Monday 8 April 2024

बढ़िया मिठाई=देवेंद्र कुमार

 

   बढ़िया मिठाई=देवेंद्र कुमार

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बाजघाट के जमींदार रामधारी आज बहुत खुश थे। और क्यों होते! उनका बड़ा बेटा दीपक विदेश से गाँव रहा था, पूरे चार  साल बाद।सारे गाँव में जमींदार के बड़े बेटे के आने की चर्चा थी। रामधारी तथा परिवार के सभी सदस्य सुबह से ही सज-धजकर तैयार थे। दीपक दिन ढले गाँव पहुँचा। एक कार में वह, पत्नी और बच्चे तथा दो कारों में ढेर सारा सामान।

हाथ-मुँह धोकर दीपक तथा उसकी पत्नी और बच्चों ने नाश्ता किया। फिर दीपक माता-पिता को अपने साथ लाया सामान दिखाने लगा। रामधारी तरह-तरह की विदेशी चीजें देखकर हैरान रह गए। वह सोच रहे थे-‘गाँव भला इसे कहाँ पसंद आएगा!’ और दीपक ने कह भी दिया, “देखता हूँ, इतने  साल बाद भी गाँव उतना ही पिछड़ा हुआ है।

दीपक सुबह जल्दी उठ गया। उसने नौकर से कहा कि वह हवेली की छत पर बैठकर चाय पीना चाहता है। रामधारी के सोकर उठने से पहले ही दीपक चाय पी चुका था। छत पर घूम-घूमकर गाँव का निरीक्षण कर रहा था। रामधारी की पुश्तैनी हवेली बहुत बड़ी थी। इतनी बड़ी कि उसकी देख-रेख कठिन थी। पिता ऊपर आए तो दीपक ने कहा, “आप मुझसे यहाँ आकर रहने को  कहते हैं, पर मैं इस पुरानी हवेली में नहीं रह सकता। आप इसे दोबारा बनवाइए। जो पैसा लगेगा, मैं दूँगा।रामधारी चुप रहे। उन्हें दीपक की बात में अहंकार की गंध आई।

हवेली के मुख्य द्वार के पास एक छोटी-सी कोठरी थी। उसमें से काले धुएँ की लकीर ऊपर उठ रही थी। दीपक कुछ पल उठते धुएँ को देखता रहा, फिर पूछ बैठा, “अपनी हवेली के दरवाजे पर यह धुआँ कैसा है!”

रामधारी बोले, “ओह, वह! वहाँ भोलू मिठाइयां  बनाता है। वह जित्ता हलवाई का बेटा! बहुत पहले यह कोठरी इन्हें दी गई थी।

जित्ता हलवाई!” दीपक ने कुछ सोचते हुए दोहराया, “लेकिन हवेली के दरवाजे के ठीक पास इस तरह धुआँ और कालिख रहना तो ठीक नहीं। आप हवेली की मरम्मत करवाएँ तो इसे हटवा दें।

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शाम को चाय पीते समय उसने पिता से फिर भोलू की दुकान हटाने की बात छेड़ दी। रामधारी ने कहा, “बेटा, उसके  बाप-दादा उसी जगह मिठाई बनाते रहे हैं। अब उसे हटाना क्या ठीक रहेगा! कम-से-कम मैं तो नहीं कह सकूँग।

दीपक ने जैसे जिद पकड़ ली। बोला, “कहने की क्या जरूरत है! मैं नौकरों से कह देता हूँ। वे भोलू की दुकान का सामान बाहर फेंक देंगे। हवेली के दरवाजे के ठीक पास धुएँ और कालिख से भरी उसकी दुकान कितनी बुरी लग रही है।

रामधारी ने हड़बड़ाकर कहा, “अरे, ऐसा मत करना! आज ठहर जाओ, कल मैं उससे खुद बात कर लूँगा।

आखिर दीपक की जिद के आगे उन्हें झुकना पड़ा। अगली दोपहर वह भोलू की दुकान पर जा पहुँचे। उन्हें देखकर भोलू हड़बड़ा गया। दौड़कर रामधारी के पैर छुए, फिर हाथ जोड़कर खड़ा हो गया। दुकान में जगह-जगह मिठाइयां रखी थीं ।

रामधारी ने कहा, “भोलू, ये मिठाइयां  कब बनाई थीं?”

