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समीक्षा==
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पुस्तक का नाम :
बाल कथा सागर
विधा : बाल कथा
लेखक : देवेन्द्र
कुमार
लेखकीय पता : डी
- 102, प्रिन्स अपार्टमेंट्स, प्लाट नं. 54,
पटपड़गंज, नई दिल्ली - 110092
मोबाइल : 9910140071
प्रकाशक : प्रखर
प्रकाशन, नवीन शाहदरा, दिल्ली - 110032
संस्करण :2023
मूल्य : ₹ 500/-
पृष्ठ : 219
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बाल कथा सागर :
जीवन के विविध आयामों को स्पर्श करती संवेदनात्मक रचनाएँ
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सन् 1940 में दिल्ली में
जन्मे श्री देवेन्द्र कुमार बालसाहित्य के एक सुपरिचित हस्ताक्षर हैं। साहित्यकार, पत्रकार और अनुवादक श्री देवेन्द्र कुमार ने बच्चों के साथ
ही बड़ों के लिए भी विपुल साहित्य सृजन किया है। विश्व साहित्य की लगभग तीन सौ
श्रेष्ठ पुस्तकों का सार संक्षेप हिन्दी में करके उन्होंने हिन्दी साहित्य को समृद्ध
बनाया है। बाल उपन्यास, बाल-कथा, बाल कविता की
पुस्तकों के साथ ही प्रौढ़ साहित्य में उपन्यास, कथा, कविता, अनुवाद, रूपान्तर, सम्पादन की कई
कृतियों का सृजन कर उन्होंने हिन्दी साहित्य में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।
सत्ताईस वर्षों तक बच्चों की श्रेष्ठ पत्रिका 'नन्दन' से जुड़े रहकर और 'नन्दन' के सहायक सम्पादक से सेवानिवृत्त होकर अब वे स्वतंत्र रूप
से लेखन कर रहे हैं।
आर्थिक परिस्थितियों के कारण जीवन का एक बड़ा भाग 'नन्दन' पत्रिका को
समर्पित करने वाले श्री देवेन्द्र कुमार जी मनोनुकूल नहीं होने पर भी परी तत्त्वों
तथा जादुई कथाओं से उलझे रहे। लोक व पौराणिक सन्दर्भों से ली गई नीति कथाओं को
काटते - छाँटते, बच्चों के अनुरूप बनाते श्री देवेन्द्र कुमार का मन
मौलिक सृजन के लिए छटपटाता रहा। 'नन्दन' के लिए निर्मित इन कथाओं में कल्पना तत्त्व की ही प्रधानता
रही और समाज के दीन - हीन यथार्थ पात्र उपेक्षित रहे। 'नन्दन' से सेवानिवृत्ति
के बाद अब श्री देवेन्द्र कुमार साहित्यिक रचनाओं से नेपथ्य में गए इन्हीं
उपेक्षित पात्रों को बालकथाओं में भूमिका प्रदान कर समाज का ध्यान उसके कुरूप और
अंधेरे कोनों की ओर खींच रहे हैं।
समीक्ष्य कृति 'बाल कथा सागर' भी एक ऐसा ही प्रयास है जिसमें जीवन की विसंगतियों, विषमताओं, विपन्नताओं और
विद्रूपताओं की ओर पाठक का ध्यान आकर्षित किया गया है। इस कथा संग्रह में पचास
कहानियाँ संग्रहीत हैं जिनमें वर्तमान समय की क्रूरताओं और कुटिलताओं की परते
उघाड़ी गई हैं। वर्तमान का कटु सत्य, पाठकीय चेतना को
झकझोर देता है। संग्रह की सभी कहानियों में लेखक की पीड़ित पक्ष के प्रति संवेदना
देखी जा सकती है। यही संवेदना कथातत्व को सजीव बनाती है।
'संग्रह की पहली कहानी' चिड़िया का सच' है। एक दिन रानी चिड़िया राजमहल के बाग में उतरती है। वह
राजा को बताती है कि कि राजा के दो सैनिक, दो गाँव वालों को
बुरी तरह मार रह थे। वे चोरी की शिकायत करने गए थे। पर सैनिकों ने उन्हीं बेचारों
