Monday 17 July 2023

संजू =देवेंद्र कुमार

 

 संजू =देवेंद्र कुमार

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उस सुबह बादल घिरे थे। हलकी बारिश हो रही थी। प्रतिमा देवी रोज की तरह मंदिर जा रही थीं, मंदिर के निकट पहुँचते ही उन्होंने पुजारी जी को किसी पर चिल्लाते हुए सुना, एक आदमी मंदिर की सीढ़ियों के पास सिर झुकाए खडा था। प्रतिमा देवी ने पूछा तो पुजारी ने उस आदमी की ओर संकेत करते हुए कहा, “यह मंदिर में सेवा के समय कभी नहीं दिखाई देगा, लेकिन प्रसाद बंटते समय लाइन में सबसे आगे रहता है।

प्रतिमा देवी उसे जानती हैं। वह है संजू, उसका एक हाथ कलाई से कटा हुआ है। उसके पास कोई काम नहीं है। कहता है कि वह तो काम करना चाहता है, पर कोई काम देता ही नहीं। उसका आधा हाथ देखते ही मना कर देते हैं। वह अपना आधा हाथ कुरते की बांह में छिपाए रहता है। प्रतिमा देवी ने अक्सर ही संजू को लोगों से झिडकियाँ खाते देखा है। उन्हें यह सोच कर बुरा लगता है कि कभी कभी कोई कितना बेचारा हो जाता है। उन्होंने कहा, “संजू, पुजारीजी ठीक कह रहे हैं। तुम्हारा एक हाथ खराब है, लेकिन ठीक हाथ से भी तो बहुत कुछ किया जा सकता है।

संजू ने प्रतिमा देवी की ओर देखा जैसे पूछ रहा हो, “आखिर मैं क्या कर सकता हूँ। उन्होंने कहा, “संजू, मंदिर के आसपास सफाई कर डालो। यह काम एक हाथ से बखूबी किया जा सकता है। सुबह सुबह सफाई वाली मुन्नी मंदिर के आस पास झाड़ूपोंछा कर जाती है, लेकिन कुछ देर बाद फिर से सफाई की जरूरत महसूस होने लगती है। मंदिर पर छतनार पेड़ से पत्ते और परिंदों की गंदगी गिरती रहती है। मंदिर के फर्श पर गिरे फूल और प्रसाद के कण जमीन पर चिपक जाते हैं।

संजू ने एक तरफ रखी झाड़ू उठाई और सफाई करने लगा। प्रतिमा देवी ने संजू से कहा, “जैसा मैंने कहा है उसी तरह रोज करोगे तो किसी से कुछ माँगना नहीं पड़ेगा।अब रोज मंदिर की सफाई करना। तुम्हारे भोजन की जिम्मेदारी मेरी।

प्रतिमा देवी अब रोज संजू को मंदिर के बाहर सफाई करते देखती और संतोष के भाव से मुसकरा देतीं। लेकिन एक दिन गड़बड़ हो गई। उस सुबह प्रतिमा देवी ने किसी औरत के चिल्लाने की आवाज सुनी। सफाई का काम करने वाली मुन्नी संजू को डांट रही थी और वह चुप खड़ा था। मुन्नी बहुत गुस्से में थी|

प्रतिमा देवी ने मुन्नी को पास बुला कर पूछा तो वह बिफर उठी, “संजू मेरी रोजी छीनने की कोशिश कर रहा है तो मैं चुप रहने वाली नहीं।प्रतिमा देवी को मालूम था कि मुन्नी को मंदिर की सफाई करने के लिए सोसाइटी की ओर से महीने की पगार के अलावा सौ रूपए अलग से मिलते थे। उसे लगता था कि संजू उसे मिलने वाले सौ रूपए हड़पने के लिए ही मंदिर की सफाई करने लगा है। प्रतिमा देवी ने कहा, “मुन्नी, तुम बेकार ही घबरा रही हो। संजू से मैंने यह काम करने को कहा है।

 

 सोसाइटी का इससे कुछ लेना देना नहीं है। मैं नहीं चाहती कि संजू या कोई और किसी मजबूरी की वजह से लोगों के सामने हाथ फ़ैलाने पर मजबूर हो। क्या तुम ऐसा चाहती हो?”

