंग के पास टेबुल पर रख दिया।

मां ने कहा-रचना, क्या तुम इस गुलाब के गमले को यहीं रखोगी?” मां ने कई बार रचना को समझाया कि गुलाब वाले गमले को सोसायटी के बाग में रखवा दे जहां तरह-तरह के फूलों के बहुत सारे गमले रखे हुए थे। उनकी देखभाल एक माली करता था। पर रचना उनकी बात मानने को तैयार ही नहीं हुई।

बीच में स्कूल में चार दिन की छुट्टी हुई तो रचना अपने मम्मी डैडी के साथ अपनी नानी के घर मिलने गई।

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हम चार दिन नहीं रहेंगे। हमें गुलाब को पौधे को नीचे बाग में रख देना चाहिए.माली दूसरे पौधों के साथ तुम्हारे गुलाब की भी देखभाल कर लेगा।”- माँ ने समझाया।

रचना ने गुलाब के गमले पर प्यार से हाथ फिराया, फिर बोली- कोई मेरे प्यारे गुलाब को चुराकर ले गया तो? नहीं, मैं इसे अपने कमरे में ही रखूंगी।

चार  दिन नानी के घर मजे करने के बाद रचना लौटी तो सबसे पहले अपने गुलाब के पास गई। फिर जोर से चीखी- मम्मी, जल्दी आओ, देखो तो मेरे गुलाब को क्या हो गया!

रचना की मां प्रतिभा दौड़कर गईं तो देखा रचना गुलाब के गमले के पास उदास बैठी है। मां को देखते ही बोली- देखो मेरे गुलाब को।

प्रतिभा ने देखा- गुलाब के कई फूल झर गए थे। कई मुरझाकर लटक रहे थे। उन्होंने कहा- बेटी, मैंने कहा था न हमारे पीछे से कौन फूलों की देख-भाल करेगा। देखो पानी और ताजी हवा न मिलने से तुम्हारा पौधा बीमार हो गया है। पहले हमें इसे स्वस्थ करना है।

वह कैसे होगा?” रचना ने कहा।

प्रतिभा ने तब तक माली को बुला लिया था। उन्होंने रचना को समझाया- इसका तरीका यही है कि गुलाब के पौधे को हम माली भैया को सौंप दें।‘’ मां के समझाने पर रचना मान गई। जब माली गुलाब के पौधे को उठाकर नीचे ले गया तो रचना भी उसके साथ गई, फिर माली को बताया कि वह गमले को कहां रखे। गमले को ऐसी जगह रखा गया था जो प्रतिभा की बालकनी से साफ दिखाई देती थी। गमला रखवाने के बाद रचना ने बाल्कनी में जाकर स्वयं देखा तब कहीं उसकी तसल्ली हुई।

माली भैया, मेरे गुलाबों का ध्यान रखना।रचना ने कहा तो माली बोला- बेबी, बाग के सारे फूल मेरे बेटी-बेटों की तरह हैं। मैं तो सबका ध्यान रखता हूँ।

मौसम बदल रहा था। एकाएक रात को तेज ठंड पड़ने लगी थी। गमले में गुलाब का पौधा तो था, पर फूल नजर नहीं आते थे। उसके पूछने पर माली तसल्ली देता था- बेबी, जब मौसम कम ठंडा होगा तब फूल फिर से आयेंगे तुम्हारे गुलाब पर।

रचना की बालकनी के सामने वाले हिस्से में धूप नहीं आती थी इसलिए माली गमले को उठाकर दिन में दूसरी तरफ धूप में रख देता था। शाम को फिर गमला पुरानी जगह पर लौट आता था। एक दिन रचना ने देखा तो गमला अपनी जगह नहीं था। घबराकर दौड़ी-दौड़ी माली के पास जा पहुँची

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 मेरे फूल, मेरा गमला!’’ वह इतना ही कह पाई थी कि माली उसका हाथ पकड़कर धूप में रखे गमले के पास ले गया। रचना ने गमले पर अपना नाम देखा तो खुश हो गई।

