मेरे पास एक पेड़ है -कहानी-देवेंद्र
कुमार
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जरूर मुझे कुछ हो गया है। अन्यथा एक सूखा पेड़
इस तरह मेरे मन में जड़ जमा कर न बैठ जाता।
घर से बाजार जाते हुए मैं जब भी उसके पास से गुजरता हूँ तो मन जैसे पूछता है-अपने
हरे भरे बंधुओं के बीच यह पेड़ सूखा हुआ क्यों है ?क्या प्रकृति ने इसे किसी अपराध का दंड दिया है। ? मैं कहानियां लिखता हूँ। तो क्या इस
सूखे पेड़ के अंदर से भी कोई कहानी निकाली जा सकती है ?
और
मैं लिखने बैठ गया। हाँ तो मेरे पास एक सूखा पेड़ है, जिसे शायद कोई पसंद नहीं करता।
एक दोपहर कामेश और कमल सूखे पेड़ के नीचे बैठे खाना खा रहे थे। कामेश और कमल रिक्शा चलाते हैं । वे खा कर उठे और चले गए। यह क्या! वहां रोटी के टुकड़े,
प्याज
के छिलके और दो कागज़ पड़े थे। मैंने पेड़ की तरफ देखा -हाँ उसे बुरा लगा था। तभी दो बच्चे वहां आये ।पहले उन्होंने सफाई की, फिर हाथ धो कर छाबड़ी वाले चतुर के पास चले गए। उनके नाम हैं भीम और विलास। बच्चे उसे दादा कहते हैं। दोनों चाय की टपरी में चाय ग्राहकों तक
पहुँचाने और साफ़ सफाई का काम करते हैं। दोपहर में थोड़ी देर की छुट्टी मिलते ही
सीधे चतुर के पास चले आते हैं। चतुर दोनों के सिर पर प्यार से हाथ फेर कर
उन्हें ब्रेड और नमकीन देता है। हाँ यही
है उनका भोजन।
एक दिन जब भीम और विलास छाबड़ी वाले के पास खड़े
थे ,तभी कामेश और कमल भी वहां आ गए। अब चतुर को
अपनी बात कहने का मौका मिला ,उसने कहा -'कामेश ,तुम और तुम्हारा दोस्त हर रोज पेड़ के
नीचे खाना खाकर अपना कूड़ा वहां छोड़ जाते
हो ,जिसे ये बच्चे साफ़ करते हैं। ऐसा दंड क्यों
देते हो इन बेचारों को !' सुनते ही कामेश और कमल अपनी भूल समझ
गए। उन्होंने भीम और विलास से कहा -बच्चो ,हमें माफ़ कर दो। आगे से ऐसी गलती कभी
नहीं होगी। और फिर दोनों के सिर सहला दिए,भीम और विलास हंस पड़े।
चतुर को लगा अब दोस्ती की बात करनी चाहिए ,लेकिन कैसे !तभी उसके दिमाग में एक
विचार आया--बोला -'अरे ,एक खुश खबरी है। -आज मेरा जन्मदिन है। '
'दादा
, बधाई।'कह कर भीम और विलास चतुर से लिपट गए। कमल और कामेश ने भी चतुर को बधाई दी फिर जाकर मिठाई ले आये। चतुर अपनी छाबड़ी को सूखे पेड़ के नीचे ले आया। मौज मस्ती के बीच जम कर दावत हुई। पेड़
को इतनी खुशी पहले कभी नहीं मिली थी। तभी भीम ने कहा-'दादा,
अब
हमें जाना होगा, नहीं तो मालिक नाराज होगा और पैसे भी कटेंगे’|
चतुर ने कहा-'बच्चो ,तुम्हारे मालिक को मैं अच्छी तरह जानता
हूँ ,वह तुम्हें कुछ नहीं कहेगा '
और
तुरंत चाय वाले के पास चला गया।पूरी बात बता कर कहा-'भीम और विलास के पैसे मत काटना आज
दोनों बहुत खुश हैं। 'चाय वाले ने कहा-'चतुर दादा,अपने
जन्मदिन की दावत में मुझे नहीं बुलाओगे क्या?'और एक केतली में चाय लेकर पेड़ के नीचे
आ पहुंचा।
1
