Saturday 10 April 2021

फिर जो हुआ कहानी-देवेंद्र कुमार ======

 

फिर जो हुआ कहानी-देवेंद्र कुमार

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   यह क्या कर दिया था अशोक ने।  उसके कारण विजय की बर्थ डे पार्टी का प्रोग्राम फुस्स हो गया था।  विजय के मम्मी पापा उससे बहुत नाराज थे।  बात थी ही ऐसी।  सोसाइटी की छोटी पार्किंग  को विजय के जन्म दिन की पार्टी के लिए बुक कराया गया था।  इसलिए वहां से सारी कारें हटा ली गईं थी।  लेकिन अशोक की कार किसी हाथी की तरह खड़ी थी।  गियर में होने के कारण कार को अपनी जगह से खिसकाना असंभव था।  

  इस बीच टेंट वाले ने सुंदर परदे लगा कर आयोजन स्थल को रंग बिरंगी रोशनियों से जगमगा दिया था।  रोशनी में अशोक की कार भयानक अपशकुन जैसी दिखाई दे रही थी।  पता चला कि अशोक के दरवाजे पर ताला लगा था।  वह न जाने कहाँ चला गया था।  यानी उसने जानबूझ कर कार को नहीं हटाया था।  आखिर उसने ऐसा क्यों किया था।  कुछ दिन पहले विजय के पिता रमन से किसी बात पर उसकी कहासुनी हो गई थी।  तो क्या उसने बदले के इरादे से ही कार को नहीं हटाया था।

  विजय की मम्मी ने उत्तेजित स्वर में रमन से कहा —‘ किसी नई जगह का इंतजाम करो, यहाँ इस  अपशकुन के साथ अजय की बर्थ डे पार्टी कैसे मनेगी। ’

  रमन ने कंधे उचका दिए,बोले—‘इतनी तुरत फुरत कोई भी नई जगह नहीं मिल सकती। और फिर सब मेहमानों को तो यहीं का पता दिया गया है। ’ घडी पर नजरें जमा कर कहा-‘ मेहमान थोड़ी देर में आते ही होंगे। ’

  विजय बोला— ‘अगर कार को परदों से ढँक दिया जाये तो। । ’

  विजय के दादा एक तरफ खड़े सब की बातें सुन रहे थे,बोले—‘ हमें इस कार को छिपाना नहीं अपने   प्रोग्राम में शामिल करना है। ’

  ‘वह कैसे!’—सबने एक स्वर में पूछा। वे हैरान थे।

  तभी टेंट वाला सफ़ेद चादर लेकर आया और कार को पूरी तरह ढँक दिया।  सफ़ेद चादर से ढंकी

कार और भी अजीब लग रही थी। लेकिन अब ज्यादा पूछताछ का मौका नहीं था।  मेहमान आने लगे थे।  उनमें बच्चो की संख्या ही ज्यादा थी।  वे खूब सजे धजे थे।  बच्चों के आते ही आयोजन स्थल खिल खिल करने लगा।  उनका शोर गूंजने लगा। कुछ देर के लिए विजय का परिवार कार को जैसे भूल गया।

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  पहले विजय ने केक काटा, हैप्पी बर्थ डे के गाने के साथ बच्चे डांस करने लगे।  दावत के बीच दादा जी ने कहा—‘ सब बच्चे ध्यान से सुनें—तुम्हारे लिए चित्र कला प्रतियोगिता का आयोजन किया गया है। एक कार पर ढंकी सफ़ेद चादर तुम्हारे चित्रों का कैनवास है।  तुम बच्चों को इस पर मनचाहे चित्र बनाने हैं।  सबसे अच्छे चित्र को इनाम मिलेगा। ’ बच्चों ने देखा कि एक तरफ कई कलर बॉक्स,ब्रश और ड्राइंग का सामान रखा है। बस फिर क्या था, तालियों के शोर के बीच बच्चे तितलियों की तरह सफ़ेद चादर पर छा गए। सफेदी पर रंगों के इन्द्रधनुष उभरने लगे। एक घंटे बाद बाल कलाकार कलर पुते हाथों के साथ पीछे हट आये।  सफ़ेद चादर पर तरह तरह की छोटी बड़ी रंगीन आकृतियां उभर आई थीं।  

  अब दादाजी के साथ वहां मौजूद बड़े लोग बाल कलाकारो की अद्भुत कलाकारी देखने लगे। बच्चे उत्सुकता से परिणाम की प्रतीक्षा कर रहे थे। सब खामोश थे। दादाजी ने कहा—‘ सभी कलाकारों ने अद्भुत चित्र बनाये हैं। किसका चित्र सबसे अच्छा है, यह फैसला करना मुश्किल है। और फिर किसी  ने भी अपने बनाये चित्र के नीचे अपना नाम नहीं लिखा है। इसलिए मैं सभी को विजेता घोषित करता हूँ। उन्होंने हर बच्चे को एक बड़ी चाकलेट और कलर बॉक्स दिया। फिर कहा—‘ अभी प्रतियोगिता समाप्त नहीं हुई है। बच्चों को घर जाकर रंगीन चित्र बनाने हैं। और अगले रविवार को यहाँ आना है। उस दिन फैसला होगा कि कौन सबसे अच्छा चित्रकार है। ’

  मेहमान चले गए।  दादाजी ने रमन से कहा—‘ अगले रविवार के लिए इस जगह को बुक करवा लो और कार पर ढंकी चादर को घर में ले आओ।’ घर में उस चित्र-चादर को कमरे की दीवार पर फैला कर लटका दिया गया। अब बच्चों के बनाये चित्र एक साथ देखे जा सकते थे। वे एक रंगीन कोलाज़ की तरह लग रहे थे। पूरा घर बाबा की अद्भुत योजना पर चमत्कृत था।  विजय ने पूछा तो दादाजी बोले—‘ तुम सब कार को वहां से हटाने की तरकीब सोच रहे थे तभी मैंने योजना बना ली थी। और किसी को भेज कर बाज़ार से ड्राइंग का सामान और चाकलेट मंगवा ली थी।‘

   उसी समय दरवाजे की घंटी बजी और अशोक अंदर आ गया।  वह कार के लिए माफ़ी मांगने लगा। उसने बताया कि कार खराब हो गई थी, और उसे किसी जरूरी काम से जाना पड़ा था।  दादाजी बोले—‘ अरे माफ़ी मत मांगो,तुम्हारी कार ने तो हमारे प्रोग्राम की शोभा बढा दी’ और दीवार पर लटकी चित्र-चादर की और संकेत किया। ‘अद्भुत,वंडरफुल!’ अशोक ने कहा। दादाजी ने उसे अगले रविवार के प्रोग्राम के बार में बता दिया। और कहा—‘उस दिन हम सोसाइटी के सब लोगों को बुला रहे हैं बच्चो की कलाकारी दिखाने के लिए। ’

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  अगले रविवार को टेंट लगा कर बच्चों के बनाये चित्रों की प्रदर्शनी लगाई गई, पूरी सोसाइटी के लोगों ने बाल कलाकारों के बनाये चित्रों को देखा। सबसे ज्यादा सराहना मिली सफ़ेद चादर के कैनवास पर उभरी कला कृतियों को। सबने चाय पान का आनंद लिया। बच्चों को ढेर सारे उपहार मिले। देने वालों में विजय के दादा जी के साथ और भी लोग शामिल थे। विजय ने कहा-‘मेरा ऐसा जन्म दिन तो पहले कभी नहीं मना। सचमुच अद्भुत रहा उसका जन्म दिन समारोह। (समाप्त)             

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