उस रात सोते-सोते रचना को एक सपना आया। उसने देखा ठंडी हवा चल रही है। उसके गुलाब की पंखुड़ियां थर-थर कांप रही हैं। आवाज आ रही है- रचना, मुझे ठंड लग रही है और तुम हो कि आराम से गरम बिस्तर में सो रही हो।

सुबह उसने प्रतिभा से कहा- मम्मी, मुझे रात को सपना आया था और फिर मैंने रात के अंधेरे में खिड़की से देखा तो सचमुच मेरा गुलाब हवा से कांप रहा था।

प्रतिभा हंसकर बोली- बेटी, पेड़ पौधे इसी तरह रहते हैं। आखिर उनके पैर तो हैं नहीं जो सर्दी लगने पर चलकर बंद जगह में पहुँच जाएं। दिन में इसीलिए तो माली गमलों को उठाकर धूप में रखता है ताकि उन्हें धूप मिल सके।

हमें अपने गुलाब के लिए कुछ तो करना चाहिए।रचना ने कहा और सारा दिन सोचती रही।शाम को उसने मम्मी की शाल उठाई और नीचे जाकर गुलाब के पौधे को अच्छी तरह ढक दिया.

प्रतिभा ने खिड़की से बेटी का कारनामा देखा तो हंस पड़ी। रचना ऊपर आई तो उन्होंने कहा- बेटी, यह क्या खेल कर रही हो। आखिर तुम्हारा गुलाब का पौधा ही तो अकेला नहीं है। क्या सर्दियों में कोई पूरे जंगल को उढ़ाता है, या बारिश और तेज धूप में उन के ऊपर एक विशाल छतरी तानता है? यह पागलपन है। प्रकृति अपने तरीके से पेड़ पौधों की रक्षा करती है।

पर मां, वह तो मेरा गुलाब है। उसका ध्यान तो मुझे ही रखना होगा।रचना ने कहा।

उस रात रचना आराम से सोती रही। रात में उसने एक बार उठकर नीचे झांका पर साफ-साफ कुछ नजर न आया। पर उसे तसल्ली थी कि कम से कम उसका गुलाब तो सर्दी से बचा रहेगा। सुबह नींद खुलते ही उसने नीचे झाँका तो सन्न रह गई। रात को उसने जो शाल गुलाब पर डाला था, वह दूर जमीन पर पड़ा था।

रचना ने चिल्लाकर पुकारा- माली भैया, जरा ऊपर तो आना,’’ फिर उसके उत्तर देने से पहले ही खुद नीचे भाग गई। उसने पूछा- माली भैया, मेरे गुलाब पर से शाल किसने उतारा?”

रात में तेज हवा चल रही थी। इसीलिए उड़ गया होगा।माली ने कहा। रचना ने देखा माली के बदन पर केवल एक पतली कमीज थी, हवा उस समय भी तेज भी और वह ठंड से कंपकंपा रहा था।

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तब तक प्रतिभा भी नीचे आ गईं । उन्होंने कहा- रचना, मैंने तुम्हें बताया तो था कि पेड़-पौधे सरदी में रजाई नहीं ओढ़ते। उनकी देखभाल प्रकृति अपने आप करती है या फिर हमारे माली भैया करते हैं।प्रतिभा ने जमीन पर पड़ी शाल उठा ली, फिर माली से ऊपर आने को कहा। उन्होंने माली को खाली कमीज में सर्दी में कंपकंपाते देखा लिया था।

माली कुछ देर बाद ऊपर आया तो प्रतिभा ने गरमागरम चाय और कुछ खाने को सामने रख दिया, फिर रचना के पापा की कमीज और स्वेटर निकालकर देते हुए कहा- इन्हें पहन लो। अगर तुम्हें ठंड लग गई तो फिर रचना के गुलाब कैसे ठीक रहेंगे।कहते हुए उन्होंने अपनी शाल रचना को थमा दी जिसे रचना ने रात में गुलाब के पौधे को उढ़ाया था। उनकी आंखें अब रचना पर टिकी थीं।