तभी बारिश होने लगी। भीम ने विलास से कहा -'भीगने से रंगी बाबा की तबियत कहीं
ज्यादा न बिगड़ जाए ''कौन रंगी बाबा?' चतुर ने पूछा तो पता चला -रंगी लाल फ्लाईओवर के
नीचे रहता है। सड़क पर मेहनत करके जीवन जीने वाले बच्चे उसे बाबा कहते हैं।और उनकी रातें रंगी के पास
बीतती हैं।
कामेश और कमल सबको अपनी रिक्शाओं में रंगी लाल
के पास ले गए। रंगी लाल फ्लाईओवर के नीचे लेटा खांस रहा था।पानी की बौछार से बचने के लिए
दोनों तरफ लटकी चादर कोई मदद नहीं कर रही
थी। भीम और विलास के साथ अजनबी लोगों को देख कर रंगी लाल कुछ पूछता, इससे पहले चतुर ने कहा-'बच्चों के रंगी बाबा, भीम और विलास ने हमें सब बता दिया है ,बाकी बातें बाद में।'
और
रंगी लाल को चतुर अपनी कोठरी में ले आया। फिर डाक्टर को दिखाया तो उसने दवा देकर बारिश से
बचने को कहा।
बारिश बंद हुई
तो रंगी लाल ने फ्लाई ओवर के अपने ठिकाने पर जाने की बात कही,
पर
चतुर ने डाक्टर की सलाह याद दिलाई। रंगी लाल को तबीयत ठीक होने तक चतुर की कोठरी
में रुकना पड़ा। अपने साथ रात बिताने वाले बच्चों के लिए बैचैन था रंगी बाबा। भीम और
विलास उन्हें भी वहां ले आये। चतुर की कोठरी
में खूब रौनक हो गई। उस दौरान चतुर ने
रंगी बाबा और अपनी रातें उनके साथ बिताने वाले भीम
, विलास
और उनके चार दोस्तों
के
बारे में बहुत कुछ जान लिया। सभी बच्चे मज़दूरी करते थे| उनका अपना कोई घर नहीं था,इसीलिए रात के समय वे अपने रंगी बाबा
के पास पहुँच जाते थे।
2
पहले रंगी भी काम करता था,
फिर
पैरों में तकलीफ के कारण लाचार हो गया। उसके भोजन का जुगाड़ भीम और उसके साथी ही करते थे। रात के समय रंगी बाबा उन्हें
किस्से कहानियां और गीत सुनाता और वे बेघर बच्चे बाबा को बताते कि उनका दिन कैसा
बीता।
तबीयत ठीक होने के बाद रंगी बाबा अपने ठिकाने
पर जाने लगा तो चतुर ने उससे एक वादा ले लिया -'
‘बरसात
और सर्दी से बचने के लिए तुम और बच्चे अपनी रातें मेरी कोठरी में बिताओगे।'
चतुर की कोठरी में एक रात रंगी ने कहा था-'जब मैं दूसरे
बच्चों को सज संवर कर स्कूल जाते देखता हूँ तो… ' चतुर ने रंगी की अधूरी बात समझ ली थी और फिर
पड़ोस में रहने वाली रश्मि मैडम को बुला लाया था।
रश्मि स्कूल में टीचर थी और शाम के समय गली के उन बच्चों को
पढ़ाती थी जो स्कूल नहीं जा पाते थे। रश्मि ने रंगी से कहा-'आपको बाबा कहने वाले इन बच्चों को मैं
जरूर पढ़ाऊंगी। मैं चाहती हूँ कि कोई भी बच्चा अनपढ़ न रहे।’
और
अगली शाम जब भीम और उसके दोस्त रश्मि से पढ़ कर लौटे तो रंगी की आँखें भर आई थी।
सूखे पेड़
के तो जैसे दिन फिर गए थे। हर दोपहर चतुर के साथ कामेश,कमल और भीम के दोस्त पेड़ के नीचे भोजन
करते थे ,रंगी को भी कामेश या कमल रिक्शा से वहां ले आते
थे। चिड़ियों की भी रोज दावत होती थी,और सूखा पेड़ अंदर ही अंदर हरा होने लगा
था।(समाप्त)
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