Sunday 6 August 2023

चलो तस्वीर में – पी. एल. ट्रैवर्स—रूपांतर –देवेन्द्र कुमार

 

चलो तस्वीर में  – पी. एल.  ट्रैवर्स—रूपांतर –देवेन्द्र कुमार

 

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मैने 27 वर्षों तक बच्चों की लोकप्रिय 'पत्रिका 'नंदन के संपादन का कार्य किया। इस दौरान विश्व साहित्य की लगभग ३०० महान  कृतियों का संक्षिप्त रूपांतर करने का अवसर मिला. विश्व साहित्य में बच्चों की अनेक श्रेष्ठ पुस्तकें मौजूद हैं जिनके अनुवाद और रूपांतर लगभग हर भाषा में हुए हैं .P.L.Traverse की पुस्तक Marry Poppins वर्ष 1934 में प्रकाशित हुई थी .Marry Poppins  एक अच्छी परी है। एक दिन वह माचिस बेचने वाले गरीब बर्ट से मिलने जाती और फिर...... 

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  उसका नाम मेरी पापिंस था।  वह एक परिवार में दो बच्चों जेन  और माइकल की गवर्नेस थी।  लेकिन वह कोई साधारण महिला नहीं थी।  बच्चों का ख्याल था कि   वह कोई परी थी, क्योंकि  मेरी पापिंस कई बार ऐसे काम करती थी जो जादू या चमत्कार जैसे लगते थे।   एक दिन उसने जेन और माइकल की  मां से कहा कि  वह किसी से मिलने जा रही है।  

 

  आखिर कौन था वह आदमी? वह था फुटपाथ पर बैठकर माचिस बेचने वाला एक फटेहाल, गरीब आदमी बर्ट।  पर माचिस बेचने से कोई खास पैसे नहीं मिलते थे।  उसका जीवन बहुत मुश्किल से गुजर रहा था।  बर्ट में एक विशेषता थी।  वह जब खाली होता तो फुटपाथ पर चाक से तरह-तरह के चित्र बनाया करता था।  पर उसके बनाए रेखाचित्रों पर वहां से गुजरने वाले लोग कुछ ध्यान नहीं देते थे।  वे तो उसे एक फटेहाल माचिस बेचने वाला आदमी समझते थे।  उसकी चित्रकला की प्रशंसा करने वाला कोई नहीं था।  लेकिन बर्ट को इसकी कोई चिंता नहीं थी।  फुटपाथ पर चित्र बनाकर उसका मन खुश हो जाता था।  उसके लिए इतना ही बहुत था। कभी-कभी अचानक बारिश आ जाती तो बौछारें उसके बनाए चित्रों को धो देतीं।   ऐसे में बर्ट का मन उदास हो जाता था।  मेरी पापिंस ने कई बार उसके बनाए रेखाचित्रों की  प्रशंसा की  थी।

 

  आज मेरी पापिंस बर्ट के पास पहुंची तो उसे देखकर बर्ट मुस्करा दिया।  वह मेरी को पसंद करता था।  क्योंकि वही थी जो उससे हमदर्दी से बात किया करती थी।  इसलिए बर्ट मेरी को बाकी लोगों से अलग समझता था।  और सच मेरी दूसरे सब लोगों से अलग थी।  पर उसका असली परिचय कोई नहीं जानता था।

 

  बर्ट आज उदास था।  क्योंकि  अब तक एक भी माचिस नहीं बिकी थी।  पैसे न होने के कारण वह चाय नहीं पी सका था।  हालांकि  मौसम बहुत ठंडा था।  बेचारा बर्ट  मजबूर था।  मेरी ने बर्ट के बनाए चित्र को देखा और मुस्करा दी।  बर्ट ने अपने चित्र में कई तरह के फल बनाए थे।  मेरी सोच रही थी – ‘भला बर्ट ने ये फल कब खाए होंगे? शायद कभी नहीं।  गरीब आदमी के लिए दो समय की रोटी का जुगाड करना ही कठिन होता है।

 

  मेरी ने कहा-बर्ट, तुमने फलों के चित्र तो बनाए हैं, पर इनमें भोजन कहां है? मान लो अगर तुम्हारे चित्र देखते समय मुझे भूख लग आए तो क्या होगा?’