को चोर बताकर कारागार में बंद कर दिया। चिड़िया ने सही कहा था लेकिन मंत्री, सेनापति तथा दूसरे अधिकारी राजा को यही बताते थे कि प्रजा
बड़ी सुखी है। अगले दिन राजमहल के उद्यान में आकर चिड़िया फिर कहती है कि जो कुछ
कल बताया था, आज उससे भी भयंकर कांड मैंने देखा है। राजा ने कहा कि, चिड़िया तुम्हारी खबर गलत थी। आज भी तुम वैसा ही कुछ बताओगी।
वह चिड़िया को हिदायत भी दे देता है कि अब मेरे पास आकर उल्टे - सीधे पाठ मत
पढ़ाना। राजा के इशारे पर चिड़िया को पकड़ने के लिए उस पर जाल फेंका गया, लेकिन वह बचकर उड़ गई। चिड़िया जान गई थी कि अगर फिर कभी
उसने राजा को सच बताने की कोशिश की तो उसके प्राण नहीं बचेंगे। वह फिर कभी राजा के
पास नहीं गई। (पृष्ठ 16)
'कबूतरों वाली
हवेली' कहानी में सेठ लखमा जी बरसावरिया अपनी हवेली में नहीं
रहते अतः हजारों कबूतरों ने वहाँ पर डेरा डाल लिया है। हवेली के सामने वाली पटरी
पर बहुत सारे लोग बैठकर कबूतरों के लिए दाने बेचते हैं। एक बार सेठ जी अमरीका से
हवेली में रहने के लिए आए लेकिन कुछ दिनों में ही कबूतरों के शोर से परेशान हो गए।
उन्होंने दाना बेचने वालों को भगा दिया और कई कबूतरों को बन्दूक से मार दिया।
कबूतरों वाली हवेली का आँगन खून से रंग गया । सेठजी उस सन्नाटे को ज्यादा दिन तक
नहीं सह सके और सपरिवार तीर्थयात्रा पर चले गए और वहीं से वापस अमरीका निकल गए।
कबूतरों वाली हवेली कबूतरों को वापस मिल गई थी।
( पृष्ठ 34)
'मेरा खिलौना' कहानी, बच्चों की दूसरे
जीवों के प्रति सहानुभूति को दर्शाती है। कहानी में कथा-नायक एक खिलौना खरीदता है
जिसमें तारों के पिंजरे में बन्द एक तोता है। लेखक के मकान में ऊपर की मंजिल में
नानी के साथ रहने वाली नन्ही बच्ची शैली, दीवार पर टँगे
खिलौने को लेने के लिए बार-बार मचलती है लेकिन कथा - नायक उसे वह खिलौना नहीं देता
है। शैली हर बार उसे माँगती है और न मिलने पर रोती है। एक शाम दफ्तर से लौटकर
कथा-नायक देखता है कि शैली ने पिंजरे के तार तोड़कर तोता अंदर से निकाल लिया है और
वह तोते को होंठों से चूम रही है। कथा - नायक समझ गया कि शैली पिंजरे में बन्द
तोते को कैद से आजाद करना चाहती थी। कथानायक का
बड़प्पन उस नन्ही बच्ची के सामने बौना हो गया था।
(पृष्ठ 52)
'जन्मदिन उदास है' कहानी में अजय का परिवार नए फ्लैट में रहने आता है। वहाँ
गैलेरी में गमलों के पीछे एक नई साइकिल रखी दिखाई देती हैं। पूछने पर पता चलता है
कि यह साइकिल प्रथम नामक बच्चे की है जिसे जीवनदास ने अनाथालय से गोद लिया और जिसे
कैंसर के इलाज के लिए अमरीका भेज दिया गया है। प्रथम ने अपना पहला जन्मदिन एक
जनवरी को मानकर अनाथालय के शेष तेबीस बच्चों के साथ सामूहिक रूप से मनाया था।
लेकिन इस बार अनाथालय के बच्चे उदास हैं क्योंकि प्रथम अभी स्वस्थ नहीं हुआ है अतः
उसका जन्मदिन नहीं मनेगा। अजय ने अमरीका वाले जीवनदास के रिश्तेदार रमापति से फोन
पर बात की। रमापति ने कहा कि प्रथम पहले से स्वस्थ है पर इलाज लम्बा चलेगा। रमापति
