आओ नाश्ता करें—कहानी—देवेन्द्र
कुमार
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Saturday, 19 August 2017
‘मेरा नाश्ता ऊपर भेज देना। ’—कह
कर अमित के बाबा छत की ओर जाने वाली सीढियां चढ़ने लगे। अमित के बाबा यानि शामलाल जी। अमित की मम्मी अल्पना नाश्ते की प्लेट लगा रही
थी। उन्होंने कहा—‘बाबूजी, छत पर क्यों,अपने कमरे में आराम से बैठ कर… ’ लेकिन बात पूरी न हुई,शामलाल
जी तब तक छत पर जा चुके थे।
रसोई की हवा में मिठास तैर रहा है। हलवा बन रहा है, फिर
कटलेट की बारी है। रविवार की सुबह का
नाश्ता विशेष होता है। तब पूरा परिवार एक साथ नाश्ते का आनंद लेता है। वर्ना हर
सुबह भागमभाग और हड़बड़ी में गुज़रती है। पहले अमित स्कूल जाता है फिर उसके पापा विनय
निकलते हैं। इसके बाद अल्पना जल्दी-जल्दी
काम निपटा कर आफिस चली जाती है,
यह सोच विचार करती हुई कि क्या काम
अधूरा छूट गया है। इन तीनों के जाने के
बाद अमित के बाबा घर में अकेले रह जाते हैं। दोपहर में अमित के स्कूल से लौटने के बाद दोनों
साथ साथ भोजन करते हैं|
शाम
चार बजे बाबा को दवाई देकर अमित ट्यूशन पर चला जाता है। अमित के पापा के लौटने के काफी देर बाद अल्पना
आती है, और कुछ देर आराम के बाद शाम के भोजन
की तैयारी में जुट जाती है। घर और दफ्तर
की छह दिनों की भागदौड़ की थकान इतवार की सुबह नाश्ते की मेज पर स्वादिष्ट पकवानों
का मज़ा लेते हुए उतरती है। लेकिन शामलाल जी को नाश्ते में शामिल ही नहीं किया जाता।
इसलिए रविवार के नाश्ते के साथ घुलीमिली हंसी उन्हें एकदम अच्छी नहीं लगती। आखिर
ऐसा क्यों होता है उनके साथ?
अमित के पापा विनय से पूछो तो वह जो
कुछ कहेंगे उसका मतलब है कि उनके पिता शामलाल जी को कई रोगों ने घेर रखा है। इसलिए दवाओं के साथ परहेज का भोजन दिया जाता है।
लेकिन उनके पिता शामलाल इस बात को नहीं
मानते। इसलिए रविवार का नाश्ता वह छत पर करते हैं -- तरह तरह के स्वादिष्ट पकवानों
से दूर। नाश्ते की मेज़ से उठने वाली
खिलखिल उनके मन को गुस्से से भर देती है। यदि कोई उनसे पूछे तो वह कहेंगे –अगर रविवार को मैं सबके साथ नाश्ता कर लूँगा तो कोई आफत नहीं आ
जाएगी।
1
अमित
नाश्ते की प्लेट लेकर छत पर गया तो शामलाल जी मुंडेर के पास खड़े थे। अमित ने प्लेट
मेज़ पर रख दी। छत पर एक गोल टेबल और दो कुर्सियां रखी हैं। फिर वह बाबा के पास जा
खड़ा हुआ। मुंडेर पर कई बड़ी -छोटी कटोरियाँ रखी हैं। बड़ी कटोरियों में परिंदों के
लिए पानी और छोटी कटोरियों में दाने हैं।
‘’बाबा,
नाश्ता। ’—अमित ने कहा तो बाबा ने नाश्ते की प्लेट की ओर देखा-- दो बिना
मक्खन के टोस्ट,दो बिस्किट, एक कप दूध और एक छोटी कटोरी में दवा की गोलियां। हाँ यही हर
दिन का नाश्ता है। रविवार को भी इसमें कोई बदलाव नहीं होता। उन्होंने कहा—‘ हाँ
देख रहा हूँ, मैं परिंदों की प्रतीक्षा कर रहा हूँ।
हम साथ साथ नाश्ता करेंगे। ’’
‘’पर छत पर आने वाले परिंदों के साथ
कैसे नाश्ता करेंगे आप?’’—अमित ने पूछा।
जब परिंदे दाना चुगेंगे तो टोस्ट खा
लूँगा। ’’—बाबा बोले।
अमित देखता रहा पर कोई चिड़िया या
कबूतर नीचे नहीं उतरा। उसने कहा—‘’अगर कोई पक्षी नहीं उतरा तब आप क्या
करेंगे?’