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  सुनकर बर्ट मुस्करा दिया।  बोला –‘मैंने दुकानों पर स्वादिष्ट भोजन सामग्री सजी हुई देखी है, कहो, आपको क्या खाना पसंद है, मैं उसी का चित्र बनाऊंगा। और उसने खड़िया का टुकड़ा हाथ में उठा लिया।  मेरी पापिंस बताती गई और बर्ट स्वादिष्ट व्यंजनों और मिठाइयों के चित्र बनाता गया।  बीच-बीच में उसकी  आवाज सुनाई  दे जाती थी-क्या इन रेखाचित्रों से किसी का पेट भर सकता है? क्या पता।

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  मेरी पापिंस के कहने पर उसने एक उद्यान का चित्र बनाया, छायादार पेड़ और फूलों की   क्यारियां जिन पर तितलियां मंडरा रही थीं।  फिर नीली खड़िया से समुद्र का चित्र बनाया।  वहीं एक शानदार भवन भी दिखाई दे रहा था।

 

  बहुत सुंदर, बर्ट!मेरी पापिंस ने कहा।

  

  बर्ट बहुत ध्यान से अपने बनाए चित्र को देख रहा था।  धीरे से बोला- काश, मैं भी कभी जा सकता यहां।  मिस पापिंस ,ऐसी कोई न कोई जगह तो जरूर होगी जहां मेरे जैसा  साधारण आदमी भी जा सके,  और उसे वहां जाने से कोई न रोके।

 

  हवा में मेरी की  खिलखिलाहट गूंज गई।  उसने कहा- बर्ट, ऐसी  जगह है, और यहीं है।  तुम्हें कोई नहीं रोकेगा। उसने बढ़कर बर्ट का हाथ थाम लिया और फुटपाथ पर हरे  चाक से बने घास के मैदान में जा खड़ी हुई।

 

  अब बर्ट और मेरी घास के मैदान में चलते हुए एक तरफ बनी  इमारत की   तरफ बढ़ रहे थे।  बर्ट के बदन पर फटे-पुराने कपड़ों की   जगह शानदार नई पोशाक आ गई थी।  उसने सिर पर हैट लगा रखा था।

 

  अरे वाह! बर्ट, तुम तो आज पहचाने ही नहीं जा रहे हो। मेरी पापिंस ने हंसकर कहा।  पृष्ठभूमि में नीला समुद्र दिखाई दे रहा था।  क्या बर्ट को याद था कि  उसने फुटपाथ पर यही चित्र बनाया था।  लेकिन मेरी पापिंस के कहने पर उसने व्यंजन और मिठाइयों के चित्र भी तो बनाए थे।

 

  वे सामने दिखती इमारत के सामने पहुंचे  तो दरवाजे पर खड़े दरबान ने बड़े अदब से झुककर दरवाजा खोल दिया।  अंदर का हाल भव्य ढंग से सजा हुआ था।  हाल के बीचोंबीच एक बड़ी मेज लगी थी।  उस पर अनेक प्लेटों में व्यंजन और मिठाइयां सजी  हुई थीं।  तभी वहां एक वेटर चला आया।  

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  बर्ट ने कहा-यहां हमारे अलावा और तो कोई है नहीं।

 

  यह दावत तुम्हारे लिए है। कहकर मेरी पापिंस मुस्करा दी।

 

  बर्ट ने खाना शुरू किया।  मेज पर वही सब व्यंजन और मिठाइयां थीं जिनके चित्र बर्ट ने बनाए थे।  उसने छककर खाया।  बीच-बीच में उसका हाथ रुक जाता।  वह किसी सोच में डूब जाता।  धीरे से कहता- मैं यहां दावत का मजा ले रहा हूं पर मेरी पत्नी और बच्चे तो सूखी रोटी...

