मेरी बन्नो =देवेंद्र कुमार
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उसका नाम था
रामदास, लेकिन अब लोग उसे सिर्फ ‘एक बूढ़ा आदमी’, ‘बुढ्ढा’ जैसे नामों से
पुकारते थे। वह दुनिया में अकेला था। एक दुर्घटना में पत्नी और बच्चों की मृत्यु
हो गई थी। उनके दुख में पागल की तरह इधर-उधर घूमता रहता था। धीरे-धीरे उसके घर का
सामान गायब होने लगा। फिर एक दिन ऐसा भी आया, कुछ गुंडे उसके मकान में घुस गए। रामदास ने विरोध किया तो
उन लोगों ने उसे मार-पीटकर भगा दिया। बेचारा रामदास बस्ती के बाहर वाले खंडहर में
रहने लगा। वहाँ मलबे के ढेर थे। लोग घरों का कूड़ा वहाँ फेंक देते थे।
एक दिन खूब पानी
बरसा। खंडहर में भी पानी भर गया।रामदास भीग गया। उसे उम्मीद थी कि कोई तो उससे
कहेगा, “आओ बाबा, हमारे घर में आ जाओ।” पर रामदास की सुध किसी ने नहीं ली। उसी रात रामदास ने सोचा
कि वह अब इस मोहल्ले में नहीं रहेगा, जहाँ कोई दुख में पड़े आदमी की मदद नहीं करता। वह वहाँ से चल दिया। भटकता-भटकता जंगल की तरफ
बढ़ गया। चलता चला गया। रामदास थककर एक पेड़ के नीचे बैठ गया। अब उसके बूढ़े पैरों
ने चलने से इनकार कर दिया था। वह सोच रहा था, “क्या इस दुनिया में ऐसा कोई नहीं, जो मेरी मदद करे।‘’
वहाँ भला सुनसान
जंगल में उसके मन की पीड़ा कौन समझता। थकान और दुख से रामदास की आँखों से आँसू बह
चले। वह सिसकने लगा।
जंगल में रहती थी
वनदेवी। वह जंगल की रक्षक थी। मुरझाए फूल खिलाती थी, पशुओं को शिकारियों के शिकार बनने से बचाती थी, कोई पशु-पक्षी घायल हो जाए तो अपने जादू से उसे
चंगा कर देती थी। वनदेवी ने रामदास को उदास बैठे देखा। सोचा, “मुझे इस बूढ़े आदमी की सहायता करनी चाहिए।”
उसने हाथ हिलाए
तो रामदास के सामने स्वादिष्ट भोजन से भरी एक थाली दिखाई देने लगी। रामदास ने भोजन
से भरी थाली को देखा तो चौंक उठा। वह समझ न पाया कि थाली वहाँ कौन लाया। और इस तरह
थाली रखकर चुपचाप चला क्यों गया! ‘क्या भोजन लाने
वाला मुझसे एक बार मेरा हाल भी नहीं पूछ सकता था। मैं कोई भिखारी नहीं हूँ।’
रामदास ने सोचा और निश्चय कर लिया कि वह उस
थाली को छुएगा भी नहीं।
रामदास को जोरों
की भूख लग रही थी। पर वह था स्वाभिमानी। वह वहाँ से उठा और दूर जाकर बैठ गया। यह
देखकर वनदेवी मुस्कराने लगी। वह समझ गई कि इस तरह रामदास कोई भी सहायता नहीं लेगा।
उसने कुछ सोचा और फिर देखते-देखते वह एक छोटी लड़की के रूप में बदल गई।
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अब एक छोटी लड़की
जंगल में खड़ी थी। उसने साधारण कपड़े पहन रखे थे। उसके दोनों हाथों में एक-एक फल
था। फिर वह रामदास की ओर चल दी।रामदास ने देखा एक छोटी लड़की धीरे-धीरे उसकी ओर आ
रही है। वह आश्चर्य से देखता रह गया। भला वह लड़की उस निर्जन जंगल में कहाँ से आ
गई।रामदास उठा और उस लड़की के पास जा पहुँचा। लड़की के सिर पर हाथ फेरते हुए पूछा,
“बेटी, तेरा नाम क्या है? इस जंगल में
अकेली क्यों घूम रही है?”
छोटी लड़की बनी
वनदेवी ने कहा, “मेरा नाम तो
वनदेवी है, पर सब मुझे बन्नो कहते
हैं।”
“वाह, बन्नो तो बहुत प्यारा नाम है। पर यह तो बता
तेरा घर कहाँ है?” रामदास ने पूछा।
“मेरा घर तो यहीं
है।” बन्नों ने कहा।
“यहीं कहा?
