खटमिठ चूरन-बाल
गीत-देवेंद्र कुमार
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मैंने बाबाजी से पूछा
उनका बचपन कैसा था
दोनों गाल फुलाकर बोले
खटमिठ चूरन जैसा था
सारा दिन पेड़ों पर चढ़ता
कभी-कभी थोड़ा सा पढ़ता
घर का कोई काम ना करता
मन गुब्बारे जैसा था।
रोज नदी पर नहाने जाता
जंगल में फिर फुर्र हो जाता
शाम ढले छिप घर में आता
लगता चोरी जैसा था
जैसे मैं हूं तेरा बाबा
वैसे ही थे मेरे बाबा
जैसा तू है वैसा मैं था
बचपन बच्चों जैसा था।
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