उनकी बात शायद रचना के मन तक पहुँच गई। रचना ने शाल माली को थमा दी। बोली- माली भैया, तुम सुबह बहुत सवेरे बाग में आ जाते हो। जब आओ तो यह शाल ओढ़कर आना। मम्मी ठीक कह रही हैं , अगर तुम बीमार पड़ गए तो फिर मेरे गुलाब की देखभाल कौन करेगा।‘’

माली ने हौले से रचना का माथा छू दिया। बोला- बेबी, मैंने कहा था न सब पौधे मेरे अपने बच्चों जैसे हैं, फिर तुम्हारा गुलाब तो मेरे लिए खास है।कहकर माली नीचे उतर गया।

रचना को मां ने गोद में भर लिया। पीठ थपथपाती हुई बोली- सब ठीक हो जाएगा, और सिर्फ तेरे गमले के गुलाब ही तो नहीं हैं। बाग के सारे फूल-पेड़, पौधे हम सबके हैं। हमें किसी एक का नहीं, सबका ध्यान रखना है।

रचना चुप खड़ी थी। ( समाप्त)

Wednesday 29 November 2023

फूलों की किताब - कहानी-देवेंद्र कुमार

 

 

फूलों की किताब - कहानी-देवेंद्र कुमार

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अमर हाउसिंग सोसाइटी में आज विशेष समारोह था। हर तरफ गहमागहमी और भागदौड़ थी और क्यों हो, हाल ही में अमर सोसायटी को विशेष पुरस्कार मिला था इलाके में सर्वश्रेष्ठ उद्यान के रख रखाव के लिए। इनाम में सरकार की तरफ से एक ट्राफी और नकद दिया गया था। सचमुच सोसाइटी के उद्यान की सुंदरता देखते ही बनती थी। करीने से कटी-छंटी हरी घास जो गुदगुदे कालीन जैसी लगती थी। सब तरफ क्यारियों गमलों में रंग-बिरंगे फूलों की बहार थी।

जब से सोसाइटी के उद्यान को यह पर्यावरण पुरस्कार मिला था, रामबरन की इज्जत बढ़ गई थी। वह सोसाइटी का मेहनती माली था जो हर समय घास और फूलों की देखरेख में लगा रहता था। उसे कड़ी धूप में पसीने से तर बतर काम में लगे देखा जा सकता था।

लेकिन सोसाइटी के बच्चों के लिए यह पुरस्कार एक आफत ही बन गया जैसे। शाम को बच्चों की टोली बाग में रोज धमाचौकड़ी मचाया करती थी। वे फुटबाल और क्रिकेट भी खेला करते थे। पर उस शाम बच्चे बाग में आए तो वहाँ दो गार्ड मौजूद थे। जैसे ही बच्चों ने फुटबाल उछालनी शुरु की, गार्डों ने टोका—“अब बाग में फुटबाल नहीं खेली जाएगी।

क्यों?” अजय ने पूछा। वह बच्चों की टोली की लीडर था। बच्चे उस की अगुआई में रहते थे।

क्यों का जवाब तो सोसाइटी के प्रेजीडेंट देंगे। एक गार्ड बोला—“उन्हीं का हुक्म है। और उसने एक तरफ लगे बोर्ड की तरफ इशारा कर दिया। बोर्ड पर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा था—“बाग में फुटबाल खेलना मना है।

यह बोर्ड शायद आज और अभी ही लगाया गया था। क्योंकि सुबह जब पुरस्कार समारोह हो रहा था, तब तो यह बोर्ड था नहीं।

हम तो खेलेंगे। अजय ने गार्ड को झिड़क दिया और अपने साथियों को लेकर फुटबाल खेलने में जुट गया।

गार्ड तो सोसाइटी के नौकर ठहरे। उन्होंने बच्चों से उलझना ठीक समझा। जाकर सोसाइटी के प्रेजीडेंट से शिकायत कर दी। रमेश जी सोसाइटी के अध्यक्ष थे। कुछ देर बाद वह बाग में गए। उन्होंने कहा—“बच्चो, आपको स्कूल और घर-दोनों जगह नियमों का पालन करना चाहिए। अब हमारे उद्यान को पुरस्कार मिल गया है, इसलिए इसका विशेष ध्यान रखना होगा। फुटबाल खेलने से घास दब जाती है, क्यारियों में लगे फूल नष्ट हो जाते हैं। फुटबाल खेलनी है तो सोसाइटी से बाहर जाकर खेलो।