ने साइकिल पर बैठे और मुस्काते प्रथम का फोटो भेजा। एक जनवरी की सुबह - अनाथालय
में प्रथम के साथियों ने प्रथम के फोटो को बोर्ड
पर लगाकर दूसरा जन्मदिन उत्साह के साथ मनाया। अभी प्रथम का इलाज लम्बा चलने वाला
है, यह बात अजय को छोड़कर किसी को भी पता नहीं थी।
जीवनदास अब उदास नहीं थे और प्रथम के साथियों का उत्साह तो देखते बनता था।
(पृष्ठ 139)
इस संग्रह की
अंतिम कहानी 'सिक्का और साँप' है। कहानी में
बस्ती से दूर एक प्राचीन खण्डहर के पास एक बाबा धूनी रमाते हैं। खण्डहर में दीपक
जला दिए जाते हैं और दूर - दूर से लोग आने लगते हैं। एक रोज बस्ती का माना हुआ
सिक्का नाम का बदमाश भी भीड़ में दिखाई देता है। सिक्का पर चोरी और ठगी के कई
मुकदमे चल रहे थे।लोग चाहते थे कि बाबा सिक्का को वहाँ न आने दे, लेकिन बाबा ने लोगों की बात मानने से इंकार कर दिया और कहा
कि वे किसी पर कोई बन्धन नहीं लगा सकते। एक दिन विशेष उत्सव में एक महिला का गलहार
चोरी हो गया। लोगों ने सिक्का पर शक करते हुए बाबा से शिकायत की। साधु महाराज ने
कहा - सिक्का चोर है, इसका मतलब यह तो नहीं कि हार उसी ने चुराया है। एक
दिन फिर मेला लगा। बाबा पेड़ के नीचे बैठे प्रवचन दे रहे थे कि एक आदमी चीख उठा।
उसे एक काले साँप ने काट लिया था। बाबा ने जल्दी से डाक्टर बुलाने को कहा। तभी
भीड़ को चीरकर सिक्का आगे बढ़ा और कहा कि डाक्टर के आने तक तो बहुत देर हो जाएगी।
सिक्का, साँप के काटे स्थान पर अपना मुँह टिकाकर खून चूसने
लगा। वह चूसता जाता और थूकता जाता। दो दिन में वह आदमी स्वस्थ हो गया जिसे साँप ने
काटा था। सिक्का की तबियत कई दिनों तक खराब रही। बाद में उसे पुलिस पकड़ कर ले गई
क्योंकि दिन में उसने कहीं से माल चुराया था। लोगों ने साधु महाराज से कहा कि
सिक्का पक्का चोर है। हार भी उसने चुराया होगा। बाबा बोले - "सिक्का बुरा
आदमी है। उसके मन में अंधेरा है लेकिन कहीं उजाले की नन्ही किरण भी है। वह अपने मन
के अंधेरे से लड़ रहा है। ऐसे में उसे ठुकराना ठीक नहीं, वरना अंधेरा जीत जाएगा। मैं यह नहीं होने दूँगा।"
(पृष्ठ 219)
उक्त कहानियों के उदाहरणों से स्पष्ट है कि लेखक ने
अपने आसपास जो भी अप्रिय घटनाएँ देखी, उनको ही अपनी
संवेदनशील दृष्टि से शब्द देने का प्रयास किया है। संग्रह की शेष कहानियाँ भी
इन्हीं मानवीय संवेदनाओं से अनुप्राणित हैं।
इन कहानियों में
बाबा की 'बूढ़ी छड़ी' है जो उनकी पिटाई
करने के बाद पश्चाताप से रोते अध्यापक की याद दिलाती है।
चिड़ियों को
किराए से देने के लिए तिनकों का बना 'घर में घर खाली' है।
कार के शीशे
पोंछते विकलांग बच्चे के लिए कार वाले बालक की जिज्ञासा है कि खुश रहने के लिए 'उसे क्या चाहिए '।
कामवाली बेला की
बेटी झुमकी से झाड़ू - पोंछा 'कभी नहीं' करने को कहती मालकिन है।
गर्मियों में
भट्टी के सामने पसीने से भीगते हुए डोसे बनाते रमन की मदद की 'तरकीब' ढूँढता उसका
दोस्त छोटू है।
राजा के दरबार
में काम करने वाले दो घुड़सवारों के विरुद्ध अपने पंख तोड़ने के अपराध का न्याय
माँगती 'टूटे पंख वाली चिड़िया' है।
