बच्चे फूल हैं-कहानी-देवेंद्र कुमार
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सुबह का समय। छुट्टी का दिन था। अभी सूरज पूरी
तरह उगा नहीं था। सैलानी बाग में सैर कर रहे थे। हल्की हवा बदन पर अच्छी लग रही
थी। पेड़-पौधों के पत्ते और टहनियों पर झूलते सुंदर सुगंधित फूल धीरे-धीरे हिल-डुल
रहे थे जैसे आपस में बातें कर रहे हों। फूलों की मीठी-मीठी खुशबू हवा में तैर रही
थी।
दो व्यक्ति एक क्यारी के पास रुककर वहां खिले
फूलों को देखने लगे। बहुत सुंदर दृश्य था। एक ने दूसरे से कहा-‘‘अद्भुत। अति सुंदर।’’
दूसरे ने जवाब दिया-‘‘आपने ठीक कहा। फूल ऐसे लग रहे हैं जैसे
सुंदर-सलोने बच्चों के झुंड।
-‘‘हां, बच्चे इन फूलों जैसे सुकोमल होते हैं।’’ दोनों व्यक्ति कुछ देर फूलों की क्यारी
के पास रुककर इसी बारे में बातें करते रहे
-फूलों जैसे बच्चों और बच्चों जैसे फूल।
फूल भी उनकी बातें ध्यान से सुन रहे थे। उन
दोनों के जाने के बाद एक फूल ने दूसरे फूल से कहा-‘‘तुमने सुना इन दोनों ने क्या कहा।
‘‘हां, सुना। वे बच्चों की तुलना हम फूलों से कर रहे
थे।’
’
‘‘लेकिन बच्चे तो मनुष्य की संतान हैं।
वे हम फूलों जैसे कैसे हो सकते हैं।’’
दूसरा फूल बोला-‘‘यह सब मैं नहीं जानता। लेकिन अक्सर ही मां-बाप
कहते हैं-मेरा बच्चा फूलों जैसा कोमल है, नाजुक है।’’
खामोशी छा गई। हवा का झोंका आया तो फूल फिर से
डालियों पर हिलडुल करने लगे। फूल ने हवा से पूछा तो हवा ने भी वही कहा। फूल बोला-‘‘मैं भी देखना चाहता हूं उन बच्चों को
जिनकी तुलना उनके मां-बाप हमसे करते हैं। लेकिन मैं भला कैसे कहीं जा सकता हूं।
मैं तो टहनी से जुड़ा हूं।’’ तभी हवा का दूसरा तेज झोंका आया और पौधे को
हिला गया। एक कोमल टहनी पौधे से अलग हो गई। टहनी पर एक फूल खिला हुआ था। हवा
फूलवाली टहनी को उड़ा ले चला।
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‘‘वाह!’’
फूल ने कहा। उसे लग रहा था जैसे वह बंधन मुक्त
हो गया है। अब कहीं भी जा सकता है। हवा फूल को उडाए लिए जा रही थी। आगे कूड़े का
बड़ा ढेर पड़ा था| हवा कूड़े के ढेर के ऊपर से गुजरी तो बदबू से
सामना हुआ। फूल ने देखा दो बच्चे कूड़े के ढेर में जैसे कुछ खोज रहे थे। कूड़े में
से निकालकर कुछ चीजें पास में रखी एक बड़ी बोरी में डालते जा रहे थे।
फूल ने हवा से पूछा-‘‘क्या इन बच्चों को हम फूलों जैसा कहा जा सकता
है?’
’
हवा बोली-‘‘भले ही ये दोनों बच्चे गंदे और मैले-कुचैले हैं, पर शायद इनके मां-बाप को इनका चेहरा फूलों
जैसा सुंदर लगता होगा।’’
फूल ने कहा-‘‘ये तो बहुत गंदे हैं। देखो तो सब तरफ कितनी
बदबू फैली है।’
’
हवा बोली-‘‘ये गरीब हैं न। घर गंदा, बस्ती गंदी। पेट भरने के लिए इन बच्चों
के मां-बाप कूड़े के ढेर में से काम लायक चीजें चुनकर बेचते हैं, तब इनका घर चलता है। ये बच्चे इस काम
में अपने मां-बाप की मदद करते हैं। लो, इनसे बात करो। इनका हाल-चाल पूछो।’’ इतना कहकर हवा ने फूल को बच्चों के पास
कूड़े के ढेर पर छोड़ दिया और आगे चली गई। अब फूल कूड़े के बड़े ढेर पर पड़ा हुआ
सोच रहा था-‘‘यह
मैं कहां आ गया!’’
दोनों बच्चों के नाम थे किशोर और कमल। कूड़े के
ढेर में काम लायक चीजें ढूंढ़ते हुए एकाएक कमल के हाथ रुक गए। उसने गहरी सांस ली।
उसके मुंह से निकला-‘‘वाह!