तू किसके साथ रहती है?” रामदास ने कुछ आश्चर्य से पूछा। फिर बोला, “बेटी, जंगल में अकेली घूमना ठीक नहीं। चल मैं तुझे तेरे घर पहुँचा दूँ।” रामदास ने वनदेवी का हाथ पकड़ लिया।
वनदेवी कैसे
बताती कि वह सचमुच कौन है! वह चुप खड़ी रही। उसकी चुप्पी से रामदास कुछ और ही
समझा। उसे लगा, यह लड़की अनाथ है,
अकेली है। कोई इसकी देखभाल करने वाला नहीं है।
उसने कहा, “बेटी, मैंने पूरी बात समझ ली है। कोई फिक्र नहीं,
मैं तो हूँ! तू मेरे साथ रहेगी आज से।”
वनदेवी मन ही मन
मुसकराने लगी, ‘वाह, मैं तो इसे दुखी जानकर मदद करने आई थी, पर यहाँ तो यह बेसहारा बूढ़ा खुद मेरी ही मदद
करने को तैयार है!’
तभी आकाश में
बादल घिर आए, बिजली चमकी और
तेज बारिश होने लगी। रामदास को अपनी नहीं, बन्नो की चिंता होने लगी। उसने झट अपना कुरता उतारा और बन्नो के बदन पर लपेट
दिया। कहने लगा, “यह तो गड़बड़ हो
गई। यहाँ तो कोई जगह भी नहीं है, जहाँ बारिश से
बचा जा सके। चलो किसी घने पेड़ की तलाश करें। उसके नीचे कुछ तो रक्षा होगी बारिश
से।” और रामदास बन्नो का हाथ
थामकर तेजी से चलने लगा।
वनदेवी ने देखा,
रामदास बारिश में भीग गया था। एकाएक उसने कहा,
“बाबा, वह देखो, वहाँ एक गुफा है।”
रामदास ने बन्नो की बताई दिशा में देखा। सामने
एक गुफा दिखाई दे रही थी। वह झटपट बन्नो को लेकर गुफा में पहुँच गया। बन्नो ने
उसका कुरता वापस देते हुए कहा, “बाबा, इसे पहन लो, तुम बीमार हो जाओगे।”
“मुझे अपनी नहीं
तेरी चिंता है। भला तू जंगल में अकेली कैसे रहेगी। यहाँ शेर-चीते हो सकते हैं,
साँप निकल सकते हैं। ना, मैं तुझे यहाँ नहीं छोड़ूँगा। तुझे कहीं और ले जाऊँगा।”
“कहाँ ले जाओगे
बाबा?” बन्नो ने पूछा। वनदेवी को
रामदास की बातों में आनंद आ रहा था।
“कहीं भी। मैं
मेहनत-मजूरी करूँगा, पर तुझे कोई
तकलीफ नहीं होने दूँगा।”
वनदेवी सोच रही
थी, ‘कैसा विचित्र मनुष्य है।
यह दुनिया से दुखी होकर जंगल में भूखा-प्यासा भटक रहा है, पर एक अकेली लड़की को देखकर चिंता कर रहा है। और अपने सारे
दुख भूलकर उसके लिए कुछ भी करने को तैयार है।’
ऐसा पहली बार हुआ
था कि कोई आदमी वनदेवी की सहायता करने की बात करे। अब तक तो वनदेवी ही दुखियों की
सहायता करती आई थी। उसका मन करुणा से भर उठा। कितना भोला-भाला और अच्छा इंसान है
यह। इसके मन में दूसरों के लिए कितना प्यार है। पर इसके जीवन में कितना दुख है।
बारिश रुक गई।
रामदास बन्नो का हाथ पकड़े हुए गुफा से बाहर आ गया। वह सोच रहा था, ‘बन्नो के लिए मैं कुछ भी करूँगा। लोगों से मदद
माँगूँगा, कोई भी काम करूँगा। पर इस
नन्ही-मुन्नी अनाथ बच्ची को कोई तकलीफ नहीं होने दूँगा। आज से मैं इसका हूँ,
और यह मेरी। मुझे दुनिया का सबसे बड़ा खजाना
मिल गया है।’
बन्नो बनी हुई
वनदेवी सोच रही थी, “मैं इस भोले
मनुष्य को छोड़कर कैसे जाऊँ! अगर जाऊँगी तो इसे बहुत दुख होगा। और वनदेवी ने
निर्णय किया वह बन्नो के रूप में रामदास के साथ रहेगी और उसे कोई कष्ट नहीं होने
देगी। वह सोच रही थी, ‘’रामदास के प्यार
का जादू तो मेरे जादू से भी बड़ा है।”
रामदास ने देखा
बन्नो चलती-चलती मुसकरा रही थी। वह भी हँस पड़ा। आज वह बहुत खुश था। उसे किसी से
कोई शिकायत नहीं थी। उसे बन्नो जो मिल गई थी। और वनदेवी को मिल गया था एक
भोला-भाला आदमी जिसके प्यार में अद्भुत ताकत थी।(समाप्त )
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