नींद पूरी नहीं
होने के कारण झपकी लेते रामू नौकर को नौकरी से निकालने का माध्यम बनता 'दूध का उफान 'है।
जगह - जगह से फटे
काले कपड़े वाले छाते को अपना 'पुराना दोस्त' कहने वाले बाबा हैं जो नए छाते को धूप में सोते शिशु के ऊपर
तानकर फिर से पुराने छाते के साथ लौट आते हैं।
तनूजा नामकी
प्यारी पोती है जो दादी के घुटने का दर्द भगवान के माध्यम से किसी और को देने को
कहती है। वहीं सभी के प्रति दया का भाव रखने वाली दादी 'बताओ किसे दूँ' कहकर तनूजा को
सोच में डाल देती है।
'पोटली में क्या' है यह जानकर भी भोलू से कुछ नहीं कहने वाला निमाई है जो
निर्धनता में भोलू को रोजगार दिलाकर माँ के पास ही रहने को कहता है।
फुटबाल को दीवार
पर मारकर खेलने वाले बच्चों से परेशान दादी है जो दीवार को ही 'चित्रशाला' में बदल देती है
और बच्चों को भी चित्र बनाने के लिए प्रेरित करती है।
मोटर वर्कशॉप से
हटाया श्यामदास है जो डाक्टर विमल मित्र की कोठी के पास प्याऊ लगा लेता है और उसकी 'डाक्टर प्याऊ' दूर - दूर तक
मशहूर हो जाती है।
कूड़ेघर में
कूड़े पर मुँह मारती गायों को अपने हिस्से का भोजन देकर यहाँ कूड़ा 'मत खाओ - कहीं ओर जाओ' के लिए प्रेरित
करता बालक जीवन है।
अपने बचपन के
खिलौनों में पोते अमित के पुराने खिलौने मिलाकर 'मेरा - तेरा बचपन
'को एक करने वाले बाबा हैं।
बेटे की मौत से
दुःखी और पोते के साथ दुकान चलाने वाली रामवती की दुकान हड़पने का विचार रखने वाला
सोमू है। रामवती खुद ही सोमू को दुकान सँभालने को कहती है तो सोमू के मन में 'मिठास' घुल जाती है और
वह दुःखी माँ और बिना बाप के बेटे के साथ धोखा करने का इरादा छोड़ देता है।
वृद्धा भिखारिन
है जो 'मुन्नी, फूल बनाओ' कहकर मुन्नी को कागज के फूल बनाना सिखाकर उसकी यादों में बस
जाती है।
जहाँ बिजनपुर
कस्बे के डाक्टर राय हैं जो गरीब मरीजों का मुफ्त इलाज करते हैं वहीं रामदास 'रिक्शा डाक्टर' है जो बस स्टैंड
से मरीजों को डाक्टर राय के दरवाजे पहुँचाता है।
जगन, रमा, मास्टर शंकर और कथानायक जैसे लोग हैं जो ढाबे पर काम
करने वाले बच्चों के भोजन और पढ़ाई की व्यवस्था करते हैं और चाहते हैं कि लाखों
बेसहारा बच्चे 'सड़क पर कभी नहीं' रहें।
रायबहादुर
दीपकराय हैं जो दीवानचंद से नाराज होकर अपना अलग मंदिर बना तो लेते हैं लेकिन शिखर
के निर्माण का कार्य अधूरा ही छोड़ देते हैं जिससे उन्हें अपना 'अहंकार टूटा हुआ' दिखता रहे।
अजय नाम के बच्चे
को लगता है कि बाग में आम तोड़ते समय पत्थर लगने से एक घोंसला नीचे गिर गया है
जिसके कारण अजय के' आम का स्वाद' गायब हो जाता है
और वह अपराध - बोध से भर जाता है।
एक दादी है जो
गली - मोहल्ले के हर बच्चे के जन्म दिन पर अपने घर में दीपक जलाकर दूर से ही 'आशीर्वाद' देती है क्योंकि वह बच्चों के घर तक जाने में असमर्थ है।
दादी भिखारी की मौत पर भी दीपक जलाकर उपवास रखती है।
भीखू भिखारी है
जो बौने से लोगों की 'उड़ गई छतरियाँ' वापस लौटाने का
आग्रह करता है क्योंकि बौने की वजह से निर्दोष लोगों को बहुत मुश्किल का सामना
