Saturday 15 July 2023

मीठी मास्टरनी -मेरा बचपन-देवेंद्र कुमार

 

मीठी मास्टरनी -मेरा बचपन-देवेंद्र कुमार

 

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उम्र के इस पड़ाव पर खड़े होकर देखता हूँ -कितना कुछ पीछे चला गया है,लेकिन बचपन की स्मृतियाँ अभी तक मुझसे चिपकी हुई हैं या यह कहूं कि ऐसा कोई दिन नहीं होता जब मन भाग कर बचपन की गलियों में न पहुँच जाता हो।   कैसे थे वे खट्टे मीठे अबोध दिन! समृतियों का कोलाज पूरी मुखरता से मेरे अंदर धड़कता रहता है हर पल। 

 

मैंने अपने पिता को नहीं देखा। वह रामपुर में डाक्टर थे। मेरी माँ विद्या  भी बहुत समय तक मेरे साथ  नहीं रह सकीं। उनके हर विरोध के बावजूद उनकी दूसरी शादी कर दी गई -एक अधेड़ विधुर के साथ, जो पांच बच्चों का पिता था। नानी ने ऐसा किस मजबूरी में किया ,इसे मैं कभी नहीं समझ सका। मैं माँ की दूसरी शादी में बाधा न बनूँ इसलिए उन्होंने मुझे अपने पास रख लिया|

 

मेरी शिक्षा बाजार सीता राम के  कमलेश बालिका विद्यालय से आरम्भ हुई।   शुरू शुरू में मैं नानी को अपने साथ बैठा कर रखता था।  वह मुझे स्कूल छोड़ने जातीं तो मैं उन्हें आने न देता।   वह छुट्टी के बाद मुझे साथ लेकर ही लौट पाती  थीं।   वैसे हम बच्चों को घर से लाने और छोड़ने के लिए एक माई की ड्यूटी थी, पर मैं नानी के साथ ही स्कूल आता जाता था।   इस पर मेरे सहपाठी मेरी हंसी उड़ाते थे

 

मेरे जन्मदिन पर नानी ने कहा -' तेरा जन्मदिन स्कूल में मनाएंगे| '  आधी छुट्टी में हलवाई का आदमी नाश्ता लाया। सब बच्चों ने एक साथ मिल कर नाश्ता किया तो मुझे बहुत अच्छा लगा।   दावत में अध्यापिकाएं भी शामिल थीं। उनमें एक का नाम था--विद्या ,पर वह स्कूल में मीठी मास्टरनी के नाम से मशहूर थीं।  वह हर दिन आधी छुट्टी के समय एक थाली में मीठी गोली,टाफी लेकर बैठ जातीं ,बच्चे उन्हें घेर लेते। बच्चों को मनचाही मीठी गोली या टाफी लेने की  छूट थी।   मीठी मास्टरनी बच्चों से कोई दाम नहीं लेती थीं। हम बच्चे उन्हें बहुत पसंद करते थे। मैं सोचता था- आधी छुट्टी में मीठी मास्टरनी औरों की तरह नाश्ता क्यों नहीं करती थी ! क्या हम बच्चों की हंसी से ही उनका पेट भर जाता था!

 

उन्हें बच्चों से बातें करना अच्छा लगता था। हम बच्चे उन्हें जितना पसंद करते थे ,स्कूल के बाकी लोग उनसे चिढ़ते थे ,पता नहीं क्यों। कई बार मैंने स्टाफ को उनके बारे में बातें करते सुना था। शायद विद्या जादू जानती है। इसीलिए बच्चे इसे पसंद करते हैं। यह तो ठीक नहीं।' पता नहीं स्कूल की दूसरी अध्यापिकाएं उनके बारे में ऐसी गलत बातें क्यों करती थीं! क्या मीठी मास्टरनी सच में कोई जादू कर देती थीं कि हम बच्चे उनकी तरफ खिंचे चले जाते थे। 

 