कितनी अच्छी खुशबू है।’
किशोर ने कमल की ओर देखा। बोला-‘‘इस बदबू के बीच खुशबू कहां से आ गई।’’ फिर उन दोनों की नजर एक साथ फूल पर जा
टिकीं। लाल रंग का सुंदर फूल। इसी में से भीनी-भीनी खुशबू आ रही थी। दोनों ने फूल को उठाने के लिए हाथ
बढ़ाए फिर रुक गए। दोनों की हथेलियां गंदगी से काली हो रही थी।
‘‘फूल को मत छुओ। उसे देखो। देखो न हमारे
हाथ कितने गंदे हैं।’’ कमल
बोला। मेरी मां कहती है फूल कोमल होते हैं। उन्हें तो दूर से देखना चाहिए। छूना या
तोड़ना नहीं चाहिए।’’
किशोर ने कहा-‘‘अरे हमने इस फूल को तोड़ा कहां है। यह तो हवा
में उड़कर अपने आप हमारे पास आ गया है। मैंने तो कभी किसी फूल को छूकर नहीं देखा
है।’’ कहते-कहते किशोर ने फूल को उठाकर अपने
गंदे गाल से लगा लिया। गाल कालिख से काला हो रहा था।
2
‘‘अरे ये फूल गंदा हो जाएगा। शीशे में
अपना मुंह तो देख ले जरा।’’ कमल ने उसे चिढ़ाया। पर किशोर फूल को इसी तरह
अपने गाल से सटाए खड़ा रहा, फिर जोर-जोर से सूंघने लगा। ‘‘वाह, कितनी अच्छी खुशबू है।’’
‘‘क्या फूल की सारी खुशबू तू खुद ही सूंघ
लेगा। जरा मुझे भी तो छूने दे इस फूल को।’’
कमल ने याचना भरे स्वर में कहा।
‘‘जरा अपना मुंह और अपनी हथेलियां तो
देख।’’ कहकर किशोर मुस्कराया और उसने फूलदार
टहनी कमल को थमा दी। ‘‘सचमुच
बहुत अच्छी खुशबू है। न जाने गंदगी के इस ढेर पर इतना सुंदर सुगंधित फूल कहां से आ
गया।’’ कमल ने कहा। फिर दोनेां बारी-बारी से
फूल को छूते और सूंघते रहे। वे गंदगी के ढेर से काम लायक चीजें ढूंढ़ने का अपना
काम भूल चुके थे।
‘‘इस तरह हम फूल को बार-बार छुएंगे तो यह
मुरझा जा जाएगा। इसकी खुशबू खत्म हो जाएगी।’’
किशोर ने कहा।
‘‘चलो, यहां से चलें और साफ-सुथरी जगह पर बैठकर इस फूल
से इसका हाल-चाल पूछे।’’ कमल बोला।
‘‘मगर बोरी नहीं भरी तो बप्पा नाराज हो
जाएंगे।’
’
पर कमल ने जैसे किशोर की बात सुनी ही नहीं थी।
उसकी आंखें कूड़े के ढेर पर कुछ खोज रही थी। कुछ दूरी पर एक टूटा हुआ गमला पड़ा
था। कमल ने गमले को उठा लिया, फिर मिट्टी डालकर फूलदार टहनी को गमले में बिठा
दिया।
‘‘हाँ , अब बन गई बात!’’
किशोर ने कहा। कई बार बाग से गुजरते हुए गमलों
में लगे फूल देखे हैं मैंने।’’
‘‘पर यह गमला तो टूटा हुआ है। फूल इसमें
कैसे टिकेगा?’’
‘‘मैं इसे घर ले जाऊंगा।’’ किशोर बोला-‘‘और इसे मां को दे दूंगा। वह इसे
संभालकर रखेगी। कुछ दिन बाद टहनी पर और भी फूल आ जाएंगे।’
’
‘‘दम घुट जाएगा बेचारे फूल का तुम्हारी झोपड़ी में। फूलों को
हवा और धूप चाहिए।’’
‘‘तब क्या करें?’
’
‘‘फूल को यही रहने दो। बोरी भरने का काम
भी तो पूरा करना है। वरना डांट पड़ेगी।’’
कमल ने भरी बोरी को हिलाकर देखा। वह फूल को भूल जाना
चाहता था। पर आंखें थी कि उस तरफ से हट ही नहीं रही थी।
किशोर और कमल फिर से अपने काम में लग गए। पास
में टूटे गमले में फूल हवा में हिलडुल रहा
था।
‘‘मैं तो फूल से बात करूंगा।’’ कमल ने बोरी को एक तरफ रखते हुए
कहा-काम तो हर रोज ही करते हैं।’
’
‘‘आओ फूल से बातें करें।’’
3
‘‘हां, दोस्ती करें। इस काम में हाथ गंदे करते हुए
सारा दिन बीत जाता है।
‘‘सुबह-शाम कुछ पता ही नहीं चलता।’’
‘‘मैं बप्पा से कहूंगा कि कूड़े में हाथ
गंदे न करें। कमल ने कहा।
‘‘मैं भी यही कहूंगा।’’ किशोर ने हां में हां मिलाई। ‘‘लेकिन वह तो कूड़े वाला काम ही जानते
हैं। हमसे भी यही करवाते हैं।’’
‘‘मैं तो फूलों का काम करूंगा।’
’
‘‘फूलों का काम! कैसा काम!’’
‘‘कोई भी काम...फूलों के बीच रहूंगा।
फूलों से बात करूंगा। कूड़े से नफरत है मुझे।
’’
‘‘मुझे भी...आओ अपने इस दोस्त से बात
करें।’’ और दोनों टूटे गमले को बीच में रखकर
बैठ गए। कूड़े के विशाल ढेर से बदबू आ रही थी। नीले आकाश में परिंदे शोर कर रहे
थे। टूटे गमले में लगा फूल खुश था, उसे दो नए दोस्त मिल गए थे। तीन फूल हंस रहे
थे।(समाप्त)
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