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वह अपनी बात कहकर चले गए। बच्चे समझ नहीं पाए कि वे क्या करें। क्योंकि अब तक तो वे हमेशा बाग में ही खेलते रहे थे। हाँ, क्रिकेट खेलने पर जरूर झगड़ा होता था, क्योंकि बिजली की ट्यूबें टूटती थीं और खिड़कियों के शीशे क्रैक हो जाते थे।

बच्चे समझ गए कि अब वे बाग में फुटबाल नहीं खेल पाएँगे। वे फुटबाल बीच में रखकर झुंड के रूप में बैठ गये। तभी अमित ने कहा—“ऐसे बात नहीं बनेगी। हमें कुछ करना होगा।

क्या करना होगा?” रजत ने पूछा।

सत्याग्रह करना होगा और क्या। पता है बापू ने सत्याग्रह करके ही अंग्रेजों की नींद उड़ा दी थी। हमें भी वही करना चाहिए।

बस बच्चों का सत्याग्रह शुरु हो गया। उन्होंने किसी से कुछ नहीं कहा, शोर नहीं मचाया, नारे भी नहीं लगाए। बस फुटबाल बीच में रखकर चुपचाप बैठ गए। बच्चों को इस तरह चुप बैठे देखकर सब हैरान थे। क्योंकि वे तो जितनी देर बाग में रहते थे, धमाचौकड़ी मचाते ही रहते थे। एक पल को भी खामोश नहीं बैठते थे।

बच्चों को यों चुप बैठे देखा तो बाबू रामदास वहाँ चले आए। वह स्कूल के रिटायर्ड प्रिंसिपल थे। वे बच्चों से प्यार करते थे और बच्चे भी उनका सम्मान करते थे। रामदास बच्चों के पास खड़े हुए। बीच में रखी फुटबाल की ओर देखा। बोले—“आज तुम्हारी टोली खामोश क्यों है?”

हमें खेलने से मना कर दिया है। इसलिए हम खेलेंगे नहीं।”—अमित ने कहा।

तो क्या करोगे?”रामदास ने पूछा।

सत्याग्रह।”—जवाब मिला। हम फुटबाल की शोक सभा कर रहे हैं।

क्यों?”

फुटबाल मर गई है इसलिए। बच्चों ने कहा।

बच्चो, फुटबाल कभी नहीं मरेगी और बच्चे भी जरूर खेलेंगे।”—रामदास ने कहा।

लेकिन कैसे?”अमित ने पूछा। रामदास की बात उसकी समझ में नहीं रही थी।

देखो, तुम फुटबाल लेकर कहीं भी जा सकते हो। दूर या पास के मैदान में कहीं भी, लेकिन फूलों के तो पैर हैं नहीं। वे चोट खाकर भी अपनी जगह खड़े रहने के लिए मजबूर हैं।

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फूल घायल, लेकिन कैसे?”कई बच्चों ने एक साथ जानना चाहा।

आओ मेरे साथ।”—और रामदास बच्चों की टोली को बाग के कोने में ले गए। उन्होंने एक पौधे की तरफ इशारा किया। वहाँ एक पौधा झुका हुआ था, उसकी एक टहनी बीच से टूट गई थी। कई फूल भी टूटकर गिर गए थे।

यह है तुम्हारी फुटबाल की करतूत। ““—रामदास ने कहा। इसीलिए कह रहा हूँ कि फुटबाल को फूलों से दूर ले जाओ तो अच्छा रहेगा। तुम्हें खेलने से कोई नहीं रोकता। फूल बोल नहीं सकते, इसलिए उनकी ओर से किसी को तो बोलना चाहिए। रामदास बोले और फूलों के पौधे के पास जमीन पर बैठ गए। उन्होंने कहा—“अब जरा फूलों की फर्स्ट  एड हो जाए। और हँस दिए।