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        मेरे जन्म दिन की दावत वाले दिन से विद्या मास्टरनी मुझ पर कुछ ज्यादा ध्यान देने लगी थीं।उन्हे पता चल गया था कि उनका और मेरी माँ का नाम एक ही था। जब भी मैं उनके पास जाता तो वह प्यार से मेरे बाल सहला देतीं, कहती-'तुम्हारे बाल और नाखून इतने बढे हुए क्यों हैं ? क्या ठीक से नहाते नहीं हो ! जब भी मैं उन्हें देखता या उनका नाम सुनता तो मुझे माँ याद आ जातीं, मैं  जैसे उड़ कर उनके पास पहुँच जाता, और मेरा मन उदास हो जाता। 

 

          एक दिन की बात, नानी को काम से कहीं जाना था इसलिए मैं माई के साथ घर जाने वाला था। लेकिन मीठी मास्टरनी ने कहा-'देवन, (मेरा नाम देवेंद्र है पर नानी मुझे 'देवन'कहती थीं ) आज मैं तुम्हें तुम्हारे घर छोड़ दूँगी।' लेकिन वह मुझे अपने घर ले गईं। मैंने कहा -'मुझे नानी के पास छोड़ दीजिये| '

 

           मीठी मास्टरनी ने कहा-थोड़ी देर में चलेंगे।'और उन्होंने मेरे बढे  हुए बाल और नाखून काटे,फिर मुझे रगड़ रगड़ कर स्नान  कराने के बाद पता नहीं किसके कपडे पहना दिए! अब मुझे डर लग रहा था। मैं तो रोज़ नहा कर ही स्कूल जाता  था। फिर उन्होंने मुझे दुबारा क्यों नहला दिया था। और पता नहीं किस बच्चे के कपडे पहना दिए थे!

 

   नानी के पास जाना है। 'मैंने कहा,और तभी नानी वहां आ गईं। नानी ने मीठी मास्टरनी को खूब भला बुरा कहा और मेरा हाथ पकड़ कर दरवाजे की तरफ बढ़ी तो मास्टरनी ने कहा-' आपको जो कहना था आपने कह दिया,अब मेरी भी तो सुन लीजिये।''  नानी ने मुड  कर मास्टरनी की ओर  देखा  तो उन्होंने कहा-'  पता नहीं आपने मेरे  बारे में क्या गलत सुन और सोच  लिया।

 

         तुमने देवन को मेरे पास क्यों नहीं छोड़ा, अपने साथ  क्यों ले  आईं, तुम चाहती क्या हो?' 

 

           केवल यही कि आपका देवन भी दूसरे बच्चों की तरह साफ़ सुथरा होकर स्कूल जाए। 

 

           'हम घर से इसे तैयार करके ही स्कूल भेजते हैं'-नानी ने कहा। 

 

' क्या आपने  देवन के बढे बाल और गंदे नाखूनों पर कभी ध्यान दिया ?'

 

 नानी चुप खड़ी रही, मीठी मास्टरनी कहती रहीं -'स्कूल के दूसरे बच्चों की तुलना में देवन मुझे हमेशा गन्दा लगता था। इसीलिए आज मैं इसे अपने साथ ले आई| इसके बाल और गंदे नाखून काट दिए और  नहला कर अपने पोते विमल के नए कपडे पहना दिए।  क्या मैंने कुछ गलत किया?’

 

 'कहाँ है तुम्हारा पोता विमल? '

 

मास्टरनी ने कहा -'मेरा बेटा परिवार के साथ दूसरे शहर में रहता है। और बार बार मुझे बुलाता रहता है ,पर मैं नहीं जाती,मुझे स्कूल के बच्चों के साथ रहना अच्छा लगता है।  मुझे देवन की माँ विद्या के बारे में सब मालूम है। वह पास होती तो आपको देवन की चिंता न करनी पड़ती।

 

 नानी ने आगे कुछ नहीं कहा और मुझे घर ले आयीं।

 

इसके दो दिन बाद मीठी मास्टरनी को स्कूल से निकाल दिया गया।स्कूल में चर्चा हो रही थी कि विद्या मास्टरनी मीठी गोली देकर बच्चों पर जादू टोना करती थी इसीलिए उन्हें हटा दिया गया।   पर मुझे इस पर जरा भी विश्वास  नहीं था। मैं सोच रहा था -क्या अब वह अपने बेटे के पास चली जाएंगी और मैं उन्हें फिर कभी नहीं देख सकूंगा। 

