Friday 2 April 2021

आओ नाश्ता करें—कहानी—देवेन्द्र कुमार ===============

 

आओ नाश्ता करें—कहानी—देवेन्द्र कुमार

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Saturday, 19 August 2017   

  मेरा नाश्ता ऊपर भेज देना। ’—कह कर अमित के बाबा छत की ओर जाने वाली सीढियां चढ़ने लगे।  अमित के बाबा यानि शामलाल जी।  अमित की मम्मी अल्पना नाश्ते की प्लेट लगा रही थी। उन्होंने कहा—‘बाबूजी, छत पर क्यों,अपने कमरे में आराम से बैठ कर… ’ लेकिन बात पूरी न हुई,शामलाल जी तब तक छत पर जा चुके थे।  अल्पना ने अमित के पापा की ओर देखा तो उन्होंने कंधे उचका दिए यानि जैसी बाबूजी की मर्जी।

 रसोई की हवा में मिठास तैर रहा है।  हलवा बन रहा है।  फिर कटलेट की बारी है।  रविवार की सुबह का नाश्ता विशेष होता है।  तब पूरा परिवार एक साथ नाश्ते का आनंद लेता है। वर्ना हर सुबह भागमभाग और हड़बड़ी में गुज़रती है।  पहले अमित स्कूल जाता है फिर उसके पापा विनय निकलते हैं।  इसके बाद अल्पना जल्दी-जल्दी काम निपटा कर आफिस चली जाती है, यह सोच विचार करती हुई कि क्या काम अधूरा छूट गया है।  इन तीनों के जाने के बाद अमित के बाबा घर में अकेले रह जाते हैं।  दोपहर में अमित के स्कूल से लौटने के बाद दोनों साथ साथ भोजन करते हैं, अब शामलाल जी आराम करते हैं।  क्योंकि इससे पहले काम वाली बाई आती है,उसका ध्यान रखना होता है, ऐसे में  आँख मूँद कर आराम से तो लेटा नहीं जा सकता।

  शाम चार बजे बाबा को दवाई देकर अमित ट्यूशन पर चला जाता है।  अमित के पापा के लौटने के काफी देर बाद अल्पना आती है, और कुछ देर आराम के बाद शाम के भोजन की तैयारी में जुट जाती है।  घर और दफ्तर की छह दिनों की भागदौड़ की थकान इतवार की सुबह नाश्ते की मेज पर स्वादिष्ट पकवानों का मज़ा लेते हुए उतरती है। कभी कभी कोई दोस्त या रिश्तेदार् भी आ जाता है तो नाश्ते का मज़ा कई गुना बढ़ जाता है।  घर में खिलखिल की लहरें उठने लगती हैं। लेकिन शामलाल जी को नाश्ते में शामिल ही नहीं किया जाता। इसलिए रविवार के नाश्ते के साथ घुलीमिली हंसी उन्हें एकदम अच्छी नहीं लगती। आखिर ऐसा क्यों होता है उनके साथ?

   अमित के पापा विनय से पूछो तो वह जो कुछ कहेंगे उसका मतलब इतना ही है कि उनके पिता शामलाल जी को कई रोगों ने घेर रखा है।  इसलिए दवाओं के साथ परहेज का भोजन दिया जाता है। पर वह स्वादिष्ट चटपटे खान-पान के शौकीन हैं इसलिए ध्यान रखना पड़ता है।  लेकिन उनके पिता शामलाल इस बात को नहीं मानते। इसलिए रविवार का नाश्ता वह छत पर करते हैं -- तरह तरह के स्वादिष्ट पकवानों से दूर।  नाश्ते की मेज़ से उठने वाली खिलखिल उनके मन को गुस्से से भर देती है।  यदि कोई उनसे पूछे तो वह कहेंगे अगर रविवार को मैं सबके साथ नाश्ता कर लूँगा तो कोई आफत नहीं आ जाएगी।  हाँ मैं हमेशा से स्वादिष्ट और चटपटा खाने का शौकीन हूँ ।  लेकिन  इसके लिए मेरे साथ ऐसा व्यवहार मुझे पसंद नहीं।

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  अमित नाश्ते की प्लेट लेकर छत पर गया तो शामलाल जी मुंडेर के पास खड़े थे।  अमित ने  प्लेट मेज़ पर रख दी। छत पर एक गोल टेबल और दो कुर्सियां रखी हैं।  सर्दियों के मौसम में रविवार की दोपहर सब लोग छत पर धूप का आनंद लेते हैं।  फिर वह बाबा के पास जा खड़ा हुआ। अमित ने देखा कि बाबा मिटटी के बड़े प्याले में छत पर लगे नल से पानी भर रहे हैं।  मुंडेर पर कई बड़ी -छोटी कटोरियाँ रखी हैं। बड़ी कटोरियों में परिंदों के लिए पानी और छोटी कटोरियों में दाने हैं।  मुंडेर से लगा कर पौधों के गमले रखे गए हैं।  

  ‘’बाबा, नाश्ता। ’—अमित ने कहा तो बाबा ने नाश्ते की प्लेट की ओर देखा-- दो बिना मक्खन के टोस्ट,दो बिस्किट, एक कप दूध और एक छोटी कटोरी में दवा की गोलियां। हाँ यही हर दिन का नाश्ता है। रविवार को भी इसमें कोई बदलाव नहीं होता।  उन्होंने गंभीर स्वर में कहा—‘ हाँ देख रहा हूँमैं परिंदों की प्रतीक्षा कर रहा हूँ।  हम साथ साथ नाश्ता करेंगे। ’’

 परिदों के साथ नाश्ता!’—अमित ने अचरज से कहा।

  ‘’ हाँ यह ठीक है कि परिंदे और हम एक दूसरे की बोली नहीं बोल सकते लेकिन एक दूसरे के भाव जरूर समझ सकते हैं।  पशु- पक्षी जगत के प्राणी कब खुश या नाराज या डरे हुए होते हैं इसे समझा जा सकता है।  क्या तुमने डाक्टर डू लिटिल के बारे में सुना है?’

