Thursday 14 October 2021

--मेरे सात बाल उपन्यास --(कथासार) हीरों के व्यापारी

 

--मेरे सात बाल उपन्यास --(कथासार) हीरों के व्यापारी

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कुछ वर्ष  पहले मेरे सात बाल उपन्यासों का संकलन प्रकाशित हुआ था. पुस्तक का कलेवर बड़ा है, इसलिए मैं  पाठकों की सुविधा के लिए यहाँ सातों उपन्यासों का कथा सार   क्रमशः प्रस्तुत कर रहा हूँ. प्रत्येक उपन्यास के कथासार को स्वतंत्र कहानी के  रूप  में भी पढ़ा जा सकता है.

 

                                           =बाल उपन्यास सूची =

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१.पेड़ नहीं कट रहे हैं २ चिड़िया और चिमनी ३ एक छोटी बांसुरी ४ खिलौने                                            . नीलकान ६. अधूरा सिंहासन ७. हीरों के व्यापारी|

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इससे पहले आप 'पेड़ नहीं कट रहे हैं','चिड़िया और चिमनी' ,'एक छोटी बांसुरी' , 'खिलौने '  ''नीलकान'और 'अधूरा सिंहासन'  उपन्यासों के कथासार पढ़ चुके हैं ,अब प्रस्तुत है 'हीरों के व्यापारी ' की संक्षिप्त कथा .

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7.       हीरों के व्यापारी

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राजेश और सुरेन्द्र दोस्त हैं. रात में राजेश सुरेन्द्र को छोड़ने जा रहा था. रास्ता रेलवे लाइन के पास से जाता  था. रेलवे सिग्नल के पास ट्रैन रुकी हुई है.  तभी गाडी में  चीख गूंजी . कोई डिब्बे  से उतर कर भाग चला. फिर एक  कार तेजी से चली गयी.राजेश को झाड़ियों में  एक डायरी मिलती है ,जिस पर उसके बड़े भाई नारायण का नाम लिखा है. पता चलता है कि ट्रेन में  एक हीरा व्यापारी की हत्या हो गई.  राजेश सोच रहा था, नारायण भाई की डायरी आखिर वहां क्यों है?

 

रात में राजेश को नींद नहीं आ रही है. कोई आहट सुन कर वह खिड़की से झाँक कर देखता है -- एक आदमी दीवार फांद कर घर के नौकर भीखू की कोठरी में  जाता है.राजेश चुपचाप कोठरी के बाहर छिप कर अंदर की बातें सुन और देख लेता है. अंदर खड़ा दाढ़ी वाला आदमी भीखू को एक कागज़ दे कर कहता है- 'यहाँ आ जाना.' और फिर जैसे आया था उसी तरह चला जाता है. राजेश ने पेट दर्द का बहाना करके भीखू को दवाई लाने भेज दिया. इसके बाद अंदर जाकर उस कागज पर लिखा पता याद कर लिया.

 

अगले दिन राजेश नारायण भाई को एक कार में जाते देखता है. राजेश के साथ सुरेन्द्र भी है. दोनों एक कार में लिफ्ट लेकर नारायण की कार का पीछा करते हैं. आगे वाली कार एक सुनसान कोठी में चली जाती है. यह दोनों भी छिप कर अन्दर घुस जातें हैं.लेकिन ये कुछ कर पाते इससे पहले  बदमाश  इन्हें पकड़कर तहखाने में  डाल  देते हैं.  नारायण भाई भी वहीँ हैं. उनका भेद भी खुल गया है.असल में  नारायण भाई  उस गिरोह में  गुप्त रूप से शामिल होकर  काम कर रहें हैं ताकि मौका मिलने पर उन्हें गिरफ्तार करवा सकें.

 

राजेश और सुरेंद्र नारायण भाई की मदद से  अपने बंधन खोलन में सफल हो जाते हैं. इन्हें तहखाने से बाहर जाने का एक गुप्त रास्ता भी मिल जाता है, जो नदी तट पर निकलता है. ये  दो तस्करों को बेहोश कर देते हैं.पर  गिरोह का  सरदार इन्हें देख लेता है. वह इन पर गोली चलाने वाला है पर तभी वहां मौजूद भीखू उसे पकड़ कर गिरा देता है. गिरोह का सरदार भीखू का आवारा बेटा  है. उसी ने भीखू को वहां बुलाया था. शायद वह अपने पिता को भी अपनी योजना में  शामिल करना चाहता था ,लेकिन भीखू अपने बेटे का साथ नहीं देता.   

तभी वहां पुलिस आ जाती है. असल में  राजेश और सुरेंद्र ने जिस कार में  लिफ्ट लिया था वह  एक पुलिस अफसर की थी. इन दोनों को  सुनसान कोठी के बाहर उतरते देख कर उन्हें संदेह हो गया था और वह पुलिस  दल  के साथ पता करने चले आए थे . तस्कर पकडे जाते हैं.( समाप्त )

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