फूलों की फर्स्ट एड।”—बच्चों की आवाज में अचरज था।

वे रामदास को देख रहे थे। रामदास ने जेब से एक डोरी निकाली और जमीन पर पड़ी एक डंडी उठाकर उसके सहारे से टूटी हुई टहनी को बाँध कर सीधा कर दिया। फिर जमीन पर पड़े फूलों को नीचे की मिट्टी में दबा दिया।

अमित ने कहा—“सर, आपने ठीक कहा। कल जब हमने शाट मारा था तो फुटबाल इसी कोने में आकर गिरी थी। उसी की चोट से डाली झुक गई है। यह तो सचमुच गलत हुआ।

रामदास ने कहा—“बच्चो, जो बीत गया, उस पर पछताने से कुछ नहीं होगा। पर मैं चाहता हूँ तुम फुटबाल के शोक में सत्याग्रह करो। कल शाम को मैं तुम्हें पीछे वाले मैदान में ले चलूँगा। बड़े मैदान में तुम मजे से फुटबाल खेल सकते हो। हाँ, एक बात और है।

वह क्या?”बच्चों ने पूछा।

तुममें से कुछ बच्चों ने स्कूल में फर्स्ट एड की ट्रेनिंग जरूर ली होगी। वैसा ही कुछ यहाँ भी करना होगा।

पर वह फर्स्ट एड फूलों पर कैसे काम करेगी?”अमित ने कहा।

उसी तरह जैसे मैंने किया है। रामदास बोले—“तुम फुटबाल मैदान में खेलो, पर फूलों का भी ध्यान रखो। तेज हवा में, किसी का पैर लगने से, कोई भारी चीज गिरने से फूलों को चोट लगती है। वे घायल हो जाते हैं, पर वे बोल नहीं सकते। इसीलिए हम पौधों और फूलों की तकलीफ नहीं समझ पाते।

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बच्चों का झुंड चुपचाप रामदास जी की बात सुन रहा था।

रामदास ने फिर कहा—“स्कूल में तुम किताबें पढ़ते हो, पर एक किताब फूलों और पौधों की भी होती है। उसे भी पढ़ना सीखो। और इसमें तुम्हारी मदद करेगा रामबरन माली। उसे पेड़-पौधों के बारे में बहुत सी बातें पता है। वह तुम्हें इनके बारे में नई-नई जानकारियाँ दे सकता है।

बच्चों ने देखा अपना नाम सुनकर पास खड़ा माली रामबरन हँस रहा था।

हम खाली समय में खेलेंगे और अपना थोड़ा समय फूलों को भी देंगे। क्यों रामबरन भैया?”अमित बोला।

हाँ, बच्चा लोगों। अगर तुम चाहो तो मैं फूलों के बारे में बहुत सी जानकारी दे सकता हूँ।”—रामबरन माली ने कहा।

बच्चों ने सत्याग्रह वापस ले लिया। अब उन्हें फुटबाल का शोक मनाने की जरूरत नहीं थी। अगली शाम मास्टर रामदास बच्चों को बड़े मैदान में ले गए। वहाँ उन्होंने जमकर फुटबाल के खेल का आनन्द लिया। सब बच्चे बहुत खुश थे।

खेलने के बाद बच्चे सोसाइटी लौटे तो सीधे रामबरन माली के पास गए। बोले—“माली काका, फुटबाल का पीरियड खत्म, अब आप हमें फूलों और पेड़-पौधों की किताब पढ़ाइए।

जरूर पर आप सबको मुझे पेड़-पौधों का मास्टर कहना होगा।

जरूर कहेंगे फूलों के मास्टर रामबरन भैया।”—बच्चों ने एक साथ कहा तो रामबरन और मास्टर रामदास हँस पड़े। बच्चे तालियाँ बजा रहे थे। उन्हें पढ़ने के लिए फूलों की किताब जो मिल गई थी।(समाप्त )