Thursday 24 August 2023

उसके आंसू —देवेन्द्र कुमार

 

उसके आंसू देवेन्द्र कुमार

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  हमारे पड़ोस में एक चित्रकार परिवार रहने आया है। चित्रकार का  नाम अजित है। लोग कहते हैं कि उनके बनाये चित्र बहुत पसंद किये जाते हैं। कई शहरों में उनके चित्रों की प्रदर्शनियां हो चुकी हैं। मैंने कुछ सोचा और फिर एक दिन उनके दरवाजे की घंटी बजा दी। द्वार अजित ने खोला। बोले-आइये, अंदर आइये। मैं पत्नी के साथ  आप के पास आने की सोच रहा था।पर इधर मेरी पत्नी रमा कुछ अस्वस्थ हैं, इसीलिए नहीं आ सका।

  मैंने कहा-आपका बहुत नाम सुना है। आपके बनाये चित्र देखना चाहता हूँ।कमरे में एक  सात आठ  साल का बच्चा बैठा ड्राइंग बनाने में लगा था। मैंने अजित से पूछा –‘ यह आपका बेटा है?’

  अजित ने कहा-है तो नहीं पर बनाने की कोशिश कर रहा हूँ।और मुझे दूसरे कमरे में ले गए। मुझे उनकी बात समझ में नहीं आई।उस कमरे में दीवारों पर अनेक चित्र लगे हुए थे। कुछ में प्रकृति के विविध रूप दर्शाए गए थे तो कई  चित्र त्यौहार मनाते लोगों के थे।अनेक पोर्ट्रेट भी थे जिनमें उदास और प्रसन्न  चेहरे दिखाए गए थे। मैं मुग्ध भाव से उन चित्रों को देखता रहा।फिर मैंने पूछा कि वह आजकल किस विषय पर चित्र बना रहे हैं।

  अजित बोले –‘इधर मैं नए चित्र नहीं बना रहा हूँ। बल्कि उनसे मिलने की कोशिश कर रहा हूँ,जिन्हें मैंने अपने चित्रों में उतारा है।मैं कुछ पूछता तभी वह बोले-मैं आपको सबसे अच्छा चित्र दिखाता हूँ

कहते हुए उन्होंने मुझे एक चित्र दिखाया। चित्र एक बच्चे का  था, वह उसे अपना बनाया सबसे अच्छा चित्र कह रहे थे,मुझे उसमें कोई विशेषता नहीं दिखाई दी|

   मैं कुछ पूछता इससे पहले ही वह बोले  -‘आप सोच रहे होंगे कि मैं इस  ड्राइंग को सबसे अच्छा चित्र क्यों कह रहा हूँ। इसके पीछे एक कहानी है। एक दिन मैं चित्र बना रहा था तभी कामवाली रत्ना की बेटी जूही मेंरे पास आकर बोली-कागज दो,ड्राइंग बनानी है।

 मैंने उसे अपना बनाया यह  चित्र दे दिया और उसे उलट कर कहा-इस खाली जगह पर बना लो।

कुछ देर बाद देखा कि वह  चित्र को लिए बैठी है ,कुछ बना नहीं रही है. मैंने पूछा तो बोली -'यह तो मेरे भैया जैसा है ,कौन है यह.? मैं कोई उत्तर नहीं दे सका. मुझे याद नहीं आया कि वह बच्चा कौन था और उसका चित्र मैंने कब और कहाँ बनाया था. कुछ देर बाद रत्ना  अपनी बेटी के साथ चली गई.

 

   मैं देर तक सोचता रहा-क्या केवल चित्र बनाना ही काफी है।मैंने समय समय पर जिन लोगों  के चित्र बनाये हैं उनमें कई चेहरे प्रसन्न थे तो कई उदास। उन चित्रों के बिकने से मुझे अच्छी खासी रकम भी मिली। क्या मुझे उनकी ख़ुशी या  उदासी में शामिल नहीं होना चाहिए था?यह पता नहीं करना चाहिए था कि उनमें से कुछ उदास थे तो क्यों!