सरकार, एकदम ताजी है।फिर एक दोने  में उसने रामधारी के सामने कुछ मिठाइयाँ रख दीं।

नहीं-नहीं, मैं  मिठाई नहीं खाता। वैसे भी बासी मालूम दे रही हैं।रामधारी ने कहा और वापस मुड़ चले, फिर बोले, “हवेली में आना, तुमसे कुछ बात करनी है।

रामधारी का बासी मिठाइयाँ कहना भोलू को चुभ गया। सच तो यह था कि उसने सुबह ही ताजी मिठाइयाँ बनाई थीं।

जमींदार साहब के चले जाने के बाद भोलू देर तक सोच में डूबा खड़ा रहा। दिन ढले उसने दो टोकरियों में मिठाइयां  रखीं और रामधारी से मिलने चल दिया।

ड्योढ़ी पर खबर हुई। नौकर मिठाई की टोकरियाँ अंदर पहुँचा गया। साथ में भोलू भी था।कैसे आए?” उन्होंने पूछा।

सरकार ने ही तो आने का हुक्म दिया था, इसीलिए आया हूँ। ये ताजी मिठाइयां लाया हूँ।भोलू ने कहा।

रामधारी भूल गए थे कि उन्होंने ही भोलू को बुलाया था। असल में तो वह दीपक वाली बात कहने का तरीका खोज रहे थे। भोलू से दुकान छोड़ने की बात कैसे कहें, यह अभी तक समझ में नहीं आया था। उन्होंने कहा, “कल इसी समय आना। अब जाओ।

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भोलू चला गया। रामधारी ने मिठाइयाँ नौकरों में बँटवा दीं। भोलू की बनाई मिठाइयाँ सचमुच बहुत स्वादिष्ट थीं। जिसने खाई, उसी ने भोलू की तारीफ की।

अगली शाम भोलू फिर जमींदार साहब से मिलने आया। वह सोच रहा था-‘आज मिठाइयों की तरीफ जरूर होगी। शायद कुछ इनाम भी मिल जाए।भोलू को अपनी कारीगरी पर बहुत भरोसा था।

लेकिन उसके कानों ने कुछ और ही सुना। रामधारी बोले, “भोलू, तुम्हारी बनाई मिठाइयाँ अच्छी नहीं थीं। इस तरह बासी मिठाइयाँ बेचोगे तो कैसे चलेगा! लगता है तुम अपने बाबा-दादों का सिखाया हुनर भूल गए। मैं सोचता हूँ, तुम्हें शहर में अपने दोस्त की दुकान पर भेज दूँ। वहाँ रहकर काम करोगे तो नई-नई मिठाइयाँ बनाना सीख जाओगे।‘’

भोलू ने छिपी नजरों से जमींदार साहब की ओर देखा। उसे अपने कानों पर भरोसा नहीं हो रहा था। क्या सच में मिठाइयाँ इतनी खराब थीं!

भोलू चुप खड़ा रामधारी की बात सुनता रहा। फिर बोला, “जो हुक्म! बता दीजिए कब कहाँ जाना है।

रामधारी को उम्मीद नहीं थी कि काम इतनी आसानी से बन जाएगा। वह सोचते थे, भोलू शहर जाने को कभी तैयार नहीं होगा। पैर पकड़कर गाँव में रहने की अनुमति माँगेगा, रोएगा, गिड़गिड़ाएगा। लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। रात को पिता-पुत्र में बात हुई। रामधारी ने बता दिया कि भोलू शहर चला जाएगा। दीपक ने कहा, “मैंने हवेली की मरम्मत के लिए शहर से इंजीनियर बुलवाया है। मरम्मत और रंग-रोगन  के बाद हवेली चमक उठेगी। देखकर आप भी हैरान रह जाएँगे।दीपक की बातें सुनकर रामधारी को खुशी नहीं हुई। वह चुप रहे।

हवेली से लौटकर भोलू ने पत्नी से कह दिया, “सामान बाँध लो। जमींदार साहब ने कहा है, कल हमें शहर जाना है। अब हम वहीं रहेंगे। वह मुझे एक हलवाई की दुकान पर काम दिलवा रहे हैं।

सुनकर भोलू की पत्नी तो हैरान रह गई। उसने कहाहम क्यों जाएँ शहर! हमेशा से गाँव में रहे हैं। क्या तुम सचमुच गाँव छोड़ दोंगे?”

