Thursday 25 May 2023

पेड़ के साथ क्या हुआ -देवेंद्र कुमार

पेड़ के साथ क्या हुआ -देवेंद्र कुमार

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मौसम बरसात का था। पहले धीमी-धीमी फुहारें पड़ीं फिर बारिश तेज होने लगी। लोग छाते और बरसातियां लेकर जल्दी-जल्दी घरों की ओर दौड़ने लगे। सब तरफ हड़बड़ी मच गई। पर वे चार जने कहीं नहीं गए जो पेड़ के नीचे खड़े थे। असल में वह पेड़ बहुत घना, छतनार था, उस सड़क पर खड़े पेड़ों में सबसे घना। इसीलिए तेज बारिश में भी वे चारों पेड़ के नीचे भीगने से बचकर खड़े थे। तभी तेज हवा में पेड़ की डालियां जोर-जोर से हिलने लगीं। फिर एक डाल उन चारों में से एक आदमी के गाल से आ टकराई। वह तेजी से पीछे हटा और जोर से चिल्लाया-‘‘ यह कौन है।’’

दूसरा व्यक्ति बोला-‘‘और कौन होगा, इसी पेड़ की डाल है। कहते हैं न डालियां पेड़ों के हाथ होती हैं।’’

‘‘तुम्हारा मतलब है अगर डालियां पेड़ के हाथ हैं तो इसने हाथों से हमें थप्पड़ मारे हैं।’’

‘‘शायद पेड़ यह कहना चाहता है कि भागो यहां से। तुम मेरे छाते के नीचे क्यों खड़े हो।’’दूसरे ने कहा।तीसरा बोला-‘‘इसका मतलब तो यह हुआ कि जब भी हवा चलेगी और डालियां हिलेंगी तो पेड़ के नीचे खड़े लोगों को चोट लग सकती है।’’

पेड़ की टहनी जिस आदमी के गाल से टकराई थी वह गाल को हाथ से दबाए हुए पेड़ की ओर गुस्से से देख रहा था। एकाएक उन चारों को जाने क्या सूझा, वे पेड़ के नीचे लटकती टहनियों को तोड़-तोड़कर गीली जमीन पर फेंकने लगे।

पेड़ की डालियां टूटीं तो पूरे पेड़ में दर्द की लहरें दौड़ने लगीं। पेड़ सोच रहा था-‘‘कैसे हैं ये लोग। अभी तक मेरे नीचे खड़े थे और बारिश में भीगने से बच रहे थे-लेकिन हवा के कारण एक टहनी क्या टकराई, ये तो मुझे नष्ट करने पर तुल गए हैं। अगर टहनियां सचमुच मेरे हाथ बन जातीं तो इन्हें मजा चखा देता।’’                       

                    

बारिश रुक चुकी थी। पेड़ के नीचे खड़े लोग भी जा चुके थे। वे चारों सड़क पार एक चाय की दुकान पर जा बैठे थे। उसी समय चिडि़यों की टोली पेड़ पर आ उतरी। चिडि़यों ने कहा-‘‘पेड़ दादा, प्रणाम। कैसे हो आप?’’ पर पेड़ ने चिडि़यों के प्रश्न का कोई उत्तर नहीं दिया। तभी एक डाल पर बैठे हरियल तोते ने कहा-‘‘आज पेड़ दादा के साथ बहुत बुरा हुआ है।’’

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‘‘ऐसी क्या बात हो गई। कौन है वह जिसने हमारे पेड़ दादा को कष्ट पहुंचाने की हिम्मत की है।’’ चिडि़यों ने हरियल तोते से पूछा।

हरियल बोला-‘‘आओ, मैं दिखाता हूं ।’’ वह उड़कर चाय वाले की दुकान पर मंडराने लगा। वहां वे चारों बेंच पर बैठे थे। सामने की मेज पर चाय के प्याले और बिस्किट रखे थे। उसने चिडि़यों से कहा-‘‘यही हैं वे जिन्होंने पेड़ दादा की डालियां बिना कारण तोड़कर फेंक दी हैं।’’

ये चारों दोस्ते हंसते हुए कुछ देर पहले की घटना पर चर्चा कर रहे थे।चाय वाले का नौकर श्यामू पास में खड़ा ध्यान से सुन रहा था। उसने पूछा-‘‘ आपने पेड़ की डालियां क्यों तोड़ दी?’’