करना पड़ रहा था।
'काली कलम' से लकीरें खींचकर अपनी पत्नी की पुण्यतिथि को याद करने वाले
बाबा हैं। पोता अजय उन्हें दादी का एल्बम देकर इस आदत से मुक्त करता है।
'खजाने की खोज' करते अजय और रमेश हैं। बाद में वे झोंपड़ी में खाँसते वृद्ध
झूलन की सेवा करते हैं तो लगता है कि उन्हें सच्चा खजाना मिल गया है।
रमा दादी हैं
जिनकी पूजा की थाली में आकर जब बच्चों का फुटबाल आकर गिरता है तो उन्हें भी अपना 'गेंद का बचपन' याद आ जाता है।
उनको फुटबाल उनके बचपन के दरवाजे खोलने वाली जादुई चाबी लगता है।
ग्लोरी
अपार्टमेंट्स के स्कूल जाने वाले बच्चों को 'चिड़ियों की टोली' नाम देने वाली दादी उमादेवी है। उमादेवी के निधन के बाद
उनके पति अजयसिंह एकदम चुप हो जाते हैं लेकिन' चिड़ियों की टोली
उन्हें खुश रखती है।
' चुटकुला मास्टर 'अनुज हैं जो अनुपस्थित बच्चों का हाल जानने उनके घर पर जाते
हैं। वे कक्षा के बच्चों की ओर से शुभकामना पत्र भी ले जाते हैं। चुटकुला मास्टर
सब बच्चों के हीरो बन जाते हैं।
सर्कस बन्द हो
जाने से बेरोजगार हुआ जोकर डेविड है जो निर्माणाधीन सड़क के बोर्ड पर लिख देता है
- 'जोकर काम पर'। बाद में जोकर
सड़क पर करतब दिखाते हुए घायल हो जाता है और लोग उसकी सहायता करते हैं।
दीना मछुआरे का
बेटा राजा है जो चोरी करता है लेकिन दीना का पाला हुआ अनाथ लड़का गोपुरा इल्जाम
अपने ऊपर ले लेता है। बाद में राजा पश्चाताप करके गोपुरा से कहता है कि गाँव वालों
से एक सच तुम कहना कि तुमने रुपये नहीं चुराए और 'दूसरा सच' मैं बोलूँगा कि रुपये मैंने चुराए हैं।
मीठे और ठण्डे
पानी का एक कुआँ है जिसका कहना है कि उसका 'पानी जैसा मन' है। अगर पानी किसी की प्यास न बुझा सके तो उसका जीवन व्यर्थ
है।
चित्रकार अजित है, जो कामवाली रत्ना की बेटी जूही को ड्राइंग बनाने के लिए एक
कागज देता है जो एक तरफ से खाली है और दूसरी ओर एक बच्चे का चित्र बना हुआ है । यह
चित्र जूही को उसके भैया जैसा लगता है।अजित इस चित्र को अपना 'सबसे अच्छा चित्र' बताता है क्योंकि
इसने अजित के कलाकार को औरों के सुख - दुःख तलाशने का नया मार्ग दिखा दिया था।
कामवाली लता है
जो अपने मालिक के गुजर जाने से दुःखी है लेकिन वह बेटी जया का रिश्ता तय हो जाने
से खुश भी है। लता और मालकिन को देखकर लगता है कि ' सुख - दुःख ' दो भाई हैं जो हर घर में आते - जाते रहते हैं।
एक ठेलेवाला है
जो काॅलोनी के बाग की सड़क पर मृत समझकर टोकरे से ढके कबूतर को पानी पिलाकर एवं
साफ कर अपने साथ ले जाता है और कहता है कि मैं इस कबूतर को मरने नहीं दूँगा। बाग
के माली को वह 'जादूगर' लगता है। वह
बच्चों से कहता है कि दिन में 'जादूगर' आया था। वह जादू का खेल दिखाकर चला गया।
एक कहानी सुनाने
वाले बाबा हैं, जिनकी प्रिय बहिन जयवन्ती गाँव में बीमार है। बाबा
गाँव जाते हैं उसके दो दिन पहले ही जयवन्ती की मृत्यु हो जाती है। बाबा रात में
बच्चों को बताते हैं कि तारों के झुंड में 'एक नया सितारा'शामिल हुआ है। बाबा के अनुसार उनकी बहिन मरकर तारा बन गई
है।
बारिश में पेड़