हाँ।भोलू ने कहा और मुँह ढाँपकर लेट गया। कुछ देर बाद उठा और बोला, “मैं दुकान पर जा रहा हूँ। मिठाइयाँ बनानी हैं। जमींदार साहब कहते हैं, मैं अपने बाप-दादा का हुनर भूल गया हूँ। देखता हूँ मैं क्या कर सकता हूँ।

पत्नी रोकती रह गई पर भोलू हवेली के द्वार के पास बनी अपनी दुकान में चला गया। रात भर काम करता रहा। उसकी पत्नी ने बहुत बार कहा कि चलकर आराम कर ले, पर उसने एक सुनी। दुकान में रखे सारे सामान की मिठाइयाँ बना डालीं।

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दिन निकला। भोलू की पत्नी दुकान पर आई, तो देखा मिठाइयों के बीच ही भोलू थककर सो रहा है। पति की यह हालत देखकर उसकी आँखें भीग गईं।

दिन में रामधारी को भोलू के आने की खबर दी गई। भोलू अंदर आया। उसके पीछे-पीछे टोकरियाँ लेकर कई लोग भी आए।

यह क्या है?” रामधारी ने पूछा।

भोलू ने हाथ जोड़कर कहा, “सरकार, आज के बाद तो मुझे गाँव छोड़कर चले ही जाना है। मैंने सोचा, दुकान में जितना सामान है, उसकी मिठाइयाँ बना लूँ। आप कह भी रहे थे कि मैं अपने बाद-दादा का हुनर भूल गया हूँ। मेहरबानी करके एक बार तो चखकर देखिए, कैसी बनी हैं।

रामधारी हैरान थे। कमरा मिठाइयों की सुगंध से महकने लगा। वह मना करते रहे। पर भोलू ने बहुत अनुरोध किया। उन्होंने एक रसगुल्ला खा लिया। बहुत रसीला, अत्यंत स्वादिष्ट। भोलू चखने को कहता गया और रामधारी मिठाई खाते गए। उनके मुँह से निकला, “सचमुच मिठाइयाँ बहुत अच्छी बनी हैं!”

सुनकर भोलू के होंठो पर हल्की मुस्कान गई, वह चुप खड़ा रहा। फिर हाथ जोड़कर चलने लगा। रामधारी बोले, “ठहरो, अपना इनाम तो लेते जाओ।कहकर उन्होंने नौकर को कुछ रुपए लाने के लिए आवाज दी।

भोलू ने कहा, “बस, आपने मिठाई खाई, मेरा यही इनाम है।और बाहर चला आया। रामधारी उसे जाते हुए देखते रहे।

शाम को भोलू और उसकी पत्नी हवेली में फिर आए। इस बार उनके साथ दो बड़ी-बड़ी पोटलियाँ थीं। रामधारी दरवाजे पर ही खड़े थे। उन्होंने अचकचाकर पूछा, “अरे भोलू, अब कैसे आए। कुछ चाहिए तो बोलो।

भोलू ने कहा, “सरकार, मैं शहर के लिए तैयार होकर आया हूँ। बताइए, कब, किसके साथ जाना है‌? मैंने दुकान और घर खाली कर दिए हैं।कहकर उसने तालों की चाबियाँ रामधारी को थमा दीं।

रामधारी कुछ पल भोलू की ओर टकटकी लगाए देखते रहे। फिर उनके मुँह  से निकला, “अरे भोलू, तुम चले  जाओगे तो इतनी स्वादिष्ट मिठाइयाँ कौन खिलाएगा?”

लेकिन सरकार आप ही ने तो कहा था...

बस, बस, बहुत हुआ। तुम कहीं नहीं जाओगे। सचमुच तुम बहुत अच्छी मिठाइयाँ बनाते हो। आज से मंदिर में भोग के लिए मिठाइयाँ तुम्हीं बनाओगे। जाओ, घर जाओ। शाम को मेहमान आने वाले हैं। ताजी मिठाइयाँ बनाकर लाओ।कहकर रामधारी ने दुकान और मकान की चाबियाँ भोलू को लौटा दीं।

भोलू को आज फिर अपने कानों पर भरोसा नहीं हो रहा था, लेकिन रामधारी सच कह रहे थे।

भोलू की दुकान फिर खुल गई। वह मिठाइयाँ बनाने में जुट गया। उस शाम रामधारी ने बेटे से कह दिया, “मैंने फैसला किया है, भोलू यहीं रहेगा। रही हवेली की मरम्मत की बात, वह मैं खुद करा लूँगा।

दीपक क्या कहता! हाँ, भोलू की बनाई मिठाइयाँ तो उसने भी खाई थीं। उसे अच्छी लगी थीं। (समाप्त)

 

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