Sunday 27 August 2023

दावत का दिन -कहानी-देवेन्द्र कुमार

 

                 दावत का दिन -कहानी-देवेन्द्र कुमार

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  मैं स्टैंड पर बस की प्रतीक्षा का रहा था। तभी आवाज आई-‘ भगवान के नाम पे कुछ मिल जाये....’-यह चरण की गिडगिड़ाती आवाज थी।  वह बस स्टैंड के पास बैठ कर भीख माँगा करता है।  कई बार पुलिस उसे वहां से भगा चुकी है पर कुछ दिन  बाद दोबारा लौट आता है।  

  मैंने कुछ सोचा और चरण  के सामने जा खड़ा हुआ। इससे पहले कि वह मेरे सामने हाथ फैलाता,मैंने कहा-‘ जानते हो आज तुम्हारा जन्मदिन  है और जिसका जन्मदिन  होता है वह किसी से मांगता नहीं,  मेहमानों को उपहार देता है। ’

  ‘मेरा जन्म दिन,,,, मैं.... ’चरण  हडबडा गया।फिर मैंने बस स्टैंड में खड़े लोगों से कहा-आज चरण का  जन्म दिन है| इसने कसम खाई है कि अब से यह किसी के आगे हाथ नहीं फैलाएगा, ’चरण मुंह बाए देखता खड़ा था। उसने धीरे से कहा-‘तो मैं क्या करूंगा अब?’                                   

  यह तो चरण  ने सही कहा था।  मैंने उसे भीख न  मांगने की कसम तो दिला दी थी,लेकिन  इसके बाद वह क्या करेगा,कहाँ जाएगा, इसका इंतजाम कौन  करेगा। तभी मैंने प्रीतम को वहां से जाते हुए देखा और उसे पुकार लिया।  प्रीतम मेरे घर में अखबार डालता है।  मैंने उसे चरण के बारे में बताया।

मैंने प्रीतम से कहा कि क्या वह चरण को बेचने के लिए रोज अखबार दे सकता है? मैंने उसे भरोसा देते हुए कहा-‘प्रीतम, तुम्हारे किसी भी नुक्सान  की जिम्मेदारी मेरी होगी। चरण के लिए  जो प्रयोग मैं करना चाहता हूँ उसमें तुम मेरी बहुत मदद कर सकते हो। ’

  आखिर प्रीतम ने मुझे सहयोग देने का वादा किया और कुछ देर में आने की बात कह कर चला गया। वह कुछ देर बाद लौटा तो उस दिन  के अखबार लेकर। प्रीतम ने एक प्लास्टिक शीट बिछा  कर उस  पर हिंदी और अंग्रेजी के अखबार करीने से रख दिए। तब तक मैं चरण को बता  चुका था कि उसे क्या करना है, बाकी उसे प्रीतम ने समझा दिया।  चरण अखबारों के सामने बैठा रहा,पर किसी ने भी अखबार नहीं खरीदा।

  मैंने कहा-‘चरण, आज पहला दिन  है,लोग तुमसे अखबार खरीदेंगे लेकिन  उससे पहले तुम्हें अपना हुलिया ठीक करना होगा। ’और मैं घर से एक जोड़ी कुरता पजामा ले आया। मैंने उसे कुछ पैसे दिए कि जाकर बाल कटवाने के साथ दाढ़ी भी साफ़ करा ले। फिर नहा कर कपडे बदल ले।  कुछ देर बाद चरण आया तो पहचाना ही नहीं जा रहा था। मैंने पूछा-‘आज तो तुमने कुछ खाया नहीं होगा। ’ और उसे सड़क पार मदन  के ढाबे पर ले गया। एकाएक मदन  उसे पहचान  ही नहीं पाया।  फिर मैंने उसे पूरी बात बताई तो मदन  हंस कर बोला-‘यह तो कोई दूसरा ही चरण बन  गया है। रोज इसे देखते ही डांट कर भगा देता हूँ। पर आज तो इसकी दावत करने का दिन  है। ’

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  चरण कुर्सी पर बैठते हुए सकुचा रहा था लेकिन  मदन  ने कहा-‘ आज तुम्हारा नया जन्म हुआ है। तुम मेरे मेहमान  हो। ’ मैंने चाय पी और मदन  ने चरण को भर पेट खिलाया।  चरण फिर से अखबारों के सामने बैठ गया। मैं संतुष्ट भाव से घर चला आया।

 शाम को दरवाजे की घंटी बजी,बाहर चरण खड़ा था।  उसने मुझे कई नोट थमा दिए।  बोला-‘ ये पैसे आपके हैं,  प्रीतम ने दिए हैं,कह रहा था कि अखबार बेचने का कमीशन है। ’

  ‘पर यह तो तुम्हारी मेहनत की कमाई  है।  तुम्हें खुश होना चाहिए कि ये भीख के पैसे नहीं हैं।  किसी ने तुम पर दया नहीं की है।  और यह कमीशन तुम रोज कमा सकते हो। ’

  ‘क्या सच!’-चरण की आवाज से ख़ुशी फूटी पड रही थी। इसके बाद मैं उसे मदन के ढाबे पर ले गया। मैंने हंस कर कहा-‘मदन, आज चरण अपनी कमाई  के पैसो से डिनर करने आया है। ’

  मदन ने कहा –‘आपकी तरह मैंने भी चरण के लिए कुछ सोचा है।  अखबार तो दोपहर तक ही बिकते हैं।  उसके बाद तो चरण खाली ही रहता है। अगर वह चाहे तो दोपहर के बाद मेरे ढाबे पर काम कर सकता है। मैं एक दो दिन में ही उसे पूरा काम समझा दूंगा। दोनों समय का खाना और साथ में कुछ पैसे भी दूंगा।  और हाँ मेरे कुछ आदमी रात में सफाई के बाद यहीं सोते हैं। उनके लिए मैंने नहाने –धोने  का इंतजाम भी कर रखा  है।  चरण को सडकों  पर सोने की आदत है। उसे कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए। ’ चरण को भला और क्या चाहिए था।  उसकी रातें तो सडक पर ही गुजरती थी, जहाँ से पुलिस कई बार भगा दिया करती थी।  अब चरण सचमुच बदल गया था। सुबह अखबार बेचना और दोपहर बाद मदन के ढाबे में काम करना उसकी दिनचर्या बन गई थी।

  एक शाम मैं मदन के ढाबे पर गया तो चरण काम में लगा हुआ था।  मुझे देख कर वह मेरे पास चला आया। मदन ने बताया कि अब तक उसके पास चरण के कुछ  पैसे जमा हो गए हैं।  ‘ मैं जब भी लेने के लिए कहता हूँ तो यह कह देता है  कि  इसे कोई जरूरत नहीं। ’ मैंने चरण की और देखा तो वह बोला-‘ आसपास मेरे जैसे और भी कई  चरण जरूर मिल जायेंगे आपको।  इन पैसों को अगर आप उन्हें सुधारने पर खर्च करें तो मुझे बहुत ख़ुशी होगी। ’ मैंने देखा,यह कहते हुए उसकी आँखों में गीलापन झलमला रहा था। (समाप्त)            

    

    

 

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