गड़बड़झाला-शरारती बाल गीत-देवेंद्र कुमार
========
आसमान को हरा बना दें
धरती नीली पेड़ बैंगनी
गाड़ी नीचे ऊपर हम सब
फिर क्या होगा-गड़बड़झाला!
कोयल के सुर मेंढ़क बोले
उल्लू दिन में आंखें खोले
सागर मीठा, चंदा
काला
फिर क्या होगा-गड़बड़झाला!
दादा मांगें दांत हमारे
रसगुल्ले हों खूब करारे
चाबी अंदर बाहर ताला
फिर क्या होगा-गड़बड़झाला!
चिडि़या तैरे मछली चलती
आग यहां पानी में जलती
बरफी में हो गरम मसाला
फिर क्या होगा-गड़बड़झाला!
दूध गिरे बादल से भाई
तालाबों में पड़ी मलाई
मक्खी बुनती मकड़ी जाला
फिर क्या होगा-गड़बड़झाला!
======================
No comments:
Post a Comment