‘’
तब तो मुझे नाश्ता अकेले ही करना होगा।
खैर इसे छोड़ो,यह बताओ आज रसोई में क्या बन रहा है?’
‘’माँ ने हलवा और कटलेट बनाए हैं। मेरी मौसी भी आ रही हैं मालपुए और समोसे लेकर। ’’
‘’
वाह ,तब तो
बढ़िया दावत होगी। जिस गली में मेरा जन्म हुआ था वहां के हलवाई बहुत अच्छे मालपुए
बनाते थे। दूर दूर से लोग लेने आते थे। ’’ बाबा बोले।
अभी तक छत पर कोई परिदा नहीं उतरा था। अमित ने धीरे से कहा—‘ बाबा,नाश्ता। ’
2
शामलाल जी ने कहा—‘ मुझे लगता है एक ही तरह के दाने चुग कर बेचारे बोर हो गए हैं। इतवार को तो उनके भोजन में कुछ बदलाव होना ही
चाहिए।’’
‘’बात तो आपकी ठीक है,लेकिन …
’ अमित ने कहना चाहा।
‘’अगर मेरी बात ठीक मानते हो तो कुछ करो
परिंदों का जायका अच्छा करने के लिए। ’
अमित तेजी से नीचे चला गया। उसने मालपुए, समोसे और कटलेट एक प्लेट में रखे और छत पर जा पहुंचा। देख कर बाबा हंसने लगे। उन्होंने कहा—‘ अमित, तुम इनके टुकड़े करो, हम
इन्हें कटोरियों में रख कर परिंदों के आने की प्रतीक्षा करेंगे। ’ अमित और बाबा ने मिल कर मालपुए,कटलेट
और समोसे के टुकड़ों को मुंडेर पर रखी कटोरियों में रख दिया। अब बाबा मुंडेर के पास खड़े होकर दोनों हाथ
हिलाते हुए बार बार ‘आओ आओ नाश्ता करो’ कहने लगे। अमित ने भी
बाबा का अनुसरण किया। लेकिन देर तक भी कोई
परिंदा नहीं आया। एकाएक बाबा ने कहा—‘अब समझ में आया कि बात क्या है। ’’
‘क्या?’
‘’जब तक हम मुंडेर के पास खड़े रहेंगे तब
तक परिदे नीचे नहीं उतरेंगे। ’’
‘’तब हम क्या करें?’—अमित ने पूछा । ’’
‘’हमें पीछे या नीचे चले जाना चाहिए। ’—बाबा ने कहा। ‘’ तुम
नीचे चलो मैं भी नाश्ता करके आता हूँ। ’’
अमित सीढियों से उतरने लगा। पर फिर ऊपर चला आया। उसने देखा बाबा मुंडेर के पास खड़े हुए थे,मुंडेर पर कोई परिंदा नहीं था, पर
बाबा नाश्ता कर रहे थे। अमित का मन हुआ कि
बाबा से कुछ पूछे लेकिन फिर रुक गया। उसे
बाबा का नाश्ता करना अच्छा लग रहा था। कम से कम रविवार को तो बाबा चिड़ियों के साथ
नाश्ता कर ही सकते थे। उसने तय कर लिया था
कि वह इस बारे में किसी से कुछ नहीं कहेगा,बाबा से
भी नहीं|(समाप्त )
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