'पुलिया का दुःख'
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पुलिया का दुःख'
में मेरा अनुभव बोलता है एक
दिन घर से निकला तो गिर कर चोटिल हो गया,मैंने आवाज़ें सुनी-;अरे देखो तो कितना खून निकल रहा है.' मैंने पास खड़े एक युवक से मदद करने को कहा,पर वह ;जरूरी काम'
की बात कह कर चला गया. मैं
किसी तरह घर आया.उस युवक का इंकार मुझे परेशान करता रहा. हम सभी एक दूसरे की मदद
करना चाहते हैं -मेरे अनुभव के बावजूद यह भाव गलत नहीं हो सकता
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