 

लेकिन दो दिन बाद स्कूल से लौटते हुए , मैंने उन्हें स्कूल के पास वाली गली में चबूतरे पर बैठे देखा। उनके आगे गोली-टाफी से भरा थाल रखा था। और गली में  आते जाते बच्चों ने उन्हें घेर रखा था। वह मुझे देख कर मुस्कराईं तो मैंने उनके पास जाना चाहा,पर नानी ने मेरा हाथ कस कर पकड़ा हुआ था, वह मुझे जैसे खींचती हुई घर की तरफ ले गईं।शायद नानी को भी लगता था कि वह गोली -टाफी से लुभा कर बच्चों पर जादू करती थीं। मुझे नानी पर गुस्सा आ गया।  मतलब वह भी लोगों की झूठी बातों को सच मान बैठी थीं।

 

मैं नानी से लड़ना चाहता था ,लेकिन  इसकी जरूरत नहीं पड़ी। एक दिन नानी ने पूछा -'क्या अपनी मीठी मास्टरनी के पास चलेगा ?' सुनते ही मेरा मन  ख़ुशी से उछल पड़ा। यानि वह औरों की तरह मीठी मास्टरनी को बुरा नहीं समझती थीं। मैं नानी के साथ मास्टरनी के घर गया ,उस समय वह सिलाई  मशीन पर काम कर रही थीं।उन्होंने मुझे झट गोदी में भर लिया और प्यार करने लगीं। नानी से कहा -;आज मेरे मन का बोझ उतर गया। मुझे लगता था कि आप भी मुझे गलत समझती हैं। '

 

नानी ने बीच में कहा-'उस दिन घर जाने के बाद मैंने सोचा और तब मुझे लगा कि देवन को सच में रोज उस तरह साफ़ सफाई से तैयार करना चाहिए जैसे तुमने किया था। सच कहूँ तो मैंने कभी किसी बच्चे को तुम्हारी तरह तैयार करके स्कूल नहीं भेजा।'  फिर कहा-'तुम्हारी नौकरी तो छूट गई।  अब क्या करोगी? अच्छा हो अपने बेटे के पास चली जाओ| '

 

मीठी मास्टरनी ने इंकार में सिर हिला दिया –मैं एक विमल के लिए इतने सारे बच्चों का प्यार नहीं छोड़ सकती। इन सबमें मुझे अपना पोता विमल ही तो नज़र आता है।रोटी की परेशानी नहीं होगी। मुझे कपडे सीना अच्छी तरह आता है। जैसे तैसे गुज़ारा हो ही जाएगा।'

 

क्या सचमुच मीठी मास्टरनी बच्चों से इतना प्यार करती थी जो वैसे उनके कुछ न होकर भी सब कुछ थे। इसके बाद मैं कई बार नानी के साथ मीठी मास्टरनी के घर गया,वे दोनों आपस में खूब बातें करती थीं| हर बार नानी उन्हें यही सलाह दिया करती थीं कि  वह अपने बेटे के पास चली जाएँ ,यहाँ अकेली न रहें । पता नहीं क्यों नानी की यह बात मुझे बुरी लगती थी। 

 

और फिर  एक दिन मैं नानी के साथ उनके घर गया तो वहां ताला लगा था। पता चला  उनके बेटे की तबियत खराब है इसीलिए चली गई हैं। इसके बाद मैंने उनको  कभी नहीं देखा| मैं सोचता था-'क्या विमल के प्यार में वह हम बच्चों को भूल गई हैं। मेरा काफी समय गली लेहसवा में बीता। वर्ष १९९३ में मेरा परिवार पटपड़गंज आ गया| इतना समय बीत जाने पर भी मैं मीठी मास्टरनी को आज तक नहीं भूल सका हूँ।  ( समाप्त)

1 comment:

  1. यह एक अच्छी शिक्षिका को स्मरणांजलि है।

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