 

  बर्ट, तुमने भोजन की  इतनी ज्यादा तस्वीरें बनाई हैं  कि  उनसे दो चार नहीं, दस-बीस लोग मजे से पेट भर सकते हैं।  घरवालों की   चिंता मत करो, आराम से खाओ। मेरी ने कहा।क्या बर्ट को मालूम था कि उसकी पत्नी और बच्चे भी वैसा ही भोजन कर रहे थे। कुछ देर पहले एक आदमी उनके घर एक टोकरी ले कर आया था और उसने कहा था कि इसे बर्ट ने भेजा है|

 

  मेरी की   बात से बर्ट संतुष्ट हो गया और फिर से भोजन का स्वाद लेने में जुट गया।  भोजन समाप्त हुआ।  तभी बर्ट धीरे से फुसफुसाया-मैंने आज छककर खाया है।  इसका तो लंबा-चौड़ा बिल आएगा।

                                                                      

  मेरी कुछ कह पाती, इससे पहले ही पास में खड़ा वेटर  बोल उठा-इस दावत के लिए आपको कुछ दाम नहीं देने होंगे।  यह हमारी ओर से भेंट है।  अगर आप चाहें तो मेरी गो राउंड का आनंद भी ले सकते हैं। वेटर उन्हें इमारत के बाहर पेड़ों के पीछे ले गया।  वहां लकड़ी के रंगारंग घोड़े गोलाकार घूम रहे थे।

 

  बर्ट, तुमने चित्र  में मेरी गो राउंड  तो नहीं बनाया था!’, मेरी ने कहा।

 

  मैंने पेड़ बनाए थे, पेड़ों के पीछे मेरी गो राउंड बनाने  का विचार जरूर आया था मन में। कहकर वह उछलकर एक घोड़े पर बैठ गया।  मेरी पापिंस दूसरे घोड़े पर सवारी कर रही थी।  

  मैं घोड़े पर बैठकर सागर तट तक जाना चाहता था। बर्ट ने कहा।  तभी गोल-गोल घूमता घोड़ा घेरे से निकलकर दूर दिखते नील सागर की   ओर दौड़ने लगा।  फिर मेरी पापिंस की आवाज सुनाई दी –‘क्या मुझे साथ नहीं लोगे?’ बर्ट ने देखा, मेरी का घोड़ा भी साथ-साथ दौड़ रहा था।  सूर्य पश्चिम में ढल चला तो मेरी ने कहा-बर्ट, क्या यहीं रहने का इरादा है? घर नहीं जाना है क्या?’ उन्होंने घोड़ों को घुमाया और मेरी गो राउंड के पास लौट आए।  जैसे ही वे घोड़ों से उतरे,दोनों  घोड़े गोलाकार घूमते दूसरे लकड़ी के घोड़ों की   कतार में शामिल हो गए।

  वहां खड़े वेटर ने कहा-मैं क्षमा चाहता हूं।  अब होटल बंद करने का समय हो चुका है।  आप जब चाहें  दुबारा आ सकते हैं। वेटर  उन्हें एक सफ़ेद दरवाजे तक छोड़कर वापस लौट गया।

 

  दरवाजा खड़िया की सफ़ेद रेखाओं से बना था। उससे बाहर निकलते ही बर्ट और  मेरी पापिंस फुटपाथ पर बर्ट के बनाए रेखाचित्रों के बीचोंबीच खड़े थे।  ऐसा मजा तो आज से पहले कभी नहीं आया। बर्ट ने कहा।  शायद मैंने सपना देखा था।

 

  बर्ट, कभी-कभी सपने सच भी हो जाया करते हैं। मेरी पापिंस ने कहा और बर्ट से विदा लेकर वापस चल दी।

  मेरी, फिर आना!बर्ट ने आग्रहपूर्वक कहा।

  सपने का सच होना मुझे भी पसंद है। कहकर मेरी हंस दी।  मैं फिर आऊंगी।‘’ परी ने बर्ट का सपना सच कर दिया था।(समाप्त )

 

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