के नीचे खड़े चार व्यक्ति हैं। हवा से एक टहनी एक के गाल पर खरोंच कर जाती है और
वे चारों गुस्से से पेड़ की टहनियाँ तोड़ देते हैं। पेड़ पर रहने वाली चिड़ियाएँ
पेड़ से कहतीं हैं -'जरा ठहरो' इन शैतानों को
सबक सिखाना है और गुलेल का निशाना राह चलते आदमी के लगने के कारण उन चारों
व्यक्तियों को पुलिस पकड़ कर ले जाती है।
बाजार में
दुकानों की सफाई करने वाली लखमा है जो साथ में काम करने वाली रेशमा के बीमार पड़ने
पर उसके बच्चे जानी की जगह स्वयं काम करने लगती है और उसके काम का पैसा बीमार
रेशमा को देकर उसकी मदद करती है। 'डबल ड्यूटी' करके भी वह किसी का सहारा बनकर खुश है।
राजा विजयसिंह
हैं जो भोजन कर रहे हैं। रानी के द्वारा बनाए भोजन को सेवक मुंशीराम परोस रहा है।
राजा का हाथ बहक जाने से दही राजा की मूँछ पर गिर जाता है। मुंशीराम को हँसी आ
जाती है और राजा उसे कालकोठरी में डाल देता है। साफ करने पर भी राजा की मूँछ पर
कुछ दही लगा रह जाता है जिसे देखकर रानी भी हँस देती है और अपने लिए दण्ड की माँग
करती है। बात सुनकर राजा उलझ जाते हैं। 'दही की करामात' सोचकर राजा, मुंशीराम को माफ
कर देते हैं।
पार्क में टोपी
भूलने वाले रामदास हैं। एक किशोर राकेश उन्हें टोपी के नीचे दबा बताकर सौ का नोट
भी देना चाहता है। रामदास उस नोट को लेने से मना कर देते हैं क्योंकि वह नोट उनका
नहीं है। रामदास 'परीक्षा' में सफल होते
हैं। राकेश भी अखबार वाले ग्राहकों के रुपये लेकर भागने वाला लड़का नहीं निकलता।
अतः वह भी 'परीक्षा' में सफल हो जाता
है।
एक ही जगह रहने
से ऊबने वाला पहाड़ है। वह कहीं दूसरी जगह जाने की तैयारी करता है तो चट्टानें
गिरने लगती है और पहाड़ की ढलान पर बसे लोग भागने लगते हैं। एक काली चिड़िया
पहाड़देव से बात कर चारों दिशाओं की बाधाएँ बताती है। 'पहाड़ कहाँ जाए', इस उलझन का
समाधान कर चिड़िया उसे वहीं रहने को मना लेती है।
सड़क पर
दुर्घटनाग्रस्त रामदास हैं जो पास खड़े किशोर रजत से रिक्शा लाने को कहते हैं
लेकिन रजत उन पर कोई ध्यान नहीं देता। रामदास को भी बचपन की घटना याद आती है कि वे
बचपन में स्कूल और घर के मार्ग की पुलिया पर ऐसे वृद्ध को देखकर चल देते हैं जिनके
हाथ से खून बह रहा था। अब रजत और रामदास दोनों अपराध-बोध से ग्रसित हैं।लोगों की
संवेदनहीनता के कारण उपजा 'पुलिया का दुःख' रामदास को अब भी
उदास कर जाता है ।
'पूरी बाबा' रामदास बाबू हैं जो बड़ों के लंगर की जूठन खाते बच्चों के
लिए अलग से पूरी - हलवा की व्यवस्था करते हैं। बच्चों को सफाई का महत्त्व समझाते
हैं और उनकी पढ़ाई के विषय में सोचते हैं।
कूड़े के ढेर से
काम लायक चीजें चुनते कमल और किशोर हैं। हवा कूड़े के ढेर पर एक फूल छोड़ जाती है
लेकिन गन्दे हाथों से बच्चे उस फूल को छूने से भी डरते हैं। बच्चों की इच्छा है कि
वे कूड़े की बदबू को छोड़कर फूलों की खुशबू के बीच रहें। दोनों बच्चों ने फूल को
टूटे गमले में लगा दिया। तीन फूल हँस रहे थे। 'बच्चे फूल हैं' भले ही वे मैले - कुचैले हों यह बात गमले में लगा फूल जान
