चल अपनों के पास – कहानी-देवेंद्र कुमार
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सैलानियों की एक टोली जंगल में घूम रही थी कि
अचानक तेज बारिश होने लगी। बचने के लिए सब पास की एक गुफा में चले गए।अँधेरे में उन्हें बोलने की आवाजें सुनाई दीं। टार्चों के प्रकाश में कोई मनुष्य
नहीं दिखाई दिया। एक तरफ बरतनों का ढेर
जरूर पड़ा था। और बर्तन भी कैसे -सारे सस्ते
अल्मीनियम के, जिनमें एक भी साबुत नहीं था।
सैलानियों की टोली अचरज से देखती रह गई। कोई कुछ नहीं समझ पा रहा था। बस्ती से दूर,निर्जन जंगल की गुफा में कौन इस कबाड़ को डाल गया था। और वे आवाजें कैसी थीं जिन्हें लोगों ने
गुफा में प्रवेश करने से पहले सुना था। पर कोई मनुष्य तो नज़र नहीं आया था। तो क्या भूत प्रेत का
चक्कर था!
ऐसा वैसा कुछ नहीं था।मैं आपको पूरी कहानी सुनाता हूँ क्योंकि मैं शुरू
से ही इसके साथ रहा हूँ।
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मैंने उसे कूड़ेदान के पास पड़े देखा तो मैं रुक
गया। वह कूड़े के ढेर पर पड़ा एक उदास और अकेला चम्मच
था -अल्मीनियम का बना हुआ,जिसका हैंडल टेढ़ा मेढा था । उसे बेकार समझ कर फेंक दिया गया था। वह
सोच रहा था -'क्या मेरे जैसे का इस दुनिया में कोई
नहीं ।
वह
इस बात पर विश्वास करने को तैयार नहीं था कि इस दुनिया में अपने जैसा एक ही है। और मैं सोच रहा था -क्या उस जैसे बेकार चम्मच की भी कोई कहानी हो
सकती है ?
रात गहरा रही थी। और वह अपने भाई
बंधुओं की खोज में चल दिया। सड़कें सुनसान
थीं। घरों में हर कोई आराम की नींद ले रहा था। लेकिन कोई तो था जो जाग रहा था- वह था पटरी पर पड़ा अल्मीनियम का गिलास । उसका बदन जगह जगह से पिचका हुआ था। गिलास ने पुकारा -'ओ छुटकू,
इस
समय अकेला कहाँ जा रहा है?'
चम्मच ने आवाज़ की दिशा में देखा और गिलास के पास जा पहुंचा। उसने
कहा- बडे भैया,
प्रणाम।'
गिलास
आकार और उम्र में उससे काफी बड़ा था। जीवन में पहली बार किसी ने उसे स्नेह से छुटकू
कह कर पुकारा था।उसकी उदासी कुछ कम हुई ,क्योंकिं अपने जैसा कोई तो मिल गया था।’
गिलास
ने पूछा तो चम्मच ने अपने मन की पीड़ा कह
डाली। बता दिया कि वह अपनों की खोज में निकला है, और खुश है कि उसे अपना बड़ा भाई मिल
गया है। अपने लिए 'बड़े भैया 'सम्बोधन अल्मीनियम के गिलास को अच्छा
लगा। उसे भी तो टेढ़े मेढ़े हैंडल वाले चम्मच की तरह बेकार समझ कर सडक पर फेंक दिया गया था हालांकि वह मानता था कि वह अब भी किसी
के काम जरूर आ सकता है।
1
छुटकू बड़े भैया से अपना दुःख कह रहा था तो बड़े भैया भी उसके साथ
अपनी पीड़ा बाँट रहे थे। दोनों को दुनिया से अपमान और उपेक्षा मिली थी। बड़े और सम्पन्न घरों में अल्मीनियम के सस्ते और हलके बर्तनो
का प्रवेश वर्जित था। और अगर वे बड़े भैया और छुटकू जैसे कुरूप और विकृत हों तब तो उनके लिए कही भी कोई जगह नहीं थी। छुटकू ने कहा-‘
बड़े
भैया , अगर हम तलाश करें तो कहीं न कहीं हमारे जैसे
भाई बंधु भी जरूर मिल सकते हैं। '
बड़े भैया उसकी बात से सहमत थे। उन्होंने कहा-लेकिन इस खोज यात्रा पर
निकलने से पहले मैं रेवा दादी की मदद करना चाहता हूँ।'
छुटकू ने पूछा -'रेवा दादी कौन ?'
तो
बड़े भैया ने सड़क के दूसरी तरफ एक झोंपड़ी की ओर इशारा करते हुए कहा-'वहां रहती हैं रेवा दादी। कुछ देर पहले
मैंने उन्हें बाहर निकल कर पानी पानी
चिल्लाते हुए सुना था। पता चला कि कोई उनका पानी से भरा लोटा उठा ले
गया था और वह प्यास से बैचैन हैं। मैं उनकी प्यास जरूर बुझा सकता हूँ। उसके बाद हम अपनी खोज यात्रा पर निकल सकते हैं।
'
इसके बाद बड़े भैय्या ने अपने अंदर पानी भरा और रेवा दादी की झोंपड़ी
में चले गए,छुटकू पीछे पीछे था| रेवा दादी जमीन पर सो रही थीं। कुछ
देर बाद उनकी नींद खुली तो पानी से भरा गिलास देख कर चकित हो गईं। उन्होंने पानी
पिया और फिर से सो गईं|बड़े भैया ने संतोष के भाव से कहा--'छुटकू ,आज मुझे लगा कि मैं एकदम बेकार नहीं
हूँ,समय आने पर किसी मदद कर सकता हूँ।'छुटकू ने मन ही मन अपने से पूछा -'और मैं!
