Saturday 13 May 2023

 

                          अकेला गुब्बारा-कहानी-देवेंद्र कुमार     

                                                                                                                                                             

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 शाम का समय ,बढ़िया मौसम --हवा  धीरे धीरे बह रही थी बाग़ में खिले सतरंगी फूलों की सुगंध फैलाती हुई। तभी हवा की नज़र एक गुब्बारे पर गई  जो फुटपाथ पर पड़ा था। आने जाने वाले गुब्बारे के पास से गुज़र रहे थे,लेकिन कोई बेचारे गुब्बारे  पर ध्यान नहीं दे रहा था। कोई  बच्चा वहां होता  तो दौड़ कर उसे जरूर  उठा  लेता।  हवा ने  जैसे अपने से कहा-गुब्बारा अकेला क्यों ,इसे तो किसी बच्चे के हाथ में  होना चाहिए। उसने गुब्बारे को छुआ तो  वह फूल कर ऊपर   उठा और  हवा में तैरने लगा।

 

अब हवा किसी बच्चे को खोज रही थी। और एक बच्चा दिख भी गया- लेकिन उसे बुखार था। वह आँखें बंद किये  लेटा था। बच्चे की माँ उसका माथा थपक रही थी। माँ बच्चे के बारे में  चिंता कर रही थी, कारण था कि दवा ख़त्म हो गई थी ,बच्चे के पिता घर में नहीं थे।किसी काम से बाहर गए थे,वह रात में देर से लौटने वाले थे,पर बीमार बच्चे को तुरंत दवा की जरूरत थी।

 

हवा समझ गई कि इस समय बच्चे को गुब्बारे की नहीं,दवा की जरूरत है। दवा का परचा  मेज पर  रखा था। हवा के झोंके से दवा का परचा उडा और हवा ने उसे केमिस्ट की दूकान में काउंटर पर टिका दिया।  वहां कई लोग खड़े थे।केमिस्ट ने परचा देखा और उसमें लिखी दवाएं निकाल कर एक थैली में  पर्चे पर रख दीं और फिर एक ग्राहक को दवाई देने में व्यस्त हो गया।  हवा के झोंके ने  दवाओं की थैली ले जाकर बच्चे की माँ के सामने उलट दी। वह हैरान रह गई कि दवाएं कौन रख गया!  फिर बच्चे को दवा देकर संतोष की सांस ली।

 

हवा ने एक अच्छा काम कर दिया था। अब अकेले गुब्बारे को किसी बच्चे के हाथ में थमाना था। हवा गुब्बारे को  अपने साथ उडा  ले चली।  कुछ दूर जाने के बाद हवा को एक बच्चा नज़र आया जो एक ढाबे  के बाहर खडा रो रहा था।। हवा ने सोचा-अगर गुब्बारा इस बच्चे को मिल जाए तो यह रोना भूल कर जरूर हंस  देगा। पर बच्चे को भूख लगी थी और उसने खाना माँगा तो मालिक ने उसे मारते हुए कहा-'मैंने तुझे काम के लिए रखा है,तेरा पेट भरने के लिए  नहीं। जब देखो रोटी रोटी करता रहता है। जब काम पूरा हो जायेगा तभी खाना मिलेगा।'

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         हवा ने देखा-ढाबे में कई लोग खाना खा रहे थे। तंदूर के पास एक  टोकरी में कई रोटियां रखी थीं। हवा के झोंके ने छुआ तो एक रोटी  न जाने कैसे  बच्चे के हाथ में आ गई,पहले तो वह चौंक उठा फिर रोटी खाने लगा ।रोटी का टोकरी से बच्चे के हाथ में पहुंचना किसी ने नहीं देखा था।कोई कैसे देखता ,यह तो हवा ने चुपचाप किया था। बच्चा रोटी खाने के बाद गुब्बारे से खेलने लगा था। हवा को अच्छा लगा लेकिन वह ढाबे वाले से नाराज़ थी, जो इतने छोटे   बच्चे से ढाबे में मेहनत करवा रहा था। हवा एक बोर्ड को उड़ा लाई, उस पर लिखा था-देखो इस जालिम आदमी को। यह बच्चों से बंधुआ मज़दूरी करवाता है। देखते देखते वहां कई लोग आ जुटे। वे ढाबे वाले को बुरा भला कह रहे थे। पुलिस में शिकायत होने की बात सुन कर वह बुरी तरह घबरा गया। कहने लगा कि आगे से ऐसा बुरा काम कभी नहीं करेगा।

 

 इस बीच टोकरी में रखी सारी  रोटियां गायब हो गईं। हवा ने उन रोटियों को भूखों के पास पहुंचा दिया था। हवा ने निश्चय किया कि जब कहीं उसे कोई भूखा दिखाई देगा तो  रोटियों की ऐसी चोरी वह बार बार करेगी 

 

      बच्चा खुश था और गुब्बारे के साथ मस्ती कर रहा था। उसे खुश देख कर हवा को अच्छा लगा। लेकिन अब हवा कुछ और सोच रही थीं उसे तो पूरी दुनिया के चक्कर काटने थे, यही तो करती थी  वह हर रोज। आखिर इस बच्चे को  कहाँ कहाँ लिए फिरूंगी मैं! इसे  अपने माँ बाप के साथ होना चाहिए आखिर कोई बच्चा अपने माँ बाप से दूर क्यों हो जाता है, यह तो कभी नहीं होना चाहिए। हवा ने देखा बहुत दूर गांव में एक औरत झोंपड़ी के बाहर  उदास खड़ी थी। वह अपने बेटे के बारे में सोच रही  थी | आपने ठीक समझा, शहर के ढाबे में मज़दूरी करने वाला बच्चा ही उसका बेटा  रजत  था रजत को उसकी माँ ने पडोसी के साथ शहर भेजा था, क्योंकि पडोसी ने रजत को अच्छे स्कूल में पढाने  का वादा किया था। लेकिन उसने रजत को  ढाबे वाले के हवाले करके बदले में पैसे ले लिए थे| 'रजत की माँ जब भी पूछती  तो शैतान पडोसी कह देता कि रजत मन लगा कर पढ़ाई कर रहा है।

हवा ने तुरंत रजत को उसकी माँ के पास पहुंचा दिया। रजत जैसे किसी जादू से माँ सामने प्रकट हो गया।रजत को देखते ही माँ ने उसे गोदी में भर लिया और रोने लगी। वह बार बार पूछ रही थी-'बता  तुझे कौन छोड़ गया !लेकिन रजत भला क्या जवाब देता, वह भी माँ से लिपट कर रो रहा था।खबर मिलते ही वहाँ पूरा गांव इकठ्ठा हो गया। सब हैरान थे। जब रजत माँ से लिपट कर रो रहा था तो गुब्बारा सच्चे दोस्त की तरह वहीँ मंडराता रहा।

 

     हवा पूरे गांव की ख़ुशी में शामिल हो गई थी। उसने निश्चय कर लिया कि वह अपने परिवार से बिछुड़े हुए बच्चों को रजत की तरह ही वापस लाने का अच्छा काम जरूर करेगी। मैं और आप सब जानते हैं कि यह काम बहुत कठिन है, हवा के जादुई स्पर्श के बिना करना होगा यह कठिन काम ,क्या हम सब  इसके लिए आगे आने के लिए तैयार हैं ? (समाप्त)

 

 

 

 

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