  मैंने कहा-आप सही  बात सोच रहे थे।

 अजित ने बताया –‘ तभी मुझे एक बच्चा याद आया,जिसे मैंने पेड़ के नीचे खड़े रोते देखा था।

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   ‘कौन था वह बच्चा  और आपने उसे कहाँ देखा था?’-मैंने पूछा। तब अजित ने मुझे मोबाइल फोन पर एक बच्चे का फोटो दिखाया।वह रो रहा था। मैं उसे तुरत पहचान गया।यह तो वही है जिसे मैंने बाहर के कमरे में ड्राइंग बनाते हुए देखा है।

  ‘आपने ठीक पहचाना।यह वही बालक है।’-अजित बोले।फिर बताने लगे-कुछ समय पहले मैं पर्रिवार के साथ बनगांव में एक रिश्तेदार से मिलने गया था, वहां से लौटते समय मैंने एक बालक को पेड के नीचे रोते पाया।मैं उससे  मिलना चाहता था,पर तब तक कार आगे निकल आई थी। मैंने घर लौट कर पत्नी से यह कहा तो उन्होंने मुझे फोन में उसका फोटो दिखा कर कहा-मैंने उस बच्चे का फोटो क्लिक कर लिया है।मैं भी सोचती हूँ कि कभी बनगांव जाकर इस बच्चे के बारे में पता किया जाये। वह पेड़ के नीचे अकेला खड़ा क्यों रो रहा था ! उससे मिला जाये।

     ‘फिर।

     कुछ दिन बाद मैं पत्नी के साथ बनगांव गया और कई लोगो को  बच्चे का फोटो दिखाया तो पता चला कि बच्चे का नाम परम है, वह मुखिया के घर में रहता है। हम मुखिया से मिले । उसने बताया कि कई साल पहले परम उसे सड़क पर रोता हुआ मिला था.’’मैंने बहुत खोजा ,पर उसके माँ बाप के बारे में कुछ पता नहीं चला..’’

                                      

  मुखिया ने  जो कुछ बताया उससे यही पता चला कि उसे मुखिया ने अपने घर में जगह  दी है।उसका नाम परम भी  मुखिया ने रखा है। पता चला कि परम मुखिया की बकरियां चराने के साथ घर के और भी काम करता है। हमारे कहने पर मुखिया हमें गाँव के चारागाह में ले गया।तब परम बकरियों को उनके बाड़े की तरफ ले जा रहा था।रमा ने उसे झट पह्चान लिया।इसका फोटो उसने चलती कार से लिया था। परम की यह हालत देख कर रमा को बहुत दुःख हुआ। उसने मुखिया को बताया कि इतने छोटे बच्चे से यह सब कराना गैर कानूनी है,अगर पुलिस में शिकायत की जाये तो उसे जेल हो सकती है।

  यह सुनकर मुखिया घबरा गया।मैंने कहा-बचपन खेलकूद और पढाई के लिए होता है। हमने परम को अपने साथ शहर लाने  की बात कही तो मुखिया झट मान गया।और इस तरह हम परम को अपने घर ले आये।मैंने पुलिस को बता दिया है और वकील से कानूनी सलाह भी ली है।मैं  और रमा परम को गोद लेना चाहते हैं।परम स्कूल जाने लगा है और बहुत खुश है।

  मैंने कहा-अगर उस दिन  रमा जी ने रोते हुए परम का फोटो न क्लिक न किया होता तो उसके जीवन  में यह बदलाव कभी न आ पाता ।

  ‘ आप ठीक कह रहे हैं।।’-अजित बोले।और इसीलिए मैंने निश्चय किया है कि अब कुछ समय तक नए चित्र नहीं बनाऊंगा। सबसे पहले उन लोगों की खोज करूंगा जिनके चित्र बना कर मैं उन्हें भूल गया हूँ।

  ‘ हो सकता है वे आपको न मिल्रें’ –मैंने कहा।

   ‘सब न मिलें पर कुछ लोग तो मिल ही सकते हैं,जिनके सुख दुःख मैं बाँट सकता हूँ। तभी मैं अपने को सच्चा कलाकार कह सकूंगा।अजित ने कहा। मुझे भरोसा है अपनी खोज यात्रा की सफलता पर।

  सचमुच जूही के प्रश्न ने अजित के कलाकार को नया मार्ग दिखा दिया था।(समाप्त )

 

 

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