'फिर बोला -'भैया,क्या अब हम अपने भाई बंधुओं की खोज
यात्रा पर निकल सकते
हैं।‘ सड़कें सुनसान थीं ,छुटकू सोच रहा था-'कहाँ मिलेंगे हमारे भाई बंधु ?'
वे कुछ ही दूर गए होंगे कि धीमी आवाज़े सुनकर ठिठक गए, कुछ दूर एक दरवाज़ा खुला हुआ था, आवाजे उसी में से सुनाई दे रही थीं।
वह था कबाड़ का गोदाम। ये दोनों झांक कर देखने लगे,तभी छुटकू ने उत्तेजित स्वर में कहा’’-बड़े भैया,हम ठीक जगह आ गए हैं-सामने देखो ,हमारे कितने भाई बंधु यहाँ मौजूद हैं।'
गोदाम
में एक तरफ अल्मीनियम के बर्तनों का ढेर पड़ा था।बड़े भैया और छुटकू अचरज
से
देखते रह गए । छुटकू की आँखों में गीलापन भर गया |क्या उसकी खोज पूरी हो गई थी ?
वह
बड़े भैया से कुछ कहता ,उससे पहले बर्तनो के ढेर से एक पिचकी हुई थाली आगे आई। उसने पूछा 'आप लोग यहाँ क्यों आये हो?’
बड़े भैया ने कहा-'थाली बहन ,हम अपने भाई बंधुओं की खोज में भटकते हुए यहाँ आ गए हैं।’ और फिर उन्होंने अपनी और छुटकू की दुःख कथा कह सुनाई। थाली क्या कहती,वहां ढेर में मौजूद अल्मीनियम के टूटे
फूटे और विकृत बरतनो की भी तो यही कहानी
थी।कौन किसे तसल्ली देता।
छुटकू बोलने के लिए उतावला हो रहा था
-उसने कहा-'आपको मौसी या दादी कहूं तो आप नाराज़ तो
नहीं होंगी। ' उन दोनों की बातें ढेर में पड़े सारे
बर्तन कान लगा कर सुन रहे थे।
2
बड़े भैया के और कुछ कहने से पहले छुटकू बोला -' आज मेरा सपना सच हो गया,
मैं
अपने परिवार के बीच खुश हूँ। क्या मैं और बड़े भैया आप सब के साथ यहाँ रह सकते हैं?'
वहां सन्नाटा छा गया। और फिर
आवाज़ें उभरने लगी-' नहीं नहीं ,ऐसी गलती कभी मत करना।’
ये दोनों चकित भाव से सोच रहे थे आखिर उनके भाई बंधु मना क्यों कर रहे हैं!
थाली ने कहा-'हम सभी यहाँ इसीलिए इकट्ठे हुए थे कि
सब एक बड़े परिवार क तरह मिलजुल कर रहेंगे। हमारे जैसो की अपनी अलग ही दुनिया होगी,
लेकिन
कल यह भ्र्म एक झटके से टूट गया।'
"क्या हुआ?'-छोटू ने जानना चाहा। वह बहुत बैचैन हो
गया था।
थाली ने जो बताया ,उससे पता चला -कल दिन में एक टेम्पो वाला
आया था, कबाड़घर के मालिक ने उसे बहुत सारे पुराने बर्तन बेच दिए, टेम्पो वाले ने कहा था-इन्हें गला
कर इनसे नई काम लायक चीजें बनाई जाएंगी। तब ये ऐसे भद्दे
और कुरूप नहीं दिखेंगे,और तब इन्हें बेच कर अच्छे पैसे कमाए
जा सकेंगे। । '
'अरे '-छुटकू के मुंह से निकला।
थाली ने आगे कहा-' हम पुराने और भद्दे सही पर अब प्रश्न
प्राण बचाने का है। इसीलिए हमने तुरंत यहाँ से चले जाने का निर्णय किया है। आप
दोनों भी सावधान रहे,और इस जगह न रुकें।'
बड़े भैया ने छुटकू से कहा-'अब तो यहाँ से तुरंत चल देना चाहिए।'
'लेकिन अपनों की खोज यात्रा तो अधूरी ही रह गई, अब हम कहाँ जाएंगे ,क्या करेंगे !
बड़े भैया ने कहा-', चिंता मत करो। हम अपने घर जा रहे हैं। '
'अपने घर !'छुटकू कुछ नहीं समझ पा रहा था।
3
‘थोड़ी देर में ये दोनों रेवा दादी की झोंपड़ी ने
सामने खड़े थे।
बड़े भैया ने कहा-'छुटकू ,अब यही है हमारा नया घर,तुमने देखा कि हम किसी के कोई नहीं हैं।
लेकिन अब मैं रेवा दादी की प्यास बुझाने की सेवा करना चाहता हूँ '
'और मैं?'-छुटकू ने पूछा
‘पहले मैं अकेला था फिर हम दो हुए और अब हम रेवा
दादी के हो गए हैं। मुझे पक्का विश्वास है रेवा दादी के घर में हमें प्यार मिलेगा,यहाँ कोई हमें कुरूप नहीं कहेगा,घर से बाहर नहीं निकालेगा।'कह कर बड़े भैया ने अपने को पानी से भरा
और सोती हुई रेवा दादी के पास जा खड़े हुए। छुटकू पास ही था। उसे लग रहा था जैसे अपनों की खोज यात्रा
पूरी हो गई है।
और हाँ,आपको जंगल की गुफा में मिले अल्मीनियम
के टूटे फूटे बर्तनो के ढेर की बात जरूर याद होगी. ये वही बर्तन थे जो अपने को
बचाने के लिए कबाड़ी के गोदाम से निकल कर
गुफा में जा छिपे थे। (समाप्त )
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