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नहीं कभी नहीं, मुझे तो खुद संजू को लोगों की झिडकियाँ खाते देखकर बुरा लगता है।”—मुन्नी ने कहा।

उस दिन के बाद संजू को फिर कोई परेशानी नहीं हुई। वह सुबहशाम दोनों समय मंदिर के आसपास साफ़ सफाई करता था और प्रतिमा देवी ने उसके लिए भोजन की व्यवस्था कर दी थी। अब किसी को संजू से कोई शिकायत नहीं थी। शाम को उसे सोसाइटी के गेट के बाहर सड़क पर घूमने वाले बच्चों से घिरे हुए देखा जा सकता था। उस समय गेट के बाहर मंदिर का प्रसाद बांटा जाता था। संजू बच्चों को लाइन में खड़ा रहने में मदद करता था। और हुडदंगी बच्चे उसका कहा मान भी जाते थे।

एक दिन प्रतिमाजी ने इस बारे में पूछा तो उसने कहा था, “वे सब मुझे अपने बच्चों जैसे लगते हैं। इन्हें देखकर अपने बचपन की शरारतें याद जाती हैं। फिर बताया, “गाँव में हमारे घर के पास से एक पगडंडी नदी की तरफ जाती थी। उसके दोनों तरफ घनी झाड़ियाँ थीं। उनमें साँप बिच्छू निकलते थे। इसलिए उधर से कोई नहीं जाता था। जब मेरी किसी शरारत पर माँ मुझे मारने दौडती तो मैं उस पगडंडी पर चल देता और जोर जोर से कहता, “मैं नदी में जा रहा हूँ। तब माँ भागकर मुझे लिपटा लेती। गुस्सा भूलकर दुलार करने लगती। मैं भी हँसकर उसे गुदगुदा देता। तब माँ मेरा हाथ अपने सिर पर रख कर कसम खिलाती कि मैं फिर कभी उस साँप बिच्छू वाली पगडंडी से नदी की तरफ नहीं जाऊँगा।”—कहते हुए उसकी आवाज भर्रा गई।

एक शाम प्रतिमाजी बाज़ार से लौट रही थीं तो उन्होंने देखागेट के पास चबूतरे पर खड़ा संजू अपना आधा हाथ उठा कर गोल-गोल घूम रहा था और बच्चों की टोली ताली बजा रही थी। शायद ये परम आनंद के पल थे संजू के लिए।

एक सुबह संजू मंदिर के आसपास सफाई करता दिखा पर माथे पर पट्टी बंधी थी, उस पर खून के दाग थे। प्रतिमाजी ने पूछा तो बोला, “बच्चों के झगडे में बीच बचाव करते हुए चोट खा गया,” फिर सिर झुका कर काम में लग गया। प्रतिमाजी की आँखों के सामने कुछ दिन पहले की एक शाम घूम गई। चबूतरे पर नाचता संजू और ताली बजाते बच्चे। क्या ये वही बच्चे थे या कोई और बात थी।

अगली सुबह प्रतिमाजी मंदिर आईं तो संजू नहीं दिखाई दिया। दूसरे दिन भी नहीं आया। प्रतिमाजी ने सोसाइटी के गेट पर पूछा तो गार्ड ने कहा, “कल रात को आया था, साथ में दो बच्चे थे। कह रहा था कि बच्चों को  उनके गांव  छोड़ने जा रहा है। ‘’

इसके  बाद संजू कई दिन तक दिखाई नहीं दिया। प्रतिमा देवी समझ न सकी कि वह कहाँ चला गया था। लेकिन फिर एक दिन मंदिर के बाहर नज़र आया। पास में एक बूढी औरत बैठी फूल मालाएं बना रही थी। संजू उसे फूल दे रहा था।

प्रतिमा देवी ने सोसाइटी के गार्ड से पूछा तो पता चला वह संजू की माँ है।

'लेकिन संजू का तो कोई नहीं है, फिर उसकी माँ कहाँ से आ गई ?'प्रतिमा देवी ने कहा। सुन कर गार्ड रमन ने बताया= बच्चों को उनके घर छोड़ कर संजू लौट रहा था तो एक बूढी अम्मा ने उसे पास बुलाया और उसे चिपटा कर प्यार करने लगी। बार बार कहने लगी कि उसे  कहीं नहीं जाने देगी। कई साल पहले उसका बेटा  घर से न जाने कहाँ चला गया था और कभी लौट कर नहीं आया। तब से बेटे के दुःख में पागल सी हो गई थी।वहां मंदिर के बाहर बैठी रहती थी। पता नहीं संजू के मन में क्या आया । संजू ने उससे कहा -'माँ, मैं तुम्हें साथ ले जाने के लिए ही आया  हूँ। '' और न जाने क्या सोच कर बुढ़िया अम्मा को यहाँ ले आया है।

प्रतिमा देवी देर तक  उसकी माँ को देखती रही। उन्होंने संजू से कुछ नहीं पूछा। इसकी जरूरत भी नहीं थी, संजू को उसकी माँ जो मिल गई थी। (समाप्त )

 

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