  अमित ने इनकार में सिर हिला दिया।

  वह एक ऐसे डाक्टर थे जिनके घर में अनेक पालतू पशु पक्षी रहते थे। इसलिए रोगी उनके पास आने से डरते थे।  इसलिए उनका दवाखाना बंद हो गया।  तब किसी ने उन्हें जानवरों का डाक्टर बनने की सलाह दी। एक तोते ने उन्हें जानवरों की बोलियाँ सिखाई और वह जानवरों के अनोखे डाक्टर बन गए।  जानवरों का इलाज करने के लिए डू लिटिल ने दूर दूर की यात्राएँ की।

  यह तो कहानी है। ’—अमित ने कहा।

   हर कहानी में कुछ सच्चाई भी होती है। ’—कह कर बाबा हंसने लगे।  बोले—‘ अनेक लोग घरों में पशु पक्षी पालते हैं ,वे उनके भाव अच्छी तरह समझते हैं। ’’  

    ‘’हाँ। यह तो ठीक कहा आपने। ’—अमित बोला।

    ‘’तो बस हमारी छत पर उतरने वाले परिदों के बारे में भी यही सच है। ’’

     ‘’पर छत पर आने वाले परिंदों के साथ कैसे नाश्ता करेंगे आप?’’—अमित ने पूछा।

     जब परिंदे दाना चुगेंगे तो भी टोस्ट खा लूँगा। ’’—बाबा बोले।

     अमित देखता रहा पर कोई चिड़िया या कबूतर नीचे नहीं उतरा। उसने कहा—‘’अगर कोई पक्षी नहीं उतरा तब आप क्या करेंगे?’

      ‘’ तब तो मुझे नाश्ता अकेले ही करना होगा। खैर इसे छोड़ो,यह बताओ आज रसोई में क्या बन रहा है?’

      ‘’माँ ने हलवा और कटलेट बनाए हैं।  मेरी मौसी भी आ रही हैं मालपुए और समोसे लेकर। ’’

     ‘’ वाह ,तब तो बढ़िया दावत होगी। जिस गली में मेरा जन्म हुआ था वहां के हलवाई बहुत अच्छे मालपुए बनाते थे। दूर दूर से लोग  लेने आते थे।  उनका स्वाद मुझे आज भी याद है। ’’ बाबा बोले।

     अभी तक छत पर कोई  परिदा नहीं उतरा था।  अमित ने धीरे से कहा—‘ बाबा,नाश्ता।

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     शामलाल जी ने कहा—‘ मुझे लगता है एक ही तरह के दाने चुग कर बेचारे बोर हो गए हैं।  इतवार को तो उनके भोजन में कुछ बदलाव होना ही चाहिए। क्या कहते हो ?’’

     ‘’बात तो आपकी ठीक है,लेकिन … ’ अमित ने कहना चाहा।

      ‘’अगर मेरी बात ठीक मानते हो तो कुछ करो परिंदों का जायका अच्छा करने के लिए। ’  

      अमित कुछ सोच रहा था,फिर तेजी से नीचे चला गया  तब तक सब नाश्ता कर चुके थे और मेज से उठ कर कमरे में जा बैठे थे।  अमित रसोई में गया। उसने मालपुए, समोसे और कटलेट एक प्लेट में रखे और छत पर जा पहुंचा।  देख कर बाबा हंसने लगे।  उन्होंने कहा—‘ अमित, तुम इनके टुकड़े करो, हम इन्हें कटोरियों में रख कर परिंदों के आने की प्रतीक्षा करेंगे। अमित और बाबा ने मिल कर मालपुए,कटलेट और समोसे के टुकड़ों को मुंडेर पर रखी छोटी छोटी कटोरियों में रख दिया।  अब बाबा मुंडेर के पास खड़े होकर दोनों हाथ हिलाते हुए बार बार  ‘आओ आओ नाश्ता करोकहने लगे।  अमित ने भी बाबा का अनुसरण किया।  लेकिन देर तक भी कोई परिंदा नहीं आया।  एकाएक बाबा ने कहा—‘अब समझ में आया कि बात क्या है। ’’

      ‘क्या?’

      ‘’जब तक हम मुंडेर के पास खड़े रहेंगे तब तक परिदे नीचे नहीं उतरेंगे। ’’

      ‘’तब हम क्या करें?’—अमित ने पूछा । ’’

       ‘’हमें पीछे या नीचे चले जाना चाहिए। ’—बाबा ने कहा।

       बात अमित की समझ में आ गई।  बाबा ने कहा—‘’ तुम नीचे चलो मैं भी नाश्ता करके आता हूँ। ’’

    अमित सीढियों से उतरने लगा। पर फिर ऊपर चला आया।  उसने देखा बाबा मुंडेर के पास खड़े हुए थे,मुंडेर पर कोई परिंदा नहीं था, पर बाबा नाश्ता कर रहे थे।  अमित का मन हुआ कि बाबा से कुछ पूछे लेकिन फिर रुक गया।  उसे बाबा का नाश्ता करना अच्छा लग रहा था। कम से कम रविवार को तो बाबा चिड़ियों के साथ नाश्ता कर ही सकते थे।  उसने तय   कर लिया था कि वह इस बारे में किसी से कुछ नहीं कहेगा,बाबा से भी नहीं ======  

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