गया था।
इस बड़ी दुनिया
में अकेलापन महसूस करते रामदयाल हैं। पत्नी मर गई और बेटा मुम्बई से, माँ के मरने पर भी नहीं आया। हताश रामदयाल जंगल में मरने के
लिए जाते हैं। जंगल में उन्हें नरसिंह नाम का व्यक्ति मिलता है जो जंगल में खतरनाक
जगहों पर सावधान करने की चेतावनी लिखने का काम कर रहा होता है। रामदयाल को जीवन का
उद्देश्य मिल जाता है कि 'मरना नहीं', जीवित रहकर
दूसरों को मरने से बचाना है।
अविनाश स्कूल में
सीढ़ियाँ उतरते समय फिसल कर गिर जाता है और उसके पैरों में चोट आ जाती है। उसे
लगता है कि घर में कोई उस पर ध्यान नहीं दे रहा है। वह गुस्से में छोटी बहिन रचना
पर गिलास फेंकता है जिसका कोना चुभने से रचना के माथे पर गहरा घाव हो जाता है।
रचना, कहती है कि अब तो 'मैं भैया जैसी' हो गई। अविनाश पश्चाताप से रोने लगता है।
चाय के ढाबे पर
काम करने वाला नौकर राम है जो अपने मालिक से रोज पिटता है। वह देव नाम के सज्जन से
किराये पर साइकिल दिलाने के लिए कहता है और फिर साइकिल मिलने पर उसे लेकर फरार हो
जाता है। देव जानते हैं कि वह बचपन में खोये पिता को ढूँढने निकला है। लेकिन देव
यह भी जानते हैं कि राम की साइकिल को हर कोई छुड़ा लेगा और मन में पिता को खोजने
का सपना लिए वह फिर किसी चाय की दुकान में खटता रहेगा।
'बाल कथा सागर' में संग्रहीत
उक्त कहानियों के संक्षिप्त विश्लेषण से पता चलता है कि समाज में हृदयहीन लोगों के
साथ ही बच्चों की विवशता का लेखक ने यथार्थपरक चित्रण किया है। इन कथाओं का
केन्द्रीय भाव मानवीय संवेदनाएँ हैं। सामाजिक विषमताओं को ये लघु कथाएँ बड़ी
कुशलता से उभारती हैं। ये कथाएँ उपदेश नहीं देती अपितु घटनाओं के माध्यम से बालमन
का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण करती हैं। लेखक की अपनी भाषा - शैली है। उनकी लिखी कथाएँ
बच्चों से उनकी ही घरेलू बोली में बात करती प्रतीत होती हैं। सामाजिक सरोकारों की
बहु आयामी ये कहानियाँ अपने अन्त में एक संकेत छोड़ जाती हैं कि शोषण के शिकार
बच्चों के लिए हमें कुछ करना चाहिए। सहानुभूति और सलाह से ऊपर उठकर उनकी स्थिति
में सुधार के लिए सहयोग करना चाहिए।ये लघु कथाएँ मनोरंजन नहीं करती वरन् मन पर
आघात करती हैं। सुन्दर समाज के निर्माण के लिए लेखक का मानसिक संघर्ष दर्शाती हैं।
पाठकीय चेतना को संवेदना का सूत्र थमाती हैं। सचमुच बाल कथा सागर, जीवन के विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित घटनाओं का भण्डार है।
लेखक ने दैनिक जीवन के सामान्य - से दिखने वाले घटनाक्रमों को संवेदनाओं के साथ
प्रस्तुत करके रोचक कहानियों का रूप दे दिया है। लेखक अपनी अनुभूतियों को पाठकों
तक सम्प्रेषित करने में पूर्ण सफल रहा है।जीवन के विभिन्न पक्षों को संवेदनशीलता
के साथ स्पर्श करती कृति 'बाल कथा सागर' के सृजन के लिए
श्री देवेन्द्र कुमार जी को हार्दिक बधाई।
प्रस्तुति :
सुरेश चन्द्र 'सर्वहारा'
3 फ 22 विज्ञान नगर,
कोटा - 324005 (राज.)
मोबाइल :9928539446
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