‘‘डालियां तोड़ते नहीं तो क्या पेड़ की पूजा करते। देखो पेड़ की डाल ने मेरे दोस्त के गाल पर कितनी चोट पहुंचाई है।’’ जिसके गाल पर टहनी की चोट लगी थी वह हाथ हटाकर अपना घाव दिखाने लगा। गाल पर हल्की सी खरोंच थी। वहां खून निकलकर जम गया था, पर चोट गंभीर नहीं थी।

                    

 

श्यामू ने कह दिया-‘‘बाबू जी, चोट नहीं, इसे खरोंच कहेंगे। ऐसी खरोंचें तो मुझे दुकान पर काम करते हुए सारा दिन लगती रहती है। अंगीठी से चाय की केतली उतारते हुए हाथ जल जाता है, कभी चाकू से उंगलियां कट जाती हैं। तो क्या मुझे दुकान की क्राकरी तोड़ देनी चाहिए।’’

जिस आदमी के गाल पर डाल से खरोंच लगी थी वह चिल्लाया-‘‘खामोश! जा अपना काम कर।’’ डांट खाकर श्यामू  पीछे चला गया और सड़क पार खड़े पेड़ की तरफ देखने लगा। उसने देखा पेड़ के तने के आसपास की गीली जमीन पर अनेक हरी-भरी टहनियां टूटी पड़ी हैं। उसका मन उदास हो गया। उसे लगा जैसे किसी ने पेड़ को नहीं उसे ही चोट पहुंचाई है।

चिडि़यों ने सोच लिया था कि उन्हें क्या करना है। चिडि़यों ने जमीन से तिनके अपनी चोंच में उठाए और चाय के प्यालों और नाश्ते की प्लेट में डाल दिए।

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 ‘‘ओह, ये शैतान परिंदे।’’ उनमें से एक चिल्लाया-’’दूसरा बोला, ‘‘ये शैतान परिंदे तो मेरा शिकार बनने लायक हैं।’’ कहकर उसने जेब से गुलेल निकाल ली। उसे गुलेल से उड़ती चिडि़यों पर पत्थर दागने का खेल पसंद था। उसके इस शौक के कारण अनेक  परिंदे घायल हो चुके थे|

गुलेल वाले ने जमीन से एक पत्थर उठाकर गुलेल में फंसाया और निशाना साधने लगा। वह गुलेल का रबड़ खींचकर छोड़ पाता इससे पहले ही हरियल तोता नीचे झपटा और अपनी लाल चोंच उसकी कलाई पर गड़ा दी।

‘‘उई!’’ वह जोर से चीखा और हाथ बहक गया। गुलेल से उछला पत्थर किसी चिडि़या को तो नहीं लगा, पर सड़क पर जाते एक आदमी के चेहरे पर जा टकराया। वह चीखकर गिर पड़ा। वहां लोग जमा हो गए। श्यामू  ने उसे गुलेल में पत्थर फंसाकर चलाते देखा था। तभी सड़क की तरफ से कुछ लोग दौड़ते हुए आए और उन्होंने उस व्यक्ति का गुलेल वाला हाथ पकड़ लिया। गुलेल अभी तक उसकी उंगलियों में फंसी हुई थी।इसी बीच दो सिपाही भी डंडे फटकारते हुए वहां आ पहुंचे। सिपाही ने गुलेल वाले व्यक्ति से पूछा-‘‘तुमने सड़क पर जाते आदमी पर गुलेल क्यों चलाई? उससे तुम्हारी क्या दुश्मनी है?’’

                      

 गुलेल वाला घबरा गया। वह हकलाने लगा, ‘‘मैंने तो चिडि़यों पर गुलेल का निशाना साधा था लेकिन गलती से हाथ बहक गया। एक तोते ने मेरे हाथ पर काट दिया।’’

उसकी बहकी-बहकी बातें सुनकर सब हंस पड़े। ‘‘पशु-पक्षियों को चोट पहुंचाना तो बहुत बड़ा अपराध है। तुम्हें थाने चलना होगा।’’ सिपाही ने कहा|

श्यामू खुश था कि पेड़ की टहनियां तोड़ने वाली दुष्ट टोली चक्कर में फंस गई थी।श्यामू पेड़ को अपना दोस्त समझता था। सुबह परिंदे दाने-चारे की तलाश में पेड़ पर घोंसलों से उड़कर जाते थे और शाम को थककर अपने घोंसलों में लौटते थे। तब श्यामू पेड़ के आसपास ही रहने की कोशिश करता था। न जाने क्यों उसे परिंदों की आवाजें अपने गांव की याद दिला देती थी।

चारों को पुलिस वाले अपने साथ ले गए। चिडि़यों का झुंड तोते के साथ पेड़ के पास लौट आया। हरियल तोते ने कहा-‘‘पेड़ दादा, आपने तो देख लिया होगा कि आपकी दोस्त चिडि़यों ने उन दुष्टों को कैसे छकाया।’’

 ‘‘धन्यवाद।’’ पेड़ ने कहा और उसके पत्ते सरसराने लगे।क्या हम लोग कभी पेड़ पौधों और जीव जंतुओं की भाषा समझ सकेंगे ! (समाप्त )

 

  

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